(Right to Freedom of Religion) (अनुच्छेद 25-28)
अनुच्छेद 25(1) के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को अंतःकरण की स्वतंत्रता तथा धर्म को अबाध रूप से स्वीकारने, उसका पालन करने तथा प्रचार करने का अधिकार प्राप्त है।
अंतःकरण की स्वतंत्रता – इसका आशय पूर्ण आंतरिक स्वायत्तता से है, जिसके अंतर्गत व्यक्ति को अपनी इच्छा और आस्था के अनुसार ईश्वर से जुड़ने की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त होती है।
धर्म को स्वीकारने का अधिकार – इसका अभिप्राय यह है कि व्यक्ति अपनी धार्मिक मान्यता और विश्वास को बिना किसी भय अथवा दबाव के सार्वजनिक रूप से प्रकट कर सकता है।
धार्मिक आचरण का अधिकार – इसका तात्पर्य अपने धार्मिक कर्तव्यों, परंपराओं तथा अनुष्ठानों को क्रियान्वित करने की स्वतंत्रता से है।
प्रचार करने का अधिकार – इसके अंतर्गत व्यक्ति को अपने धार्मिक विचारों को अन्य लोगों तक पहुंचाने, प्रकाशित करने अथवा संचारित करने की अनुमति होती है, किंतु इसमें धर्म परिवर्तन के लिये किसी को बलात् प्रेरित करना सम्मिलित नहीं है।
अनुच्छेद 25(2) के अनुसार राज्य को निम्नलिखित आधारों पर उचित प्रतिबंध लगाने का अधिकार है:
- लोक व्यवस्था, नैतिकता तथा स्वास्थ्य की रक्षा हेतु।
- धार्मिक गतिविधियों से संबंधित आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक अथवा अन्य धार्मिक रूप से गैर-संबंधित गतिविधियों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से।
- सामाजिक सुधार और कल्याण के हित में हिंदुओं के सार्वजनिक धार्मिक संस्थानों को सभी वर्गों के हिंदुओं के लिए सुलभ बनाने के लिए।
अनुच्छेद 25 में दो स्पष्ट व्याख्याएं दी गई हैं:
- सिखों को कृपाण धारण करने का वैधानिक अधिकार प्राप्त है।
- “हिंदू” शब्द में सिख, जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायी भी सम्मिलित माने गए हैं।
अनुच्छेद 26 – धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता (Freedom to manage religious affairs)
सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, और स्वास्थ्य की सीमाओं के अंतर्गत प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसका कोई उपविभाग निम्नलिखित अधिकारों का उपभोग कर सकता है:
- धार्मिक और परोपकारी उद्देश्यों के लिए संस्थानों की स्थापना और उनका पालन-पोषण करने का अधिकार।
- अपने धर्म-संबंधी कार्यों का स्वतंत्र प्रबंधन करने का अधिकार।
- चल-अचल संपत्ति का अर्जन, स्वामित्व तथा धारण करने का अधिकार।
- अधिग्रहीत संपत्ति का कानूनी प्रावधानों के अनुसार प्रशासन करने का अधिकार।
एस.पी. मित्तल बनाम भारत संघ वाद, 1982 में उच्चतम न्यायालय ने किसी समुदाय को धार्मिक संप्रदाय के रूप में मान्यता प्रदान करने के लिये तीन प्रमुख आधार निर्धारित किए:
- ऐसा व्यक्तियों का समूह जो किसी सामान्य जीवनशैली में आस्था रखता हो, जो उनके आध्यात्मिक उत्थान हेतु उपयुक्त मानी जाती हो।
- उस समूह का कोई संरचित संगठनात्मक ढांचा होना चाहिए।
- उस समुदाय को पहचान देने वाला कोई विशिष्ट नाम होना आवश्यक है।
नोट – अनुच्छेद 25 का अधिकार व्यक्तिगत होता है, जबकि अनुच्छेद 26 का अधिकार धार्मिक संप्रदायों या उनके विभागों को प्राप्त होता है।
अनुच्छेद 27 – किसी विशेष धर्म के प्रचार हेतु कर भुगतान से स्वतंत्रता (Freedom as to Payment of Taxes for Promotion of any Particular Religion)
अनुच्छेद 27 के अनुसार, किसी भी नागरिक को किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय की प्रसार-प्रचार गतिविधियों के लिए कर अदा करने हेतु बाध्य नहीं किया जा सकता। राज्य को यह अधिकार नहीं है कि वह कर रूप में संचित सार्वजनिक निधि को किसी एक विशिष्ट धर्म की उन्नति के लिए उपयोग में लाए। हालांकि, सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण रखते हुए राज्य उस धन का उचित प्रयोग कर सकता है।
नोट – यह अनुच्छेद केवल करारोपण को निषिद्ध करता है, शुल्क (fee) पर यह लागू नहीं होता। उदाहरण स्वरूप:
कुंभ मेले का आयोजन, अमरनाथ यात्रा की व्यवस्था, हज सब्सिडी, गुरु पर्व समारोह, करतारपुर कॉरिडोर का निर्माण आदि।
अनुच्छेद 28 – कुछ शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या उपासना में भाग लेने की स्वतंत्रता (Freedom as to Attendance at Religious Instruction or Religious Worship in Certain Educational Institutions)
- अनुच्छेद 28(1) – वे शैक्षणिक संस्थान जो राज्य निधि से पूर्णतः पोषित हैं, वहां कोई धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जाएगी।
- अनुच्छेद 28(2) – इस खंड की सीमा उन संस्थानों पर लागू नहीं होती जिनका प्रशासन राज्य करता है, परंतु जो संस्थान किसी ट्रस्ट या विशेष प्रावधान के अंतर्गत स्थापित हुए हैं और जिनकी स्थापना शर्तें धार्मिक शिक्षा देना अनिवार्य करती हैं।
- अनुच्छेद 28(3) – वे संस्थान जो राज्य से मान्यता प्राप्त हैं या राज्य-निधियों से आंशिक रूप से सहायता प्राप्त हैं, वहाँ किसी भी विद्यार्थी को धार्मिक शिक्षा या उपासना में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। यदि आवश्यकता हो, तो संरक्षक की सहमति लेना अनिवार्य होगा।
अनुच्छेद 28 में चार प्रकार के शैक्षणिक संस्थानों का उल्लेख किया गया है:
शैक्षणिक संस्था का प्रकार | धार्मिक शिक्षा का प्रावधान |
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राज्य द्वारा पूर्ण पोषित संस्थान | धार्मिक शिक्षा निषिद्ध |
राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थान | अनुमति है, परन्तु सहमति आवश्यक |
राज्य-निधि से सहायता प्राप्त संस्थान | अनुमति है, परन्तु सहमति आवश्यक |
राज्य द्वारा प्रशासित परन्तु न्यास द्वारा स्थापित | स्वैच्छिक आधार पर धार्मिक शिक्षा की अनुमति |
