उष्ण मरुस्थलीय या सहारा तुल्य जलवायु क्षेत्र की स्थिति तथा विस्तार (Situation and Extent)
उष्ण मरुस्थलीय जलवायु का विस्तार भूमध्य रेखा के दोनों ओर 10° से 30° अक्षांशों के मध्य उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में परिलक्षित होता है। इसके अंतर्गत विश्व के प्रायः सभी प्रमुख मरुस्थल क्षेत्र सम्मिलित किए जाते हैं, जिनमें दक्षिण अमेरिका के चिली एवं पेरू के तटीय शुष्क क्षेत्र, अंगोला और दक्षिण अफ्रीका का पश्चिमी तटवर्ती मरुस्थल, अरब, सहारा, ईरान, तथा भारत-पाकिस्तान का थार मरुस्थल, और उत्तरी मेक्सिको का शुष्क भूभाग सम्मिलित हैं।
जलवायु (Climate)

इन क्षेत्रों में ग्रीष्मकाल के दौरान औसत तापमान सामान्यतः 35° से 40° सेल्सियस के मध्य होता है, जबकि शीतकालीन तापमान प्रायः 15° से 20° सेल्सियस तक सीमित रहता है। यहाँ दैनिक तापांतर सामान्यतः 22° से 28° सेल्सियस और वार्षिक तापांतर लगभग 17° से 22° सेल्सियस के मध्य पाया जाता है। इन मरुस्थलीय प्रदेशों में वाष्पीकरण की दर सदैव वर्षण से अधिक रहती है। अधिकांश क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा 12 सेमी. से भी कम होती है तथा यह वर्षा अत्यंत अनियमित एवं अविश्वसनीय होती है। वायुमंडलीय आर्द्रता या तो अत्यल्प होती है या लगभग शून्य। इन प्रदेशों में प्रायः स्वच्छ एवं बादल रहित आकाश होने के कारण वाष्पीकरण अत्यधिक होता है। वर्षा मुख्यतः संवाहनिक प्रकार की होती है। ‘जैकोबाबाद’ इस जलवायु क्षेत्र का एक प्रमुख प्रतिनिधि नगर है।
वायुदाब एवं पवनें (Air Pressure and Winds)
ये क्षेत्र उपोष्ण कटिबंधीय उच्चदाब के अंतर्गत आते हैं, जहाँ प्रतिचक्रवातीय स्थितियाँ प्रबल रूप से विद्यमान रहती हैं। इन स्थानों पर वायुमंडलीय वायु ऊपर से नीचे की ओर स्थिर एवं शुष्क रूप में उतरती है, जिससे वर्षा की संभावनाएँ अत्यधिक कम हो जाती हैं। इसके साथ ही, यहाँ चलने वाली व्यापारिक पवनें भी वर्षा में सहायक नहीं होतीं। ग्रीष्म ऋतु के दौरान इन प्रदेशों में अत्यंत गर्म तथा तीव्र हवाएँ प्रवाहित होती हैं, जिनमें प्रमुख रूप से लू, खमसिन, सिमूम, हरमट्टन, और ब्रिकफील्डर उल्लेखनीय हैं, जो समूचे वातावरण को अत्यधिक विषम और असहनीय बना देती हैं।