शीतोष्ण कटिबंध का क्या अर्थ है?
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात का विकास पृथ्वी के दोनों गोलार्द्धों में 30° से 65° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के मध्य अवस्थित क्षेत्रों में दो विपरीत प्रकृति वाली — एक उष्ण एवं दूसरी शीतल वायुओं के संमिलन के परिणामस्वरूप होता है। ये चक्रवात मुख्यतः पछुआ पवनों की दिशा में, अर्थात् पश्चिम से पूर्व की ओर अग्रसर होते हैं। इसी प्रभाव से वायुमंडल में मेघ निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ होती है, जो उपयुक्त परिस्थितियों में वर्षा अथवा हिमपात के रूप में परिणत होती है।

इस प्रकार के चक्रवात के केंद्र में एक निम्न, परंतु उष्ण दाब विद्यमान होता है, जबकि इसके बाह्य क्षेत्रों में दाब का परिमाण क्रमशः बढ़ता जाता है, जिससे हवाएँ केंद्राभिमुख गति करती हैं। किंतु ये हवाएँ सीधे केंद्र तक न पहुँचकर कोरिऑलिस प्रभाव के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में समान दिशा में घूमती हैं। यद्यपि ये हवाएँ चक्रवात के केंद्र की ओर संवहन (Convergence) करती हैं, तथापि ये वहाँ संचित न होकर ऊर्ध्वगामी होकर बाहर की दिशा में गतिशील होती हैं, जिससे केंद्र में लगातार निम्न दाब की स्थिति बनी रहती है।
इन चक्रवातों की संरचनात्मक विविधता उल्लेखनीय होती है। इनमें पाई जाने वाली समदाब रेखाएँ सामान्यतः वृत्ताकार अथवा दीर्घवृत्ताकार होती हैं। यदि समदाब रेखाएँ ‘V’ के आकार में दिखाई दें, तो उन्हें ‘वी-आकृति गर्तबंध’ कहा जाता है। वहीं जिन चक्रवातों की चौड़ाई अधिक किंतु गहराई कम होती है, उन्हें निम्न दाब द्रोणिका के नाम से जाना जाता है।
इन चक्रवातों का क्षैतिज व्यास सामान्यतः 300 से 1500 किलोमीटर के बीच होता है, जबकि इनका क्षेत्रीय विस्तार अनुमानतः 16 लाख वर्ग किलोमीटर तक पहुँच सकता है। एक विशिष्ट चक्रवात का ऊर्ध्वाधर प्रसार वायुमंडल में लगभग 9 से 12 किलोमीटर की ऊँचाई तक देखा जाता है।
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात के जीवन-चक्र का संक्षेप में वर्णन (Life Cycle of Temperate Cyclone)
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति, जिसे वातजनन (Frontogenesis) कहा जाता है, से लेकर उसके विलयन (Frontolysis) तक की समग्र प्रक्रिया को चक्रवात का जीवन चक्र कहा जाता है।
A. स्थिर वाताग्र की अवस्था (Stage of Stationary Front)
इस अवस्था में जब उत्तर दिशा से प्रवाहित होने वाली ठंडी एवं शुष्क वायुराशि, दक्षिण दिशा से आने वाली गर्म और नम वायुराशि के निकट आकर विपरीत दिशाओं में समानांतर गति करती हैं, तो उनके संपर्क क्षेत्र में एक स्थिर वाताग्र (Stationary Front) निर्मित होता है। इस चरण में चक्रवात का गठन नहीं होता और मौसम सामान्यतः निर्मल बना रहता है।
B. चक्रवातीय परिसंचरण के प्रारंभ की अवस्था (Stage of Origin of Cyclonic Circulation)
जब स्थिर वाताग्र के निकट दो विपरीत स्वभाव की वायुराशियाँ परस्पर घर्षण करती हैं और उष्ण वायु शीतल वायु क्षेत्र में प्रवेश करने का प्रयास करती है, तो यह क्षेत्र एक तरंगाकार संरचना में परिवर्तित होने लगता है।
इस चरण में वाताग्र को स्पष्ट रूप से उष्ण एवं शीतल खंडों में विभाजित किया जा सकता है—पूर्वी क्षेत्र में उष्ण वाताग्र (Warm Front) तथा पश्चिमी भाग में शीत वाताग्र (Cold Front) का विकास होता है। ठंडी वायु, गर्म वायु को नीचे से विस्थापित करती है, जिससे गर्म वायु ऊपर उठने लगती है। इस दौरान उष्ण लहर (Warm Wave) उसी दिशा में गतिमान होती है, जिस ओर उष्ण वायु प्रवाहित होती है।
C. उष्ण वाताग्र के निर्माण की अवस्था (Stage of Formation of Warm Front)
उष्ण वाताग्र के प्रभाव से जब गर्म वायु सतह से ठंडी वायु को विस्थापित करती है, तब वर्षा धीमी गति से किंतु विस्तृत क्षेत्र में होती है। वहीं, शीत वाताग्र में ठंडी वायु, गर्म वायु को तीव्रता से हटाती है, जिससे वर्षा अल्पकालिक परंतु तीव्र रूप में होती है।
D. शीत वाताग्र के अग्रगमन की अवस्था (Stage of Advancement of Cold Front)
जब शीत वाताग्र तीव्र गति से आगे बढ़ता है, तो उष्ण खंड (Warm Sector) की आकृति एक उल्टे ‘V’ के समान प्रतीत होती है, जो उसके प्रभाव क्षेत्र की विशिष्ट पहचान है।

E. अधिविष्ट अवस्था (Stage of Occlusion)
इस चरण में जब शीत वाताग्र, उष्ण वाताग्र से आगे बढ़कर उसे पकड़ लेता है, तब चक्रवात की गतिक्रिया मंद होने लगती है। इस स्थिति में पश्चिमी भाग की ठंडी वायु, पूर्वी भाग की ठंडी वायु से मिलकर एक संयुक्त क्षेत्र बनाती है, जिससे उष्ण वायु का सतही संपर्क टूट जाता है और वह पूरी तरह से ऊर्ध्वगामी हो जाती है। इस प्रक्रिया को ‘अधिविष्ट वाताग्र (Occluded Front)’ कहा जाता है।
F. समाप्ति की अवस्था (End Stage)
इस अंतिम चरण में वायुमंडलीय स्थिति धीरे-धीरे पुनः प्रारंभिक स्थिति की ओर लौटने लगती है, और चक्रवात पूर्णतः लुप्त हो जाता है।
शीतोष्ण चक्रवात में वर्षा तथा मौसम पर प्रभाव (Effects of Temperate Cyclone on Rain and Weather)
शीतोष्ण चक्रवात के विविध क्षेत्रों में स्थित विभिन्न प्रकार की वायुराशियों एवं तापीय दशाओं के कारण वहाँ का मौसम विशिष्ट रूप से परिवर्तित होता है। जब चक्रवात किसी स्थान पर पहुँचता है अथवा वहाँ से होकर गुजरता है, तब उसके प्रभाव स्वरूप मौसम में स्पष्ट रूप से विभिन्न चरणों में परिवर्तन परिलक्षित होता है। जिस भूखंड पर चक्रवात की उपस्थिति होती है, वहाँ मौसमीय तत्त्वों में अचानक एवं तीव्र परिवर्तन आरंभ हो जाता है।
चक्रवात का आगमन –
जब शीतोष्ण चक्रवात किसी स्थल पर पहुँचता है, तो प्रारंभिक अवस्था में वहाँ की पवन प्रवाह प्रणाली मंद हो जाती है तथा तापमान में क्रमिक वृद्धि से वायु अपेक्षाकृत हल्की एवं नम प्रतीत होती है। दिन अथवा रात्रि में सूर्य अथवा चंद्रमा के चारों ओर एक प्रभामंडल (Halo) परिलक्षित होता है। जैसे-जैसे चक्रवात समीप आता है, तापमान में वृद्धि होती है और पवन की दिशा पूर्व से परिवर्तित होकर दक्षिण-पूर्व हो जाती है। इसके साथ ही बादल नीचे की ओर आने लगते हैं तथा उनका रंग गहरा काला हो जाता है।
उष्ण वाताग्र प्रवेश्य वर्षा –
जब उष्ण वाताग्र उस क्षेत्र में प्रवेश करता है, तो तापमान में तीव्र वृद्धि होती है और आकाश में स्तरी मेघों (Nimbostratus) की सघनता से मूसलधार वर्षा होती है। इस प्रकार की वायु की तप्तता, क्षेत्रीय विस्तार, तथा आर्द्रता की मात्रा महत्वपूर्ण होती है। यह मौसम प्रायः अल्पकालिक होता है, जिसमें घने बादलों की उपस्थिति के कारण दिन में भी सौर किरणें धरातल तक नहीं पहुँच पातीं।
उष्ण वृत्तांश (Warm Sector) –
जब उष्ण वाताग्र क्षेत्र से निकल जाता है, तब उष्ण वृत्तांश का आगमन होता है, जिससे मौसम में तीव्र परिवर्तन परिलक्षित होता है। वायु की दिशा दक्षिण की ओर परिवर्तित हो जाती है, आकाश निर्मल एवं बादल रहित हो जाता है। तापमान में तत्काल तीव्र वृद्धि तथा वायुदाब में स्पष्ट गिरावट होती है। यद्यपि सामान्यतः वर्षा समाप्त हो जाती है, तथापि कभी-कभी हल्की बूंदाबांदी जारी रहती है। कुल मिलाकर यह मौसम स्पष्ट एवं सुखदायक होता है।
शीत वाताग्र (Cold Front) –
जैसे ही उष्ण वृत्तांश समाप्त होता है, उसी समय शीत वाताग्र का प्रवेश होता है, जिससे तापमान में गंभीर कमी आती है। शीत वाताग्र पर शीत वायु, उष्ण वायु को तीव्रता से ऊपर की ओर विस्थापित करती है, जिससे गर्जना एवं विद्युत चमत्कार के साथ तीव्रगामी वर्षा होती है। जब वर्षा समाप्त हो जाती है, तब शीत वायु धरातल पर आसीन हो जाती है, जिससे तापमान में तेज़ गिरावट तथा वायुदाब में वृद्धि होती है, और परिणामस्वरूप प्रतिचक्रवातीय दशा उत्पन्न होती है।
शीत वृत्तांश (Cold Sector) –
शीत वाताग्र के पार हो जाने पर, शीत वृत्तांश की अवस्था आती है, जो पुनः मौसम में तत्काल परिवर्तन लाती है। आकाश, जो पहले मेघाच्छादित था, अब धीरे-धीरे स्वच्छ एवं निर्मल हो जाता है। इस चरण में तापमान में तीव्र गिरावट, वायुदाब में उल्लेखनीय वृद्धि, तथा विशिष्ट आर्द्रता में कमी परिलक्षित होती है। अंततः जब चक्रवात पूर्णतः विलीन हो जाता है, तो वहाँ की परिस्थितियाँ पुनः पूर्ववत हो जाती हैं।
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात के उत्पत्ति क्षेत्र (Source Regions of Temperate Cyclones) –
शीतोष्ण चक्रवातों की उत्पत्ति सामान्यतः ध्रुवीय वाताग्रों के क्षेत्रों में होती है। इनका सृजन और विस्तार विशेष रूप से शीत ऋतु में तीव्रता प्राप्त करता है। उत्तरी गोलार्द्ध में दो प्रमुख क्षेत्र विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं—प्रथम, अटलांटिक महासागर के पश्चिमी समुद्रतटीय भाग से एल्यूशियन निम्न दाब क्षेत्र तक विस्तृत महासागरीय परिक्षेत्र, तथा द्वितीय, उत्तरी अटलांटिक महासागर के पश्चिमी छोर से आइलैंड निम्न दाब क्षेत्र के मध्य का भाग। इसके अतिरिक्त साइबेरिया, चीन, एवं फिलीपींस के समीपवर्ती क्षेत्रों में भी इन प्रकार के गर्तीय चक्रवातों की उत्पत्ति देखी जाती है।
दक्षिणी गोलार्द्ध में ग्रीष्म एवं शीत ऋतु दोनों ही कालखंडों में इन चक्रवातों की उत्पत्ति होती है, तथापि यह प्रक्रिया 60° दक्षिणी अक्षांश के समीप सर्वाधिक सक्रिय पाई जाती है। चूंकि इस गोलार्द्ध में स्थलमंडलों का अभाव है, अतः यह चक्रवातीय पट्टी पृथ्वी के चारों ओर निरंतर एवं अविच्छिन्न रूप से विस्तृत रहती है।

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात क्या हैं?
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात वे वायुमंडलीय विक्षोभ होते हैं, जो सामान्यतः ध्रुवीय वाताग्रों के निकट स्थित क्षेत्रों में उत्पन्न होते हैं। ये चक्रवात मध्यम अक्षांशों में विकसित होते हैं और इनके विकास तथा प्रभाव का संबंध मुख्यतः वाताग्रों के टकराव, तापमान विरोध, और वायु दाब परिवर्तनों से होता है। इनका विस्तार हज़ारों किलोमीटर तक हो सकता है।
शीतोष्ण कटिबंध का क्या अर्थ है?
शीतोष्ण कटिबंध पृथ्वी के उन भौगोलिक क्षेत्रों को संदर्भित करता है, जो उष्ण कटिबंध और ध्रुवीय कटिबंध के बीच स्थित होते हैं। यह कटिबंध 30° से 60° अक्षांशों के मध्य फैला होता है, जहाँ पर मध्यम तापमान, स्पष्ट मौसमी परिवर्तन, तथा चक्रवातीय गतिविधियाँ सामान्य रूप से देखी जाती हैं।
भारत में शीतोष्ण कटिबंध कहाँ स्थित है?
भारत के उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र, विशेषकर हिमालय की ऊँचाई वाले क्षेत्र, शीतोष्ण कटिबंध की सीमाओं में आते हैं। ये क्षेत्र शीत ऋतु में शीतोष्ण जलवायु का अनुभव करते हैं, और यहाँ कभी-कभी शीतोष्ण चक्रवातों का प्रभाव भी देखा जाता है।
प्रतिचक्रवात और शीतोष्ण चक्रवात में क्या अंतर है?
प्रतिचक्रवात उच्च वायुदाब की अवस्था होती है, जिसमें वायु का प्रवाह केंद्र से बाहर की ओर होता है और मौसम स्थिर व शुष्क रहता है। इसके विपरीत, शीतोष्ण चक्रवात निम्न वायुदाब क्षेत्र होते हैं, जिनमें वायु बाहर से केंद्र की ओर चलती है और इसके प्रभाव से वर्षा, बादल, तथा तापमान परिवर्तन होता है। यह अंतर वायुदाब प्रवृत्ति, पवन दिशा, एवं मौसम प्रभाव के आधार पर अत्यंत महत्वपूर्ण है।
चक्रवात का जीवन चक्र क्या है?
चक्रवात का जीवन चक्र उसके जन्म से लेकर समाप्ति तक की प्रक्रिया को दर्शाता है। इसमें वाताग्रों की स्थिरता, चक्रातीय प्रवाह का आरंभ, वाताग्रों का निर्माण, उनका मिलन (अधिविष्ट), और अंततः चक्रवात का विलयन सम्मिलित होता है। यह एक गतिशील एवं जटिल प्रक्रिया होती है।
समशीतोष्ण चक्रवात के जीवन चक्र के चरण क्या हैं?
समशीतोष्ण चक्रवात निम्नलिखित छह प्रमुख चरणों से गुजरता है:
स्थायी वाताग्र की अवस्था
चक्रातीय प्रवाह के प्रारंभ की अवस्था
उष्ण वाताग्र के निर्माण की अवस्था
शीत वाताग्र के अग्रसारण की अवस्था
अधिविष्ट की अवस्था
समापन की अवस्था
ये सभी चरण चक्रवात की उत्पत्ति, विकास, और क्षय को क्रमबद्ध रूप में परिलक्षित करते हैं।
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात कितने प्रकार के होते हैं?
शीतोष्ण चक्रवातों का वर्गीकरण प्रायः तरंग चक्रवातों (Wave Cyclones) के रूप में किया जाता है, जो ध्रुवीय तथा उष्ण वायुराशियों के मध्य वाताग्रों के टकराव से उत्पन्न होते हैं। हालांकि ये चक्रवात एक ही प्रकार के होते हैं, परंतु इनकी संरचना और प्रभाव उनकी स्थिति, मौसम, एवं वायुप्रवाह के आधार पर भिन्न-भिन्न हो सकते हैं।
तरंग चक्रवात का जीवन चक्र क्या होता है?
तरंग चक्रवात, जिसे शीतोष्ण चक्रवात भी कहा जाता है, का जीवन चक्र स्थायी वाताग्र से आरंभ होता है और अधिविष्ट अवस्था के पश्चात समाप्ति तक पहुँचता है। इसके प्रत्येक चरण में वाताग्रों का विन्यास, वायु की दिशा, तापमान, और वर्षा की प्रकृति में स्पष्ट परिवर्तन होता है। यह जीवन चक्र मौसम विज्ञान में अत्यंत महत्वपूर्ण अध्ययन क्षेत्र है।
शीतोष्ण जलवायु क्या है?
शीतोष्ण जलवायु उस प्रकार की जलवायु है जिसमें मौसमी विविधता, मध्यम तापमान, तथा सर्दी-गर्मी के स्पष्ट अंतर देखे जाते हैं। इस जलवायु में वर्षा चक्रवातों के कारण होती है, और यह जलवायु प्रायः 30° से 60° अक्षांशों के मध्य पाए जाने वाले क्षेत्रों में व्याप्त होती है।
चक्रवात से कौन से तत्व मुख्य रूप से प्रभावित होते हैं?
चक्रवात के प्रभाव से निम्नलिखित महत्वपूर्ण मौसमीय तत्व प्रभावित होते हैं:
तापमान
वायुदाब
पवन दिशा और गति
वर्षा की मात्रा और प्रकृति
बादलों की संरचना
इन तत्वों में बदलाव चक्रवात के प्रत्येक चरण में अलग-अलग होता है और मौसम की सामान्य दशाओं को प्रभावित करता है।
उष्णकटिबंधीय और शीतोष्ण कटिबंध में क्या अंतर है?
उष्णकटिबंधीय क्षेत्र भूमध्यरेखा के निकट स्थित होता है, जहाँ तापमान उच्च, वर्षा अधिक, तथा वायुराशियाँ सघन होती हैं। वहीं, शीतोष्ण कटिबंध मध्यम अक्षांशों में स्थित होता है, जहाँ मौसमी विविधता, शीतकालीन वर्षा, तथा चक्रवातीय गतिविधियाँ प्रमुख होती हैं। दोनों में जलवायु, मौसमीय संरचना, और चक्रवात के प्रकार में स्पष्ट अंतर होता है