
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तुत एक आधिकारिक रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि सोनभद्र जिले की लगभग 120 बस्तियों के करीब दो लाख निवासियों को प्रदत्त भूजल में ‘अत्यधिक फ्लोराइड’ (Excess Fluoride) की उपस्थिति प्रमाणित हुई है।
फ्लोराइड (Fluoride) का परिचय
स्वरूप : यह फ्लोरीन तत्व का एक रासायनिक आयन होता है, जो प्राकृतिक रूप से जल, मिट्टी, शैलखण्डों तथा कुछ विशेष खाद्य पदार्थों में पाया जाता है।
लाभ :
- फ्लोराइड दांतों की बाह्य परत, इनेमल, को मजबूती प्रदान करता है, जिससे वे अम्लीय हमलों के प्रति अधिक प्रतिरोधी बन जाते हैं।
- यह दंत क्षरण अर्थात कैविटी के निर्माण को रोकने में सहायक सिद्ध होता है।
सुरक्षित सीमा :
- जल स्रोतों में : भूजल अथवा सार्वजनिक जलापूर्ति में फ्लोराइड की मात्रा 0.7 से 1.2 मिलीग्राम प्रति लीटर (mg/L) के मध्य होनी उचित मानी जाती है।
- दंतमंजन में : फ्लोराइड की मात्रा 1000 से 1500 ppm (parts per million) के बीच अनुशंसित है।

भारत में फ्लोराइड प्रदूषण की वर्तमान दशा
समकालीन अवलोकन : उत्तर प्रदेश सरकार की नवीनतम रिपोर्ट में यह पाया गया कि सोनभद्र की कुछ बस्तियों में फ्लोराइड स्तर 1 से 1.5 मिलीग्राम/लीटर की स्वीकृत सीमा से काफी अधिक, लगभग 2 मिलीग्राम/लीटर अथवा उससे ऊपर तक दर्ज किया गया है।
इसका मुख्य कारण यह है कि सोनभद्र क्षेत्र में ग्रेनाइट जैसे खनिजों के विशाल भंडार पाए जाते हैं, जिनसे फ्लोराइड युक्त आग्नेय चट्टानें धीरे-धीरे अपघटित होकर भूजल में घुलमिल जाती हैं।
इस प्रकार की खदानों पर प्रशासनिक सतर्कता आवश्यक है, परंतु शासनिक उपेक्षा ने इसे एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट में परिवर्तित कर दिया है।
साथ ही, सोनभद्र के कुछ स्थानों में भूजल में आयरन एवं आर्सेनिक की अत्यधिक मात्रा भी पाई गई है, जिससे जल की गुणवत्ता और अधिक चिंताजनक हो जाती है।
प्रभावित भौगोलिक क्षेत्र : देश के उत्तर-पश्चिमी राज्य (दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान) एवं दक्षिणी राज्य (आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना) सर्वाधिक प्रभावग्रस्त हैं।
प्रमुख स्रोत : फ्लोराइड का मुख्य प्राकृतिक स्रोत भूगर्भीय शैल एवं खनिज हैं, जो भूजल में घुलकर प्रदूषण फैलाते हैं।

फ्लोराइड का स्वास्थ्य पर प्रभाव
दंत फ्लोरोसिस (Dental Fluorosis)

जब शरीर में फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा प्रवेश करती है, तो दांतों की चमक मंद पड़ जाती है।
इसके हल्के रूप में दांतों की सतह पर श्वेत अपारदर्शी धब्बे उभरते हैं।
जब यह गंभीर रूप ले लेता है, तो दांतों पर पीले-भूरे अथवा काले धब्बे तथा गंभीर गड्ढे प्रकट होते हैं।
कंकाल फ्लोरोसिस (Skeletal Fluorosis)

यह स्थिति बाल्यावस्था से लेकर वयस्कों तक को प्रभावित कर सकती है, किंतु इसके लक्षण तब तक प्रकट नहीं होते, जब तक रोग प्रगत अवस्था में न पहुंच जाए।
फ्लोराइड शरीर के गर्दन, घुटने, कंधे तथा पेल्विस के जोड़ों में संचित हो जाता है, जिससे व्यक्ति के लिए चलना-फिरना कठिन हो जाता है।
इस रोग के लक्षण, स्पोंडिलाइटिस या गठिया जैसी बीमारियों से मिलते-जुलते होते हैं।
प्रारंभिक संकेतों में स्थानीय दर्द, रीढ़ में जकड़न, जलन का अनुभव, अंगों में चुभन, सुननापन, मांसपेशीय दुर्बलता, दीर्घकालिक थकावट, तथा हड्डियों व स्नायुबंधन में असामान्य कैल्शियम संचयन सम्मिलित हैं।
गंभीर अवस्थाओं में यह स्थिति हड्डियों के क्षरण (ऑस्टियोपोरोसिस) और असामान्य हड्डीय वृद्धि का रूप ले सकती है, जिससे कशेरुकाएं जुड़ जाती हैं और व्यक्ति अपंगता की ओर अग्रसर हो सकता है।
यह स्थिति दुर्लभ हड्डी कैंसर जैसे ऑस्टियोसारकोमा और अंततः रीढ़, प्रमुख जोड़, मांसपेशियां, तथा तंत्रिका तंत्र को गंभीर क्षति पहुँचा सकती है।
अन्य स्वास्थ्य जटिलताएं
फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा से हीमोग्लोबिन की कमी, सिरदर्द, त्वचा पर चकत्ते, तंत्रिका संबंधी विकार, मानसिक अवसाद, पाचन विकृतियाँ, उल्टी, पेट दर्द, शरीर के विभिन्न अंगों विशेषकर उंगलियों में जकड़न, प्रतिरक्षा तंत्र की कमजोरी, तथा बार-बार गर्भपात जैसी स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
यह यकृत, वृक्क, जठरांत्र, श्वसन, उत्सर्जन, केंद्रीय तंत्रिका एवं प्रजनन प्रणालियों के सामान्य कार्य-प्रणाली में विकृति उत्पन्न करता है तथा लगभग 60 महत्वपूर्ण एंजाइमों के विनाश के लिए उत्तरदायी होता है।
पशुओं पर पीने के जल में उपस्थित फ्लोराइड के प्रभाव, मानव शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के समकक्ष होते हैं।
इसके अतिरिक्त, उच्च फ्लोराइड सांद्रता युक्त जल के लगातार उपयोग से कृषि उत्पादकता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

फ्लोराइड प्रदूषण क्या है?
फ्लोराइड प्रदूषण एक रासायनिक प्रदूषण है, जो जल, वायु अथवा मृदा में फ्लोराइड आयनों की अत्यधिक मात्रा के संचय से उत्पन्न होता है। यह प्रदूषण मुख्यतः औद्योगिक उत्सर्जन, कोयला दहन, तथा फॉस्फेट उर्वरकों के प्रयोग के कारण उत्पन्न होता है। जब पीने के पानी में फ्लोराइड की मात्रा स्वास्थ्य-सुरक्षित स्तर (1.0 मिलीग्राम/लीटर) से अधिक हो जाती है, तो यह जैविक तंत्र के लिए हानिकारक बन जाता है।
फ्लोराइड प्रदूषण से शरीर का कौन सा भाग प्रभावित होता है?
फ्लोराइड प्रदूषण का प्राथमिक प्रभाव मनुष्य के हड्डीय तंत्र (skeletal system) एवं दंत संरचना (dental structure) पर पड़ता है। यह विशेषतः हड्डियों में गहन परिवर्तन उत्पन्न करता है, जिससे कठोरता, भंगुरता और संवेदनशीलता जैसी स्थितियाँ उभरती हैं। दाँतों की ऊपरी परत पर फ्लोराइड का अत्यधिक संचय उन्हें पीला, दागदार और क्षतिग्रस्त बना देता है।
फ्लोराइड के नुकसान क्या हैं?
फ्लोराइड के प्रमुख दुष्प्रभावों में डेंटल फ्लोरोसिस और स्केलेटल फ्लोरोसिस सम्मिलित हैं। डेंटल फ्लोरोसिस में दाँतों पर सफेद धब्बे, मलिनता और घिसाव उत्पन्न होते हैं, जबकि स्केलेटल फ्लोरोसिस से हड्डियों में कठोरता, जोड़ो में दर्द, गति में कमी और विकृति उत्पन्न होती है। इसके अतिरिक्त, दीर्घकालीन संपर्क से यह गुर्दों, स्नायु तंत्र, और प्रतिरक्षा प्रणाली को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
फ्लोराइड से कौन सा अंग प्रभावित होता है?
फ्लोराइड का प्रभाव सबसे अधिक हड्डियों और दाँतों पर पड़ता है, अतः इसका प्राथमिक लक्ष्य अंग है अस्थि तंत्र। इसके अलावा, लंबे समय तक फ्लोराइड युक्त जल के सेवन से यह किडनी, तंत्रिका तंत्र, और एंडोक्राइन ग्रंथियों को भी नुकसान पहुँचा सकता है, जिससे शरीर में विषाक्तता और अंगीय कार्यक्षमता में गिरावट देखी जाती है।