
Magnetic Resonance Imaging (MRI) एक गैर-आक्रामक उन्नत चिकित्सा इमेजिंग विधि है, जिसका प्रयोग मुख्यतः शरीर के आंतरिक अंगों और विशेष रूप से कोमल ऊतकों की सुस्पष्ट दृश्य छवियाँ प्राप्त करने हेतु किया जाता है।
यह तकनीक प्रबल चुंबकीय क्षेत्रों, रेडियो तरंगों, और कंप्यूटर प्रणाली के समन्वय से कार्य करती है, जिसके माध्यम से अंगों व ऊतकों की विस्तृत छवियाँ उत्पन्न होती हैं।
X-ray या CT स्कैन की तुलना में इसमें आयनीकरण विकिरण का उपयोग नहीं किया जाता, जिससे इसे अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित माना जाता है।
MRI का सिद्धांत (Principle of MRI):
इस तकनीक की आधारशिला न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेज़ोनेंस (NMR) पर आधारित है। यह शरीर में विद्यमान जल अणुओं में पाए जाने वाले हाइड्रोजन नाभिक अर्थात प्रोटॉन्स की उस प्रतिक्रिया को मापती है, जब उन्हें एक तीव्र चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है।
प्रक्रिया (Process):
जब मानव शरीर को एक मजबूत चुंबकीय क्षेत्र में स्थापित किया जाता है, तो उसमें उपस्थित प्रोटॉन्स उस क्षेत्र के समानांतर संरेखित हो जाते हैं।
इसके पश्चात रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) पल्स दी जाती है, जो इस संरेखण को विचलित करती है।
प्रोटॉन्स जब अपनी मूल स्थिति में लौटते हैं, तब वे विशिष्ट सिग्नल उत्पन्न करते हैं, जिन्हें कंप्यूटर प्रणाली के माध्यम से इमेज में परिवर्तित किया जाता है।

प्रमुख विशेषताएँ (Key Highlights):
- गैर-शल्यक्रियात्मक: किसी प्रकार की सर्जरी की आवश्यकता नहीं होती।
- विकिरण रहित: हानिकारक विकिरण का प्रयोग नहीं किया जाता।
- उच्च कंट्रास्ट चित्रण: विशेषकर कोमल ऊतकों जैसे मस्तिष्क, रीढ़, पेशियों और जोड़ संबंधित क्षेत्रों में अत्यंत प्रभावी।
MRI स्कैनर के प्रमुख घटक (Key Components of an MRI Scanner):
सुपरकंडक्टिंग मैग्नेट:
यह यंत्र अत्यंत तीव्र चुंबकीय क्षेत्र (1.5 से 7 टेस्ला) उत्पन्न करता है, जो प्रोटॉन्स की संरेखण प्रक्रिया को प्रेरित करता है।
रेडियोफ्रीक्वेंसी कॉइल (RF Coil):
इसका कार्य शरीर में RF तरंगों को संप्रेषित करना और वापसी सिग्नलों को ग्रहण करना होता है।
प्रत्येक अंग हेतु विशिष्ट कॉइल उपयोग में लाए जाते हैं।
ग्रेडिएंट कॉइल्स:
ये चुंबकीय क्षेत्र में सूक्ष्म परिवर्तन करते हैं, जिससे स्थानिक स्पष्टता (spatial resolution) में सुधार आता है और इमेज की सूक्ष्मता बढ़ती है।
कंप्यूटर प्रणाली:
यह प्राप्त सिग्नलों को प्रोसेस कर उन्हें उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजेस में परिवर्तित करती है।
MRI स्कैन के प्रकार (Types of MRI Scans):
T1-वेटेड MRI:
यह विस्तृत संरचनात्मक इमेज प्रदान करता है और संरचनात्मक विकृतियों की पहचान में सहायक होता है।
T2-वेटेड MRI:
यह स्कैन तरल-युक्त क्षेत्रों को प्रमुखता से दर्शाता है, जैसे कि गांठें व मस्तिष्क संबंधी रोग।
फंक्शनल MRI (fMRI):
यह मस्तिष्कीय गतिविधियों को रक्त प्रवाह में परिवर्तनों के माध्यम से रिकॉर्ड करता है।
प्रयोग: सोच, भाषा, स्मृति से संबंधित अनुसंधान।
डिफ्यूजन MRI:
यह ऊतकों में जल अणुओं की गति का मानचित्रण करता है और स्ट्रोक के शीघ्र निदान में उपयोगी है।
चुंबकीय अनुनाद एंजियोग्राफी (MRA):
यह विधि रक्त वाहिकाओं का सटीक चित्रण करती है और रुकावट या संकुचन की पहचान हेतु अपनाई जाती है।
MRI के उपयोग, लाभ, चुनौतियाँ व नवाचार
MRI के अनुप्रयोग (Applications of MRI):
- तंत्रिका विज्ञान (Neurology): मस्तिष्क की गांठें, आघात, मल्टिपल स्क्लेरोसिस, एवं तंत्रिका-अपघटन रोगों की पहचान।
- हृदय रोग विज्ञान (Cardiology): हृदय की कार्यप्रणाली, रक्त वाहिकाओं की असमानता, एवं अन्य विकारों का मूल्यांकन।
- अस्थि विज्ञान (Orthopaedics): लिगामेंट आघात, जोड़ विकार, और रीढ़ की चोटों का निदान।
- कैंसर विज्ञान (Oncology): गांठों की पहचान व निगरानी, बिना हानिकारक विकिरण के।
- पेट संबंधी इमेजिंग (Abdominal Imaging): जिगर, गुर्दा, तथा पाचन तंत्र विकारों की जांच।
- भ्रूण इमेजिंग (Fetal Imaging): गर्भवती महिलाओं हेतु सुरक्षित — भ्रूण के विकास की निगरानी में सहायक।
MRI के लाभ (Advantages of MRI):
- गैर-आक्रामक और विकिरण मुक्त – पारंपरिक स्कैनिंग विधियों से अधिक सुरक्षित विकल्प।
- उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग – कोमल ऊतकों की विस्तृत दृश्यता प्रदान करता है।
- मल्टी-प्लेन इमेजिंग – शरीर के विविध कोणों से सटीक चित्रण में सक्षम।
- कार्यात्मक व वास्तविक समय की इमेजिंग – विशेष रूप से fMRI में उपयोगी।
चुनौतियाँ और सीमाएँ (Challenges and Limitations):
- अधिक लागत – उपकरण व रखरखाव अत्यधिक मूल्यवान।
- समय-साध्य प्रक्रिया – पारंपरिक X-ray या CT स्कैन की तुलना में अधिक समय लेती है।
- क्लॉस्ट्रोफोबिया – कुछ मरीजों को बंद वातावरण में घबराहट होती है।
- धातु इम्प्लांट्स का खतरा – Pacemaker या अन्य धात्विक यंत्र वाले व्यक्तियों के लिए जोखिमपूर्ण।
- तेज़ शोर व असुविधा – MRI मशीन तेज़ ध्वनि उत्पन्न करती है, जिससे कान सुरक्षा उपकरणों की आवश्यकता होती है।
MRI में नवीन प्रगति (Recent Advancements in MRI):
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित MRI (AI-based MRI): इससे इमेज की गुणवत्ता बढ़ती है तथा स्कैनिंग समय में कमी आती है।
- अत्यधिक उच्च चुंबकीय क्षेत्र MRI (Ultra-High Field MRI – 7T+): अनुसंधान व सटीक निदान हेतु प्रभावी।
- चलंत MRI उपकरण (Portable MRI Devices): कम लागत वाले यंत्र जो ग्राम्य क्षेत्रों में चिकित्सा सेवा हेतु सहायक हैं।
- संयुक्त MRI-PET स्कैनर: MRI को Positron Emission Tomography से जोड़कर बेहतर निदान संभव बनाते हैं।
भारत में MRI तकनीक से संबंधित सरकारी पहलें एवं अनुसंधान
प्रमुख सरकारी पहलें (Government Initiatives):
- राष्ट्रीय बायो-फार्मा मिशन: यह पहल उन्नत चिकित्सा इमेजिंग प्रौद्योगिकियों के विकास को सहयोग प्रदान करती है।
उद्देश्य: स्वास्थ्य नवाचार को प्रोत्साहन देना एवं आधुनिक उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करना। - जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) तथा भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR):
भारत में चिकित्सा इमेजिंग अनुसंधान को बढ़ावा देने हेतु वैज्ञानिकों व तकनीकी विशेषज्ञों को अनुदान एवं संसाधन उपलब्ध कराते हैं। - मेक इन इंडिया अभियान (Make in India Initiative):
देश में ही मेडिकल उपकरणों के स्वदेशी निर्माण को बढ़ावा देता है, जिससे MRI स्कैनर भी शामिल हैं।
परिणामस्वरूप, आयात पर निर्भरता में कमी आती है और स्थानीय उत्पादन को बल मिलता है।