भूकंप (Earthquake) क्या है?
भूपटल में उत्पन्न होने वाली अंतर्जनित आकस्मिक कंपन अथवा संचलन, जो प्राकृतिक रूप से पृथ्वी के आंतरिक स्तरों (भूगर्भ) में विकसित होता है, भूकंप कहलाता है। सामान्यतः भूकंप की उत्पत्ति विवर्तनिक क्रिया, ज्वालामुखीय क्रिया, तथा समस्थितिक समायोजन के कारण भूपटल एवं उसकी शैल संरचनाओं में संपीडन एवं तनाव की प्रक्रिया से होती है, जिससे शैलों में अव्यवस्था उत्पन्न होती है।
ज्वालामुखीय क्रिया के दौरान भूगर्भ से उष्ण मैग्मा, जल एवं गैसें ऊपर आने हेतु शैलों पर तीव्र बल डालती हैं तथा उन पर दबाव उत्पन्न करती हैं, जिसके कारण भूकंप उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार, भू-आकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा भूपटल की ऊपरी शैल परतों में समस्थितिक संतुलन के विघटन से क्षणिक असंतुलन उत्पन्न होता है। इस असंतुलन को संतुलित करने हेतु समस्थितिक समायोजन की प्रक्रिया प्रारंभ होती है, जिसके परिणामस्वरूप शैल परतों में आकस्मिक गति विकसित होती है तथा भूकंप की स्थिति बनती है।

भूकंप प्रायः विनाशकारी होते हैं, जिनकी तीव्रता के अनुसार व्यापक जन-धन की हानि होती है। भूकंप के प्रभाव से समुद्रों में अत्यधिक ऊँची लहरें उठती हैं, जिससे तटीय क्षेत्रों में भयंकर बाढ़ उत्पन्न होती है। पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन होता है, तथा विभिन्न स्थानों पर दरारें विकसित हो जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप भूमि में उन्नयन अथवा निमज्जन की घटनाएँ घटित होती हैं। तीव्र भूकंप के कारण भवन ध्वस्त हो जाते हैं, उनमें दरारें उत्पन्न हो जाती हैं तथा अनेक नगर ध्वंसावशेष में परिवर्तित हो जाते हैं।
भूकंप विज्ञान (Seismology) से आप क्या समझते हैं?
भूकंप उद्गम केंद्र या भूकंप मूल (Seismic Focus) क्या कहलाता है?
पृथ्वी की सतह के नीचे भूपटल में स्थित वह बिंदु, जहाँ से भूकंप की उत्पत्ति होती है, भूकंप उद्गम केंद्र कहलाता है। भूकंपीय तरंगें सर्वप्रथम यहीं उत्पन्न होती हैं तथा अधिकेंद्र की ओर गतिशील होती हैं। विभिन्न भूकंपों के भूकंप मूल की गहराई भिन्न-भिन्न होती है।
भूकंप लेखी (Seismograph) किसे कहते है?
यह एक यंत्र है, जिसके माध्यम से भूकंपीय लहरों का अंकन किया जाता है। इस यंत्र को भूकंप अधिकेंद्र के समीप स्थापित किया जाता है। इसके द्वारा भूकंपीय तरंगों के उत्पत्ति बिंदु, गति तथा प्रभावित क्षेत्र की जानकारी प्राप्त होती है।

भूकंप विज्ञान (Seismology) क्या है?
भूकंप विज्ञान के अंतर्गत भूकंपलेखी (Seismograph) द्वारा अंकित चित्रों के आधार पर भूकंपीय तरंगों का अध्ययन किया जाता है।
भूकंपीय तरंगें (Seismic Waves) क्या होती है?
भूकंप मूल से उत्पन्न भूकंपीय तरंगें सर्वप्रथम अधिकेंद्र (Epicenter) पर पहुँचकर विभिन्न दिशाओं में प्रसारित होती हैं। अधिकेंद्र से विभिन्न प्रकार की तरंगें पृथक होकर भिन्न-भिन्न गति और मार्ग से आगे बढ़ती हैं। भूकंपीय तरंगों को तीन प्रमुख श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है:
प्राथमिक या प्रधान तरंगें (Primary Waves – P Waves) क्या है?

- ये तरंगें सर्वाधिक गति से चलती हैं तथा ठोस एवं तरल दोनों माध्यमों में संचरित होती हैं।
- ध्वनि तरंगों के समान ये अनुदैर्ध्य तरंगें होती हैं, जिनमें कणों का कंपन तरंग की दिशा के समानांतर होता है।
- इन तरंगों की ऊर्जा तीव्रता न्यूनतम होती है।
अनुप्रस्थ या गौण तरंगें (Transverse Waves or Secondary Waves – S Waves) को समझाइये?
- ये तरंगें प्राथमिक तरंगों के पश्चात उत्पन्न होती हैं तथा तुलनात्मक रूप से धीमी गति से केवल ठोस माध्यम में संचरित होती हैं।
- प्रकाश तरंगों के समान, ये अनुप्रस्थ तरंगें होती हैं, जिनमें कणों का कंपन तरंग की दिशा के लंबवत होता है।
- एस-तरंगों की तीव्रता पी-तरंगों की तुलना में अधिक होती है।

सतही तरंगें (Surface Waves) क्या होती है ?

- ये तरंगें पृथ्वी की सतह पर संचरित होती हैं और संपूर्ण पृथ्वी का परिक्रमण करके अधिकेंद्र तक पहुँचती हैं।
- इनका पथ सर्वाधिक विस्तृत होता है तथा ये अधिकेंद्र तक पहुँचने में सर्वाधिक समय लेती हैं।
- सतह के समीप चलने के कारण ये सर्वाधिक विनाशकारी होती हैं।
रेलिग तरंग (Rayleigh Waves) क्या है?
- यह एक प्रकार की सतही तरंग होती है, जो पृथ्वी की सतह के निकट स्थित ठोस परतों में कंपन उत्पन्न करती है।
- इस प्रकार की तरंग में कणों का कंपन तरंग की दिशा में अनुदैर्ध्य एवं अनुप्रस्थ दोनों प्रकार से होता है।
- परिणामस्वरूप, इन तरंगों का मार्ग दीर्घ वृत्ताकार (Elliptical) होता है।

मरकेली स्केल और रिक्टर स्केल (Mercalli Scale and Richter Scale)
भूकम्पीय तीव्रता का मापन
आधुनिक समय में भूकम्पों की तीव्रता को मापने के लिए दो प्रमुख पैमाने अपनाए जाते हैं:
- मरकेली पैमाना (Mercalli Scale)
- रिक्टर पैमाना (Richter Scale)
मरकेली पैमाना (Mercalli Scale) क्या है
वर्तमान में मरकेली पैमाने के अंतर्गत भूकम्पीय तीव्रता को 1 से 12 तक के संख्यात्मक स्तरों में वर्गीकृत किया जाता है। यह मापन अनुभवजन्य अवलोकनों पर आधारित होता है।
मरकेली पैमाने के स्तर एवं प्रभाव

अंक | संभावित प्रभाव |
---|---|
I | अधिकांश लोगों को महसूस नहीं होता। खिड़कियाँ और दरवाजे हल्के कम्पित हो सकते हैं। |
II | लटकने वाली वस्तुएँ धीरे-धीरे हिलने लगती हैं। |
III | यह हल्का कम्पन सवारियों के चलने के समान प्रतीत होता है। स्थिर खड़ी गाड़ियों को हल्का धक्का महसूस हो सकता है। |
IV | घर के भीतर अधिकतर लोग इसे महसूस करते हैं, किंतु बाहर कम संख्या में लोग इसे अनुभव कर पाते हैं। बर्तनों के टकराने की आवाजें सुनाई दे सकती हैं। स्थिर खड़ी गाड़ियों को ध्यान देने योग्य धक्का लगता है। |
V | अधिकांश लोग इसे महसूस करते हैं। इमारतें हिलने लगती हैं और पेड़-पौधों में हल्की कम्पन देखी जा सकती है। |
VI | सभी व्यक्तियों को इसका अनुभव होता है। लोग भयभीत हो जाते हैं और प्लास्टर टूटकर गिरने लगता है। |
VII | सामान्य खतरा उत्पन्न होता है। खड़े रहना मुश्किल हो जाता है। ईंट और पत्थर खिसकने एवं गिरने लगते हैं। |
VIII | गंभीर क्षति की स्थिति बन जाती है। इमारतें क्षतिग्रस्त होने लगती हैं। |
IX | गंभीर आपदा की स्थिति उत्पन्न होती है। भवन गिरने लगते हैं और भूमि चटकने लगती है। |
X | भूस्खलन प्रारंभ हो जाता है। धरती में गहरी दरारें बन जाती हैं और अधिकांश भवन नष्ट हो जाते हैं। |
XI | धरातलीय अस्थिरता अत्यधिक बढ़ जाती है। सागरीय लहरें भयंकर रूप धारण कर लेती हैं। बहुत कम इमारतें बच पाती हैं। |
XII | पूर्ण विनाश की स्थिति बन जाती है। नदियों का प्रवाह बदल जाता है और धरातलीय लहरें दृष्टिगोचर होने लगती हैं। |
मरकेली स्केल मुख्यतः भूकम्प की तीव्रता को व्यक्तिपरक प्रभावों के आधार पर मापने के लिए प्रयोग किया जाता है, जबकि रिक्टर स्केल इसका मात्रात्मक आकलन करता है।
रिक्टर स्केल (Richter Scale) क्या है
भूकम्पीय परिमाण का मापन
भूकम्पों की तीव्रता को मापने के लिए रिक्टर स्केल का वर्तमान में सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। इस पैमाने को सन् 1935 में अमेरिकी भूवैज्ञानिक चार्ल्स फ्रांसिस रिक्टर द्वारा विकसित किया गया था। इसमें 1 से 9 तक के संख्यात्मक स्तर होते हैं, जिनमें प्रत्येक आगामी संख्या, पिछली संख्या की तुलना में 10 गुना अधिक तीव्रता को दर्शाती है।
रिक्टर स्केल के स्तर एवं प्रभाव

संख्या (तीव्रता का परिमाण) | संभावित प्रभाव |
---|---|
1 | केवल संवेदनशील यंत्रों के माध्यम से ही इसे मापा जा सकता है। |
2 | भूकम्प के अधिकेंद्र के समीप हल्का कम्पन महसूस किया जाता है। |
3 | चट्टानों एवं कठोर सतहों में सामान्य कम्पन उत्पन्न होने लगता है। |
4 | अधिकेंद्र से 32 किलोमीटर की त्रिज्या में यह स्पष्ट रूप से सभी व्यक्तियों द्वारा अनुभव किया जाता है। |
5 | इसका प्रभाव अधिकेंद्र से 5,000 किलोमीटर की दूरी तक अनुभव किया जा सकता है। पेड़-पौधे एवं शाखाएँ हिलने लगती हैं। |
6 | यह सामान्यतः विनाशकारी होता है, दीवारों में दरारें आ जाती हैं और संरचनाएँ क्षतिग्रस्त होने लगती हैं। |
7 | उच्च तीव्रता वाला भूकम्प, जो विस्तृत क्षेत्र में गंभीर विनाशकारी प्रभाव उत्पन्न करता है। महाद्वीपों तक कम्पन महसूस किया जाता है, तथा भवन गिरने लगते हैं। |
8 | वैश्विक प्रभाव उत्पन्न करने वाला, अत्यधिक विनाशकारी भूकम्प। पेड़ उखड़ जाते हैं, नदियों का प्रवाह बदल जाता है, तथा भूमि में गहरी दरारें बन जाती हैं। |
9 | संपूर्ण विनाशकारी स्थिति, जिसमें सभी संरचनाएँ ध्वस्त हो जाती हैं, तथा धरातल पर तीव्र अस्थिरता उत्पन्न होती है। |
रिक्टर स्केल को भूकम्पीय तीव्रता के मात्रात्मक मापन हेतु विकसित किया गया था, और इसका उपयोग वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भूकम्प की ऊर्जा को मापने में किया जाता है।
भूकम्प का वैश्विक वितरण (World Distribution of Earthquakes)

पृथ्वी की सतह पर भूकम्पों एवं ज्वालामुखीय गतिविधियों के वितरण में एक आपसी संबंध देखा जाता है, क्योंकि दोनों ही घटनाएँ भूगर्भीय अंतर्जनित गतियों से प्रभावित होती हैं। भूकम्पों का वैश्विक वितरण पृथ्वी की सतह पर कुछ विशिष्ट भूकम्पीय पेटियों में पाया जाता है, जिन्हें भूकम्प पेटी कहा जाता है। इनमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित तीन भूकम्पीय पेटियाँ शामिल हैं:
- परि-प्रशांत महासागरीय पेटी
- मध्य अटलांटिक महासागरीय पेटी
- मध्य महाद्वीपीय पेटी
1. परि-प्रशांत महासागरीय पेटी
इस पेटी का विस्तार पूर्वी एशिया के कमचटका प्रायद्वीप से लेकर संपूर्ण पूर्वी एशियाई द्वीपों (क्यूरल, जापान, ताइवान, फिलीपींस, इंडोनेशिया) एवं मलेशिया, पूर्वी ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड तक देखा जाता है। प्रशांत महासागर के तटीय एवं अल्पाइन पर्वतीय क्षेत्रों में इस भूकम्पीय पेटी की प्रमुखता देखी जाती है। विश्व के दो-तिहाई से अधिक भूकम्प इसी क्षेत्र में घटित होते हैं, जिससे यह पेटी सर्वाधिक सक्रिय भूकम्पीय क्षेत्र मानी जाती है।
2. मध्य अटलांटिक महासागरीय पेटी
यह पेटी पश्चिमी द्वीप समूह से लेकर भूमध्यसागर के तटीय क्षेत्रों तक विस्तृत है। इस क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूकम्पीय गतिविधियाँ देखी जाती हैं।
3. मध्य महाद्वीपीय पेटी
यह पेटी मुख्य रूप से भूमध्यसागरीय क्षेत्रों से लेकर एशियाई पर्वतीय क्षेत्र तक विस्तृत है। यहाँ स्थित भूकम्पीय क्षेत्र अत्यधिक सक्रिय होते हैं और समय-समय पर गंभीर विनाशकारी भूकम्प उत्पन्न करते हैं।
अन्य बिखरे हुए भूकम्पीय क्षेत्र
उपर्युक्त मुख्य पेटियों के अतिरिक्त, कुछ अन्य बिखरे हुए भूकम्पीय क्षेत्र भी विश्वभर में मौजूद हैं। इनमें से पूर्वी अफ्रीका की महान दरार घाटी के आसपास स्थित क्षेत्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं, जहाँ अक्सर अचानक भूकम्पीय घटनाएँ घटित होती हैं।
भूकम्प के कारण (Causes of Earthquakes)
प्लेट विवर्तनिकी एवं भूकम्प (Plate Tectonics and Earthquakes)
भूकम्पीय वितरण के वैश्विक मानचित्र के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि अधिकांश भूकम्पीय घटनाएँ प्लेट सीमाओं के सहारे घटित होती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि प्लेटों की गति से असंतुलन उत्पन्न होता है, जो भूकम्पीय गतिविधियों को जन्म देता है।

1. अपसारी (रचनात्मक) प्लेट सीमाएँ
अपसारी प्लेट सीमाओं के सहारे संवहन धाराओं का उद्गम होता है, जिससे भूपटल के नीचे अपसरण द्वारा भूकम्पीय तनाव उत्पन्न होता है। इन क्षेत्रों में मुख्यतः उथले एवं मध्यम गहराई वाले भूकम्प आते हैं। उदाहरणस्वरूप:
- मध्य अटलांटिक कटक
- मध्य हिंद महासागरीय कटक
- पूर्वी प्रशांत महासागरीय कटक
इन क्षेत्रों में प्लेटों के विपरीत दिशाओं में खिसकने के कारण भूकम्पीय गतिविधियाँ देखी जाती हैं।
2. अभिसारी (विनाशी) प्लेट सीमाएँ
अभिसारी सीमाओं के सहारे गंभीर सम्पीडन बल उत्पन्न होता है, जिसके परिणामस्वरूप:
- वलित पर्वतीय क्षेत्रों में भ्रंशन की प्रक्रिया से उथले भूकम्प उत्पन्न होते हैं।
- अधिक घनत्व वाली प्लेटों के क्षेपण से मध्यम गहराई वाले भूकम्प जन्म लेते हैं।
- अत्यधिक गहराई में स्थित प्लेटों के आंशिक गलन से गहरे भूकम्प उत्पन्न होते हैं।
अभिसारी प्लेट सीमाओं पर भूकम्पीय गहराई 700 किमी तक हो सकती है। परि-प्रशांत भूकम्पीय मेखला के अंतर्गत अधिकांश भूकम्प प्लेटों के टकराव एवं अभिसरण के कारण आते हैं।
उदाहरणस्वरूप:
- उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तटीय भागों में भूकम्पों की उत्पत्ति उत्तरी अमेरिकी प्लेट के नीचे प्रशांत महासागरीय प्लेट के क्षेपण के कारण होती है।
- एशिया के पूर्वी किनारों पर भूकम्पीय गतिविधियाँ एशियाई प्लेट के नीचे प्रशांत महासागरीय प्लेट के क्षेपण से होती हैं।
- मध्य महाद्वीपीय मेखला में भूकम्प भारतीय प्लेट के एशियाई प्लेट के नीचे एवं अफ्रीकी प्लेट के यूरोपीय प्लेट के नीचे क्षेपण के कारण आते हैं।
3. संरक्ष (रूपांतर) प्लेट सीमाएँ
संरक्ष प्लेट सीमाओं के सहारे प्लेटें समानांतर दिशा में गतिशील होती हैं, जिससे रूपांतर भ्रंशों का विकास होता है। इन क्षेत्रों में उथले भूकम्प अधिक देखे जाते हैं। उदाहरणस्वरूप:
- कैलिफोर्निया की खाड़ी में स्थित रूपांतर भ्रंश के कारण तीव्र भूकम्पीय गतिविधियाँ देखी जाती हैं।
अन्तः प्लेटीय गतियाँ (Intraplate Movements)
कभी-कभी भूकम्पीय घटनाएँ प्लेट सीमाओं से दूर भी देखी जाती हैं। यह मुख्यतः महादेशजनक बलों के प्रभाव से धरातल के उत्थान एवं अवतलन के कारण होता है।
यद्यपि प्लेट सीमाओं पर भूकम्प एवं ज्वालामुखीय घटनाएँ सर्वाधिक होती हैं, तथापि कुछ अन्तः प्लेट क्षेत्रों में भी ये घटनाएँ देखी जाती हैं। उदाहरणस्वरूप:
- संयुक्त राज्य अमेरिका में अटलांटिक तट के समीप कार्स्टन एवं मिसीसिपी घाटी के न्यू मैड्रिड क्षेत्र में शक्तिशाली भूकम्प दर्ज किए गए हैं।
- भारत में कोयना क्षेत्र में भी तीव्र भूकम्पीय गतिविधियाँ देखी गई हैं।
महाद्वीपीय आंतरिक भागों में गुम्बदीय उभार की घटनाओं के कारण भी भूकम्प उत्पन्न हो सकते हैं। हालांकि, प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत अभी तक इस प्रकार के लंबवत संचलन के विस्तृत स्पष्टीकरण को पूरी तरह स्पष्ट नहीं कर सका है।
सुनामी का क्या अर्थ है
सागरीय भूकंपीय तरंग (सूनामी Tsunami)
सूनामी शब्द जापानी भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ “तट पर उठने वाली समुद्री तरंगें” होता है। ये अत्यंत लंबी तथा निम्न-आवृत्ति वाली समुद्री लहरें होती हैं, जो महासागरों में भूकंपीय गतिविधियों के प्रभाव से उत्पन्न होती हैं। सूनामी लहरों के साथ जल का संपूर्ण संचलन गहराई तक होता है, जिससे इनकी विनाशकारी क्षमता अत्यधिक हो जाती है। सूनामी लहरों की दृष्टि से प्रशांत महासागर सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है। विशेष रूप से महासागरीय प्लेटों के अभिसरण क्षेत्र में ये लहरें सर्वाधिक शक्तिशाली होती हैं।
26 दिसंबर 2004 को इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप के समीप हिंद महासागर के तल के नीचे उत्पन्न सूनामी लहरें भारतीय प्लेट के बर्मी प्लेट के नीचे क्षेपण का परिणाम थीं। इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 8.9 मापी गई, जिससे अत्यंत विनाशकारी सूनामी लहरों का सृजन हुआ। इस आपदा की चपेट में इंडोनेशिया, मलेशिया, श्रीलंका और भारत सहित कुल 11 देश आए। भारत में तमिलनाडु का नागपट्टनम जिला इस सूनामी से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र था।

FAQs
भूकंप क्या होता है?
भूकंप धरती की सतह का अचानक हिलना या कांपना होता है। यह तब होता है जब धरती के अंदर चट्टानों में जमा तनाव अचानक टूटकर ऊर्जा के रूप में बाहर निकलता है। इस ऊर्जा की लहरें धरती की सतह तक पहुँचती हैं और कंपन पैदा करती हैं।
भूकंप क्यों आता है?
भूकंप तब आता है जब धरती की अंदरूनी प्लेटें आपस में टकराती हैं, अलग होती हैं या एक-दूसरे के नीचे खिसकती हैं। इससे चट्टानों में बहुत ज्यादा दबाव बनता है और जब यह दबाव एक सीमा से ज्यादा हो जाता है तो चट्टानें टूट जाती हैं, जिससे भूकंप आता है।
भूकंप के मुख्य कारण
विवर्तनिक प्लेटों की हलचल – पृथ्वी की सतह कई प्लेटों में बंटी हुई है। ये प्लेटें जब एक-दूसरे से टकराती हैं या खिसकती हैं, तो भूकंप आता है।
ज्वालामुखीय गतिविधियाँ – ज्वालामुखी फटने से भी कई बार भूकंप आता है।
मानव गतिविधियाँ – जैसे खनन, बाँधों में पानी भरना, परमाणु परीक्षण आदि से भी कभी-कभी भूकंप आ सकते हैं।
भूकंप कैसे मापा जाता है?
भूकंप को रिक्टर स्केल पर मापा जाता है। यह स्केल भूकंप की तीव्रता को 1 से 10 तक के पैमाने पर दर्शाता है। 1-3 की तीव्रता वाले भूकंप बहुत हल्के होते हैं, जबकि 7 या उससे ऊपर के भूकंप बहुत खतरनाक माने जाते हैं।
भूकंप से बचाव कैसे करें?
भूकंप के समय किसी मजबूत मेज के नीचे छिप जाएँ।
दीवारों, खिड़कियों और भारी वस्तुओं से दूर रहें।
अगर आप बाहर हैं तो खुले मैदान में चले जाएँ, इमारतों और पेड़ों से दूर रहें।
लिफ्ट का इस्तेमाल न करें।