जेट स्ट्रीम क्या है?

क्षोभमंडल के उच्चतम स्तर या निचले समतापमंडल में, पश्चिम से पूर्व की दिशा में तीव्र गति से बहने वाली, संकरी और विसर्पणशील वायुधाराओं को ‘जेट स्ट्रीम’ कहा जाता है। ये धाराएँ भू-आकृतिक विक्षोभों के समान तीव्र प्रवाह लिए संपूर्ण वायुमंडल में प्रवाहित होती हैं। इनकी औसत गति सामान्यतः 300 से 500 किलोमीटर प्रति घंटा के मध्य होती है। ये विशेष रूप से उस सीमित पट्टी में प्रवाहित होती हैं जहाँ तापीय और वायुदाबीय प्रवणताएँ सर्वाधिक पाई जाती हैं। इस क्षेत्र को ‘भूमंडलीय सीमाग्र प्रदेश‘ (Planetary Frontal Zone) के नाम से जाना जाता है।
रोसबी तरंगें क्या है?
सामान्य रूप से जेट स्ट्रीम कई हज़ार किलोमीटर लंबी, सैकड़ों किलोमीटर चौड़ी, तथा कुछ किलोमीटर मोटाई लिए होती हैं। ये वायुधाराएँ अपने कोणीय संवेग को बनाए रखने हेतु विशिष्ट विसर्पण प्रदर्शित करती हैं जिन्हें ‘रोसबी तरंगें’ (Rossby Waves) कहा जाता है। ये धाराएँ चार अवस्थाओं वाले एक परिसंचारी क्रम में कार्य करती हैं जिसे ‘अभिसूचक चक्र‘ के रूप में जाना जाता है।
‘रोसबी तरंगों’ के अतिरिक्त, वायुमंडलीय क्षेत्र में अन्य समान प्रकृति की तीव्र वायु धाराओं को भी जेट स्ट्रीम की श्रेणी में सम्मिलित किया जाता है, जैसे – ध्रुवीय जेट और उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट प्रवाह। इन वायुधाराओं की उत्पत्ति का मूल कारण विषुवतीय और ध्रुवीय क्षेत्रों के मध्य व्याप्त तापीय विषमता है।
जेट स्ट्रीम की पहचान द्वितीय विश्वयुद्ध के समय हुई, जब अमेरिकी बमवर्षक जेट विमान, जापान की ओर उड़ान भरते समय (पूर्व से पश्चिम दिशा में) वायुधारा के विरुद्ध उड़ान भर रहे थे, जिससे उनकी गति में महत्वपूर्ण कमी आ रही थी। इसके विपरीत, वापसी में (पश्चिम से पूर्व दिशा की उड़ान में) विमानों की गति में सार्वभौमिक वृद्धि देखी गई।
जेट स्ट्रीम, सामान्य वायुमंडलीय परिसंचरण की एक प्रमुख संघटक हैं। इनकी स्थिति में होने वाला परिवर्तन सूर्य की सापेक्ष स्थिति में आने वाले परिवर्तनों से प्रभावित होता है। ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की किरणों का उत्तरायण होने पर ये धाराएँ ध्रुवों की ओर विस्थापित होती हैं, जबकि शीत ऋतु में सूर्य के दक्षिणायन के कारण ये विषुवतीय क्षेत्रों की ओर खिसक जाती हैं। अतः, इनका विस्तार दोनों गोलार्द्धों में 20° अक्षांश से लेकर ध्रुवों के मध्य तक होता है। इन्हें ‘परिध्रुवीय भँवर‘ (Circumpolar Whirl) के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इनका प्रवाह ध्रुवों के चारों ओर गोलार्द्धीय परिधि में होता है।
जेट स्ट्रीम की गति स्थिर नहीं होती; यह समय और मौसम परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित होती रहती है। उदाहरणस्वरूप, ग्रीष्म ऋतु में इनकी गति 100 से 200 मील प्रति घंटा रहती है, जबकि शीत ऋतु में यह गति बढ़कर 200 से 400 मील प्रति घंटा हो जाती है। इनकी गति में क्षेत्रीय विविधता भी देखी जाती है, जैसे कि शीत ऋतु में जेट प्रवाह की अधिकतम तीव्रता पूर्वी एशिया के समुद्री तटों, दक्षिण-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, उत्तरी अफ्रीका, एवं हिंद महासागर के मध्यवर्ती भागों में पाई जाती है। ग्रीष्म ऋतु में इन धाराओं का विस्तार सीमित हो जाता है तथा ये उत्तर की ओर विस्थापित हो जाती हैं, जबकि शीत ऋतु में इनका विस्तार सर्वाधिक होता है।
दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थलरूपी क्षेत्र की न्यूनता के कारण जेट धाराएँ अपेक्षाकृत अधिक संगठित और विकसित रूप में पाई जाती हैं, जबकि उत्तरी गोलार्द्ध में ये प्रवाह अधिक विक्षिप्त रहता है।
जेट स्ट्रीम का विकास चक्र (Growth Cycle of Jet Stream)
जेट स्ट्रीम का विकास एक चार-स्तरीय प्रक्रिया में पूर्णता को प्राप्त करता है—
(A) प्रारंभिक अवस्था : इस चरण में जेट स्ट्रीम की स्थिति ध्रुवीय क्षेत्रों के समीप होती है। इसके उत्तर में अत्यंत शीतल ध्रुवीय वायुराशियाँ, तथा दक्षिण में अपेक्षाकृत उष्ण पछुआ पवनें पाई जाती हैं। इस स्थिति में जेट स्ट्रीम का प्रवाह पश्चिम से पूर्व दिशा में लगभग सीधी रेखा में होता है, क्योंकि तरंगों का विकास अभी नहीं हुआ होता है।
(B) द्वितीय अवस्था : इस अवस्था में जेट स्ट्रीम में तरंगों का निर्माण प्रारंभ हो जाता है, जिससे रोसबी तरंगों की उत्पत्ति होती है। जैसे-जैसे इन तरंगों के आयाम में वृद्धि होती है, वैसे-वैसे जेट स्ट्रीम का प्रवाह भूमध्य रेखा की ओर विस्तारित होने लगता है।
(C) तृतीय अवस्था : इस चरण में जेट स्ट्रीम का संचार पूर्णतः लहराकार या मियांडरिंग रूप धारण कर लेता है, जिससे यह प्रवाह भूमध्य रेखा के निकट पहुँच जाता है। उल्लेखनीय है कि जहां प्रारंभिक दो अवस्थाओं में दाब प्रवणता उत्तर-दक्षिण दिशा में होती है, वहीं इस अवस्था में यह प्रवणता पूर्व-पश्चिम दिशा में परिवर्तित हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप, ध्रुवीय शीत वायुमंडलीय द्रव्य भूमध्यरेखीय दिशा में तथा उष्णकटिबंधीय गर्म वायु ध्रुवों की ओर विस्थापित होती है।
(D) चतुर्थ अवस्था : इस अंतिम अवस्था में जेट स्ट्रीम के अत्यधिक देशांतरीय प्रवाह के कारण, तरंगें अपने मूल प्रवाह से पृथक हो जाती हैं और वृत्ताकार परिसंचरण में प्रवाहित होने लगती हैं। फलस्वरूप, वायुमंडल में अनेक वायुकेंद्रों या कोशिकाओं का निर्माण होता है। भूमध्य रेखा की ओर जेट स्ट्रीम के निकटवर्ती क्षेत्रों में चक्रवातीय कोशिकाएँ, जबकि ध्रुवों की ओर प्रति-चक्रवातीय कोशिकाएँ निर्मित होती हैं। ये पृथक वायुसंरचनाएँ जेट स्ट्रीम के सामान्य पश्चिम-पूर्वीय संचार में महत्त्वपूर्ण व्यवधान उत्पन्न करती हैं।

जेट स्ट्रीम कितने प्रकार की होती है? (Types of Jet Stream)
ध्रुवीय वाताग्र जेट स्ट्रीम (Polar Front Jet Stream)
ध्रुवीय वायुमंडलीय शीत वायुराशि और उपोष्ण कटिबंधीय ऊष्म वायु के अभिसरण से निर्मित वायुमंडलीय सीमांत पर यह जेट प्रवाह विकसित होता है। यह धारा पश्चिम से पूर्व की दिशा में प्रवाहित होती है और अपनी ऊर्जा उस क्षेत्र की तापीय प्रवणता से प्राप्त करती है। यह जेट प्रवाह अभिसूचक चक्र के प्रभाव से उत्पन्न तरंगों द्वारा अक्षांशीय ताप संतुलन में सहायक सिद्ध होता है।
उपोष्णकटिबंधीय पश्चिमी जेट स्ट्रीम (Subtropical Westerly Jet Stream)
यह जेट स्ट्रीम हैडली तथा फेरेल कोशिकाओं के अभिसरण के कारण ऊपरी वायुमंडल में उत्पन्न होती है। वाताग्र की रचना स्थल पर उत्पन्न तापीय प्रवणता, ऊर्जा का स्रोत बनती है जो इस जेट प्रवाह के विकास हेतु आवश्यक पूर्व-शर्त प्रदान करती है। यह सभी जेट स्ट्रीम्स में सर्वाधिक स्थायी होती है और पूरे वर्ष पश्चिम से पूर्व दिशा में सतत प्रवाहित रहती है।
उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट स्ट्रीम (Subtropical Easterly Jet Stream)
यह जेट प्रवाह एक मौसमी एवं अस्थायी प्रकृति का होता है, जिसका निर्माण ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी गोलार्द्ध के दक्षिण-पूर्व एशिया, भारत, एवं अफ्रीका के क्षेत्रों में होता है। इसका विकास तिब्बत की उच्चभूमि पर अत्यधिक तापमान के कारण उत्पन्न तापीय प्रति-चक्रवातीय स्थितियों में होता है। इस स्थिति में ऊपरी वायुमंडल में, विषुवत रेखा की ओर पूर्व से पश्चिम की दिशा में होने वाला प्रवाह, ‘उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट स्ट्रीम‘ कहलाता है।
ध्रुवीय राशि जेट स्ट्रीम (Polar Jet Stream)
इस जेट प्रवाह का विकास ध्रुवीय क्षेत्रों में शीत ऋतु के दौरान होता है, जब समतापमंडलीय तापमान, क्षोभमंडल की तुलना में अधिक हो जाता है। ऐसे में उत्पन्न होने वाली तीव्र तापीय प्रवणता, इस प्रवाह के निर्माण का मौलिक कारण बनती है।
जेट स्ट्रीम का मौसम पर प्रभाव (Impact of Jet Stream on Weather)
जेट स्ट्रीम का प्रभाव धरातलीय जलवायु एवं मौसमीय प्रणाली पर अत्यधिक गंभीर होता है। उच्च वायुमंडलीय जेट प्रवाह तथा निचले वायुमंडलीय वाताग्र परस्पर गहरे रूप में जुड़े होते हैं। जब जेट स्ट्रीम की दिशा उत्तर या दक्षिण की ओर परिवर्तित होती है, तब उसी दिशा में संबंधित वाताग्रों का भी स्थानांतरण होता है। परिणामस्वरूप, वाताग्रों के निकट उत्पन्न होने वाले आँधी-तूफान एवं वर्षा की घटनाएँ वास्तव में जेट प्रवाह की ही परोक्ष परिणतियाँ होती हैं।
इन चक्रवातों के अंतर्गत वर्षा की प्रधानता जेट स्ट्रीम के नीचे के क्षेत्रों में पाई जाती है। ऐसा अनुमान किया गया है कि चक्रवातों का जन्म, विस्तार तथा विकास जेट स्ट्रीम की उपस्थिति में होता है, और कई बार जेट स्ट्रीम की स्थिति भी इन चक्रवातों के प्रभाव से परिवर्तित हो जाती है। इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि जेट स्ट्रीम, एक ओर धरातलीय चक्रवातों व प्रति-चक्रवातों को दिशा एवं गति प्रदान करती हैं, और दूसरी ओर स्वयं भी उनके प्रभाव से अपने स्वरूप में परिवर्तन कर लेती हैं।

मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में होने वाले मौसमी उतार-चढ़ाव, वास्तव में जेट स्ट्रीम के प्रत्यक्ष प्रभाव से संचालित होते हैं। उदाहरणस्वरूप, उत्तर-पश्चिमी भारत में शीत ऋतु के समय जो वर्षा होती है, वह उपोष्णकटिबंधीय पश्चिमी जेट स्ट्रीम की उपस्थिति से जुड़ी होती है। इसी प्रकार, भारतीय उपमहाद्वीप में मानसूनी वर्षा की वितरण प्रणाली, तीव्रता, एवं आकृति को निर्धारित करने में उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट स्ट्रीम की अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है।
जेट स्ट्रीम क्या हैं?

जेट स्ट्रीम उच्च वायुमंडल में प्रवाहित होने वाली तीव्र वेग वाली वायुप्रवाह धाराएँ होती हैं, जो मुख्यतः पश्चिम से पूर्व दिशा में गतिशील रहती हैं। इनका निर्माण वायुमंडलीय विभिन्न वायुराशियों—विशेषतः ध्रुवीय शीत वायु और उष्णकटिबंधीय गर्म वायु—के मध्य उत्पन्न तापीय प्रवणता के कारण होता है। ये प्रवाह प्रायः क्षोभमंडल के ऊपरी भाग में 9 से 12 किमी की ऊँचाई पर पाए जाते हैं तथा इनकी गति कभी-कभी 400 किमी प्रति घंटा तक पहुँच सकती है।
जेट स्ट्रीम विभिन्न प्रकार की होती हैं, जैसे– ध्रुवीय वाताग्र जेट स्ट्रीम, उपोष्णकटिबंधीय पश्चिमी जेट स्ट्रीम, उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट स्ट्रीम, तथा ध्रुवीय राशि जेट स्ट्रीम। इनका विकास भिन्न-भिन्न वायुमंडलीय अवस्थाओं में होता है, तथा प्रत्येक का मौसमीय घटनाओं पर विशिष्ट प्रभाव होता है।
ये वायुधाराएँ धरातलीय चक्रवातों और प्रति-चक्रवातों की दिशा एवं तीव्रता को नियंत्रित करती हैं तथा इनके स्थान परिवर्तन से वर्षा, आँधी-तूफान और मौसमी पैटर्न में महत्वपूर्ण बदलाव आते हैं। विशेषकर भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून की वितरण प्रणाली, तीव्रता और समय को प्रभावित करने में जेट स्ट्रीम की अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
इस प्रकार, जेट स्ट्रीम न केवल वैश्विक जलवायु के संचालन में मौलिक भूमिका निभाती हैं, बल्कि ये वायुमंडलीय गतिकीय संतुलन की दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण वायुगतिकीय तंत्र हैं।