महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत क्या है ? महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के प्रमाण तथा आलोचना ।

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत (Continental Drift Theory)

महाद्वीपीय प्रवाह से संबंधित विचारों की प्रारंभिक अवधारणा यद्यपि 17वीं शताब्दी में समुद्रों के मानचित्रण तथा उनकी संरचना से जुड़ी जानकारी के प्रकाश में आने लगी थी, किंतु इसे सुसंगत रूप में प्रमाणों सहित विकसित करने का कार्य फेसिस बेकन, एंटोनियो, स्नाइडर तथा एफ.बी. टेलर जैसे विद्वानों द्वारा आगे बढ़ाया गया।
फ्रांसीसी विद्वान एंटोनियो स्नाइडर (Antonio Snider) ने इस विचार क्षेत्र में प्रथम गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया। उन्होंने वर्ष 1858 में महाद्वीपीय विस्थापन से संबंधित सिद्धांत का प्रतिपादन मानचित्रीय प्रमाणों के माध्यम से किया। अपनी कृति “Creation and its Mysteries Revealed” में उन्होंने स्पष्ट रूप से यह प्रदर्शित किया कि पृथ्वी के महाद्वीप प्रारंभ में एकीकृत रूप में विद्यमान थे और बाद में विस्थापित हुए। इसके अतिरिक्त, उन्होंने “Carboniferous Geography” नामक ग्रंथ में इस भौगोलिक विन्यास का चित्रात्मक निरूपण प्रस्तुत किया। उन्होंने अमेरिका और यूरोप से एकत्रित जीवाश्मीय साक्ष्यों को इस विचार के समर्थन में प्रस्तुत किया। तथापि, उनके द्वारा उल्लिखित प्रवाह के कारण, उसका रूप, तथा वैज्ञानिक प्रमाण उस समय पर्याप्त प्रभावशाली नहीं सिद्ध हुए, जिससे यह विचार अधिक व्यापक स्वीकृति प्राप्त नहीं कर सका और समय के साथ अप्रभावी हो गया।

टेलर का महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत (Taylor’s Continental Drift Theory)

महाद्वीपीय प्रवाह संबंधी अवधारणाओं को सर्वप्रथम संगठित वैज्ञानिक सिद्धांत के रूप में वर्ष 1908 में स्वीकार किया गया, जिसकी औपचारिक प्रकाशना 1910 में हुई। अमेरिकी भूवैज्ञानिक एफ.बी. टेलर (Frank B. Taylor) ने विभिन्न भूगर्भिक साक्ष्य प्रस्तुत कर इस सिद्धांत को सुसंगठित रूप प्रदान किया। टेलर के अनुसार, पृथ्वी की स्थलरूप रचना में क्षैतिज विस्थापन की प्रक्रिया हुई है। उनकी परिकल्पना का प्रमुख उद्देश्य टर्शियरी युग के वलित पर्वतों की भौगोलिक संरचना का विश्लेषण करना था।

टेलर के समक्ष जो मूल समस्या थी, वह यह थी कि उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका की रॉकीज़ और एंडीज़ पर्वतमालाएँ उत्तर से दक्षिण दिशा में विस्तृत हैं, जबकि अल्पाइन पर्वत प्रणाली—विशेषतः आल्प्स एवं हिमालय—पूर्व से पश्चिम दिशा में फैली हुई हैं। इस जटिल संरचनात्मक विसंगति को स्पष्ट करने हेतु उन्होंने अपने सिद्धांत को प्रतिपादित किया। टेलर ने अपने विचारों की शुरुआत क्रिटेशियस युग से की। उनके अनुसार, महाद्वीपों का प्रवाह भूमध्य रेखा की ओर हुआ था, और इसका प्रमुख प्रेरक बल ज्वारीय शक्ति को माना गया है, जो इस विस्थापन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण कारक था।

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत क्या है ? महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के प्रमाण तथा आलोचना ।
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत क्या है ? महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के प्रमाण तथा आलोचना ।

वेगनर का महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत(Wegener Theory of Continental Displacement)

सन् 1912 में जर्मन भूगोलवेत्ता अल्फ्रेड वेगनर (Alfred Wegener) ने पृथ्वी के महाद्वीपों की उत्पत्ति तथा उनके वितरण से संबंधित अपना महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत प्रस्तुत किया। वेगनर का यह सिद्धांत एक विस्तृत और व्यापक भूवैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान करता है, जिसके माध्यम से भूपटल की कई जटिल समस्याओं पर भी प्रकाश डाला जा सकता है।

सिद्धांत का उद्देश्य (The Aim of the Theory)

प्रोफेसर वेगनर, जो मूलतः एक जलवायुवैज्ञानिक (Meteorologist) थे, पृथ्वी की जलवायु में समयानुसार आने वाले परिवर्तनों की व्याख्या करने हेतु अनुसंधानरत थे। भू-मंडल के अनेक स्थलों पर ऐसे प्रमाण प्राप्त होते हैं जो यह दर्शाते हैं कि किसी एक स्थान पर समय-समय पर जलवायु में व्यापक परिवर्तन होते रहे हैं। उदाहरण के लिए, अंटार्कटिक महाद्वीप में कोयला की उपस्थिति इस तथ्य को पुष्ट करती है कि किसी समय वहां उष्ण एवं आर्द्र जलवायु रही होगी, जिसमें घनी वनस्पति विकसित हुई होगी, जो आगे चलकर कोयले में परिवर्तित हो गई। वर्तमान में यह क्षेत्र विश्व का सबसे बृहद् हिमाच्छादित क्षेत्र है।

इसी प्रकार, प्रायद्वीपीय भारत में भी ऐसे हिमाच्छादन के अवशेष मिले हैं, जो यह सूचित करते हैं कि अतीत में वहाँ की जलवायु अत्यधिक शीतल रही होगी, जबकि वर्तमान में यह क्षेत्र एक उष्ण कटिबंधीय प्रदेश के रूप में जाना जाता है।

दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका आदि क्षेत्रों में भी कार्बोनिफेरस हिमानीकरण के प्रमाण पाए गए हैं। साथ ही, मध्य यूरोप तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में भी ऐसे भूगर्भीय चिह्न मौजूद हैं जो इस बात को रेखांकित करते हैं कि ये क्षेत्र भी एक समय हिमावरण से ढके हुए रहे होंगे। यहां तक कि राजस्थान के मरुस्थल में भी हिमनदीय प्रभावों के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।

इन जलवायु संबंधी विविधताओं का प्रमुख कारण खोजने की दिशा में ही वेगनर ने अपने सिद्धांत की रचना की। सामान्यतः इस प्रकार की विषमताओं को दो संभावनाओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है–

  • स्थल खंड अपरिवर्तित बने रहे जबकि जलवायु-कटिबंधों में स्थानांतरण हुआ, जिसके फलस्वरूप किसी एक स्थान पर समय-समय पर शीत, उष्ण, शुष्क, अथवा आर्द्र जलवायु का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।
  • जलवायु-कटिबंध स्थिर बने रहे, जबकि महाद्वीपों का विस्थापन एक स्थान से दूसरे स्थान तक हुआ।

चूँकि वेगनर को जलवायु-कटिबंधों में प्रत्यक्ष परिवर्तन के कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं हुए, अतः उन्होंने महाद्वीपीय विस्थापन को ही अपने सिद्धांत की मूल अवधारणा और प्राथमिक आधार के रूप में ग्रहण किया।

सिद्धांत की पूर्वमान्यताएँ (Presumption of Theory)

वेगनर के अनुसार, पृथ्वी के भूपटल की प्रारंभिक संरचना में एक विशाल महाद्वीपीय भूभाग तथा एक विशाल महासागरीय क्षेत्र का गठन हुआ था। इस प्राचीन महाद्वीप को उन्होंने पैंजिया और महासागर को पैंथाल्सा की संज्ञा दी। पैंजिया के केंद्र में पश्चिम से पूर्व की ओर टेथिस सागर विस्तृत था, जिसके उत्तर में उत्तरी अमेरिका, यूरोप, और एशिया को अंगारालैंड, तथा दक्षिण में दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, भारत, ऑस्ट्रेलिया, और अंटार्कटिका को गोंडवानालैंड के रूप में संगठित किया गया था। वेगनर के अनुसार, सियाल रूपी महाद्वीपीय भूपटल, सीमा रूपी महासागरीय भूपटल के ऊपर तैरता हुआ विद्यमान था।

वेगनर का यह भी मत था कि कार्बोनिफेरस युग के दौरान पैंजिया का दक्षिणी ध्रुव वर्तमान डर्बन (Durban), अफ्रीका के समीप अवस्थित था। इसके पश्चात ध्रुवीय अवस्थाओं में गंभीर परिवर्तनों के परिणामस्वरूप वर्तमान भौगोलिक स्थिति उत्पन्न हुई।

प्रवाह के लिए उत्तरदायी शक्तियाँ (Forces Responsible for Drift)

वेगनर के अनुसार, महाद्वीपों का विस्थापन मुख्यतः दो दिशाओं में हुआ—

  1. ध्रुवों से विषुवत रेखा की दिशा में,
  2. पश्चिम दिशा की ओर

प्रथम, ध्रुवीय क्षेत्रों से विषुवत रेखा की ओर विस्थापन का मुख्य कारण पृथ्वी के विषुवतीय उभार से उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण बल था। पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण विषुवतीय क्षेत्र में उभार निर्मित हुआ, क्योंकि उस क्षेत्र में केंद्राभिमुख बल (Centrifugal Force) सक्रिय था। इसके विपरीत, पृथ्वी के गुरुत्व बल की विपरीत दिशा में क्रियाशीलता के चलते, इन दोनों शक्तियों के संघात से ध्रुवों से विषुवत रेखा की ओर महाद्वीपीय प्रवाह हुआ।

द्वितीय, पश्चिमोन्मुख प्रवाह का प्रमुख कारण सूर्य और चंद्रमा द्वारा उत्पन्न संयुक्त ज्वारीय शक्ति मानी गई। पृथ्वी स्वयं पश्चिम से पूर्व की दिशा में घूमती है, जबकि चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर पूर्व से पश्चिम की ओर परिक्रमा करता है। वेगनर के मतानुसार, महाद्वीपों के प्रवाह के समय चंद्रमा पृथ्वी के अत्यधिक निकट था और उसकी गति तीव्र थी, जिससे वह पृथ्वी की घूर्णन दिशा के विपरीत दिशा में अधिक प्रभाव डाल सका।

साथ ही, सूर्य ने भी चंद्रमा के साथ मिलकर पृथ्वी पर आकर्षण बल उत्पन्न किया, जिसके परिणामस्वरूप बाह्य भूपटल खंडों को सूर्य और चंद्रमा द्वारा पश्चिम दिशा की ओर खींचा गया। इन सम्मिलित शक्तियों के कारण ही महाद्वीपों का विस्थापन संभव हो सका।

विशाल महाद्वीप का विभाजन एवं प्रवाह (Division and Drifting of Pangea)

पैंजिया महाद्वीप का अस्तित्व दीर्घकालिक नहीं रहा। कार्बोनिफेरस युग के उत्तरार्द्ध में इसका विखंडन आरंभ हो गया था। सर्वप्रथम यह दो प्रमुख खंडों में विभक्त हुआ: उत्तरी भाग लोरेंशिया (जिसे अंगारालैंड भी कहा जाता है) और दक्षिणी खंड गोंडवानालैंड। लोरेंशिया में उत्तरी अमेरिका, यूरोप, और एशिया सम्मिलित थे, जबकि गोंडवानालैंड में दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, भारत, ऑस्ट्रेलिया, तथा अंटार्कटिका समाविष्ट थे। ये दोनों भूभाग टेथिस महासागर (Tethys Ocean) द्वारा पृथक किए गए थे। उस समय महाद्वीपों के मध्य निम्नस्थ भागों में कई छिछले समुद्री क्षेत्र विद्यमान थे, जो समय के साथ या तो नष्ट हो गए, या पिछे हट गए, अथवा अन्य भागों में समाहित हो गए।

लगभग 13 करोड़ 50 लाख वर्ष पूर्व, जुरासिक युग के दौरान, ये दोनों विशाल भूभाग तथा अन्य छोटे खंड विभिन्न इकाइयों में विभाजित हो गए। इसी समय उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका की ओर पश्चिम दिशा में प्रवाह हुआ, जिससे इनके मध्य अंध-महासागर (Atlantic Ocean) का उद्भव हुआ। इसके अतिरिक्त, इस काल में अंटार्कटिका महाद्वीप भी अफ्रीका और दक्षिणी अमेरिका से विलग होने लगा, तथा भारत एवं ऑस्ट्रेलिया के स्वतंत्र अस्तित्व की प्रक्रिया भी आरंभ हो गई थी।

लगभग 6 करोड़ 50 लाख वर्ष पूर्व, इयोसीन युग में, महाद्वीपों का प्रवाह आगे बढ़ा और उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका दो स्वतंत्र भौगोलिक इकाइयों के रूप में स्पष्ट हो गए। इसी काल में भारत, ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका, तथा ग्रीनलैंड जैसे भूभाग भी मानचित्र पर पृथक रूपों में उभरने लगे।

कालांतर में, ये महाद्वीपीय खंड और भी अधिक उत्तर-पश्चिम दिशा में प्रवाहित होते गए और अंततः वर्तमान भौगोलिक स्थिति में आ पहुँचे। वेगनर ने प्लीस्टोसिन युग के पूर्वार्द्ध का मानचित्र तैयार किया था, जो लगभग 7 लाख वर्ष पूर्व की महाद्वीपीय संरचना को दर्शाता है।

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वेगनर का यह मत था कि चूंकि महाद्वीपों का निर्माण सियाल से हुआ है, अतः वे सीमा रूपी महासागरीय सतह पर प्रवाहशील अवस्था में स्थित हैं।

सिद्धांत का विश्लेषण (Analysis of Theory)

ध्रुवों की परिवर्तनशील स्थिति (Changing Location of Poles)

  • वेगनर ने कोपेन (Köppen) के सहयोग से हिमयुगीन, शुष्क, तथा आर्द्र अवस्थाओं के भौगोलिक प्रमाणों के आधार पर ध्रुवीय स्थिति में परिवर्तनों का एक अभूतपूर्व दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उनके अनुसार, सिलुरियन (Silurian) युग में उत्तरी ध्रुव का स्थान 14° उत्तरी अक्षांश और 124° पश्चिमी देशांतर पर था।
  • इसके पश्चात, लगभग 27 करोड़ वर्ष पूर्व, कार्बोनिफेरस युग के समय, यह ध्रुव 16° उत्तरी अक्षांश और 147° पश्चिमी देशांतर पर स्थानांतरित हो गया। तत्पश्चात, ट्रायसिक युग में—जो कि लगभग 18 करोड़ वर्ष पूर्व समाप्त हुआ—उत्तरी ध्रुव ने पुनः स्थान बदला और टर्शियरी युग में वह 51° उत्तरी अक्षांश तथा 153° पश्चिम देशांतर पर पहुँच गया।
  • इसी प्रकार, दक्षिणी ध्रुव भी विभिन्न भूगर्भीय अवधियों में भिन्न-भिन्न स्थानों पर स्थित रहा। सिलुरियन युग के उत्तरार्द्ध में यह ब्राज़ील के परनामबुकु राज्य में अवस्थित था। बाद में, कार्बोनिफेरस तथा टर्शियरी युगों में क्रमशः यह दक्षिणी अफ्रीकी संघ के दक्षिणी छोर तथा एडवर्ड द्वीप समूह के समीप दक्षिण अफ्रीका के अंतिम छोर पर पहुँच गया।

विषुवत रेखा की बदलती हुई स्थिति (Changing Location of Equator)

उपरोक्त विश्लेषण से यह तथ्य स्पष्ट रूप से सामने आता है कि विभिन्न भूवैज्ञानिक युगों में ध्रुवों की स्थिति में निरंतर परिवर्तन हुआ है। इसी के साथ-साथ, विषुवत रेखा की अवस्थिति में भी क्रमिक परिवर्तन होता रहा है। कार्बोनिफेरस युग में जिस भू-क्षेत्र से भूमध्य रेखा गुज़रती थी, आज उस स्थान पर ग्लोब पर हरसीनियन पर्वत शृंखलाएँ दृष्टिगोचर होती हैं। इस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि लोरेंशिया का प्रमुख भाग दीर्घकाल तक उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र के अंतर्गत अवस्थित रहा।

सिद्धांत के समर्थन में दिये गए साक्ष्य (Evidences in Support of Theory)

महाद्वीपों का परस्पर जुड़ना (Juxtafix of Continents)

महाद्वीपीय विस्थापन से संबंधित एक प्राकृतिक प्रश्न यह उठता है कि यदि पैंजिया के विघटन से पूर्व जो भूवैज्ञानिक विशेषताएँ संयुक्त भूखंड में विद्यमान थीं, वे क्या उसके विभाजित भागों में भी समान रूप से दृष्टिगोचर होती हैं? इसका उत्तर स्पष्टतः सकारात्मक मिलता है। दक्षिणी अटलांटिक महासागर के दोनों किनारों (पूर्वी तथा पश्चिमी) की तटीय संरचनाओं में पर्याप्त समानता पाई जाती है। यदि इन दोनों को सन्निकट रूप में संलग्न किया जाए, तो ऐसा प्रतीत होता है मानो यह क्षेत्र पूर्व में एक संपूर्ण भूखंड के रूप में आपस में जुड़ा हुआ था।

दक्षिण अमेरिका का पूर्वी किनारा तथा दक्षिणी अफ्रीका का पश्चिमी समुद्री तट एक-दूसरे के साथ सहज रूप से जोड़ने योग्य प्रतीत होते हैं। यह भू-आकृति, जिसे ‘जिगसॉ फिट’ (Jigsaw-fit) कहा जाता है, वेगनर की परिकल्पना को महत्वपूर्ण समर्थन प्रदान करती है। इसी तरह, ग्रीनलैंड तथा एलिस्मेरे (Ellesmere) द्वीप भी एक-दूसरे से संबद्ध प्रतीत होते हैं। भारत, मेडागास्कर, एवं अफ्रीका को जोड़ने पर जो भू-चित्र बनता है, वह पूर्ण एवं सुसंगत लगता है।

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पुराजीवाश्मी प्रमाण (Palaeontological Evidences)

पृथ्वी के भूगर्भीय इतिहास में विभिन्न कल्पों के दौरान विविध प्रकार के जीवों का उत्पत्ति क्रम देखा गया है। ऐसे जीव, जिनका अस्तित्व केवल किसी विशिष्ट भूवैज्ञानिक युग में रहा हो, उस युग के आवृत शैलों में उनके जीवाश्म संरक्षित अवस्था में पाए जाते हैं। इन जीवों के भौगोलिक वितरण में एक सुसंगत अनुक्रम परिलक्षित होता है। पृथ्वी के जिन विस्थापित भूखंडों अर्थात् महाद्वीपों पर समान प्रकार के जीवाश्म प्राप्त हुए हैं, यह तथ्य महत्वपूर्ण रूप से संकेत करता है कि ये महाद्वीप पूर्वकाल में एकीकृत रूप में विद्यमान थे। इतने विस्तृत महासागरों द्वारा विभाजित महाद्वीपों के मध्य जलचर जीवों का प्राकृतिक प्रव्रजन संभव नहीं था।

मेसोसौरस (Mesosaurus) नामक एक प्राचीन जलीय सरीसृप के जीवाश्म केवल दक्षिण-पूर्वी अमेरिका और दक्षिणी अफ्रीका में ही पाए गए हैं। यदि यह जीव तैरने में सक्षम होता, तो इसके अवशेष उत्तरी अमेरिका, यूरोप जैसे समीपवर्ती महाद्वीपों में भी अवश्य मिलते। परंतु ऐसा नहीं पाया गया, जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि इन दोनों महाद्वीपों का पूर्व में संयोजन हुआ करता था। इसी प्रकार, फर्न तथा ग्लोसोप्टेरिस (Fern and Glossopteris) जैसी महत्वपूर्ण वनस्पतियों के जीवाश्म अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, भारत, तथा दक्षिणी अमेरिका में व्यापक रूप से पाए गए हैं। बाद में इनके अवशेष अंटार्कटिका से भी प्राप्त हुए, जबकि फर्न वनस्पति केवल उपध्रुवीय जलवायु में ही विकसित हो सकती है। इन वनस्पति जीवाश्मों का विखंडित क्षेत्रों में पाया जाना यह दर्शाता है कि ये क्षेत्र कभी एक साथ समेकित थे तथा वहाँ का जलवायु ठंडा था।

इसी क्रम में, साइनोग्नाथस (Cynognathus) के जीवाश्म अर्जेंटीना और दक्षिणी अफ्रीका में पाए गए हैं, जबकि प्रोडक्टाइट नामक जीव के अवशेष भारत के तलचर निक्षेप एवं ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तटीय क्षेत्रों में मिलते हैं। वर्ष 1967 ई. में अंटार्कटिका में मीठे जल में रहने वाले जीवों – लैबरिन्थोडोन्ट्स (Labyrinthodonts) – के जीवाश्म खोजे गए, जो न तो नमकीन जल में जीवित रह सकते थे और न ही वे दूरस्थ तैराकी में समर्थ थे। यह खोज भी इस सिद्धांत के पक्ष में एक गंभीर प्रमाण प्रस्तुत करती है।

इसके अतिरिक्त, ऐसा भी पाया गया है कि मेसोजोइक युग अथवा उसके पश्चात् पृथ्वी के विभिन्न भागों में विशिष्ट जंतु समूहों (Faunas) का विकास हुआ, किंतु इससे पूर्व, समस्त क्षेत्रों में समान प्रकार के जीवसमूह पाए जाते थे। यह तथ्य भी पृथ्वी पर भूखंडों की एकता की धारणा को सुदृढ़ करता है

वर्तमान में कोयले का वितरण मुख्यतः उत्तरी-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, जैसे शीतोष्ण क्षेत्रों में देखा जाता है, जबकि कोयला निर्माण की अनुकूल परिस्थितियाँ केवल भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में ही संभव होती हैं। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अतीत में जब ये महाद्वीप एकीकृत रूप में थे, तब ये क्षेत्र उष्ण जलवायु के अंतर्गत आते थे, जो बाद में प्रवाहित होकर आज की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में पहुँच गए।

लिस्ट्रोसॉरस (Lystrosaurus) के जीवाश्म भी दक्षिणी अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका, एशिया, और अंटार्कटिका में विस्तृत रूप में पाए गए हैं। ये जीव पुराजीवी (Paleozoic) और मध्यजीवी (Mesozoic) महाकाल के स्तनधारी सदृश सरीसृप थे, जो पूर्णतः स्थलवासी थे और इतने विशाल महासागरों को पार करने की क्षमता से रहित थे। यह सभी प्रमाण महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत को मौलिक समर्थन प्रदान करते हैं।

संरचनात्मक एवं स्तरिक प्रमाण / संरचनात्मक एवं शैलीय साक्ष्य (Structural and Stereographic Evidence)

  • यूरोप स्थित नॉर्वे के कैलिडोनियन पर्वतों की भूवैज्ञानिक विशेषताएँ, शैलविन्यास तथा उनमें पाए गए जीवाश्म अवशेष, ग्रीनलैंड के पूर्वी भाग के कैलिडोनियन पर्वतों के साथ पूर्ण समरूपता प्रदर्शित करते हैं।
  • यूरोप में अवस्थित कोयला भंडार, उत्तरी अमेरिका की कोयला खानों के साथ पूरी तरह तुलनीय हैं।
  • कैबोट भ्रंश (Cabot Fault), जो न्यूफाउंडलैंड और नोवास्कोसिया में स्थित है, एवं ग्रेट प्लेन भ्रंश (Great Glen Fault), जो स्कॉटलैंड में पाया जाता है, इन दोनों के मध्य टुज़ो-विल्सन द्वारा स्थापित संरचनात्मक संबंध यह सिद्ध करते हैं कि पैलियोजोइक युग में ये दोनों भ्रंश एकीकृत थे। यह तथ्य पुराचुंबकीय साक्ष्यों से भी प्रमाणित हुआ है।
  • स्कॉटलैंड और न्यूफाउंडलैंड (अमेरिका) दोनों स्थानों पर समान प्रकार के ज्वालामुखी संरचनाएँ पाई गई हैं।
  • डेवोनियन कल्प के दौरान निर्मित लाल बलुआ पत्थर, स्कॉटलैंड, नॉर्वे, ग्रीनलैंड, तथा उत्तरी अमेरिका के पूर्वी भागों में समान रूप से विद्यमान हैं। इसी प्रकार, बेसाल्ट संरचित पठारी भागदक्षिण अमेरिका के पूर्वी क्षेत्र, दक्षिण अफ्रीका के पूर्वी-पश्चिमी किनारे, अंटार्कटिका के उत्तर-पश्चिमी भाग, मेडागास्कर के पूर्वी भाग, तथा भारत के पश्चिमी क्षेत्र में भी परिलक्षित होते हैं।
  • भारत के सिंहभूम क्षेत्र की लौह खदानें, ऑस्ट्रेलिया के याम्पी साउंड की लौह खानों के समान हैं। साथ ही, दक्षिण भारत की धारवाड़ पर्वतमाला (Orogenic Belt) की संरचना, ऑस्ट्रेलिया की कालगूर्ली पर्वत श्रृंखला से काफी मेल खाती है, और कोलार की स्वर्ण खदानें भी कालगूर्ली की स्वर्ण खदानों के अनुरूप हैं।
  • दक्षिण अमेरिका के पूर्वी किनारों और अफ्रीका के पश्चिमी भागों में समान आयु की चट्टानी संरचनाएँ एवं समरूप भू-आकृतिक विशेषताएँ पाई गई हैं।
  • अटलांटिक और प्रशांत महासागरों के तटीय क्षेत्रों की भू-रचनाएँ पूर्णतः असमान पाई गई हैं।
  • दीर्घ दरार रेखाएँ, जिनकी लंबाई सैकड़ों किलोमीटर तक विस्तृत है, महाद्वीपीय प्रवाह का स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत करती हैं। विशेष रूप से, महान दरार घाटी, जो मृत सागर (जॉर्डन-इज़राइल) से आरंभ होकर अफ्रीका के न्यासालैंड तक फैली हुई है, महाद्वीपों के विस्थापन के फलस्वरूप निर्मित एक प्रमुख भू-आकृति मानी जाती है।
  • वैश्विक स्तर पर अधिकांश भूकंपीय क्षेत्र केवल अंगारालैंड एवं गोंडवानालैंड के विखंडित खंडों के इर्द-गिर्द ही केन्द्रित हैं, जबकि प्राचीन, कठोर स्थल खंडों पर यह सक्रियता नहीं पाई जाती। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि ये सभी मूलभूत भूखंड पूर्व में एकसाथ संयोजित थे और कालांतर में विखंडित हो गए।
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पुराजलवायवीय या पुराजलवायु प्रमाण(Palaeoclimatic Evidence)

पुराजलवायु का तात्पर्य उन जलवायवीय परिस्थितियों से है, जो पुराजीवी महाकल्प के दौरान विभिन्न महाद्वीपीय क्षेत्रों में उपस्थित थीं। यह तथ्य महाद्वीपों के विस्थापन सिद्धांत के पक्ष में एक प्रबल प्रमाण प्रस्तुत करता है। इसका सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है—कार्बोनिफेरस कालीन हिमयुग का प्रभाव, जो कि गोंडवानालैंड के विभिन्न भागों में दृष्टिगोचर होता है। लगभग 70 करोड़ वर्ष पूर्व, हिमानीकृत स्थलाकृतियाँशांता केथारिना (ब्राज़ील), फॉकलैंड द्वीप, कारू प्रदेश (अफ्रीका), प्रायद्वीपीय भारत, ऑस्ट्रेलिया आदि में पाई गईं, जो यह स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत करती हैं कि ये सभी भू-भाग किसी काल में आपस में जुड़े हुए थे, किन्तु बाद में भूगर्भीय प्रवाह के कारण पृथक हो गए।

वोल्गा नदी की ऊपरी सहायक कामा नदी के घाटी क्षेत्र में पोटाश की परतें, आर्कटिक कनाडा के एलिजाबेथ द्वीप समूह में छह किलोमीटर लंबा लवणीय क्षेत्र, तथा मूंगे की दीवारें यह संकेत देती हैं कि ये वर्तमान उच्च अक्षांशीय क्षेत्र कभी भूमध्य रेखा के समीप रहे होंगे या फिर उत्तरी ध्रुव ने अपना स्थान उत्तर दिशा की ओर स्थानांतरित किया है। ये सभी घटनाएँ महत्वपूर्ण प्रवाह साक्ष्य के रूप में स्वीकार की जाती हैं।

संचरण संबंधी विश्लेषण से यह तथ्य ज्ञात हुआ है कि ग्रीनलैंड और कनाडा के मध्य की दूरी लगातार घट रही है। इसके अतिरिक्त, भारत और अफ्रीका, दोनों लगभग 5 सेमी प्रति वर्ष की गति से उत्तर दिशा में अग्रसर हो रहे हैं। अटलांटिक महासागर की चौड़ाई निरंतर बढ़ रही है, जो महाद्वीपीय विस्थापन की स्पष्ट अभिव्यक्ति है। इसी प्रकार, एंडीज, रॉकी, तथा विभिन्न द्वीप व द्वीपसमूहों की स्थिति एवं रचना, इस सिद्धांत को प्रामाणिक रूप से बल प्रदान करती हैं। उदाहरणस्वरूप, मध्य अमेरिकी द्वीपों का पूर्व-पश्चिम दिशा में प्रसार इसी प्रवृत्ति का दृश्य प्रमाण है।

अल्फ्रेड वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत की आलोचना (Criticism)

अल्फ्रेड वेगनर ने पृथ्वी संबंधी विविध जटिल समस्याओं के समाधान हेतु प्रयासरत रहकर एक समग्र सिद्धांत प्रस्तुत करने का प्रयास किया। प्रारंभिक रूप में उनका उद्देश्य अतीत के जलवायु परिवर्तनों को स्पष्ट करना था, किंतु जैसे-जैसे जटिलताएँ उभरती गईं, उनका सिद्धांत भी विस्तार पाता गया तथा उन्होंने इसके समर्थन हेतु प्रचुर सामग्री एकत्र की। तथापि, उनके विचारों में अनेक त्रुटियाँ थीं, जिसके कारण इस सिद्धांत को तीव्र आलोचना का सामना करना पड़ा। निम्नांकित तर्कों के माध्यम से उनके सिद्धांत की गंभीर समीक्षा की गई है–

वेगनर ने पैंजिया के विभाजन के उपरांत विषुवत रेखा तथा पश्चिम की दिशा में गति का सिद्धांत प्रस्तुत किया था, जिसमें महाद्वीपों के पश्चिम की ओर संचरण का कारण ज्वारीय बल बताया गया। परंतु जेफ्रीज ने गणितीय प्रक्रिया अपनाकर यह सिद्ध किया कि महाद्वीपों को पश्चिम की ओर प्रवाहित करने हेतु वर्तमान ज्वारीय शक्ति से दस अरब गुना अधिक शक्ति अपेक्षित है, जो एक असंभवनीय परिकल्पना है। यदि यह शक्ति वास्तव में होती, तो पृथ्वी की दैनिक गति एक वर्ष में ही समाप्त हो जाती।

विषुवत रेखा की ओर प्रवाह हेतु अपेक्षित शक्ति पर्याप्त नहीं मानी गई। यदि अधोस्तर (sub-stratum) की श्यानता (viscosity) उस समय अत्यल्प रही होती, तो संभवतः यह प्रवाह हो सकता था। किन्तु, इस प्रभाव के परिणामस्वरूप सभी महाद्वीपीय खंड विषुवत रेखा के समीप एकत्रित हो जाते, जबकि यूरेशिया एवं उत्तरी अमेरिका का संचरण उत्तर दिशा में हुआ है।

वेगनर ने यह उल्लेख किया कि सियाल (Sial) सिमा (Sima) पर अवरोध रहित तैरता है, किंतु पुनः यह भी कहा कि सिमा से सियाल पर उत्पन्न बल के कारण वलित पर्वतों की उत्पत्ति हुई। इस प्रकार, उनके विचारों में अंतर्विरोध स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।

प्रशांत महासागर के पूर्वी तथा पश्चिमी किनारों पर विस्तृत खाइयाँ और विशाल पर्वतमालाएँ विद्यमान हैं, जिनकी व्याख्या महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के अनुरूप नहीं की जा सकती।

इन महासागरीय खाइयों में 300–700 किमी. गहराई वाले गंभीर भूकंप उत्पन्न होते हैं तथा ये क्षेत्र ज्वालामुखीय सक्रियता से भी प्रभावित हैं, जिन्हें यह सिद्धांत संतोषजनक ढंग से स्पष्ट नहीं कर पाता।

रेडियोमेट्रिक डेटिंग पद्धति से ज्ञात हुआ कि महासागरों की तलछट 20 करोड़ वर्ष से अधिक प्राचीन नहीं है, जबकि महाद्वीपीय भू-भाग पर 3.8 अरब वर्ष पुरानी चट्टानों के नमूने प्राप्त हुए हैं। यह गौरतलब है कि प्रशांत महासागर की भू-आवरण भी 3.8 अरब वर्ष पुरानी मानी जाती है। ऐसी स्थिति में इस महासागर की प्राचीन परत का क्या हुआ, इसका उत्तर वेगनर का सिद्धांत नहीं दे पाता।

पैंजिया का विघटन केवल पुराजीवी काल में ही क्यों हुआ, और उससे पूर्व, विशेषतः कार्बोनिफेरस युग से पहले पैंजिया किस बल पर स्थिर रहा – इसका स्पष्ट उल्लेख वेगनर द्वारा नहीं किया गया। इसलिए यह कहा गया कि वेगनर ने अपने सिद्धांत को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से न देखकर एक संभावित विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया है। उन्होंने पक्ष में प्रस्तुत प्रमाणों को प्राथमिकता दी जबकि विरोधी तथ्यों की उपेक्षा की।

आर्थर होम्स ने अपनी पुस्तक ‘Physical Geology’ में महाद्वीपीय विखंडन अथवा विस्थापन का कारण प्रवार (Mantle) के भीतर उत्पन्न संवहन तरंगों को बताया। उनका कथन था कि यह तरंगें पृथ्वी की चट्टानों में विद्यमान रेडियोधर्मी पदार्थों से सक्रिय होती हैं। पृथ्वी की पर्पटी के नीचे जहाँ दो संवहनीय तरंगें विपरीत दिशाओं में प्रवाहित होती हैं, वहाँ तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे स्थल खंड दो भागों में विभाजित होकर विपरीत दिशाओं में खिसकते हैं और नवीन महासागर का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया से महाद्वीपों में गतिशीलता आती है। वेगनर ने इस सिद्धांत के आधार पर 1929 में पुनः यह विचार व्यक्त किया कि महाद्वीपीय विस्थापन का कारण तापीय संवहन तरंगें (Thermal Convection Currents) हैं।

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत क्या है ? महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के प्रमाण तथा आलोचना ।

आर्थर होम्स ने अपनी पुस्तक ‘Physical Geology’ में महाद्वीपीय विखंडन अथवा विस्थापन का कारण प्रवार (Mantle) के भीतर उत्पन्न संवहन तरंगों को बताया। उनका कथन था कि यह तरंगें पृथ्वी की चट्टानों में विद्यमान रेडियोधर्मी पदार्थों से सक्रिय होती हैं। पृथ्वी की पर्पटी के नीचे जहाँ दो संवहनीय तरंगें विपरीत दिशाओं में प्रवाहित होती हैं, वहाँ तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे स्थल खंड दो भागों में विभाजित होकर विपरीत दिशाओं में खिसकते हैं और नवीन महासागर का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया से महाद्वीपों में गतिशीलता आती है। वेगनर ने इस सिद्धांत के आधार पर 1929 में पुनः यह विचार व्यक्त किया कि महाद्वीपीय विस्थापन का कारण तापीय संवहन तरंगें (Thermal Convection Currents) हैं।

FAQs

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत क्या है?

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत का प्रतिपादन अल्फ्रेड वेगनर ने किया था, जिसके अनुसार आज के महाद्वीप पहले एक संयुक्त महाद्वीपीय पिंड ‘पैंजिया’ का भाग थे, जो कालांतर में विभिन्न दिशाओं में विखंडित होकर अलग-अलग महाद्वीपों में परिवर्तित हो गए। इस सिद्धांत में यह विचार व्यक्त किया गया कि महाद्वीप पृथ्वी की सतह पर स्थिर नहीं हैं, बल्कि वे एक-दूसरे के सापेक्ष स्थानांतरित होते हैं।

अल्फ्रेड वेगनर कौन थे और उनका सिद्धांत क्या था?

अल्फ्रेड वेगनर एक जर्मन भूगोलवेत्ता एवं जलवायु वैज्ञानिक थे, जिन्होंने 1912 में महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत प्रस्तुत किया। उनका उद्देश्य प्रारंभ में प्राचीन जलवायु परिवर्तनों को समझना था, किंतु बाद में उन्होंने इस सिद्धांत को व्यापक रूप दिया और ‘पैंजिया’ के विखंडन के माध्यम से महाद्वीपों की स्थिति की व्याख्या की। उन्होंने यह भी बताया कि यह विखंडन पृथ्वी की आंतरिक शक्तियों, जैसे कि ज्वारीय बल तथा बाद में संवहन तरंगों द्वारा संभव हुआ।

वैगनर के महाद्वीप के सिद्धांत क्या हैं?

वेगनर के सिद्धांत में यह मुख्य रूप से कहा गया कि पृथ्वी की सतह पर स्थित महाद्वीप एक समय पर एकीकृत महाद्वीपीय पिंड थे। इसके बाद वे विभिन्न दिशाओं में प्रवाहित होकर वर्तमान महाद्वीपों में बंट गए। उन्होंने इस प्रवाह के कारणों में ज्वारीय बल, पृथ्वी की गति, तथा बाद में संवहनीय तरंगों को उत्तरदायी माना।

पैंजिया और पैंथालासा क्या है?

पैंजिया उस प्राचीन महाद्वीपीय पिंड का नाम है जिसे वेगनर ने परिकल्पित किया था, जिसमें सभी वर्तमान महाद्वीप एक साथ जुड़े हुए थे। इसके चारों ओर फैला हुआ महासागर पैंथालासा कहलाता था।

पैंजिया वेगनर का सिद्धांत क्या है?

वेगनर के अनुसार, पैंजिया एक प्राचीन एकीकृत महाद्वीप था, जो पुराजीवी युग के अंत में विखंडित होकर विभिन्न महाद्वीपों में परिवर्तित हुआ। यह सिद्धांत भूगोल, भूगर्भ, और पुराजीवाश्मीय प्रमाणों पर आधारित था।

अल्फ्रेड वेगनर ने कौन सा सिद्धांत दिया था?

अल्फ्रेड वेगनर ने 1912 में महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत प्रस्तुत किया, जो इस विचार पर आधारित था कि वर्तमान महाद्वीप एक समय संयुक्त रूप में ‘पैंजिया’ के रूप में अस्तित्व में थे।

वेगनर का महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत क्या है?

वेगनर का यह सिद्धांत दर्शाता है कि महाद्वीप गतिशील हैं और समय के साथ वे एक-दूसरे से अलग होकर वर्तमान स्थिति में पहुंचे हैं। उन्होंने इस प्रवाह के पीछे ज्वारीय शक्ति तथा बाद में संवहन तरंगों को उत्तरदायी माना।

वेगनर ने अपना सिद्धांत कब दिया था?

वेगनर ने 1912 में महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत का प्रारंभिक रूप प्रस्तुत किया और फिर 1929 में उन्होंने संवहन तरंगों को इसके कारण के रूप में स्वीकार किया।

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत कब और किसने दिया था?

आर्थर होम्स ने अपने सिद्धांत में संवहन तरंगों की अवधारणा प्रस्तुत की, जो बाद में प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के लिए आधार बनी। हालांकि, प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत की पूर्ण वैज्ञानिक स्वीकृति वेगनर के समय के बाद हुई।

महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत का प्रतिपादक कौन था?

महाद्वीपीय प्रवाह अथवा विस्थापन की अवधारणा का प्रतिपादन अल्फ्रेड वेगनर ने किया था। उन्होंने महाद्वीपों के प्रवाह के कारणों में पहले ज्वारीय बल और फिर संवहन तरंगों को स्वीकार किया।

वेगनर के सिद्धांत पर किसी ने विश्वास क्यों नहीं किया था?

वेगनर के सिद्धांत की कटु आलोचना हुई क्योंकि उन्होंने जिन ज्वारीय शक्तियों को महाद्वीपीय प्रवाह का कारण बताया, वे गणितीय दृष्टि से अपर्याप्त सिद्ध हुईं। साथ ही, उन्होंने स्वयं अपने ही कथनों में विरोधाभास उत्पन्न कर दिया, जैसे सियाल और सीमा की गति संबंधी परस्पर विपरीत विचार। इसके अतिरिक्त, उन्होंने विपक्षी प्रमाणों की उपेक्षा कर केवल अनुकूल तथ्यों को महत्व दिया।

अल्फ्रेड वेगेनर कौन थे?

अल्फ्रेड वेगनर एक जर्मन वैज्ञानिक थे जिन्होंने भूगर्भीय घटनाओं और महाद्वीपीय गति से संबंधित महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत का प्रतिपादन किया। वे मूलतः जलवायु परिवर्तन के अध्ययन से प्रेरित थे।

पैंजिया का विज्ञान में क्या अर्थ है?

विज्ञान में पैंजिया उस प्राचीन एकीकृत महाद्वीप को कहते हैं जो वेगनर के अनुसार बाद में विभिन्न महाद्वीपों में विभाजित हो गया।

ज्वालामुखी, भूकंप और महासागरीय खाइयों की वेगनर के सिद्धांत में व्याख्या क्यों नहीं हो पाती?

वेगनर का सिद्धांत महासागरीय खाइयों, 300–700 किमी गहरे भूकंपों, और ज्वालामुखीय गतिविधियों की स्पष्ट वैज्ञानिक व्याख्या नहीं कर पाता, जो इसकी एक महत्त्वपूर्ण कमजोरी मानी गई।

महाद्वीपीय विस्थापन का क्या अर्थ है?

महाद्वीपीय विस्थापन से तात्पर्य है कि पृथ्वी के महाद्वीप समय के साथ अपनी मूल स्थिति से स्थानांतरित होकर वर्तमान स्थिति में पहुँचे हैं। यह विचार वेगनर के सिद्धांत की नींव है, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि सभी महाद्वीप कभी एक साथ जुड़े हुए थे और बाद में प्राकृतिक आंतरिक शक्तियों के कारण अलग हो गए।

वैगनर का नियम क्या है?

वैगनर का “नियम” उनके सिद्धांत का सार है, जिसमें यह माना गया कि भू-आकृतियाँ स्थिर नहीं हैं, बल्कि वे गतिशील होती हैं और समय के साथ स्थानांतरित होती रहती हैं। उन्होंने महाद्वीपीय विस्थापन को एक सतत और दीर्घकालिक प्रक्रिया बताया।

वेगेनर की थ्योरी क्या है?

वेगेनर की थ्योरी को महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत कहा जाता है। इसके अनुसार महाद्वीप एक समय पर ‘पैंजिया’ नामक एकीकृत भू-भाग का हिस्सा थे, जो बाद में विभाजित होकर अलग-अलग महाद्वीपों के रूप में विकसित हुए। उन्होंने जीवाश्म, स्थलाकृतिक समानता, और चट्टानी संरचनाओं को इस सिद्धांत के समर्थन में प्रस्तुत किया।

अल्फ्रेड वेगनर द्वारा घिरे एक बड़े महाद्वीप को क्या नाम दिया गया था?

वेगनर ने उस प्राचीन विशाल महाद्वीपीय पिंड को “पैंजिया” नाम दिया था, जिसका अर्थ है “संपूर्ण पृथ्वी”। यह पिंड पृथ्वी के सभी वर्तमान महाद्वीपों का एकीकृत स्वरूप था।

महाद्वीप कहां घूम रहे हैं?

महाद्वीप आज भी स्थिर नहीं हैं, बल्कि वे प्लेट विवर्तनिकी के प्रभाव से धीरे-धीरे अपनी-अपनी प्लेटों पर सरक रहे हैं। यह गति संवहन तरंगों और पृथ्वी के मेंटल में होने वाली गतिविधियों के कारण होती है।

वेगनर का सिद्धांत क्या है?

वेगनर का सिद्धांत यह था कि महाद्वीप समुद्री सतह पर नहीं टिके हैं, बल्कि वे एक-दूसरे के सापेक्ष गति कर सकते हैं। इस सिद्धांत ने पृथ्वी की आंतरिक संरचना और भूगर्भीय प्रक्रियाओं को समझने की दिशा में एक नई सोच को जन्म दिया।

महाद्वीपों की उत्पत्ति कैसे हुई?

महाद्वीपों की उत्पत्ति पैंजिया के विखंडन के माध्यम से हुई, जैसा कि वेगनर ने बताया। इसके अनुसार पृथ्वी पर एक समय एक ही विशाल भूखंड था, जो समय के साथ टूटकर कई भागों में बंट गया और आज के अलग-अलग महाद्वीपों के रूप में सामने आया।

प्रदत्त विस्थापन सिद्धांत का क्या अर्थ है?

प्रदत्त विस्थापन सिद्धांत का अर्थ है वह विचार या सिद्धांत जिसके अनुसार महाद्वीप अपनी वर्तमान स्थिति में नहीं बने थे, बल्कि वे समय के साथ अपनी स्थिति बदलते गए हैं। वेगनर का सिद्धांत इसी विचार का सबसे प्रारंभिक और प्रमुख उदाहरण है।

कौन सा सिद्धांत महाद्वीपीय एवं महासागरीय बेसिनों की उत्पत्ति से संबंधित है?

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत और बाद में विकसित प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत दोनों ही महाद्वीपों और महासागरीय बेसिनों की उत्पत्ति तथा उनके वर्तमान स्वरूप को समझाने में उपयोगी हैं। वेगनर का सिद्धांत इस दिशा में पहला प्रयास था।

प्लेट विवर्तनिकी का सिद्धांत क्या है?

हालांकि यह सीधे तौर पर आपके मूल लेख में नहीं था, फिर भी यह वेगनर के सिद्धांत का विकास है। प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी की बाह्य सतह कई कठोर प्लेटों में विभाजित है, जो मेंटल में उठने वाली संवहन धाराओं के कारण हिलती रहती हैं। यह सिद्धांत वेगनर के विचारों की वैज्ञानिक पुष्टि करता है।

पैंथालासा को अभी क्या कहा जाता है?

पैंथालासा उस महासागर का नाम था जो पैंजिया को चारों ओर से घेरे हुए था। आज के समय में इसका कोई एकल उत्तराधिकारी नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि प्रशांत महासागर उस पौराणिक महासागर का सबसे निकटवर्ती प्रतिनिधि है।

टिलाइट क्या है?

टिलाइट एक प्रकार की तालछटी चट्टान है जो हिमानी गतिविधियों के कारण बनती है। यह भूगर्भीय प्रमाणों में से एक है, जिसका उपयोग वेगनर ने महाद्वीपीय विस्थापन के पक्ष में किया था।

प्लेट क्यों घूमती है?

प्लेटें पृथ्वी के मेंटल में उठने वाली संवहन तरंगों के कारण घूमती हैं। ये तरंगें गर्मी के अंतरण की प्रक्रिया के कारण उत्पन्न होती हैं और ऊपरी परतों को धकेलकर प्लेटों की गति का कारण बनती हैं।

पृथ्वी पर कुल कितनी प्लेटें हैं?

पृथ्वी की सतह पर मुख्यतः 7 प्रमुख टेक्टोनिक प्लेटें और कई छोटी प्लेटें हैं। इनमें से सबसे बड़ी प्लेटों में प्रशांत प्लेट, यूरेशियन प्लेट, और अफ्रीकी प्लेट शामिल हैं।

सबसे बड़ी प्लेट कौन सी है?

प्रशांत प्लेट (Pacific Plate) पृथ्वी की सबसे बड़ी टेक्टोनिक प्लेट है। यह अधिकांश प्रशांत महासागर को ढकती है और इसकी परिधि पर ज्वालामुखीय गतिविधियाँ प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं।

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के जन्मदाता कौन थे?

महाद्वीय विस्थापन सिद्धांत के जनक थे अल्फ्रेड वेगनर, जिन्होंने 1912 में यह विचार प्रस्तुत किया कि पृथ्वी के महाद्वीप कभी एकजुट थे और बाद में धीरे-धीरे अलग हो गए। उनके इस विचार ने भूगोल और भूविज्ञान में क्रांतिकारी बदलाव लाया।

वेगनर ने अपना सिद्धांत कब दिया था?

अल्फ्रेड वेगनर ने 1912 ई. में “महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत” प्रस्तुत किया था और 1915 में अपने प्रसिद्ध ग्रंथ “The Origin of Continents and Oceans” के माध्यम से इसे व्यापक रूप से प्रकाशित किया।

महाद्वीपीय फिसलन सिद्धांत किसका है?

“महाद्वीपीय फिसलन सिद्धांत” यानी Continental Drift Theory का प्रतिपादन अल्फ्रेड वेगनर ने किया था। उन्होंने यह सिद्ध किया कि महाद्वीपों ने समय के साथ अपनी स्थिति बदली है।

महाद्वीपीय भाव सिद्धांत क्या है?

यह भी वेगनर के सिद्धांत का ही एक रूप है जिसमें बताया गया है कि महाद्वीप गतिशील हैं और समय के साथ वे पृथ्वी की सतह पर इधर-उधर खिसकते रहते हैं, जिससे विभिन्न भू-आकृतिक परिवर्तन होते हैं।

महाद्वीपीय प्रणाली से आप क्या समझते हैं?

महाद्वीपीय प्रणाली से तात्पर्य है महाद्वीपों का वर्तमान स्थान, उनकी संरचना, और उनके बीच संबंध। वेगनर के सिद्धांत ने इस प्रणाली को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से समझने में मदद की कि कैसे यह प्रणाली पहले एकजुट थी और अब अलग-अलग महाद्वीपों में बंट गई है।

अल्फ्रेड वेगनर ने कौन सा सिद्धांत दिया था?

अल्फ्रेड वेगनर ने महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत (Continental Drift Theory) दिया था। यह सिद्धांत बताता है कि पृथ्वी के सभी महाद्वीप कभी एक विशाल भूखंड ‘पैंजिया’ का हिस्सा थे।

पैंजिया और पैंथालासा क्या है?

पैंजिया वह प्राचीन विशाल महाद्वीप था जो पृथ्वी के सभी महाद्वीपों को मिलाकर बना था, जबकि पैंथालासा वह महासागर था जो इस महाद्वीप को चारों ओर से घेरे हुए था।

हैरी हेस की थ्योरी क्या थी?

हैरी हेस ने Sea-Floor Spreading Theory दी, जो यह बताती है कि समुद्र की सतह पर नई चट्टानें बनती हैं और पुरानी चट्टानें किनारों की ओर हटती हैं। यह सिद्धांत प्लेट विवर्तनिकी के समर्थन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत कब और किसने दिया था?

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत को 1960 के दशक में वैज्ञानिकों जैसे हैरी हैस, डिट्ज़, और मैकेंज़ी द्वारा विकसित किया गया था। यह सिद्धांत वेगनर के सिद्धांत का आधुनिक और वैज्ञानिक रूपांतरण माना जाता है।

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