तापीय प्रतिलोमन (Temperature Inversion) से आप क्या समझते हैं?

सामान्य परिस्थितियों में, वायुमंडल में ऊँचाई में वृद्धि के साथ तापमान में गिरावट देखी जाती है। तथापि, जब यह स्थापित प्रवृत्ति विपरीत दिशा में कार्य करने लगती है—अर्थात् ऊँचाई के साथ तापमान घटने के स्थान पर उसमें वृद्धि होने लगती है—तब इस असामान्य स्थिति को तापीय प्रतिलोमन अथवा विलोम्यता के रूप में परिभाषित किया जाता है। इस परिस्थिति में तापमान का ऊर्ध्वाधर ढाल परिवर्तित हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप निचले स्तर पर शीतल वायु-स्तर तथा उसके ऊपर उष्ण वायुपरतेँ स्थिर हो जाती हैं। यह परिघटना प्रायः ढालदार घाटियों, हिमाच्छादित क्षेत्रों, ध्रुवीय अंचलों, तथा मध्यम अक्षांशीय प्रदेशों में विशेष रूप से पाई जाने वाली एक स्थिति है। जब यह प्रतिलोमन अधिक ऊँचाई पर घटित होता है, तो यह अपेक्षाकृत अत्यधिक स्थायी होता है, क्योंकि पार्थिव विकिरण द्वारा ऊपर स्थित गर्म वायु-स्तर का शीतलीकरण धीमी गति से होता है।

दूसरी ओर, जब यह प्रतिलोमन धरातल के निकट विकसित होता है, तो यह अल्पकालिक सिद्ध होता है, क्योंकि विकिरण के माध्यम से धरातलीय शीतल वायु-पटल शीघ्रता से नष्ट हो जाती है। तापीय प्रतिलोमन के दौरान, ऊपर की ओर हल्की तथा गर्म वायु तथा नीचे की ओर घनी एवं शीतल वायु की संरचना बन जाने से वायुमंडल में एक स्थायित्व की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, किंतु यह स्थायित्व समयान्तराल में क्षोभमंडलीय प्रवाहों तथा पार्थिव विकिरणीय क्रियाओं द्वारा समाप्त हो सकता है।

तापीय प्रतिलोमन सामान्यतः निम्नलिखित परिस्थितियों में परिलक्षित होता है –

ढालदार घाटियाँ (Sloping Valleys)

जहाँ पर स्थलाकृति में तीव्र ढाल पाई जाती है, वहाँ की गहराइयों में शीतल वायु तेजी से अवनत होकर एकत्रित हो जाती है, जिससे तापीय प्रतिलोमन की स्थिति निर्मित हो जाती है।

शीत वायुराशि का आगमन (Arrival of Cold Air Mass)

जब किसी क्षेत्र में शीतल वायुराशि प्रविष्ट होकर गर्म वायुपरत को ऊपर की ओर विस्थापित कर देती है, तब उस क्षेत्र में तापीय विलोम्यता का विकास होता है।

तापीय प्रतिलोमन
तापीय प्रतिलोमन (Temperature Inversion) से आप क्या समझते हैं?

आकाश की स्वच्छता या शुष्क वायु(Sky Hygiene of Dry Air)

शुद्ध जलवाष्प, पार्थिव विकिरण के अवशोषण की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाकर तापमान में गिरावट के लिए प्रतिकूल दशा उत्पन्न करता है। इसके विपरीत, शुष्क वायु में इस प्रकार का गुण अनुपस्थित होने के कारण पृथ्वी की सतह तीव्र गति से शीतल हो जाती है।

लंबी रातें (Long Nights)

जब रात्रि का समय विस्तारित होता है, तो उस अवधि में पार्थिव विकिरण की तीव्रता अत्यधिक हो जाती है, जिससे तापीय प्रतिलोमन के निर्माण की संभावनाएँ अधिक हो जाती हैं। यह दशा विशेष रूप से उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में दृष्टिगोचर होती है, जहाँ रात्रियाँ अपेक्षाकृत लंबी होती हैं।

स्थिर मौसम (Stable Weather)

जब मौसम की दशाएँ दीर्घकाल तक अपरिवर्तित बनी रहती हैं, तब वे तापीय प्रतिलोमन के विकास में कोई विघ्न उत्पन्न नहीं करतीं। ऐसी स्थिर वायुमंडलीय स्थितियाँ प्रतिलोमन को बाधारहित रूप से पनपने देती हैं

हिमाच्छादित प्रदेश (Snowy Region)

पर्वतीय उच्चस्थ क्षेत्रों एवं ध्रुवीय अंचलों में जहाँ पर बर्फ सदा जमी रहती है, वहाँ सौर विकिरण का लगभग 90% तक परावर्तन हो जाता है। फलतः धरातल से विकिरण का परिमाण अत्यल्प रह जाता है, जिससे समस्त सन्निहित वायुपरतेँ तीव्रता से शीतल हो जाती हैं। यह स्थिति तापीय प्रतिलोमन के लिए एक आदर्श परिदृश्य मानी जाती है।

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तापीय प्रतिलोमन के प्रकार (Types of Temperature Inversion)

तापमान प्रतिलोमन, भिन्न-भिन्न भौतिक परिघटनाओं एवं वायुमंडलीय कारकों के परिणामस्वरूप, विविध अवस्थाओं में उत्पन्न होता है। यह कभी धरातलीय सतह के समीप स्थिर वायुमंडल में विकसित होता है, तो कभी शीतल एवं उष्ण वायुधाराओं के संपर्क में आने पर अस्तित्व ग्रहण करता है। उत्पत्ति की प्रकृति एवं धरातल से प्रतिलोमन स्तर की सापेक्ष ऊँचाई के आधार पर इस प्रक्रिया को निम्नलिखित वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है:

  • धरातलीय अथवा निम्न-स्तरीय प्रतिलोमन
  • उच्च-स्तरीय प्रतिलोमन
  • यांत्रिक प्रतिलोमन

धरातलीय अथवा निम्न-स्तरीय प्रतिलोमन (Surface Inversion)

यह प्रतिलोमन मुख्यतः निम्नलिखित प्रक्रियाओं से उत्पन्न होता है:
(अ) पार्थिव विकिरण से निर्मित प्रतिलोमन (Inversion due to Radiation)
(ब) वायु अपवाह से उत्पन्न प्रतिलोमन (Inversion due to Air Drainage)
(स) अभिवहन अथवा संपरकीय प्रतिलोमन (Advection Inversion)


पार्थिव विकिरण से उत्पन्न प्रतिलोमन (Inversion due to Terrestrial Radiation)

यह प्रतिलोमन प्रकार प्रायः धरातलीय सतह के समीपवर्ती वायु-स्तरों में कुछ विशिष्ट ऊँचाई तक पाया जाता है। इसका प्रमुख कारण रात्रिकालीन पार्थिव विकिरण द्वारा उत्पन्न तीव्र शीतलन होता है। रात के समय, पार्थिव विकिरण के माध्यम से ऊष्मा में तीव्र गिरावट आने के कारण, धरातल तीव्र गति से ठंडा हो जाता है। इसके प्रभावस्वरूप, संपर्क में आने वाली वायु परतें भी शीघ्र शीतल हो जाती हैं, जबकि उनके ऊपर स्थित वायु में अपेक्षाकृत कम ऊष्मा ह्रास होने से वह तुलनात्मक रूप से गर्म बनी रहती है। इस प्रकार, नीचे का तापमान ऊपर की अपेक्षा कम हो जाने पर तापीय प्रतिलोमन की स्थिति निर्मित हो जाती है।

तापीय प्रतिलोमन (Temperature Inversion) से आप क्या समझते हैं?
तापीय प्रतिलोमन (Temperature Inversion) से आप क्या समझते हैं?

इस प्रकार के प्रतिलोमन के लिए जिन परिस्थितियों को अनुकूल माना जाता है, वे हैं:

  • प्रातःकालीन दीर्घकालीन रात्रि
  • निस्सीम एवं मेघविहीन आकाश
  • शुष्क वायुमंडल
  • शांत वायुविकिरणीय स्थितियाँ
  • तथा हिमाच्छादित स्थल-स्तर

इन कारकों की उपस्थिति में, निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों की ओर जाते हुए तापीय प्रतिलोमन की संभावना क्रमशः बढ़ती जाती है।

वायु अपवाह से उत्पन्न विलोम्यता (Inversion due to Air Drainage)

निम्न-स्तरीय तापीय प्रतिलोमन का पूर्ण रूप से विकास प्रायः पर्वतीय अथवा पठारी क्षेत्रों की घाटियों में होता है। शीतकालीन दीर्घ रात्रियों में, पार्थिव विकिरण के परिणामस्वरूप पर्वतीय ढालों का तीव्र शीतलन होता है, जिससे उनसे सटी वायु का तापमान अत्यधिक निम्न हो जाता है। इसके विपरीत, घाटियों के निचले क्षेत्रों में अपेक्षाकृत कम विकिरणीय तापह्रास के कारण तापमान अधिक बना रहता है, जिससे वायु हल्की और गर्म होती है। इस तापीय विषमता के कारण ऊपरी ठंडी और भारी वायु घाटियों की ओर नीचे की दिशा में बहने लगती है, जिससे अधोमुखी प्रवाह प्रारंभ होता है। यह ठंडी वायु जब घाटी की तली में पहुँचती है, तो वहाँ स्थित गर्म और हल्की वायु को ऊर्ध्वमुख रूप से विस्थापित करने लगती है। इस प्रकार निचले और ऊपरी दोनों स्तरों पर ठंडी वायु के जमाव से एक विशिष्ट प्रतिलोमन दशा निर्मित होती है, जिसे घाटी प्रतिलोमन भी कहा जाता है। ऐसी स्थितियों में पाला गिरने की संभावना निचले क्षेत्रों में अधिक होती है, जबकि ऊपरी भाग अपेक्षाकृत पाला-मुक्त रहते हैं। यही कारण है कि ब्राजील में कॉफी और अन्य बागवानी फसलें पर्वतों के मध्यवर्ती एवं ऊँचे ढालों पर उगाई जाती हैं। यह दशा विशेष रूप से शांत, स्वच्छ और शीतल रात्रियों में परिलक्षित होती है।

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अभिवहन या संपरकीय प्रतिलोमन (Advection Inversion)

जब गर्म वायुधाराएँ किसी शीतल सतह पर प्रवाहित होती हैं, तो एक व्यापक क्षेत्र में तापमान का व्युत्क्रम उत्पन्न होता है। शीत ऋतु में, जब उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय वायुराशियाँ महाद्वीपों की ठंडी सतहों पर बहती हैं, तब यह तापीय प्रतिलोमन विकसित होता है। इसके विपरीत, ग्रीष्म ऋतु में महासागर धरातल की तुलना में शीतल होते हैं; जब अत्यधिक गर्म स्थलीय वायुधाराएँ महासागर की ओर प्रवाहित होती हैं, तो वे ठंडी सतह से संपर्क में आकर प्रतिलोमन की स्थिति उत्पन्न करती हैं। विशेषतः उत्तरी अमेरिका और यूरेशिया के हिमाच्छादित उत्तरवर्ती मैदानी क्षेत्रों में शीत ऋतु के दौरान उष्ण महासागरीय वायुराशियों के प्रवेश से यह प्रक्रिया विशेष रूप से सक्रिय होती है।

उच्च-स्तरीय प्रतिलोमन (Upper Surface Inversion)

(अ) विस्तृत वायुराशियों के अवतरण से उत्पन्न प्रतिलोमन (Inversion due to Subsidence of Extensive Air Masses)

इस प्रकार का प्रतिलोमन वायुमंडल में धरातल से कुछ ऊँचाई पर वायु के अवतरण से विकसित होता है। ऐसी स्थिति में, रुद्धोष्म क्षयण की प्रक्रिया से नीचे आने वाली वायु का तापमान बढ़ जाता है, जबकि निचले स्तर की वायु अपेक्षाकृत शीतल बनी रहती है। यह दशा उष्णकटिबंधीय उच्च वायुदाब क्षेत्रों में, जहाँ प्रतिचक्रवातीय प्रवृत्तियाँ प्रबल होती हैं, विशेष रूप से स्पष्ट होती है।

(ब) विक्षोभ एवं संवहन द्वारा उत्पन्न प्रतिलोमन (Inversion Due to Excitation and Convection)

कभी-कभी तापीय प्रतिलोमन वायुमंडल में धरातल से कुछ ऊँचाई पर विभिन्न विक्षुब्ध प्रक्रियाओं के माध्यम से निर्मित होता है। जब धरातलीय घर्षण से उत्पन्न वायु की भँवरें ऊर्ध्व एवं अधो दिशाओं में वायु का मिश्रण करती हैं, तथा जब धरातल के अत्यधिक गर्म होने से उत्पन्न संवहन धाराएँ गर्म वायु को ऊपर और ठंडी वायु को नीचे की ओर ले जाती हैं, तब इन क्रियाओं के ऊपरी सीमा पर तापीय प्रतिलोमन प्रकट होता है।

(स) वाताग्री प्रतिलोमन (Frontal Inversion)

जब उष्ण और शीतल वायुराशियाँ एक-दूसरे के संपर्क में आती हैं, और शीतल वायु, उष्ण वायु को ऊपर की ओर प्रेरित करते हुए स्वयं नीचे की ओर विस्तारित हो जाती है, तब वाताग्र पर प्रतिलोमन दशा उत्पन्न होती है। यह स्थिति सामान्यतः वाताग्रों के क्षेत्र में देखी जाती है।


यांत्रिक प्रतिलोमन (Mechanical Inversion)

यह प्रतिलोमन वायुमंडल में धरातल से ऊँचाई पर उत्पन्न होता है, जिसमें न तो पार्थिव अथवा सौरिक विकिरण, न ही गैसीय अवशोषण, और न ही पवनों के पारस्परिक संपर्क की सीधी भूमिका होती है। यह पूर्णतः वायु के गति-संबंधी अंतर पर आधारित होता है। इसका पहला रूप तब उत्पन्न होता है, जब गर्म वायु तीव्रता से ऊपर उठती है और वहाँ स्थित ठंडी वायु नीचे की ओर संक्रमित हो जाती है। दूसरा रूप तब विकसित होता है, जब वायु नीचे आते समय संपीडन के फलस्वरूप गर्म हो जाती है। यदि यह प्रक्रिया लंबे समय तक जारी रहती है, तो नीचे उतरती वायु स्थायी गर्म परत का निर्माण करती है, जिसके नीचे का वायुमंडल कम तापमान वाला बना रहता है, जिससे प्रतिलोमन की दशा निर्मित होती है। यांत्रिक प्रतिलोमन, विशेषतः चक्रवातीय स्थितियों में अधिक सक्रिय रहता है। मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में, जहाँ वायुगति के अधोमुखी प्रवाह सामान्य हैं, यह प्रक्रिया अत्यधिक प्रचलित है। यह भी उल्लेखनीय है कि प्रतिलोमन के कारण वायुमंडल में स्थिरता आती है, जिससे वर्षा अवरुद्ध हो जाती है। इसी कारण, व्यापारिक पवनों का भूमध्यरेखीय क्षेत्र की ओर बहाव सामान्यतः शुष्क रहता है

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तापीय प्रतिलोमन का महत्त्व (Importance of Temperature Inversion)

तापीय प्रतिलोमन का मानव क्रियाकलापों पर सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार का गंभीर प्रभाव पड़ता है। जब उष्ण वायु शीतल वायु की ऊपर की ओर स्थित होती है, तब उस क्षेत्र में कुहासे का निर्माण होता है। इस प्रकार का कुहासा प्रायः शीत ऋतु की रातों में बना रहता है, विशेषतः जब इमारतों की ऊँचाई प्रतिलोमन परत तक पहुँच जाती है, जिससे प्रतिलोमन की प्रक्रिया सुगम हो जाती है। उदाहरणस्वरूप, न्यूफाउंडलैंड के समीप गर्म गल्फ स्ट्रीम और शीत लैब्राडोर जलधारा के संगम से नियमित रूप से कुहरा पड़ता है। इस घने कुहासे के कारण दृश्यता अत्यंत कम हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप समुद्रों में जलयानों, एवं स्थल पर वायुयानों की दुर्घटनाएँ अक्सर घटित होती हैं। यद्यपि, कुछ क्षेत्रों में यह कुहासा फसलों तथा फलों के लिए लाभदायक सिद्ध होता है, जैसे कि अरब के यमन की पर्वतीय क्षेत्रों में कॉफी की खेती हेतु यह स्थिति अनुकूल मानी जाती है।

जब स्थिर ऊपरी गर्म वायु में आर्द्रता विद्यमान हो तथा नीचे स्थित ठंडी वायु का तापमान हिमांक बिंदु से नीचे चला जाए, तो पाले की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जो कृषिक गतिविधियों के लिए विशेष रूप से हानिकर होती है। इस प्रभाव से फूलों वाले पौधे, फलदार वृक्ष, एवं खड़ी फसलें व्यापक रूप से नष्ट हो जाती हैं। उदाहरणार्थ, कैलिफोर्निया की घाटियों में निचले भागों में स्थित फल उद्यानों को पाले के कारण बारंबार हानि होती है। इसी प्रकार, दक्षिण फ्रांस में भी फल एवं सब्ज़ी उत्पादन को पाले की मार झेलनी पड़ती है।

तापीय प्रतिलोमन के कारण वायुमंडलीय स्थिरता उत्पन्न हो जाती है, जिससे वायु का ऊर्ध्वगमन बाधित होता है और वर्षा के लिए प्रतिकूल परिस्थितियाँ विकसित होती हैं। यह स्थिति अनेक स्थानों पर सूखे जैसी स्थितियों को जन्म देती है, जिससे कृषि एवं जल संसाधन प्रभावित होते हैं।

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