पृथ्वी का अंतर्जात बल क्या है
पृथ्वी के आंतरिक भाग से उत्पन्न बल को अंतर्जात बल कहते हैं। अंतर्जात बल से उत्पन्न होने वाले भू-संचलन के कारण विभिन्न स्थलाकृतियों की उत्पत्ति होती है, इसलिये इसे ‘रचनात्मक संचलन’ भी कहते हैं।
पृथ्वी की सतह पर जनित बहिर्जात बल द्वारा उत्पन्न भू-संचलन से भू-सतह पर निर्मित स्थलाकृतियाँ समतल मैदान में परिवर्तित हो जाती हैं, इसलिये इन्हें ‘समतल स्थापक बल’ द्वारा उत्पन्न ‘विनाशात्मक भू-संचलन’ भी कहते हैं।
भू-संचलन (Earth Movement)
1. अंतर्जनित भूसंचलन (Endogenetic Movement)
- पटल विरूपण संचलन (Diastropic Movement)
- विवर्तनिकी संचलन (Tectonic Movement)
- समस्थैतिक संचलन (Isostetic Movement)
- महादेशजनक संचलन (Epierogenic Movement)
- पर्वतनिर्माणकारी संचलन (Orogenic Movement)
2. बहिर्जनित भूसंचलन (Exogenetic Movement)
- अनाच्छादन (Denudation)
- आकस्मिक संचलन (Sudden Movement)
- सुस्थैतिक संचलन (Eustatic Movement)
अंतर्जात आकस्मिक संचलन (Endogenetic Sudden Movement)
इस संचलन के अंतर्गत उत्पन्न घटनाएँ अचानक और विनाशकारी होती हैं, जिससे भूतल के ऊपर और नीचे तीव्र परिवर्तन देखने को मिलते हैं। प्रमुख उदाहरणों में भूकंप और ज्वालामुखी गतिविधियाँ शामिल हैं।
पटलविरूपणी संचलन (Diastrophic Movement)बल क्या है?
पृथ्वी के आंतरिक भाग में धीरे-धीरे विकसित होने वाले लम्बवत् एवं क्षैतिज संचलनों को पटलविरूपणी संचलन कहा जाता है। यह महाद्वीपों और पर्वतों के निर्माण के लिए उत्तरदायी है। इस धीमे संचलन को ‘विवर्तनिकी संचलन’, ‘समस्थैतिक संचलन’ और ‘सुस्थैतिक संचलन’ के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- विवर्तनिकी संचलन (Tectonic Movement): इस संचलन से नई स्थलाकृतियों का निर्माण होता है।
- समस्थैतिक संचलन (Isostatic Movement): इस प्रक्रिया के माध्यम से स्थलाकृतियाँ संतुलन की स्थिति प्राप्त करती हैं।
- सुस्थैतिक संचलन (Eustatic Movement): महासागरीय क्षेत्रों में जलस्तर के संतुलन में परिवर्तन इसी के अंतर्गत आता है।
महादेशजनक संचलन (Epirogenic Movement) बल क्या है?
लम्बवत् रूप से धीरे-धीरे उत्पन्न अंतर्जनित भू-संचलन को महादेशजनक संचलन कहा जाता है। इस संचलन के अंतर्गत महाद्वीपों में उत्थान, अवतलन, निर्गमन एवं निमज्जन जैसी प्रक्रियाएँ होती हैं।
- ऊर्ध्वमुखी संचलन (Upward Movement): जब महाद्वीप का कोई भाग अपनी समीपी सतह से ऊँचा उठता है, तो इसे उत्थान (Upliftment) या उभार कहा जाता है। इसके अलावा, यदि किसी महाद्वीपीय तटीय भाग का जलमग्न क्षेत्र समुद्र तल से ऊपर आ जाता है, तो इसे निर्गमन (Emergence) कहते हैं।
- अधोमुखी संचलन (Downward Movement): जब कोई स्थलखंड स्थानीय या क्षेत्रीय रूप से नीचे धँस जाता है, तो इसे अवतलन (Subsidence) कहा जाता है, जबकि यदि तटीय क्षेत्र समुद्र में जलमग्न हो जाता है, तो इसे निमज्जन (Submergence) कहते हैं।
पर्वतीय संचलन (Orogenetic Movement) क्या है?
शब्द “Orogenetic” ग्रीक भाषा के ‘Oros’ (पर्वत) और ‘Genesis’ (उत्पत्ति) से बना है, जिसका अर्थ “पर्वत निर्माण” होता है।
इस संचलन में स्पर्शरेखीय बल (Tangential Force) द्वारा उत्पन्न पटलविरूपण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
- यदि विपरीत दिशाओं में कार्य करने वाले तनावमूलक बल (Tensional Force) के कारण भ्रंश (Fault), दरारें (Fracture) और चटकनें (Cracks) विकसित होती हैं, तो इससे अवरोधक पर्वत (Block Mountains) का निर्माण होता है।
- इसके विपरीत, जब संपीडनात्मक बल (Compressional Force) धरातलीय चट्टानों पर कार्य करता है, तो संवलन (Warp) एवं वलन (Folds) विकसित होते हैं, जिससे वलित पर्वतों का निर्माण होता है।
संवलन (Warp) किसे कहते है ?
संवलन का प्रभाव विस्तृत क्षेत्रों में महसूस किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप भूतल का बड़ा भाग ऊपर उठता या नीचे धँसता है।
- उत्संवलन (Upwarps): जब संपीडन बल के कारण धरातल का मध्य भाग गुंबदाकार आकार में ऊपर उठता है, तो इसे उत्संवलन कहा जाता है।
- अवसंवलन (Downwarps): जब धरातल का भाग नीचे धँसकर बेसिन या गड्ढे का निर्माण करता है, तो इसे अवसंवलन कहते हैं।
इस प्रकार, अंतर्जात बलों द्वारा भू-संचलन की विभिन्न प्रक्रियाएँ पृथ्वी की स्थलाकृतियों को आकार देती हैं और भूगर्भीय संरचनाओं में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाती हैं।
वलन से आप क्या समझते हैं? वलन कितने प्रकार के होते है?
पृथ्वी के अंतर्जात बलों द्वारा भूपटल में संपीड़न के कारण चट्टानों में तरंगाकार मोड़ उत्पन्न हो जाते हैं। इस प्रकार उत्पन्न होने वाले संरचनात्मक परिवर्तनों को वलन कहा जाता है।
वलन के प्रकार (Types of Folds)
वलनों की आकृति एवं संरचनात्मक विशेषताओं में विविधता पाई जाती है। इसे विभिन्न वर्गों में विभाजित किया जाता है:

1. सममित वलन (Symmetrical Fold) किसे कहते है?
इस प्रकार के वलन में दोनों पार्श्ववर्ती ढाल तथा उनकी भुजाएँ समरूप होती हैं। अर्थात्, प्रत्येक भाग में समान झुकाव पाया जाता है।

2. असममित वलन (Asymmetrical Fold) से आप क्या समझते है?
इस वलन में पार्श्ववर्ती ढाल असमान होते हैं। एक दिशा में झुकाव अधिक तीव्र तथा संकीर्ण होता है, जबकि दूसरी दिशा में झुकाव अपेक्षाकृत मंद और विस्तृत होता है।

3. एक दिग्नत वलन (Monoclinal Fold) किसे कहते है?
इस प्रकार के वलन में एक ढाल लगभग समकोण (90(^\circ)) बनाता है, जबकि दूसरा ढाल अपेक्षाकृत न्यून कोण (<90(^\circ)) पर झुका रहता है।

4. समनत वलन (Isoclinal Fold) क्या है?
इस वलन में पार्श्ववर्ती भुजाएँ परस्पर समानांतर होती हैं, किंतु वे क्षैतिज दिशा में नहीं होतीं। अत्यधिक संपीड़न के कारण इनकी भुजाएँ अत्यधिक निकट होती हैं, जिससे इनके टूटने की संभावना बनी रहती है।

5. परिवलित वलन अथवा शयान वलन (Recumbent Fold) किसे कहते है?
जब वलन की भुजाएँ लगभग क्षैतिज हो जाती हैं, तब उसे परिवलित वलन कहा जाता है।

6. प्रतिवलन (Overturned Fold) किसे कहते है?
जब संपीड़न शक्ति अत्यधिक तीव्र होती है, तो एक भुजा दूसरी भुजा पर उलट जाती है। इस स्थिति को प्रतिवलन कहा जाता है।

7. अधिक्षिप्र वलन (Overthrust Fold) किसे कहते है?
यह परिवलित वलन का विकसित रूप है, जिसमें संपीड़न और क्षैतिज संचलन बहुत अधिक होने के कारण चट्टानों की परतें टूट जाती हैं और एक-दूसरे पर चढ़ जाती हैं। इस प्रक्रिया को उत्क्रम (thrust) कहा जाता है, और जिस तल से होकर यह क्रिया होती है उसे उत्क्रम तल कहा जाता है।

8. ग्रीवाखण्ड अथवा नापे (Nappe) से आप क्या समझते है?
यदि वलनों में संपीड़न अत्यधिक तीव्र हो, तो उनका एक भाग टूटकर दूसरे भाग पर विस्थापित हो जाता है। इसे ग्रीवाखण्ड कहा जाता है। हिमालय एवं आल्प्स पर्वत में इस प्रकार की संरचनाएँ देखी जा सकती हैं।
(i) स्वस्थानिक ग्रीवाखण्ड (Autochthonous Nappe)
इसमें वलन का एक खंड टूटकर समीपवर्ती भाग पर आरोपित हो जाता है। उदाहरणस्वरूप कोयला क्षेत्र में इस प्रकार की संरचना देखी जाती है।
(ii) दूर स्थित ग्रीवाखण्ड (Allochthonous Nappe)
इसमें वलन की एक भुजा सैकड़ों किलोमीटर दूर जाकर दूसरे चट्टान पर स्थापित हो जाती है। इस प्रकार की संरचनाओं का मूल स्थान वह नहीं होता जिस पर वे पाई जाती हैं।
9. अवनमन वलन (Plunging Fold) किसे कहते है?
जब वलन का अक्ष क्षैतिज न होकर कोणीय स्थिति में होता है, तब उसे अवनमन वलन कहा जाता है।

10. पंखा वलन (Fan Fold) किसे कहते है?
जब संपीड़न शक्ति रुक-रुक कर कार्य करती है, तो वलन में अनेक छोटी-छोटी तरंगों का निर्माण होता है। इस प्रकार की संरचना को पंखा वलन कहा जाता है।
11. खुला वलन (Open Fold) किसे कहते है?
जब वलन की भुजाओं के मध्य कोण 90° से अधिक और 180° से कम होता है, तब इसे खुला वलन कहा जाता है।
12. बन्द वलन (Closed Fold) किसे कहते है?
यदि वलन की भुजाओं के मध्य कोण 90° से कम हो, तो इसे बन्द वलन कहा जाता है। इसमें संपीड़न शक्ति अधिक प्रभावी होती है, जिससे दोनों भुजाएँ अत्यधिक निकट आ जाती हैं।
वलनों का निर्माण भूपटल में विभिन्न प्रकार के अंतर्जात बलों के कारण होता है। इनकी विविध आकृतियाँ पृथ्वी की भू-संरचनात्मक जटिलताओं को दर्शाती हैं। विभिन्न प्रकार के वलनों का अध्ययन भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भ्रंश (Fault)
भ्रंश किसे कहते है?
भू-संचलन की तीव्रता के कारण भूपटल की शैलों में एक तल के सहारे उत्पन्न होने वाली दरार या विभंग (Fracture), जिसमें विभंग तल के सहारे बड़े पैमाने पर शैल खंडों का स्थानांतरण होता है, भ्रंश कहलाता है। जिस तल के सहारे भ्रंश का निर्माण होता है, उसे भ्रंश तल (Fault Plane) कहा जाता है।
भ्रंश कितने प्रकर के होते है
भ्रंश को मुख्यतः चार प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जाता है:
- सामान्य भ्रंश (Normal Fault)
- व्युत्क्रम भ्रंश (Reverse Fault)
- पार्श्विक भ्रंश (Lateral Fault)
- सोपानी भ्रंश (Step Fault)
सामान्य भ्रंश (Normal Fault) किसे कहते है?
जब किसी भ्रंश तल के सहारे दोनों ओर के शैल-खंड विपरीत दिशाओं में सरकते हैं, तो सामान्य भ्रंश का निर्माण होता है। इसमें शीर्षाभित्ति भ्रंश तल के सहारे नीचे की ओर खिसकती है, जिससे भ्रंश तल प्रायः तीव्र ढाल युक्त होता है।

व्युत्क्रम भ्रंश (Reverse Fault) किसे कहते है?
इस प्रकार के भ्रंश में, भ्रंश तल के सहारे दो शैल-खंड आमने-सामने खिसकते हैं और एक शैल-खंड दूसरे पर चढ़ जाता है। यह अधिकतर संपीडन बल के कारण उत्पन्न होता है।

पार्श्विक भ्रंश (Lateral Fault) क्या है ? ये केसे बनता है?
जब भ्रंश तल के सहारे शैल-खंडों में क्षैतिज संचलन होता है, तब पार्श्विक भ्रंश बनता है। इसमें कगारों (Scarps) की रचना अत्यंत न्यून होती है।

सोपानी भ्रंश (Step Fault) किसे कहते है?
जब किसी भू-भाग में समानांतर भ्रंश इस प्रकार होते हैं कि उनके भ्रंश तलों का ढाल एक समान दिशा में होता है, तो इसे सोपानी भ्रंश कहते हैं। यह भू-आकृतिक परिवर्तनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

विदारण भ्रंश (Tear Fault) से आप क्या समझते है?
विदारण भ्रंश में, दो विपरीत दिशाओं से संपीडन बल लगने के कारण भ्रंश तल के सहारे भूखंड ऊपर-नीचे न जाकर क्षैतिज रूप से आगे-पीछे खिसकते हैं। यह स्थानांतरण कई किलोमीटर तक देखा जा सकता है। कैलिफोर्निया का सन एंड्रियास भ्रंश इसका प्रमुख उदाहरण है। भारत में, हिमालय के गढ़वाल-उत्तरकाशी क्षेत्र में ऐसे भ्रंश पाए जाते हैं। इस प्रकार के भ्रंशों में कगारों की रचना सामान्यतः नहीं होती।


भ्रंशन क्रिया (Fault Activity) क्या है?
भ्रंश क्रियाओं के कारण स्थलखंड के कुछ भाग ऊँचे उठ जाते हैं और कुछ भाग नीचे चले जाते हैं, जिससे विभिन्न स्थलरूपों का निर्माण होता है। इनमें प्रमुख रूप से रिफ्ट घाटियाँ, ब्लॉक पर्वत, होर्स्ट और ग्राबेन शामिल हैं।
भ्रंश कगार (Fault Scarp) किसे कहते है?
जब सामान्य भ्रंश द्वारा निर्मित लम्बवत् या तीव्र ढाल वाले कगार बनते हैं, तो उन्हें भ्रंश कगार कहा जाता है। इनकी ऊँचाई कुछ मीटर से लेकर सैकड़ों मीटर तक हो सकती है।
भ्रंश खंड (Fault Block) क्या है?
भ्रंश तल के सहारे पृथक होने वाले शैल-खंड दो प्रकार के होते हैं:
- उत्क्षेपित खंड (Upthrown Block): जो भ्रंश क्रिया के कारण ऊपर उठ जाता है। इसके पार्श्व को उत्क्षेपित पार्श्व (Upthrown Side) कहते हैं।
- अधःक्षेपित खंड (Downthrown Block): जो भ्रंश क्रिया के कारण नीचे चला जाता है। इसके पार्श्व को अधःक्षेपित पार्श्व (Downthrown Side) कहा जाता है।
इन भ्रंशों का अध्ययन भूगर्भीय संरचनाओं की व्याख्या और भूकंपीय गतिविधियों को समझने में सहायक होता है।
अवरोधी पर्वत (Block Mountains or Horst) क्या है?
जब पृथ्वी की सतह पर स्थित किसी दरार क्षेत्र में दो भ्रंशों के मध्य स्थित भूखंड ऊपर उठ जाता है, जबकि समीपस्थ क्षेत्र या तो नीचे धँस जाता है या पूर्ववत् बना रहता है, तो इस प्रकार के उन्नत भूभाग को अवरोधी पर्वत कहा जाता है। जर्मन भाषा में इसे होर्स्ट (Horst) के नाम से जाना जाता है। इसके उत्कृष्ट उदाहरणों में फ्रांस के वासजेस (Vosges), जर्मनी के हार्ज (Harz) तथा ब्लैक फॉरेस्ट (Black Forest) पर्वत शामिल हैं। सिनाई प्रायद्वीप और कोरिया प्रायद्वीप भी इस प्रकार की संरचनाओं के उदाहरण हैं।

दरार घाटी (Rift Valley or Graben) किसे कहते है?
जब किसी दरार क्षेत्र में स्थित दो समानांतर भ्रंशों के मध्य का भूखंड नीचे धँस जाता है, जबकि समीपवर्ती भूखंड या तो अपनी पूर्व स्थिति में बना रहता है अथवा ऊपर उठ जाता है, तो इससे एक गर्त का निर्माण होता है जिसे दरार घाटी कहते हैं। यह संरचना होर्स्ट के विपरीत होती है और जर्मन भाषा में इसे ग्रेबन (Graben) कहा जाता है। विश्व की प्रमुख दरार घाटियों में सीरिया से प्रारंभ होकर मृत सागर, जॉर्डन घाटी, अकाबा की खाड़ी, लाल सागर, रूडोल्फ झील, एल्बर्ट झील, एडवर्ड झील, टांगनिका झील, रुकवा झील, न्यासा झील तथा जैम्बेज़ी नदी तक विस्तारित दरार घाटी शामिल है। अन्य उदाहरणों में जर्मनी की राइन नदी की घाटी, स्कॉटलैंड की मिडलैंड दरार घाटी, सोवियत संघ की बेकाल झील, भारत की नर्मदा और ताप्ती दरार घाटियाँ सम्मिलित हैं।

रैम्प घाटी (Ramp Valley) किसे कहते है?
जब किसी क्षेत्र में स्थित दो समानांतर भ्रंशों के दोनों ओर के भूखंड ऊपर उठ जाते हैं, जबकि मध्यवर्ती भूखंड अपनी पूर्व स्थिति में बना रहता है, तो इस प्रकार की घाटी को रैम्प घाटी (Ramp Valley) कहते हैं।
बहिर्जात बल (Exogenetic Force) क्या है?
पृथ्वी की सतह पर बहिर्जात बलों के प्रभाव से होने वाली प्रक्रियाओं को अनाच्छादन (Denudation) कहा जाता है। इसमें अपक्षय, अपरदन और वृहद क्षरण शामिल होते हैं, जो भौतिक और रासायनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से स्थलरूपों को प्रभावित करते हैं। नदी, हिमनदी, पवन, भूमिगत जल एवं सागरीय जल बहिर्जात बलों के प्रमुख उदाहरण हैं। ये बल अंतर्जात बलों द्वारा उत्पन्न असमानताओं को संतुलित करने का कार्य करते हैं। इन प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप विभिन्न स्थलरूपों का निर्माण, विकास और विनाश होता है। इस कारण बहिर्जनित भू-संचलन को विनाशात्मक संचलन भी कहा जाता है।
भूस्खलन (Land Slide or Landslip)
जब किसी पर्वतीय क्षेत्र, उच्च भूमि या ढालदार भूभाग से शैलों का एक बड़ा भाग गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में नीचे की ओर खिसकता है, तो इस प्रक्रिया को वृहद क्षरण कहा जाता है। इसका सबसे उपयुक्त उदाहरण भूस्खलन (Land Slide) है। वृहद क्षरण के लिए अपरदन कारकों की उपस्थिति आवश्यक नहीं होती, क्योंकि यह मुख्यतः गुरुत्वाकर्षण बल के कारण संचालित होता है। यही कारण है कि तीव्र ढाल वाले पर्वतीय क्षेत्रों में वृहद क्षरण अधिक प्रभावी होता है।