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बॉम्बे उच्च न्यायालय: पुत्री के पैतृक घर में अधिकार पर ऐतिहासिक फैसला | महिला सशक्तिकरण व लैंगिक समानता 

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पुत्री के पैतृक घर में अधिकार पर ऐतिहासिक फैसला

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि विवाहित और अविवाहित पुत्रियों का अपने पिता के घर में निवास करना जन्मसिद्ध अधिकार है, जिसे कोई पारिवारिक सदस्य चुनौती नहीं दे सकता | यह ऐतिहासिक फैसला महिला सशक्तिकरण, लैंगिक समानता, और संविधान के अनुच्छेद 14 व 15 की भावना को मजबूत करता है|

बॉम्बे उच्च न्यायालय

समाचार में क्यों है?

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी भी पुत्री का अपने पिता के घर में निवास करने का अधिकार है। यह निर्णय महिला अधिकारों और लैंगिक समानता के संदर्भ में एक मील का पत्थर माना जा रहा है। न्यायालय ने इस अधिकार को संपत्ति कानून और पारिवारिक अधिकारों के तहत एक मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया है।

उद्देश्य और महत्व

इस निर्णय का प्राथमिक उद्देश्य समाज में व्याप्त लैंगिक भेदभाव को समाप्त करना है। पारंपरिक रूप से भारतीय समाज में यह मान्यता रही है कि विवाह के बाद बेटी का अधिकार पिता के घर में समाप्त हो जाता है। यह फैसला इस पुरानी सोच को चुनौती देता है और महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को मजबूती प्रदान करता है।

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न्यायालय का यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 15 (भेदभाव के विरुद्ध अधिकार) की भावना के अनुकूल है। इससे न केवल कानूनी स्पष्टता मिली है बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में भी एक सकारात्मक कदम उठाया गया है।

महत्वपूर्ण जानकारी

यह निर्णय विशेष रूप से हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के संशोधन के बाद और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। 2005 के संशोधन ने पुत्रियों को पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार दिया था, लेकिन आवास के अधिकार को लेकर अक्सर विवाद होते रहे हैं।

न्यायालय ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि यह अधिकार केवल अविवाहित पुत्रियों तक सीमित नहीं है। विवाहित महिलाओं का भी अपने पैतृक घर में रहने का अधिकार है, विशेषकर उन परिस्थितियों में जब वे पारिवारिक समस्याओं, तलाक या अन्य कारणों से अपने ससुराल में नहीं रह सकतीं।

इस निर्णय से महिला सशक्तिकरण को बल मिला है और यह दिखाता है कि न्यायपालिका सामाजिक बदलाव में अग्रणी भूमिका निभा रही है। यह फैसला देश भर की अन्य उच्च न्यायालयों के लिए भी एक मार्गदर्शक निर्णय हो सकता है।

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि पुत्री के इस अधिकार को किसी भी पारिवारिक सदस्य द्वारा चुनौती नहीं दी जा सकती। यह अधिकार उसके जन्म से ही प्राप्त होता है और जीवनभर बना रहता है।

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तथ्य

विषयविवरण
न्यायालयबॉम्बे उच्च न्यायालय
निर्णय का आधारहिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005, संविधान के अनुच्छेद 14 और 15
लाभार्थीसभी पुत्रियां (विवाहित और अविवाहित दोनों)
अधिकार का प्रकारपैतृक संपत्ति में निवास का अधिकार
कानूनी आधारसंपत्ति कानून और पारिवारिक अधिकार
प्रभावित क्षेत्रमहाराष्ट्र, गुजरात, गोवा और केंद्र शासित प्रदेश
सामाजिक प्रभावमहिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता

निष्कर्ष

बॉम्बे उच्च न्यायालय का यह निर्णय भारतीय न्याय व्यवस्था के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह फैसला न केवल कानूनी स्पष्टता प्रदान करता है बल्कि सामाजिक बदलाव की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे देश भर की महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने की प्रेरणा मिलेगी।

यह निर्णय भारत के संविधान की मूल भावना के अनुकूल है और दिखाता है कि न्यायपालिका समाज में व्याप्त असमानताओं को दूर करने में सक्रिय भूमिका निभा रही है। आने वाले समय में इस निर्णय का व्यापक प्रभाव देखने को मिलेगा और यह महिला अधिकारों के क्षेत्र में एक मजबूत आधार प्रदान करेगा।

UPSC संबंधित प्रश्न

1. प्रश्न: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के मुख्य प्रावधान क्या हैं और इसने महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को कैसे प्रभावित किया है?

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2. प्रश्न: बॉम्बे उच्च न्यायालय के इस निर्णय का भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों के संदर्भ में विश्लेषण करें।

3. प्रश्न: महिला सशक्तिकरण के संदर्भ में न्यायपालिका की भूमिका का मूल्यांकन करते हुए इस निर्णय के सामाजिक प्रभावों पर चर्चा करें।

4. प्रश्न: पारिवारिक कानूनों में लैंगिक समानता सुनिश्चित करने के लिए और क्या कदम उठाए जा सकते हैं? इस निर्णय के प्रकाश में सुझाव दें।

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