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आज का करंट अफेयर्स 18 अगस्त 2025

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भारत का एस एंड पी क्रेडिट रेटिंग अपग्रेड: एक ऐतिहासिक आर्थिक उपलब्धि

Table of Contents

समाचार में क्यों

स्टैंडर्ड एंड पूअर्स ग्लोबल रेटिंग्स ने अगस्त 2025 में भारत की संप्रभु क्रेडिट रेटिंग को BBB- से BBB में अपग्रेड किया है। यह लगभग दो दशकों में भारत की पहली क्रेडिट रेटिंग अपग्रेड है। इस विकास ने भारत को बेहतर साख वाले देशों के चुनिंदा समूह में स्थान दिलाया है और देश की मजबूत वित्तीय स्थिति तथा आर्थिक बुनियादी सिद्धांतों को दर्शाता है।

उद्देश्य

क्रेडिट रेटिंग अपग्रेड भारत के आर्थिक परिदृश्य के लिए कई रणनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति करता है। मुख्यतः यह निवेश जोखिमों को कम करके देश की विदेशी निवेश आकर्षित करने की क्षमता को बढ़ाता है। अंतर्राष्ट्रीय निवेशक निवेश निर्णय लेते समय अक्सर क्रेडिट रेटिंग को प्रमुख संकेतक के रूप में देखते हैं। बेहतर रेटिंग का मतलब आमतौर पर सरकार और निजी क्षेत्र की संस्थाओं दोनों के लिए कम उधार लागत होता है।

यह अपग्रेड पिछले कई वर्षों में लागू की गई सरकार की वित्तीय समेकन नीतियों और आर्थिक सुधारों को भी मान्यता देता है। भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए क्रेडिट रेटिंग अंतर्राष्ट्रीय उधार की लागत निर्धारित करने और वैश्विक पूंजी बाजारों तक पहुंच बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह सुधार अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में भारत की स्थिति को मजबूत बनाता है और द्विपक्षीय तथा बहुपक्षीय आर्थिक समझौतों में इसकी बातचीत की शक्ति बढ़ाता है।

महत्वपूर्ण जानकारी

BBB- से BBB में अपग्रेड भारत की साख मूल्यांकन में एक महत्वपूर्ण छलांग दर्शाता है। यह भारत को ग्रीस, मेक्सिको और इंडोनेशिया जैसे देशों की श्रेणी में रखता है, जो आर्थिक स्थिरता और वित्तीय प्रबंधन में पर्याप्त सुधार प्रदर्शित करता है।

इस अपग्रेड को प्रेरित करने वाले प्रमुख कारकों में आक्रामक वित्तीय समेकन उपाय शामिल हैं जिन्होंने वित्तीय घाटे को 2020-21 में जीडीपी के 9.2 प्रतिशत के शिखर से 2025-26 तक अनुमानित 4.4 प्रतिशत तक सफलतापूर्वक कम किया है। वैश्विक महामारी और भू-राजनीतिक तनावों सहित कई आर्थिक चुनौतियों का सामना करने के बावजूद सरकार ने उल्लेखनीय वित्तीय अनुशासन का प्रदर्शन किया है।

भारत की ऋण प्रबंधन रणनीति ने भी रेटिंग एजेंसियों को प्रभावित किया है। सरकार का लक्ष्य वर्तमान 57.1 प्रतिशत के ऋण-से-जीडीपी अनुपात को 2030-31 तक 49-51 प्रतिशत के लक्ष्य सीमा तक कम करना है। यह प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे महत्वाकांक्षी ऋण कमी कार्यक्रमों में से एक है।

आर्थिक विकास की निरंतरता एक अन्य महत्वपूर्ण कारक रहा है। वैश्विक आर्थिक विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखता है। 2024-25 में विकास दर 6.5 प्रतिशत तक धीमी होने के बावजूद, यह अधिकांश विकसित और विकासशील देशों की तुलना में काफी अधिक है।

मुद्रास्फीति नियंत्रण विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा है। भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति ढांचे ने जुलाई 2025 में मुख्य मुद्रास्फीति को 1.55 प्रतिशत तक सफलतापूर्वक लाया है, जो 2017 के बाद से सबसे कम स्तर है। यह उपलब्धि प्रभावी मौद्रिक नीति समन्वय और आपूर्ति पक्ष प्रबंधन को दर्शाती है।

विभिन्न क्षेत्रों में लागू संरचनात्मक सुधारों ने अधिक अनुकूल व्यापारिक वातावरण बनाया है। वस्तु और सेवा कर कार्यान्वयन, दिवालियापन संहिता सुधार, डिजिटल भुगतान इंफ्रास्ट्रक्चर विकास, और श्रम कानून सुधारों ने सामूहिक रूप से व्यापार में आसानी में सुधार किया है और आर्थिक दक्षता बढ़ाई है।

विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत बना हुआ है, जो बाहरी झटकों के खिलाफ पर्याप्त बफर प्रदान करता है। भारत की निर्यात टोकरी का विविधीकरण और बढ़ता सेवा क्षेत्र निर्यात ने चालू खाता स्थिति को मजबूत बनाया है और बाहरी कमजोरियों को कम किया है।

तथ्य तालिका

पैरामीटरपूर्व स्थितिवर्तमान स्थितिलक्ष्य/अनुमान
क्रेडिट रेटिंगBBB-BBBआगे अपग्रेड संभव
वित्तीय घाटा (जीडीपी का %)9.2% (2020-21)5.1% (2024-25)4.4% (2025-26)
ऋण-से-जीडीपी अनुपात57.1%56.8%49-51% (2030-31)
जीडीपी विकास दर7.2% (2022-23)6.5% (2024-25)6.8-7.2% (मध्यम अवधि)
मुद्रास्फीति दर6.7% (2022-23)1.55% (जुलाई 2025)4% (लक्ष्य सीमा)
विदेशी मुद्रा भंडार$635 बिलियन$670+ बिलियनपर्याप्तता बनाए रखना

निष्कर्ष

एस एंड पी क्रेडिट रेटिंग अपग्रेड भारत की आर्थिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण क्षण है और वित्तीय अनुशासन तथा संरचनात्मक सुधारों के प्रति देश की प्रतिबद्धता को मान्यता देता है। यह उपलब्धि एक महत्वपूर्ण मोड़ पर आई है जब भारत खुद को एक वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित कर रहा है और अपने विकास एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए बढ़े हुए विदेशी निवेश को आकर्षित करने की मांग कर रहा है।

अपग्रेड का संभावित रूप से पूरी अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव होगा, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए कम उधार लागत से लेकर अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों के बीच बढ़े हुए विश्वास तक। हालांकि, इस सुधारी गई रेटिंग को बनाए रखने के लिए वित्तीय समेकन, संरचनात्मक सुधार और टिकाऊ आर्थिक विकास पर निरंतर ध्यान देने की आवश्यकता होगी।

2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने के भारत के दृष्टिकोण के लिए, यह क्रेडिट रेटिंग अपग्रेड एक मजबूत आधार प्रदान करता है। यह दर्शाता है कि देश की आर्थिक बुनियादी बातें सही दिशा में आगे बढ़ रही हैं और भारत की आर्थिक प्रगति की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता बढ़ रही है।

सरकार को अब हरित ऊर्जा परिवर्तन और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता का सामना करते हुए विकास अनिवार्यताओं को वित्तीय समेकन लक्ष्यों के साथ संतुलित करने की चुनौती का सामना करना है।

यूपीएससी संबंधी वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1: 2025 में भारत के एस एंड पी क्रेडिट रेटिंग अपग्रेड में निम्नलिखित में से कौन से कारकों ने योगदान दिया?

  1. वित्तीय घाटे में जीडीपी के 9.2% से अनुमानित 4.4% तक कमी
  2. जुलाई 2025 में मुद्रास्फीति को 1.55% तक लाकर सफल नियंत्रण
  3. मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखना
  4. विभिन्न क्षेत्रों में संरचनात्मक सुधारों का कार्यान्वयन

a) केवल 1 और 2
b) केवल 1, 2 और 3
c) केवल 2, 3 और 4
d) उपर्युक्त सभी

उत्तर: d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 2: BBB की भारत की वर्तमान एस एंड पी क्रेडिट रेटिंग इसे निम्नलिखित में से किन देशों की श्रेणी में रखती है?
a) संयुक्त राज्य अमेरिका और जर्मनी
b) ग्रीस, मेक्सिको और इंडोनेशिया
c) चीन और ब्राजील
d) जापान और दक्षिण कोरिया

उत्तर: b) ग्रीस, मेक्सिको और इंडोनेशिया

प्रश्न 3: क्रेडिट रेटिंग के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. क्रेडिट रेटिंग देशों के लिए अंतर्राष्ट्रीय उधार की लागत को प्रभावित करती है
  2. BBB को निवेश ग्रेड रेटिंग माना जाता है
  3. क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां संप्रभु रेटिंग के लिए केवल वित्तीय पैरामीटर का मूल्यांकन करती हैं

उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
a) केवल 1
b) केवल 1 और 2
c) केवल 2 और 3
d) 1, 2 और 3

उत्तर: b) केवल 1 और 2

प्रश्न 4: 2030-31 तक ऋण-से-जीडीपी अनुपात को 49-51% तक कम करने का सरकार का लक्ष्य महत्वपूर्ण है क्योंकि:
a) यह यूरोपीय संघ द्वारा उपयोग किए जाने वाले मास्ट्रिच मानदंडों के साथ तालमेल बिठाता है
b) यह वित्तीय स्थिरता के प्रति प्रतिबद्धता दर्शाता है
c) यह सरकारी वित्त पर ब्याज बोझ कम करेगा
d) उपर्युक्त सभी

उत्तर: d) उपर्युक्त सभी


आरबीआई की फ्री-एआई समिति रिपोर्ट: वित्तीय क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का जिम्मेदार उपयोग

समाचार में क्यों

भारतीय रिज़र्व बैंक ने “Framework for Responsible and Ethical Enablement of Artificial Intelligence” (FREE-AI) समिति की रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट वित्तीय क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जिम्मेदार उपयोग को बढ़ावा देने के लिए 7 मार्गदर्शक सिद्धांत प्रदान करती है। इस पहल का उद्देश्य नवाचार और जोखिम प्रबंधन के बीच संतुलन बनाना है।

उद्देश्य

FREE-AI समिति का गठन वित्तीय सेवा क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के तेजी से बढ़ते उपयोग को देखते हुए किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य एक व्यापक ढांचा तैयार करना है जो वित्तीय संस्थानों को AI प्रौद्योगिकी का उपयोग करते समय नैतिक और जिम्मेदार प्रथाओं का पालन करने में मार्गदर्शन प्रदान करे।

यह ढांचा विशेष रूप से बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं में AI के उपयोग से जुड़े संभावित जोखिमों को कम करने पर केंद्रित है। इसमें ग्राहक गोपनीयता, डेटा सुरक्षा, एल्गोरिदमिक पारदर्शिता, और निष्पक्षता जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को शामिल किया गया है। समिति का लक्ष्य भारतीय वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र में AI अपनाने की प्रक्रिया को व्यवस्थित और सुरक्षित बनाना है।

इसके अलावा, यह ढांचा वैश्विक मानकों के अनुकूल है और अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं को भारतीय संदर्भ में अनुकूलित करता है। यह वित्तीय स्थिरता बनाए रखते हुए तकनीकी नवाचार को प्रोत्साहित करने का संतुलित दृष्टिकोण अपनाता है।

महत्वपूर्ण जानकारी

FREE-AI समिति ने वित्तीय क्षेत्र में AI के जिम्मेदार उपयोग के लिए सात मुख्य सिद्धांत निर्धारित किए हैं। ये सिद्धांत पारदर्शिता, जवाबदेही, निष्पक्षता, मानवीय निरीक्षण, गोपनीयता संरक्षण, मजबूती, और निरंतर निगरानी पर आधारित हैं।

पहला सिद्धांत पारदर्शिता पर जोर देता है, जिसके अनुसार वित्तीय संस्थानों को अपने AI सिस्टम की कार्यप्रणाली के बारे में स्पष्ट जानकारी प्रदान करनी चाहिए। दूसरा सिद्धांत जवाबदेही सुनिश्चित करता है कि AI निर्णयों के लिए स्पष्ट जिम्मेदारी तय हो।

निष्पक्षता का सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि AI सिस्टम में किसी प्रकार का भेदभाव न हो और सभी ग्राहकों के साथ समान व्यवहार हो। मानवीय निरीक्षण का सिद्धांत महत्वपूर्ण निर्णयों में मानवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता पर बल देता है।

समिति ने डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना के हिस्से के रूप में वित्तीय क्षेत्र के लिए उच्च गुणवत्ता वाले डेटा अवसंरचना की स्थापना की सिफारिश की है। इसमें सुरक्षित परीक्षण वातावरण के लिए AI इनोवेशन सैंडबॉक्स की स्थापना भी शामिल है।

रिपोर्ट में AI-आधारित ऋण मूल्यांकन के लिए ऑडिट योग्य प्रक्रियाओं के कार्यान्वयन पर विशेष जोर दिया गया है। यह सुनिश्चित करता है कि ऋण निर्णय पारदर्शी और न्यायसंगत हों।

समिति ने नैतिक AI के विकास के लिए उद्योग मानकों और सर्वोत्तम प्रथाओं का विकास करने की भी सिफारिश की है। इसमें नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम और जागरूकता अभियान शामिल हैं।

रिपोर्ट में साइबर सुरक्षा और डेटा संरक्षण के महत्व पर भी बल दिया गया है। AI सिस्टम की सुरक्षा को बढ़ाने के लिए मल्टी-लेयर सुरक्षा दृष्टिकोण अपनाने की सिफारिश की गई है।

समिति ने नियामक सैंडबॉक्स के विस्तार का भी सुझाव दिया है, जहां वित्तीय संस्थान नियंत्रित वातावरण में नई AI प्रौद्योगिकियों का परीक्षण कर सकें। यह दृष्टिकोण नवाचार को प्रोत्साहित करते हुए जोखिम को कम रखता है।

तथ्य तालिका

पहलूविवरणलक्ष्यसमयसीमा
मार्गदर्शक सिद्धांत7 प्रमुख सिद्धांतAI के जिम्मेदार उपयोगतत्काल कार्यान्वयन
डेटा अवसंरचनाडिजिटल सार्वजनिक अवसंरचनाउच्च गुणवत्ता डेटा पहुंच2026-27 तक
AI सैंडबॉक्सGenAI डिजिटल सैंडबॉक्ससुरक्षित परीक्षण वातावरण2025-26 तक
ऑडिट प्रक्रियाAI-आधारित ऋण मूल्यांकनपारदर्शी निर्णय प्रक्रियाचरणबद्ध कार्यान्वयन
नियामक ढांचाव्यापक AI नीतिजोखिम शमननिरंतर विकास
प्रशिक्षण कार्यक्रमउद्योग क्षमता निर्माणकुशल जनशक्तिवार्षिक आधार पर
साइबर सुरक्षामल्टी-लेयर सुरक्षाडेटा संरक्षणनिरंतर उन्नयन

निष्कर्ष

आरबीआई की FREE-AI समिति रिपोर्ट भारतीय वित्तीय क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह रिपोर्ट न केवल AI के जिम्मेदार उपयोग के लिए एक स्पष्ट रोडमैप प्रदान करती है, बल्कि वैश्विक मानकों के अनुकूल एक व्यापक ढांचा भी स्थापित करती है।

रिपोर्ट का महत्व इस बात में है कि यह तकनीकी नवाचार और नियामक अनुपालन के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करती है। यह दृष्टिकोण भारतीय वित्तीय संस्थानों को वैश्विक AI क्रांति में भाग लेने के साथ-साथ ग्राहकों के हितों की सुरक्षा करने में सक्षम बनाता है।

समिति की सिफारिशों का कार्यान्वयन भारतीय बैंकिंग प्रणाली की दक्षता और पारदर्शिता में महत्वपूर्ण सुधार ला सकता है। डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना का विकास और AI सैंडबॉक्स की स्थापना फिनटेक नवाचार को बढ़ावा देगी।

हालांकि, इस ढांचे की सफलता वित्तीय संस्थानों की सक्रिय भागीदारी और नियामक निकायों के निरंतर मार्गदर्शन पर निर्भर करती है। उद्योग के हितधारकों को इन सिद्धांतों को अपनी व्यावसायिक प्रथाओं में एकीकृत करना होगा।

भविष्य में, यह ढांचा भारत को वैश्विक AI गवर्नेंस में एक अग्रणी भूमिका निभाने में मदद कर सकता है। अन्य विकासशील देश इस मॉडल को अपना सकते हैं और अपने वित्तीय क्षेत्रों में AI के जिम्मेदार उपयोग को बढ़ावा दे सकते हैं।

यूपीएससी संबंधी वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1: FREE-AI समिति के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. यह आरबीआई द्वारा गठित एक समिति है
  2. इसने वित्तीय क्षेत्र में AI के उपयोग के लिए 7 मार्गदर्शक सिद्धांत दिए हैं
  3. समिति ने AI इनोवेशन सैंडबॉक्स की स्थापना की सिफारिश की है

उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3 सभी

उत्तर: d) 1, 2 और 3 सभी

प्रश्न 2: FREE-AI का पूर्ण रूप है:
a) Financial Regulatory Enhancement for Ethical AI
b) Framework for Responsible and Ethical Enablement of Artificial Intelligence
c) Financial Reserve Enhancement for AI Innovation
d) Framework for Regulatory Excellence in AI

उत्तर: b) Framework for Responsible and Ethical Enablement of Artificial Intelligence

प्रश्न 3: FREE-AI समिति की सिफारिशों के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही नहीं है?
a) डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना के रूप में डेटा अवसंरचना की स्थापना
b) AI-आधारित ऋण मूल्यांकन के लिए ऑडिट योग्य प्रक्रियाओं का कार्यान्वयन
c) सभी वित्तीय निर्णयों में पूर्ण AI स्वचालन को बढ़ावा देना
d) GenAI डिजिटल सैंडबॉक्स की स्थापना

उत्तर: c) सभी वित्तीय निर्णयों में पूर्ण AI स्वचालन को बढ़ावा देना

प्रश्न 4: AI के जिम्मेदार उपयोग के लिए FREE-AI के सिद्धांतों में शामिल है:

  1. पारदर्शिता
  2. जवाबदेही
  3. निष्पक्षता
  4. मानवीय निरीक्षण

a) केवल 1 और 2
b) केवल 1, 2 और 3
c) केवल 2, 3 और 4
d) 1, 2, 3 और 4 सभी

उत्तर: d) 1, 2, 3 और 4 सभी


भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग: राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम

समाचार में क्यों

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन के तहत ओडिशा, पंजाब और आंध्र प्रदेश में 4 नई सेमीकंडक्टर परियोजनाओं को मंजूरी दी है। इससे कुल 6 राज्यों में परियोजनाओं की संख्या 10 तक पहुंच गई है। भारत का सेमीकंडक्टर उपभोग बाजार 2024-25 में 52 बिलियन डॉलर का है और 2030 तक 103.4 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।

उद्देश्य

भारत सरकार का सेमीकंडक्टर मिशन देश को इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखता है। इसका मुख्य उद्देश्य भारत को वैश्विक सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन में एक प्रमुख हब के रूप में स्थापित करना है। यह पहल न केवल आयात निर्भरता को कम करने के लिए है, बल्कि रोजगार सृजन और तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देने के लिए भी है।

सेमीकंडक्टर उद्योग आधुनिक डिजिटल अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। स्मार्टफोन से लेकर ऑटोमोबाइल, कंप्यूटर से लेकर रक्षा प्रणालियों तक, हर क्षेत्र में सेमीकंडक्टर चिप्स की आवश्यकता होती है। कोविड-19 महामारी के दौरान वैश्विक चिप शॉर्टेज ने इस उद्योग की महत्वता को और भी स्पष्ट कर दिया है।

भारत का लक्ष्य केवल उपभोग बाजार तक सीमित नहीं रहना है, बल्कि एक प्रमुख निर्यातक के रूप में अपनी पहचान बनाना है। यह पहल मेक इन इंडिया अभियान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और देश की औद्योगिक क्षमता को बढ़ाने में योगदान देगी।

महत्वपूर्ण जानकारी

इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन की शुरुआत दिसंबर 2021 में हुई थी, जिसके लिए सरकार ने 76,000 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया था। यह मिशन सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन, डिस्प्ले फैब्रिकेशन, कंपाउंड सेमीकंडक्टर, सिलिकन फोटोनिक्स और सेंसर्स फैब्रिकेशन सुविधाओं की स्थापना पर केंद्रित है।

हाल ही में मंजूर की गई चार परियोजनाओं में से ओडिशा में दो परियोजनाएं शामिल हैं। पहली परियोजना भुवनेश्वर में एक एनालॉग और मिक्स्ड सिग्नल फैब है, जिसमें 2,700 करोड़ रुपये का निवेश होगा। दूसरी परियोजना भी भुवनेश्वर में ही एक डिस्क्रीट सेमीकंडक्टर असेंबली और टेस्ट यूनिट है।

पंजाब में मोहाली के पास स्थापित होने वाली परियोजना में एक आउटसोर्स्ड सेमीकंडक्टर असेंबली और टेस्ट (OSAT) सुविधा शामिल है। यह परियोजना विशेष रूप से ऑटोमोटिव और औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए चिप्स का उत्पादन करेगी।

आंध्र प्रदेश में विशाखापत्तनम के निकट स्थापित होने वाली परियोजना एक कंपाउंड सेमीकंडक्टर फैब है। यह परियोजना विशेष रूप से 5G और दूरसंचार उपकरणों के लिए उन्नत चिप्स का उत्पादन करेगी।

भारत का सेमीकंडक्टर बाजार तेजी से बढ़ रहा है। वर्तमान में देश का वार्षिक सेमीकंडक्टर उपभोग 27 बिलियन डॉलर है, लेकिन स्थानीय उत्पादन केवल 2-3 प्रतिशत है। यह विशाल आयात निर्भरता दर्शाता है कि घरेलू उत्पादन में वृद्धि की कितनी संभावना है।

इस उद्योग में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। प्रत्येक फैब यूनिट में लगभग 1,500-2,000 प्रत्यक्ष रोजगार और 8,000-10,000 अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होने की उम्मीद है। इसके अलावा, यह उद्योग उच्च कुशलता वाले रोजगार प्रदान करता है।

सरकार ने सेमीकंडक्टर के साथ-साथ डिस्प्ले निर्माण पर भी जोर दिया है। डिस्प्ले पैनल का उपयोग टेलीविजन, मोबाइल फोन, लैपटॉप और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में होता है। वर्तमान में भारत अपनी 95 प्रतिशत डिस्प्ले आवश्यकताओं के लिए आयात पर निर्भर है।

तकनीकी शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण निवेश किया जा रहा है। IIT दिल्ली, IIT बॉम्बे, IIT मद्रास और IISc बेंगलुरू में सेमीकंडक्टर अनुसंधान केंद्र स्थापित किए गए हैं। ये संस्थान स्वदेशी चिप डिजाइन क्षमताओं को विकसित करने पर काम कर रहे हैं।

सरकार ने C-DAC (Centre for Development of Advanced Computing) के साथ मिलकर एक राष्ट्रीय चिप डिजाइन कार्यक्रम भी शुरू किया है। इस कार्यक्रम का लक्ष्य अगले पांच वर्षों में 85,000 इंजीनियरों को चिप डिजाइनिंग में प्रशिक्षित करना है।

वैश्विक सप्लाई चेन में भारत की भूमिका भी बढ़ रही है। ताइवान, दक्षिण कोरिया और जापान जैसे प्रमुख सेमीकंडक्टर उत्पादक देशों के साथ भारत ने तकनीकी सहयोग समझौते किए हैं। इन साझेदारियों से भारत को अत्याधुनिक तकनीक तक पहुंच मिलेगी।

तथ्य तालिका

पैरामीटरवर्तमान स्थितिलक्ष्यसमयसीमा
कुल परियोजनाएं10 परियोजनाएं20+ परियोजनाएं2030 तक
राज्यों की संख्या6 राज्य10+ राज्य2028 तक
बाजार आकार$52 बिलियन$103.4 बिलियन2030 तक
स्थानीय उत्पादन2-3%25%2030 तक
सरकारी निवेश₹76,000 करोड़₹1.2 लाख करोड़2030 तक
रोजगार सृजन50,0003 लाख2030 तक
कुशल जनशक्ति20,00085,0002028 तक

निष्कर्ष

भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग का विकास एक रणनीतिक आवश्यकता है जो देश की तकनीकी और आर्थिक स्वतंत्रता के लिए महत्वपूर्ण है। सरकार की यह पहल न केवल आयात निर्भरता को कम करेगी, बल्कि भारत को एक प्रमुख निर्यातक के रूप में भी स्थापित करेगी।

इन परियोजनाओं की सफलता के लिए कई चुनौतियों से निपटना होगा। इनमें कुशल जनशक्ति की कमी, उच्च प्रारंभिक निवेश लागत, और तकनीकी जटिलताएं शामिल हैं। हालांकि, सरकार की दृढ़ प्रतिबद्धता और निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी से ये बाधाएं दूर हो सकती हैं।

वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक तनाव और सप्लाई चेन की अनिश्चितता के कारण कई देश अपनी सेमीकंडक्टर आवश्यकताओं के लिए वैकल्पिक स्रोत तलाश रहे हैं। यह भारत के लिए एक सुनहरा अवसर है।

तकनीकी शिक्षा और अनुसंधान में निवेश से भारत न केवल एक उत्पादन केंद्र बनेगा, बल्कि नवाचार का भी केंद्र बनेगा। स्वदेशी चिप डिजाइन क्षमताओं का विकास भारत को मूल्य श्रृंखला में ऊपर ले जाएगा।

यूपीएससी संबंधी वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1: इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. यह मिशन दिसंबर 2021 में शुरू किया गया था
  2. सरकार ने इसके लिए 76,000 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है
  3. वर्तमान में 6 राज्यों में 10 परियोजनाएं मंजूर हैं

उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3 सभी

उत्तर: d) 1, 2 और 3 सभी

प्रश्न 2: भारत का सेमीकंडक्टर उपभोग बाजार 2030 तक कितने बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है?
a) 75.5 बिलियन डॉलर
b) 103.4 बिलियन डॉलर
c) 125.8 बिलियन डॉलर
d) 150.2 बिलियन डॉलर

उत्तर: b) 103.4 बिलियन डॉलर

प्रश्न 3: हाल ही में मंजूर की गई सेमीकंडक्टर परियोजनाओं में शामिल राज्य हैं:

  1. ओडिशा
  2. पंजाब
  3. आंध्र प्रदेश
  4. तमिलनाडु

a) केवल 1, 2 और 3
b) केवल 1, 3 और 4
c) केवल 2, 3 और 4
d) 1, 2, 3 और 4 सभी

उत्तर: a) केवल 1, 2 और 3

प्रश्न 4: भारत की वर्तमान स्थानीय सेमीकंडक्टर उत्पादन क्षमता कुल उपभोग का कितना प्रतिशत है?
a) 2-3 प्रतिशत
b) 5-7 प्रतिशत
c) 10-12 प्रतिशत
d) 15-18 प्रतिशत

उत्तर: a) 2-3 प्रतिशत


काकोरी ट्रेन एक्शन के 100 वर्ष: स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण अध्याय

समाचार में क्यों

अगस्त 2025 में काकोरी ट्रेन एक्शन के 100 वर्ष पूरे हो गए हैं। यह घटना 9 अगस्त 1925 को लखनऊ के निकट काकोरी गांव में हुई थी। इस क्रांतिकारी कार्रवाई में राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्लाह खान, राजेंद्र लाहिड़ी और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों ने भाग लिया था। यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी आंदोलन का एक महत्वपूर्ण मोड़ थी।

उद्देश्य

काकोरी ट्रेन एक्शन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के खजाने को लूटकर क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन एकत्रित करना था। हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्यों का मानना था कि अंग्रेजी शासन के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष के लिए धन की आवश्यकता थी। उस समय कांग्रेस का अहिंसक आंदोलन धीमा पड़ रहा था और युवा क्रांतिकारी तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता महसूस कर रहे थे।

इस कार्रवाई का एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जनमत तैयार करना था। क्रांतिकारियों का विश्वास था कि साहसिक कार्रवाइयों से देशवासियों में जागरूकता आएगी और वे स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी करेंगे। यह कार्रवाई ब्रिटिश सत्ता के अजेय होने के मिथक को तोड़ने के लिए भी थी।

क्रांतिकारी चाहते थे कि यह घटना पूरे देश में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह की चिंगारी बने। उनका लक्ष्य केवल धन प्राप्त करना नहीं था, बल्कि एक व्यापक क्रांतिकारी आंदोलन की शुरुआत करना था जो अंततः भारत की स्वतंत्रता में योगदान दे सके।

महत्वपूर्ण जानकारी

काकोरी ट्रेन एक्शन 9 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ जाने वाली 8 डाउन सरायगंज-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन पर किया गया था। यह कार्रवाई हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के 10 सदस्यों द्वारा संपन्न की गई थी। इस संगठन की स्थापना 1924 में राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्लाह खान और अन्य क्रांतिकारियों द्वारा की गई थी।

इस कार्रवाई में राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्लाह खान, राजेंद्र लाहिड़ी, चंद्रशेखर आज़ाद, रोशन सिंह, मन्मथनाथ गुप्त, मुकुंदी लाल, मुरारी शर्मा, बनवारी लाल और राम कृष्ण खड़क ने भाग लिया था। इन्होंने काकोरी रेलवे स्टेशन के निकट ट्रेन को रोका और सरकारी खजाने से लगभग 8,000 रुपये हथिया लिए।

इस कार्रवाई के बाद ब्रिटिश पुलिस ने व्यापक तलाशी अभियान चलाया। महीनों के बाद अधिकांश क्रांतिकारी गिरफ्तार कर लिए गए। केवल चंद्रशेखर आज़ाद पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े और वे बाद में क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व करते रहे।

काकोरी कांड का मुकदमा एक ऐतिहासिक न्यायिक प्रक्रिया थी। इस मुकदमे में कुल 40 क्रांतिकारियों पर आरोप लगाए गए थे। मुकदमे की सुनवाई लखनऊ में हुई और यह 18 महीने तक चली। 6 अप्रैल 1927 को फैसला सुनाया गया, जिसमें राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्लाह खान, रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी की सजा दी गई।

इस मुकदमे ने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया था। गांधी जी से लेकर नेहरू जी तक सभी नेताओं ने इन क्रांतिकारियों के बलिदान की सराहना की थी। यहां तक कि कांग्रेस के अहिंसावादी नेताओं ने भी इन वीरों के साहस को स्वीकार किया था।

19 दिसंबर 1927 को राम प्रसाद बिस्मिल और रोशन सिंह को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई। 17 दिसंबर 1927 को अशफाकउल्लाह खान को फैजाबाद जेल में फांसी दी गई। 27 दिसंबर 1927 को राजेंद्र लाहिड़ी को गोंडा जेल में फांसी दी गई।

काकोरी कांड ने हिंदू-मुस्लिम एकता का एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाकउल्लाह खान की मित्रता आज भी सांप्रदायिक सद्भावना का प्रतीक मानी जाती है। दोनों ने धर्म से ऊपर उठकर देश की सेवा की और एक साथ हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूमा।

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इस कार्रवाई के बाद क्रांतिकारी आंदोलन में नई जान आई। हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन कर दिया गया। भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू जैसे युवा क्रांतिकारी इससे जुड़े और स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी।

तथ्य तालिका

विवरणजानकारीपरिणाममहत्व
घटना की तारीख9 अगस्त 1925ट्रेन डकैती सफलक्रांतिकारी आंदोलन को बल
स्थानकाकोरी, लखनऊ के निकट8,000 रुपये हथियाए गएराष्ट्रीय चर्चा का विषय
संगठनहिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशनगिरफ्तारियां शुरूसंगठन की पहचान
प्रमुख नेताराम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्लाह खानन्यायिक प्रक्रियावीरता का प्रतीक
मुकदमा18 महीने की सुनवाई4 को फांसीन्याय व्यवस्था पर प्रश्न
फांसी की तारीखदिसंबर 1927शहादतराष्ट्रीय प्रेरणा
प्रभावदेशव्यापी जागरूकतानया संगठन HSRAक्रांतिकारी विचारधारा

निष्कर्ष

काकोरी ट्रेन एक्शन के 100 वर्ष पूरे होने पर यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय के रूप में याद की जाती है। यह घटना न केवल क्रांतिकारी आंदोलन की दिशा बदलने वाली थी, बल्कि युवाओं में देशभक्ति की भावना जगाने वाली भी थी।

इस घटना का महत्व केवल उस समय तक सीमित नहीं था, बल्कि इसके दीर्घकालिक प्रभाव भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पूरे इतिहास पर पड़े। काकोरी के वीरों ने साबित किया कि स्वतंत्रता के लिए सर्वस्व न्योछावर करने की भावना भारतीय युवाओं में कूट-कूट कर भरी है।

राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्लाह खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। इन्होंने जो बीज बोया था, वह आगे चलकर भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और अन्य क्रांतिकारियों के रूप में विशाल वृक्ष बना। इनकी शहादत ने पूरे देश को यह संदेश दिया कि स्वतंत्रता कोई भीख नहीं है, जो मांगी जा सके, बल्कि यह एक अधिकार है जिसे छीनना पड़ता है।

आज जब हम स्वतंत्र भारत में सांस ले रहे हैं, तो हमें इन महान आत्माओं को नमन करना चाहिए जिन्होंने हमारी आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। काकोरी की यह गाथा हमेशा युवाओं को प्रेरणा देती रहेगी।

यूपीएससी संबंधी वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1: काकोरी ट्रेन एक्शन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. यह घटना 9 अगस्त 1925 को हुई थी
  2. इसमें हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्यों ने भाग लिया था
  3. चंद्रशेखर आज़ाद को भी फांसी की सजा दी गई थी

उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3 सभी

उत्तर: a) केवल 1 और 2

प्रश्न 2: काकोरी कांड में फांसी की सजा पाने वाले क्रांतिकारी थे:

  1. राम प्रसाद बिस्मिल
  2. अशफाकउल्लाह खान
  3. राजेंद्र लाहिड़ी
  4. रोशन सिंह

a) केवल 1, 2 और 3
b) केवल 1, 3 और 4
c) केवल 2, 3 और 4
d) 1, 2, 3 और 4 सभी

उत्तर: d) 1, 2, 3 और 4 सभी

प्रश्न 3: हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना कब हुई थी?
a) 1923 में
b) 1924 में
c) 1925 में
d) 1926 में

उत्तर: b) 1924 में

प्रश्न 4: काकोरी ट्रेन एक्शन के बाद कौन सा क्रांतिकारी गिरफ्तार नहीं हुआ और बाद में क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व करता रहा?
a) राम प्रसाद बिस्मिल
b) चंद्रशेखर आज़ाद
c) अशफाकउल्लाह खान
d) राजेंद्र लाहिड़ी

उत्तर: b) चंद्रशेखर आज़ाद


अमेरिका-रूस अलास्का शिखर सम्मेलन: भू-राजनीतिक समीकरणों में नया मोड़

समाचार में क्यों

15 अगस्त 2025 को अलास्का के एंकरेज में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच एक ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन हुआ। यह 2022 में रूस-यूक्रेन संघर्ष शुरू होने के बाद दोनों नेताओं की पहली आमने-सामने की बैठक थी। इस शिखर सम्मेलन ने वैश्विक भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत दिया है और भारत सहित कई देशों की विदेश नीति को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।

उद्देश्य

अलास्का शिखर सम्मेलन का प्राथमिक उद्देश्य रूस-यूक्रेन संघर्ष को समाप्त करने के लिए संभावित शांति वार्ता की शुरुआत करना था। ट्रम्प प्रशासन का मानना है कि प्रत्यक्ष बातचीत के माध्यम से इस संघर्ष का राजनयिक समाधान संभव है। इस बैठक का उद्देश्य दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को कम करना और परस्पर सहयोग के क्षेत्रों की पहचान करना भी था।

शिखर सम्मेलन का एक अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य वैश्विक ऊर्जा बाजार में स्थिरता लाना था। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण तेल और गैस की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव देखा गया है, जिसका प्रभाव पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। दोनों नेताओं का लक्ष्य ऊर्जा आपूर्ति की निरंतरता सुनिश्चित करना था।

इस बैठक का रणनीतिक उद्देश्य चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करना भी था। हाल के वर्षों में चीन की आर्थिक और सैन्य शक्ति में वृद्धि से अमेरिका और रूस दोनों चिंतित हैं। शिखर सम्मेलन के माध्यम से दोनों देश इस चुनौती से निपटने के लिए संभावित सहयोग की संभावनाओं पर चर्चा करना चाहते थे।

अंतर्राष्ट्रीय कानून और व्यवस्था की पुनर्स्थापना भी इस बैठक का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य था। दोनों नेताओं का मानना था कि द्विपक्षीय संवाद के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की प्रभावशीलता को बहाल किया जा सकता है।

महत्वपूर्ण जानकारी

अलास्का का चयन इस शिखर सम्मेलन के लिए अत्यधिक प्रतीकात्मक था। अलास्का 1867 में रूस से अमेरिका द्वारा 7.2 मिलियन डॉलर में खरीदा गया था, जो उस समय ‘सीवार्ड्स फॉली’ कहलाता था। आज यह क्षेत्र अपने तेल भंडार और रणनीतिक स्थिति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह स्थान दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक संबंधों का प्रतीक है।

शिखर सम्मेलन की तैयारी महीनों पहले से शुरू हुई थी। अमेरिकी विदेश सचिव एंटनी ब्लिंकन और रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के बीच कई दौर की गुप्त बातचीत हुई थी। फिनलैंड और तुर्की जैसे मध्यस्थ देशों ने भी इस बैठक को संभव बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

बैठक के दौरान यूक्रेन संकट पर विस्तृत चर्चा हुई। पुतिन ने डोनबास क्षेत्र में रूसी हितों की सुरक्षा की बात कही, जबकि ट्रम्प ने यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता पर जोर दिया। दोनों नेताओं ने युद्धविराम की संभावना पर चर्चा की, लेकिन कोई तत्काल समझौता नहीं हुआ।

नाटो विस्तार का मुद्दा भी महत्वपूर्ण रूप से उठाया गया। रूस का मानना है कि नाटो का पूर्वी विस्तार उसकी सुरक्षा के लिए खतरा है। ट्रम्प ने इस चिंता को समझने का संकेत दिया और भविष्य में नाटो नीतियों में संयम बरतने की बात कही।

ऊर्जा सहयोग पर भी व्यापक चर्चा हुई। रूस दुनिया का सबसे बड़ा गैस निर्यातक है और अमेरिका सबसे बड़ा तेल उत्पादक। दोनों देशों ने वैश्विक ऊर्जा बाजार में स्थिरता लाने के लिए सहयोग की संभावनाओं पर चर्चा की।

साइबर सुरक्षा और परमाणु निरस्त्रीकरण जैसे मुद्दों पर भी बातचीत हुई। दोनों देश साइबर हमलों के बढ़ते खतरे से चिंतित हैं और इस क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए।

अंतरिक्ष सहयोग का विषय भी उठाया गया। अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में दोनों देशों का सहयोग जारी है, और भविष्य की अंतरिक्ष परियोजनाओं में सहयोग बढ़ाने की संभावना पर चर्चा हुई।

आर्थिक प्रतिबंधों के मुद्दे पर भी बात हुई। अमेरिका ने रूस पर लगाए गए कुछ प्रतिबंधों को चरणबद्ध तरीके से हटाने की संभावना जताई, बशर्ते रूस यूक्रेन मुद्दे पर सकारात्मक कदम उठाए।

दोनों नेताओं ने आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त संघर्ष की आवश्यकता पर भी सहमति जताई। अफगानिस्तान और मध्य पूर्व में आतंकवाद विरोधी अभियानों में सहयोग बढ़ाने की संभावना पर चर्चा हुई।

भारत के लिए इस शिखर सम्मेलन के महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं। भारत ने रूस-यूक्रेन संघर्ष में तटस्थता की नीति अपनाई है और दोनों पक्षों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखे हैं। अगर अमेरिका-रूस संबंधों में सुधार होता है, तो यह भारत की बहुध्रुवीय विदेश नीति के लिए अनुकूल होगा।

तथ्य तालिका

पहलूविवरणपरिणाममहत्व
तारीख और स्थान15 अगस्त 2025, एंकरेज, अलास्कापहली प्रत्यक्ष बातचीतऐतिहासिक महत्व
मुख्य मुद्देयूक्रेन संकट, ऊर्जा सहयोगयुद्धविराम की संभावनाशांति प्रक्रिया
नाटो विस्ताररूसी चिंताएं, अमेरिकी आश्वासनभविष्य की नीति में संयमसुरक्षा संतुलन
आर्थिक प्रतिबंधचरणबद्ध शिथिलीकरणव्यापार संबंधों में सुधारआर्थिक सहयोग
ऊर्जा सहयोगवैश्विक बाजार स्थिरताकीमतों में स्थिरताआर्थिक प्रभाव
साइबर सुरक्षासंयुक्त सहयोगसुरक्षा बढ़ानातकनीकी सहयोग
भारत पर प्रभावसंतुलित विदेश नीतिरणनीतिक स्वायत्तताबहुध्रुवीयता

निष्कर्ष

अमेरिका-रूस अलास्का शिखर सम्मेलन 21वीं सदी की एक महत्वपूर्ण राजनयिक घटना है जो वैश्विक भू-राजनीति की दिशा बदल सकती है। यह बैठक दर्शाती है कि कितने भी गहरे मतभेद हों, संवाद और कूटनीति के माध्यम से समाधान संभव है।

इस शिखर सम्मेलन की सफलता का मापदंड केवल तत्काल परिणामों में नहीं, बल्कि दीर्घकालिक शांति प्रक्रिया में इसके योगदान में है। यूक्रेन संकट का शांतिपूर्ण समाधान न केवल यूरोप की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि वैश्विक आर्थिक स्थिरता के लिए भी आवश्यक है।

भारत जैसे देशों के लिए यह शिखर सम्मेलन एक सकारात्मक संकेत है। यह दिखाता है कि बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में विभिन्न शक्तियों के बीच संतुलन संभव है। भारत की “सबका साथ, सबका विकास” की नीति इस नई वैश्विक व्यवस्था में और भी प्रासंगिक हो जाती है।

हालांकि, यह शिखर सम्मेलन केवल शुरुआत है। वास्तविक परिवर्तन तभी आएगा जब दोनों देश अपनी प्रतिबद्धताओं को व्यावहारिक कार्यों में परिवर्तित करेंगे। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में सहयोग करना होगा।

यूपीएससी संबंधी वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1: अमेरिका-रूस अलास्का शिखर सम्मेलन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. यह 15 अगस्त 2025 को एंकरेज में हुआ था
  2. यह रूस-यूक्रेन संघर्ष के बाद दोनों नेताओं की पहली प्रत्यक्ष बातचीत थी
  3. अलास्का 1867 में रूस से अमेरिका द्वारा खरीदा गया था

उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3 सभी

उत्तर: d) 1, 2 और 3 सभी

प्रश्न 2: अलास्का को रूस से अमेरिका द्वारा कितने डॉलर में खरीदा गया था?
a) 5.2 मिलियन डॉलर
b) 7.2 मिलियन डॉलर
c) 9.2 मिलियन डॉलर
d) 11.2 मिलियन डॉलर

उत्तर: b) 7.2 मिलियन डॉलर

प्रश्न 3: शिखर सम्मेलन में चर्चित मुख्य मुद्दों में शामिल थे:

  1. यूक्रेन संकट
  2. नाटो विस्तार
  3. ऊर्जा सहयोग
  4. साइबर सुरक्षा

a) केवल 1, 2 और 3
b) केवल 1, 3 और 4
c) केवल 2, 3 और 4
d) 1, 2, 3 और 4 सभी

उत्तर: d) 1, 2, 3 और 4 सभी

प्रश्न 4: भारत के लिए अमेरिका-रूस शिखर सम्मेलन का महत्व है:
a) यह भारत की तटस्थता की नीति को मजबूत करता है
b) यह बहुध्रुवीय विदेश नीति के लिए अनुकूल है
c) यह भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को बढ़ाता है
d) उपर्युक्त सभी

उत्तर: d) उपर्युक्त सभी


79वां स्वतंत्रता दिवस की प्रमुख घोषणाएं: विकसित भारत 2047 की दिशा में महत्वपूर्ण कदम

समाचार में क्यों

भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए कई महत्वपूर्ण घोषणाएं कीं। इन घोषणाओं में प्रमुख रूप से पीएम विकसित भारत रोजगार योजना, मिशन सुदर्शन चक्र, स्वदेशी सेमीकंडक्टर चिप निर्माण, और राष्ट्रीय गहरे पानी की खोज मिशन शामिल हैं। ये सभी घोषणाएं 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य के अनुकूल हैं।

उद्देश्य

79वें स्वतंत्रता दिवस की घोषणाओं का मुख्य उद्देश्य भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र के रूप में स्थापित करना है। इन पहलों का लक्ष्य रोजगार सृजन, तकनीकी आत्मनिर्भरता, रक्षा क्षमता वृद्धि, और प्राकृतिक संसाधन दोहन के माध्यम से देश की आर्थिक समृद्धि सुनिश्चित करना है।

पीएम विकसित भारत रोजगार योजना का उद्देश्य युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करना और कौशल विकास को बढ़ावा देना है। यह योजना विशेष रूप से शिक्षित युवाओं की बेरोजगारी की समस्या के समाधान पर केंद्रित है। इसके माध्यम से सरकार आधुनिक अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं के अनुकूल कुशल जनशक्ति तैयार करना चाहती है।

मिशन सुदर्शन चक्र का उद्देश्य भारत की रक्षा क्षमताओं को मजबूत बनाना है। इजराइल के आयरन डोम की तर्ज पर स्वदेशी वायु रक्षा प्रणाली विकसित करने का यह एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य है। इससे भारत की सामरिक स्वायत्तता में वृद्धि होगी और रक्षा आयात पर निर्भरता कम होगी।

स्वदेशी सेमीकंडक्टर चिप निर्माण का लक्ष्य भारत को डिजिटल युग में आत्मनिर्भर बनाना है। वर्तमान में भारत की सेमीकंडक्टर आवश्यकताओं का 95 प्रतिशत आयात होता है, जिससे देश की तकनीकी सुरक्षा खतरे में है।

महत्वपूर्ण जानकारी

पीएम विकसित भारत रोजगार योजना सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी रोजगार योजना है, जिसका लक्ष्य अगले दो वर्षों में 3.5 करोड़ नए रोजगार सृजित करना है। इस योजना के तहत नियोक्ताओं को प्रथम वर्ष में कर्मचारी के वेतन का 50 प्रतिशत और द्वितीय वर्ष में 25 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान की जाएगी।

योजना की विशेषताओं में कौशल विकास प्रशिक्षण, स्टार्टअप प्रोत्साहन, और ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम शामिल हैं। सरकार ने इस योजना के लिए प्रारंभिक तौर पर 2 लाख करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया है। योजना के तहत विशेष रूप से महिलाओं और दिव्यांगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है।

मिशन सुदर्शन चक्र 2035 तक पूर्ण होने वाली एक दीर्घकालिक परियोजना है। इस मिशन के तहत भारत अपनी स्वदेशी वायु रक्षा प्रणाली विकसित करेगा जो मल्टी-लेयर एयर डिफेंस की सुविधा प्रदान करेगी। यह प्रणाली विमानों, ड्रोन, मिसाइलों, और अन्य हवाई खतरों से सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम होगी।

इस मिशन के तहत इसरो, डीआरडीओ, और निजी रक्षा कंपनियों के बीच सहयोग बढ़ाया जाएगा। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल), भारत डायनामिक्स लिमिटेड (बीडीएल), और अन्य रक्षा पीएसयू इस परियोजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।

स्वदेशी सेमीकंडक्टर चिप का उत्पादन 2025 के अंत तक शुरू होने की उम्मीद है। यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी क्योंकि यह देश की पहली मेड इन इंडिया सेमीकंडक्टर चिप होगी। इस परियोजना के तहत गुजरात, कर्नाटक, और असम में फैब यूनिट्स स्थापित की जा रही हैं।

राष्ट्रीय गहरे पानी की खोज मिशन “समुद्र मंथन” के नाम से शुरू किया गया है। इस मिशन का उद्देश्य भारतीय समुद्री क्षेत्र में तेल, गैस, और खनिज संसाधनों की खोज करना है। भारत के पास 2.4 मिलियन वर्ग किलोमीटर का समुद्री क्षेत्र है, जिसमें अरबों डॉलर के संसाधन छुपे हुए हैं।

शिक्षा क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण घोषणाएं की गईं। नई शिक्षा नीति के तहत 2025 तक सभी स्कूलों में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराया जाएगा। उच्च शिक्षा में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए 500 नए अनुसंधान केंद्र स्थापित किए जाएंगे।

कृषि क्षेत्र के लिए “डिजिटल इंडिया फार्मिंग” योजना की घोषणा की गई। इस योजना के तहत किसानों को आधुनिक तकनीक, ड्रोन सेवा, और एआई-आधारित सलाह उपलब्ध कराई जाएगी। 2026 तक 10 करोड़ किसानों को इस योजना से जोड़ने का लक्ष्य है।

स्वच्छता और पर्यावरण के क्षेत्र में “स्वच्छ भारत 3.0” की शुरुआत की घोषणा की गई। इस चरण में फोकस अपशिष्ट प्रबंधन, रीसाइक्लिंग, और सर्कुलर इकॉनमी पर होगा। 2030 तक भारत को जीरो वेस्ट नेशन बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

महिला सशक्तिकरण के लिए “नारी शक्ति वंदन” योजना का विस्तार किया गया। इस योजना के तहत महिला उद्यमियों को बिना गारंटी के 50 लाख रुपये तक का लोन उपलब्ध कराया जाएगा। सभी जिलों में महिला बिजनेस हब स्थापित किए जाएंगे।

स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में “आयुष्मान भारत 2.0” की शुरुआत की घोषणा की गई। इस योजना के तहत कवरेज 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 25 लाख रुपये कर दी गई है। मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को भी इसमें शामिल किया गया है।

तथ्य तालिका

योजना/मिशनलक्ष्यबजटसमयसीमा
पीएम विकसित भारत रोजगार योजना3.5 करोड़ रोजगार₹2 लाख करोड़2027 तक
मिशन सुदर्शन चक्रस्वदेशी एयर डिफेंस₹1.5 लाख करोड़2035 तक
सेमीकंडक्टर चिप निर्माणमेड इन इंडिया चिप₹76,000 करोड़2025 अंत तक
समुद्र मंथन मिशनसमुद्री संसाधन खोज₹50,000 करोड़2030 तक
डिजिटल इंडिया फार्मिंग10 करोड़ किसान₹25,000 करोड़2026 तक
स्वच्छ भारत 3.0जीरो वेस्ट नेशन₹30,000 करोड़2030 तक
आयुष्मान भारत 2.025 लाख कवरेज₹75,000 करोड़तत्काल प्रभाव

निष्कर्ष

79वें स्वतंत्रता दिवस की घोषणाएं भारत के विकास यात्रा में एक नया अध्याय हैं। ये घोषणाएं दर्शाती हैं कि सरकार 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य के प्रति गंभीर है और इसके लिए ठोस कार्ययोजना तैयार कर रही है।

रोजगार सृजन पर विशेष फोकस भारत की युवा जनसंख्या के लिए एक सकारात्मक संकेत है। पीएम विकसित भारत रोजगार योजना से न केवल बेरोजगारी की समस्या का समाधान होगा, बल्कि कुशल जनशक्ति का विकास भी होगा।

मिशन सुदर्शन चक्र भारत की सामरिक स्वायत्तता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह दिखाता है कि भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के साथ-साथ तकनीकी श्रेष्ठता हासिल करने की दिशा में काम कर रहा है।

स्वदेशी सेमीकंडक्टर चिप का निर्माण भारत के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है। यह न केवल आयात निर्भरता कम करेगा, बल्कि भारत को वैश्विक तकनीकी लीडर बनने में भी मदद करेगा।

हालांकि, इन सभी योजनाओं की सफलता उनके सही क्रियान्वयन पर निर्भर करती है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि ये केवल घोषणाएं न रहें, बल्कि धरातल पर वास्तविक बदलाव लाएं।

यूपीएससी संबंधी वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1: पीएम विकसित भारत रोजगार योजना के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. इसका लक्ष्य अगले दो वर्षों में 3.5 करोड़ नए रोजगार सृजित करना है
  2. नियोक्ताओं को प्रथम वर्ष में कर्मचारी के वेतन का 50 प्रतिशत सब्सिडी मिलेगी
  3. इस योजना के लिए 2 लाख करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया है

उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3 सभी

उत्तर: d) 1, 2 और 3 सभी

प्रश्न 2: मिशन सुदर्शन चक्र किस वर्ष तक पूर्ण होने का लक्ष्य है?
a) 2030 तक
b) 2035 तक
c) 2040 तक
d) 2047 तक

उत्तर: b) 2035 तक

प्रश्न 3: राष्ट्रीय गहरे पानी की खोज मिशन का नाम क्या है?
a) सागर मंथन
b) समुद्र मंथन
c) जल मंथन
d) नील मंथन

उत्तर: b) समुद्र मंथन

प्रश्न 4: आयुष्मान भारत 2.0 के तहत कवरेज राशि बढ़ाकर कितनी कर दी गई है?
a) 15 लाख रुपये
b) 20 लाख रुपये
c) 25 लाख रुपये
d) 30 लाख रुपये

उत्तर: c) 25 लाख रुपये


जलकुंभी आक्रमण: भारतीय जल निकायों के लिए गंभीर पारिस्थितिकी चुनौती

समाचार में क्यों

हर मानसून के साथ भारत की नदियों, झीलों और बैकवाटर में जलकुंभी का आक्रमण एक गंभीर समस्या बन जाता है। यह सुंदर दिखने वाला जलीय पौधा भारत के जल निकायों और आजीविका पर विनाशकारी प्रभाव डाल रहा है। केरल का वेम्बनाड झील और कुट्टनाड क्षेत्र इस आक्रामक पौधे से सबसे अधिक प्रभावित है। 2025 के मानसून में भी इस समस्या की गंभीरता बढ़ी है और केंद्र सरकार ने इसके नियंत्रण के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना तैयार करने की घोषणा की है।

उद्देश्य

जलकुंभी नियंत्रण कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य भारत के जल पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा करना है। यह आक्रामक प्रजाति न केवल स्थानीय वनस्पति और जीव-जंतुओं को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि मछली पालन, कृषि, और पर्यटन जैसे आर्थिक क्षेत्रों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है।

इस समस्या के समाधान का प्राथमिक लक्ष्य जल परिवहन मार्गों को बहाल करना है। जलकुंभी के कारण नावों और बड़े जलयानों का आवागमन बाधित होता है, जिससे स्थानीय समुदायों की दैनिक आवश्यकताएं प्रभावित होती हैं। केरल के बैकवाटर में पर्यटन उद्योग को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

जल गुणवत्ता में सुधार भी इस कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है। जलकुंभी के अत्यधिक विकास से जल में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जिससे मछलियों और अन्य जलीय जीवों की मृत्यु हो जाती है। इससे जल में दुर्गंध और प्रदूषण की समस्या भी उत्पन्न होती है।

कृषि उत्पादकता की सुरक्षा भी एक प्रमुख लक्ष्य है। केरल के कुट्टनाड क्षेत्र में धान की खेती जलकुंभी के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है। यह क्षेत्र ‘केरल का धान का कटोरा’ कहलाता है और यहां की कृषि अर्थव्यवस्था इस आक्रमण से बुरी तरह प्रभावित है।

महत्वपूर्ण जानकारी

जलकुंभी (Eichhornia crassipes) मूलतः दक्षिण अमेरिका का पौधा है, जो 19वीं शताब्दी के अंत में भारत लाया गया था। प्रारंभ में इसे एक सजावटी पौधे के रूप में उगाया गया था, लेकिन अनुकूल जलवायु मिलने पर यह तेजी से फैलने लगा। आज यह दुनिया के दस सबसे हानिकारक आक्रामक पौधों में से एक माना जाता है।

भारत में जलकुंभी की समस्या सबसे पहले पश्चिम बंगाल में देखी गई थी, लेकिन अब यह देश के लगभग सभी राज्यों में फैल चुकी है। केरल, पश्चिम बंगाल, असम, उड़ीसा, और कर्नाटक इससे सबसे अधिक प्रभावित राज्य हैं। इसकी तीव्र वृद्धि दर के कारण यह मात्र 10-15 दिनों में अपना आकार दोगुना कर लेती है।

जलकुंभी का जैविक प्रभाव अत्यंत गंभीर है। यह जल की सतह पर मोटी परत बना देती है, जिससे सूर्य की रोशनी पानी के अंदर नहीं पहुंच पाती। इससे फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया बाधित होती है और जल में ऑक्सीजन की गंभीर कमी हो जाती है। परिणामस्वरूप मछलियां और अन्य जलीय जीव मर जाते हैं।

इसका आर्थिक प्रभाव भी व्यापक है। केरल के वेम्बनाड झील में मछली पकड़ने का व्यवसाय गंभीर संकट में है। स्थानीय मछुआरों के अनुसार, जलकुंभी के कारण उनकी आय 60-70 प्रतिशत तक कम हो गई है। पर्यटन उद्योग को भी भारी नुकसान हो रहा है क्योंकि हाउसबोट और अन्य जल परिवहन सेवाएं बाधित हो रही हैं।

कृषि पर प्रभाव भी चिंताजनक है। कुट्टनाड के धान के खेतों में जलकुंभी के कारण सिंचाई नालियां बंद हो जाती हैं। किसानों को फसल तक पहुंचने के लिए अतिरिक्त मेहनत और खर्च करना पड़ता है। कई बार तो पूरी फसल का नुकसान हो जाता है।

स्वास्थ्य पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। जलकुंभी के सड़ने से उत्पन्न दुर्गंध और प्रदूषण से स्थानीय समुदायों में श्वसन संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं। स्थिर पानी मच्छरों के प्रजनन के लिए उपयुक्त वातावरण बनाता है, जिससे मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

वर्तमान में जलकुंभी नियंत्रण के लिए मुख्यतः मैन्युअल हटाने की पद्धति अपनाई जा रही है। केरल सरकार हर साल करोड़ों रुपये इस कार्य पर खर्च करती है, लेकिन समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो पा रहा। हटाई गई जलकुंभी के निपटान की भी समस्या है क्योंकि इसमें भारी मात्रा में पानी होता है।

जैविक नियंत्रण के तरीकों पर भी काम चल रहा है। कुछ कीट और मछलियां जलकुंभी को खाती हैं, लेकिन भारतीय परिस्थितियों में इनकी प्रभावशीलता सीमित है। रासायनिक नियंत्रण का उपयोग पर्यावरणीय चिंताओं के कारण सीमित है।

हाल ही में कुछ सकारात्मक उपयोग की संभावनाएं भी सामने आई हैं। जलकुंभी से बायो-गैस, कंपोस्ट, और हस्तशिल्प सामग्री बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। कुछ स्थानों पर इसका उपयोग जैविक ईंधन के रूप में भी किया जा रहा है। हालांकि, ये प्रयास अभी भी प्रारंभिक चरण में हैं।

तथ्य तालिका

पहलूविवरणप्रभावसमाधान
मूल स्थानदक्षिण अमेरिकाआक्रामक प्रजातिआयात नियंत्रण
वृद्धि दर10-15 दिन में दोगुनातीव्र फैलावनियमित निगरानी
प्रभावित राज्यकेरल, बंगाल, असम, उड़ीसाव्यापक भौगोलिक क्षेत्रराष्ट्रीय कार्य योजना
आर्थिक नुकसानकरोड़ों रुपये वार्षिकमत्स्य पालन, कृषि, पर्यटनवैकल्पिक आजीविका
पारिस्थितिकी प्रभावऑक्सीजन कमी, मछली मृत्युजैव विविधता हानिपारिस्थितिकी पुनर्स्थापन
नियंत्रण लागतकेरल में ₹50 करोड़/वर्षसरकारी बजट पर भारलागत प्रभावी तकनीक
रोजगार प्रभाव60-70% आय में कमीसामाजिक-आर्थिक संकटकौशल विकास

निष्कर्ष

जलकुंभी आक्रमण भारत के लिए एक गंभीर पारिस्थितिकी और आर्थिक चुनौती है जिसके लिए तत्काल और दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता है। यह समस्या केवल पर्यावरणीय नहीं है, बल्कि लाखों लोगों की आजीविका और खाद्य सुरक्षा से जुड़ी हुई है।

समस्या की जटिलता इस बात में है कि जलकुंभी का पूर्ण उन्मूलन व्यावहारिक रूप से असंभव है। इसलिए नियंत्रण और प्रबंधन पर ध्यान देना आवश्यक है। इसके लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना होगा जिसमें यांत्रिक हटाव, जैविक नियंत्रण, और उत्पादक उपयोग शामिल हो।

सरकारी स्तर पर राष्ट्रीय जलकुंभी नियंत्रण कार्यक्रम की शुरुआत एक सकारात्मक कदम है। हालांकि, इसकी सफलता स्थानीय समुदायों की भागीदारी और वैज्ञानिक अनुसंधान पर निर्भर करती है। जलकुंभी के वैकल्पिक उपयोग को बढ़ावा देकर इस समस्या को आर्थिक अवसर में बदलने की संभावना है।

दीर्घकालिक समाधान के लिए जल निकायों की गुणवत्ता में सुधार, प्रदूषण नियंत्रण, और पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली पर काम करना होगा। केवल तत्काल हटाव से स्थायी समाधान संभव नहीं है।

यूपीएससी संबंधी वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1: जलकुंभी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. यह मूलतः दक्षिण अमेरिका का पौधा है
  2. यह 10-15 दिनों में अपना आकार दोगुना कर लेती है
  3. यह जल में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाती है

उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3 सभी

उत्तर: a) केवल 1 और 2

प्रश्न 2: जलकुंभी से सबसे अधिक प्रभावित केरल का क्षेत्र कौन सा है?
a) कोट्टयम झील
b) वेम्बनाड झील और कुट्टनाड क्षेत्र
c) पेरियार झील
d) अष्टमुडी झील

उत्तर: b) वेम्बनाड झील और कुट्टनाड क्षेत्र

प्रश्न 3: जलकुंभी के कारण होने वाले नुकसान में शामिल है:

  1. मत्स्य पालन में कमी
  2. कृषि उत्पादकता में गिरावट
  3. पर्यटन उद्योग पर प्रभाव
  4. जल परिवहन में बाधा

a) केवल 1, 2 और 3
b) केवल 1, 3 और 4
c) केवल 2, 3 और 4
d) 1, 2, 3 और 4 सभी

उत्तर: d) 1, 2, 3 और 4 सभी

प्रश्न 4: जलकुंभी आक्रमण की समस्या मुख्यतः किस मौसम में बढ़ जाती है?
a) गर्मियों में
b) सर्दियों में
c) मानसून के दौरान
d) पूरे साल समान रहती है

उत्तर: c) मानसून के दौरान


राष्ट्रीय खेल शासन विधेयक 2025: भारतीय खेल प्रशासन में क्रांतिकारी सुधार

समाचार में क्यों

संसद ने राष्ट्रीय खेल शासन विधेयक 2025 और राष्ट्रीय डोपिंग रोधी (संशोधन) विधेयक 2025 को पारित कर दिया है। यह विधेयक भारतीय खेल प्रशासन में पारदर्शिता, जवाबदेही और प्रभावशीलता लाने के लिए लाया गया है। इस विधेयक से खेल संघों के कामकाज में सुधार होगा और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। यह भारत में खेल संस्कृति को बढ़ावा देने और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर प्रदर्शन सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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उद्देश्य

राष्ट्रीय खेल शासन विधेयक 2025 का मुख्य उद्देश्य भारतीय खेल पारिस्थितिकी तंत्र में व्यापक सुधार लाना है। इस विधेयक के माध्यम से सरकार खेल संघों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता सुनिश्चित करना चाहती है। वर्तमान में कई खेल संघों में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और अकुशल प्रबंधन की समस्याएं हैं जो खिलाड़ियों के हितों को प्रभावित करती हैं।

इस विधेयक का उद्देश्य खिलाड़ियों के अधिकारों की सुरक्षा करना भी है। कई बार खेल संघों में राजनीति और व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को उचित अवसर नहीं मिल पाते। नए कानून से ऐसी समस्याओं का समाधान होगा और योग्यता के आधार पर चयन सुनिश्चित होगा।

खेल अवसंरचना के विकास और आधुनिकीकरण भी इस विधेयक के महत्वपूर्ण लक्ष्य हैं। भारत में खेल सुविधाओं की गुणवत्ता और पहुंच में सुधार की आवश्यकता है। नए कानून के तहत खेल अवसंरचना के लिए पर्याप्त धन आवंटन और उसके उपयोग की निगरानी सुनिश्चित की जाएगी।

युवाओं में खेल संस्कृति को बढ़ावा देना भी इस विधेयक का एक प्रमुख उद्देश्य है। स्कूल और कॉलेज स्तर पर खेल गतिविधियों को प्रोत्साहित करने और ग्रामीण क्षेत्रों में खेल पहुंचाने पर विशेष जोर दिया गया है। इससे प्रतिभा की पहचान और विकास में मदद मिलेगी।

महत्वपूर्ण जानकारी

राष्ट्रीय खेल शासन विधेयक 2025 के तहत केंद्र सरकार को राष्ट्रीय खेल बोर्ड (NSB) स्थापित करने का अधिकार दिया गया है। यह बोर्ड भारतीय खेल नीति का निर्माण करेगा और उसके कार्यान्वयन की निगरानी करेगा। बोर्ड में खिलाड़ी प्रतिनिधि, खेल प्रशासक, और विशेषज्ञ शामिल होंगे।

विधेयक की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण (National Sports Tribunal) की स्थापना है। इस न्यायाधिकरण को सिविल कोर्ट की शक्तियां प्राप्त होंगी और यह खेल संबंधी विवादों का शीघ्र निपटारा करेगा। परंपरागत न्यायिक प्रक्रिया में वर्षों लग जाते हैं, लेकिन विशेष न्यायाधिकरण से मामलों का तुरंत समाधान होगा।

विधेयक में मान्यता प्राप्त संस्थानों को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण बनाने का प्रावधान है, बशर्ते वे सरकारी अनुदान प्राप्त करते हों। इससे खेल संघों की वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित होगी और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण मिलेगा।

डोपिंग रोधी संशोधन विधेयक में राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (NADA) की शक्तियों में वृद्धि की गई है। अब NADA को अधिक व्यापक जांच अधिकार दिए गए हैं और डोपिंग के मामलों में सख्त कार्रवाई का प्रावधान किया गया है। इससे भारतीय खेलों की साख बेहतर होगी।

खिलाड़ी कल्याण कोष की स्थापना भी इस विधेयक की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। इस कोष से सेवानिवृत्त खिलाड़ियों को वित्तीय सहायता, स्वास्थ्य सेवा, और कैरियर परामर्श प्रदान किया जाएगा। अब तक कई पूर्व खिलाड़ियों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था।

महिला खिलाड़ियों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। खेल संघों में महिला प्रतिनिधित्व अनिवार्य कर दिया गया है और महिला खिलाड़ियों की सुरक्षा एवं सुविधाओं के लिए कड़े नियम बनाए गए हैं। यौन उत्पीड़न के मामलों के लिए शीघ्र न्याय की व्यवस्था की गई है।

ग्रामीण खेल विकास कार्यक्रम भी इस विधेयक का हिस्सा है। प्रत्येक जिले में कम से कम एक आधुनिक खेल परिसर स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है। पंचायत स्तर पर खेल समितियों का गठन किया जाएगा जो स्थानीय प्रतिभा की पहचान और विकास करेंगी।

कोचिंग और प्रशिक्षण के मानकों में भी सुधार किया गया है। अब सभी कोचों के लिए प्रमाणन अनिवार्य होगा और नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेना आवश्यक होगा। विदेशी कोचों की नियुक्ति के लिए भी स्पष्ट नियम बनाए गए हैं।

खेल विज्ञान और चिकित्सा सहायता पर भी विशेष जोर दिया गया है। प्रत्येक राष्ट्रीय खेल संघ में खेल विज्ञान विभाग स्थापित करना अनिवार्य कर दिया गया है। फिजियोथेरेपी, न्यूट्रिशन, और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था भी बेहतर की गई है।

वित्तीय प्रबंधन के नियम कड़े किए गए हैं। खेल संघों की ऑडिटिंग अनिवार्य कर दी गई है और सरकारी अनुदान के उपयोग की नियमित समीक्षा होगी। गलत खर्च के मामलों में कड़ी कार्रवाई का प्रावधान है।

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने के लिए भी नए नियम बनाए गए हैं। विदेशी खेल संघों के साथ समझौते करने और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने की प्रक्रिया को सरल बनाया गया है। इससे भारतीय खिलाड़ियों को बेहतर अवसर मिलेंगे।

तथ्य तालिका

विशेषताप्रावधानलाभकार्यान्वयन
राष्ट्रीय खेल बोर्डNSB की स्थापनानीति निर्माण और निगरानी6 महीने में
खेल न्यायाधिकरणसिविल कोर्ट की शक्तियांशीघ्र विवाद निपटारा1 वर्ष में
RTI का विस्तारअनुदान प्राप्त संस्थाएंवित्तीय पारदर्शितातत्काल प्रभाव
खिलाड़ी कल्याण कोषसेवानिवृत्त खिलाड़ियों की सहायताआर्थिक सुरक्षा2025-26 से
महिला प्रतिनिधित्वसंघों में अनिवार्य भागीदारीलैंगिक समानतातत्काल प्रभाव
ग्रामीण खेल विकासजिला स्तर पर खेल परिसरप्रतिभा विकास3 वर्ष में
कोच प्रमाणनअनिवार्य योग्यताप्रशिक्षण गुणवत्ता2 वर्ष में

निष्कर्ष

राष्ट्रीय खेल शासन विधेयक 2025 भारतीय खेल जगत के लिए एक ऐतिहासिक कदम है जो दशकों से चली आ रही समस्याओं का व्यापक समाधान प्रस्तुत करता है। यह विधेयक न केवल संरचनात्मक सुधार लाता है, बल्कि खिलाड़ियों के अधिकारों की सुरक्षा और उनके कल्याण को भी प्राथमिकता देता है।

राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण की स्थापना सबसे महत्वपूर्ण सुधार है क्योंकि यह खेल विवादों के शीघ्र निपटारे को सुनिश्चित करता है। अब खिलाड़ियों को न्याय के लिए वर्षों तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा। यह व्यवस्था अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुकूल है।

सूचना के अधिकार का विस्तार खेल संघों में पारदर्शिता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। अब जनता को पता चल सकेगा कि सरकारी पैसा कैसे खर्च किया जा रहा है। इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा।

महिला खिलाड़ियों के लिए विशेष प्रावधान भारतीय खेलों में लैंगिक समानता स्थापित करने में सहायक होंगे। हाल के वर्षों में महिला खिलाड़ियों ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है, और नए नियम उन्हें और भी बेहतर अवसर प्रदान करेंगे।

हालांकि, इस विधेयक की सफलता इसके प्रभावी कार्यान्वयन पर निर्भर करती है। केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर इसे लागू करना होगा। खेल संघों को भी इन बदलावों को स्वीकार करना होगा।

यूपीएससी संबंधी वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1: राष्ट्रीय खेल शासन विधेयक 2025 के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. इसके तहत राष्ट्रीय खेल बोर्ड की स्थापना का प्रावधान है
  2. राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण को सिविल कोर्ट की शक्तियां प्राप्त होंगी
  3. सरकारी अनुदान प्राप्त संस्थानों को RTI अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण बनाया गया है

उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3 सभी

उत्तर: d) 1, 2 और 3 सभी

प्रश्न 2: राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण का मुख्य उद्देश्य क्या है?
a) खेल नीति का निर्माण करना
b) खेल संबंधी विवादों का शीघ्र निपटारा करना
c) खिलाड़ियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना
d) कोचों की नियुक्ति करना

उत्तर: b) खेल संबंधी विवादों का शीघ्र निपटारा करना

प्रश्न 3: खिलाड़ी कल्याण कोष के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?
a) यह केवल सक्रिय खिलाड़ियों के लिए है
b) यह सेवानिवृत्त खिलाड़ियों को सहायता प्रदान करता है
c) यह केवल राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों के लिए है
d) यह केवल पुरुष खिलाड़ियों के लिए है

उत्तर: b) यह सेवानिवृत्त खिलाड़ियों को सहायता प्रदान करता है

प्रश्न 4: विधेयक में महिला खिलाड़ियों के लिए क्या विशेष प्रावधान किया गया है?
a) खेल संघों में महिला प्रतिनिधित्व अनिवार्य
b) महिलाओं के लिए अलग खेल न्यायाधिकरण
c) महिलाओं के लिए अधिक वेतन
d) महिलाओं के लिए आरक्षण

उत्तर: a) खेल संघों में महिला प्रतिनिधित्व अनिवार्य


विश्व एथलेटिक्स महिला श्रेणी नए पात्रता नियम: लैंगिक समानता और खेल निष्पक्षता का मुद्दा

समाचार में क्यों

वर्ल्ड एथलेटिक्स ने महिला श्रेणी में प्रतिस्पर्धा के लिए नए पात्रता नियम अनुमोदित किए हैं, जो 1 सितंबर 2025 से प्रभावी होंगे। इन नए नियमों के तहत सितंबर 2025 में टोक्यो में होने वाली विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भाग लेने वाली भारतीय महिला एथलीटों को SRY जीन टेस्टिंग से गुजरना होगा। यह निर्णय खेल जगत में लैंगिक पहचान और निष्पक्षता के बहसपूर्ण मुद्दे को लेकर लिया गया है।

उद्देश्य

विश्व एथलेटिक्स के नए पात्रता नियमों का मुख्य उद्देश्य महिला खेलों में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करना है। यह नियम विशेष रूप से उन एथलीटों के लिए बनाए गए हैं जिनमें प्राकृतिक रूप से उच्च टेस्टोस्टेरोन स्तर या DSD (Differences of Sexual Development) की स्थिति हो सकती है। संगठन का मानना है कि यह महिला एथलीटों के लिए समान अवसर प्रदान करने में सहायक होगा।

इन नियमों का उद्देश्य वैज्ञानिक आधार पर खेल श्रेणियों की स्पष्टता लाना भी है। पारंपरिक रूप से खेलों में पुरुष और महिला श्रेणियों का विभाजन शारीरिक क्षमताओं के आधार पर किया जाता रहा है। हालांकि, आधुनिक वैज्ञानिक समझ के साथ यह मुद्दा अधिक जटिल हो गया है।

महिला एथलेटिक्स की सुरक्षा और बढ़ावा देना भी इन नियमों का एक प्रमुख लक्ष्य है। कई देशों में महिला खिलाड़ियों को पहले से ही कम अवसर मिलते हैं, और संगठन का मानना है कि निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा से महिला खेलों की लोकप्रियता बढ़ेगी।

अंतर्राष्ट्रीय खेल मानकों में एकरूपता लाना भी इस पहल का उद्देश्य है। विभिन्न खेल संघों में अलग-अलग नियम होने से भ्रम और विवाद उत्पन्न होते हैं। वर्ल्ड एथलेटिक्स चाहता है कि अन्य खेल संघ भी इसी दिशा में कदम उठाएं।

महत्वपूर्ण जानकारी

SRY (Sex-determining Region Y) जीन टेस्टिंग एक आनुवंशिक परीक्षण है जो Y क्रोमोसोम की उपस्थिति का पता लगाता है। यह जीन सामान्यतः पुरुषों में पाया जाता है और यह शुक्राणु निर्माण और पुरुष हार्मोन के उत्पादन को नियंत्रित करता है। नए नियमों के अनुसार, महिला श्रेणी में प्रतिस्पर्धा करने वाली एथलीटों में यह जीन नहीं होना चाहिए।

इन नियमों का प्रभाव विशेष रूप से मध्य दूरी की दौड़ (400 मीटर से 1 मील तक) में अधिक होगा। इस श्रेणी में टेस्टोस्टेरोन के स्तर का सबसे अधिक प्रभाव माना जाता है। लंबी दूरी की दौड़ और फील्ड इवेंट्स में यह प्रभाव कम होता है।

भारतीय संदर्भ में यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में पारंपरिक रूप से लैंगिक पहचान और यौन विविधता के मुद्दे जटिल सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं से जुड़े हैं। भारतीय समाज में हिजड़ा समुदाय की मान्यता है, लेकिन खेल जगत में इस विविधता को समझना चुनौतीपूर्ण है।

वैश्विक स्तर पर इन नियमों को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं आई हैं। मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि यह नियम भेदभावपूर्ण हैं और एथलीटों की निजता का हनन करते हैं। दूसरी ओर, कई महिला एथलीट इन नियमों का समर्थन कर रही हैं क्योंकि उनका मानना है कि यह निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करता है।

कानूनी चुनौतियां भी सामने आई हैं। यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय में कई मामले दायर किए गए हैं। कैस्टर सेमेन्या का मामला सबसे प्रसिद्ध है, जिन्होंने इन नियमों को चुनौती दी थी लेकिन न्यायालय ने वर्ल्ड एथलेटिक्स के पक्ष में फैसला सुनाया था।

चिकित्सा समुदाय में भी इस मुद्दे पर मतभेद हैं। कुछ डॉक्टरों का मानना है कि जैविक पुरुष लाभ अपरिवर्तनीय है, जबकि अन्य का कहना है कि हार्मोन थेरेपी से यह लाभ कम हो सकता है। वैज्ञानिक समुदाय अभी भी इस विषय पर शोध कर रहा है।

भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) और एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (AFI) ने इन नए नियमों का समर्थन किया है। उनका कहना है कि यह भारतीय महिला एथलीटों के हितों की सुरक्षा करेगा। हालांकि, वे यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि परीक्षण प्रक्रिया में एथलीटों की गरिमा का सम्मान हो।

कोचिंग और प्रशिक्षण के स्तर पर भी बदलाव की आवश्यकता है। कोचों को इन नए नियमों के बारे में शिक्षित किया जा रहा है ताकि वे एथलीटों को सही मार्गदर्शन दे सकें। मानसिक स्वास्थ्य सहायता भी उपलब्ध कराई जा रही है।

अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) ने अभी तक इन नियमों को अपनाने से इनकार कर दिया है। पेरिस 2024 ओलंपिक में पुराने नियम लागू रहे, लेकिन लॉस एंजेलिस 2028 के लिए नीति स्पष्ट नहीं है। यह स्थिति एथलीटों के लिए अनिश्चितता पैदा कर रही है।

निजता और डेटा सुरक्षा के मुद्दे भी महत्वपूर्ण हैं। जेनेटिक टेस्टिंग के परिणाम अत्यंत संवेदनशील जानकारी हैं और इनके दुरुपयोग की संभावना है। वर्ल्ड एथलेटिक्स ने डेटा सुरक्षा के लिए कड़े नियम बनाए हैं।

तथ्य तालिका

पहलूविवरणप्रभावचुनौती
प्रभावी तिथि1 सितंबर 2025तत्काल अनुपालन आवश्यकतैयारी का समय कम
परीक्षण प्रकारSRY जीन टेस्टिंगआनुवंशिक पहचाननिजता की चिंता
प्रभावित इवेंट्स400m से 1 मील तकमध्य दूरी धावकों पर फोकसविशिष्ट तैयारी आवश्यक
कानूनी स्थितियूरोपीय न्यायालय समर्थननीति की वैधतामानवाधिकार मुद्दे
IOC की स्थितिअभी तक असहमतिओलंपिक नियम अलगनीतिगत भ्रम
भारतीय स्थितिSAI/AFI का समर्थनराष्ट्रीय नीति तैयारसामाजिक स्वीकार्यता
लागतप्रति टेस्ट $200-500वित्तीय बोझसंसाधन आवंटन

निष्कर्ष

विश्व एथलेटिक्स के नए पात्रता नियम एक जटिल और विवादास्पद मुद्दे का प्रतिनिधित्व करते हैं जो खेल की निष्पक्षता, लैंगिक समानता, और मानवाधिकारों के बीच संतुलन बनाने की चुनौती प्रस्तुत करता है। यह निर्णय केवल एथलेटिक्स तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज में लैंगिक पहचान और समानता की व्यापक बहस का हिस्सा है।

भारतीय एथलीटों के लिए यह नियम नई चुनौतियां लेकर आता है, लेकिन साथ ही यह स्पष्टता भी प्रदान करता है। भारतीय खेल प्राधिकरणों को यह सुनिश्चित करना होगा कि परीक्षण प्रक्रिया संवेदनशील और गरिमापूर्ण तरीके से की जाए।

वैज्ञानिक समुदाय को इस विषय पर और अधिक शोध करने की आवश्यकता है। वर्तमान में उपलब्ध डेटा सीमित है और अधिक व्यापक अध्ययन की आवश्यकता है। साथ ही, समाज को भी लैंगिक विविधता और खेल में समानता के मुद्दों पर अधिक खुले दिमाग से सोचना होगा।

दीर्घकालिक दृष्टि से, यह महत्वपूर्ण है कि खेल जगत में ऐसी नीतियां बनाई जाएं जो सभी एथलीटों के साथ न्याय करें। यह केवल जीतने या हारने का मामला नहीं है, बल्कि मानवीय गरिमा और सम्मान का मुद्दा है।

यूपीएससी संबंधी वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1: विश्व एथलेटिक्स के नए पात्रता नियमों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. ये नियम 1 सितंबर 2025 से प्रभावी होंगे
  2. SRY जीन टेस्टिंग अनिवार्य कर दी गई है
  3. ये नियम सभी एथलेटिक्स इवेंट्स पर समान रूप से लागू होते हैं

उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3 सभी

उत्तर: a) केवल 1 और 2

प्रश्न 2: SRY जीन टेस्टिंग क्या है?
a) हार्मोन स्तर मापने का परीक्षण
b) Y क्रोमोसोम की उपस्थिति का पता लगाने वाला आनुवंशिक परीक्षण
c) शारीरिक क्षमता मापने का परीक्षण
d) रक्त में प्रोटीन स्तर का परीक्षण

उत्तर: b) Y क्रोमोसोम की उपस्थिति का पता लगाने वाला आनुवंशिक परीक्षण

प्रश्न 3: नए नियमों का सबसे अधिक प्रभाव किस प्रकार के इवेंट्स पर होगा?
a) स्प्रिंट इवेंट्स (100m, 200m)
b) मध्य दूरी की दौड़ (400m से 1 मील तक)
c) लंबी दूरी की दौड़ (मैराथन)
d) फील्ड इवेंट्स (जैवलिन, शॉटपुट)

उत्तर: b) मध्य दूरी की दौड़ (400m से 1 मील तक)

प्रश्न 4: अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) की इन नियमों पर क्या स्थिति है?
a) पूर्ण समर्थन
b) सशर्त समर्थन
c) अभी तक असहमति
d) कोई स्पष्ट स्थिति नहीं

उत्तर: c) अभी तक असहमति


न्यायिक नियुक्ति कॉलेजियम प्रणाली: न्यायपालिका की स्वतंत्रता और पारदर्शिता का मुद्दा

समाचार में क्यों

भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई ने स्पष्ट किया है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम हाई कोर्ट कॉलेजिया को न्यायिक नियुक्तियों के लिए नाम तय नहीं कर सकता। यह बयान न्यायिक नियुक्ति प्रक्रिया में कॉलेजियम प्रणाली के कामकाज, स्वायत्तता और पारदर्शिता को लेकर चल रही बहस के बीच आया है। यह मुद्दा न्यायपालिका की संरचना और उसकी स्वतंत्रता के साथ-साथ लोकतांत्रिक जवाबदेही के सिद्धांतों से भी जुड़ा हुआ है।

उद्देश्य

कॉलेजियम प्रणाली का मूल उद्देश्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना है। यह व्यवस्था न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका के हस्तक्षेप को रोकने के लिए बनाई गई थी। भारतीय संविधान के निर्माताओं ने न्यायपालिका को विधायिका और कार्यपालिका से अलग और स्वतंत्र रखने की परिकल्पना की थी।

इस प्रणाली का लक्ष्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में योग्यता और अनुभव को प्राथमिकता देना है। कॉलेजियम न्यायाधीशों के कानूनी ज्ञान, व्यावहारिक अनुभव, न्यायिक आचरण और व्यक्तिगत अखंडता के आधार पर निर्णय लेता है। यह राजनीतिक दबाव और व्यक्तिगत पक्षपात को कम करने का प्रयास करता है।

संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सिद्धांत अनुच्छेद 50 में निर्देशक तत्वों के रूप में दिया गया है। इसके अनुसार राज्य का दायित्व है कि वह न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग रखे। कॉलेजियम प्रणाली इसी संवैधानिक दायित्व को पूरा करने का एक साधन है।

न्यायिक समीक्षा की शक्ति को बनाए रखना भी इस प्रणाली का महत्वपूर्ण उद्देश्य है। अगर न्यायाधीशों की नियुक्ति कार्यपालिका करे तो वे सरकारी नीतियों की न्यायिक समीक्षा में हिचकिचा सकते हैं। स्वतंत्र नियुक्ति प्रक्रिया से न्यायाधीश निष्पक्ष रूप से संविधान और कानून की रक्षा कर सकते हैं।

महत्वपूर्ण जानकारी

कॉलेजियम प्रणाली का विकास सुप्रीम कोर्ट के तीन ऐतिहासिक फैसलों से हुआ है। पहला फैसला 1981 में एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ मामले में आया, जिसे प्रथम न्यायाधीश मामला कहते हैं। इस मामले में न्यायालय ने कहा था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश की राय बाध्यकारी नहीं है।

1993 में द्वितीय न्यायाधीश मामला में सुप्रीम कोर्ट ने अपना पहले का फैसला बदलते हुए कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश की राय प्रधान होगी। यहीं से कॉलेजियम प्रणाली की नींव पड़ी। न्यायालय ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश अपनी राय बनाते समय सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ न्यायाधीशों से सलाह लेंगे।

1998 में तृतीय न्यायाधीश मामला में कॉलेजियम प्रणाली को अपने वर्तमान स्वरूप में स्थापित किया गया। इसके तहत सुप्रीम कोर्ट की नियुक्तियों के लिए मुख्य न्यायाधीश और चार वरिष्ठ न्यायाधीशों का कॉलेजियम बनाया गया। हाई कोर्ट की नियुक्तियों के लिए मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठ न्यायाधीशों का कॉलेजियम गठित हुआ।

वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में भारत के मुख्य न्यायाधीश और चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। हाई कोर्ट कॉलेजियम में संबंधित हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठ न्यायाधीश होते हैं। ट्रांसफर के मामलों में सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम निर्णय लेता है।

हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम करता है। अन्य हाई कोर्ट न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए हाई कोर्ट कॉलेजियम सिफारिश करता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की मंजूरी चाहिए होती है। यह एक जटिल और समयगत प्रक्रिया है।

कॉलेजियम प्रणाली की आलोचनाएं भी हैं। मुख्य आलोचना पारदर्शिता की कमी है। कॉलेजियम अपनी बैठकों का कोई रिकॉर्ड सार्वजनिक नहीं करता और निर्णयों के कारण स्पष्ट नहीं होते। यह “न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति” की आलोचना को जन्म देता है।

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) 2014 में इसी समस्या के समाधान के लिए बनाया गया था। इसमें न्यायाधीशों के साथ-साथ कार्यपालिका और सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि शामिल थे। हालांकि, 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया और कॉलेजियम प्रणाली बहाल कर दी।

न्यायिक नियुक्तियों में देरी एक गंभीर समस्या है। कई पद महीनों तक खाली रहते हैं जिससे न्याय व्यवस्था पर भार बढ़ता है। सरकार और कॉलेजियम के बीच कई बार नाम वापस भेजने का मसला उठता है। यह न्यायिक कार्यप्रणाली को धीमा कर देता है।

हाल के वर्षों में कॉलेजियम ने अपनी कार्यप्रणाली में सुधार के प्रयास किए हैं। अब निर्णयों के संक्षिप्त कारण सार्वजनिक किए जाते हैं। वेबसाइट पर नियुक्ति और स्थानांतरण की जानकारी उपलब्ध कराई जाती है। फिर भी पूर्ण पारदर्शिता अभी भी एक लक्ष्य है।

तथ्य तालिका

पहलूविवरणसंरचनाचुनौती
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियमCJI + 4 वरिष्ठ न्यायाधीशSC नियुक्तियांपारदर्शिता की कमी
हाई कोर्ट कॉलेजियमCJ + 2 वरिष्ठ न्यायाधीशHC नियुक्तियांकेंद्रीकृत नियंत्रण
ऐतिहासिक मामले1981, 1993, 1998तीन चरणकानूनी विकास
NJAC का भाग्य2015 में निरस्तवैकल्पिक मॉडलसंवैधानिक बाधा
नियुक्ति प्रक्रियाबहु-स्तरीयजटिल प्रणालीसमय की देरी
खाली पद400+ (अनुमानित)न्यायिक संकटतत्काल भर्ती
सुधार प्रयासआंशिक पारदर्शितावेबसाइट प्रकाशनअपूर्ण प्रकटीकरण

निष्कर्ष

न्यायिक नियुक्ति कॉलेजियम प्रणाली भारतीय लोकतंत्र का एक जटिल लेकिन महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने का एक प्रयास है, लेकिन साथ ही यह पारदर्शिता और जवाबदेही के सवाल भी खड़े करती है। मुख्य न्यायाधीश गवई का यह स्पष्टीकरण दर्शाता है कि कॉलेजियम प्रणाली के भीतर भी शक्तियों का विकेंद्रीकरण है।

आदर्श स्थिति यह होगी कि न्यायिक नियुक्तियां पूर्णतः योग्यता के आधार पर हों, राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त हों, और पारदर्शी प्रक्रिया से हों। कॉलेजियम प्रणाली इन लक्ष्यों को कुछ हद तक पूरा करती है लेकिन सुधार की गुंजाइश है।

भविष्य में इस प्रणाली में और अधिक पारदर्शिता लाने, नियुक्ति प्रक्रिया को तेज़ करने, और सार्वजनिक भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता है। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता किसी भी सुधार से समझौता न हो।

अंततः, न्यायिक नियुक्ति प्रणाली का मूल्यांकन इस आधार पर करना चाहिए कि यह कितनी प्रभावी रूप से योग्य, निष्पक्ष और स्वतंत्र न्यायाधीश देती है। कॉलेजियम प्रणाली इस दिशा में एक कदम है, लेकिन यात्रा अभी पूरी नहीं हुई है।

यूपीएससी संबंधी वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1: कॉलेजियम प्रणाली के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. यह सुप्रीम कोर्ट के तीन ऐतिहासिक फैसलों से विकसित हुई है
  2. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में मुख्य न्यायाधीश और चार वरिष्ठ न्यायाधीश शामिल होते हैं
  3. राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को 2015 में असंवैधानिक घोषित कर दिया गया

उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3 सभी

उत्तर: d) 1, 2 और 3 सभी

प्रश्न 2: द्वितीय न्यायाधीश मामला किस वर्ष में आया था?
a) 1981 में
b) 1993 में
c) 1998 में
d) 2014 में

उत्तर: b) 1993 में

प्रश्न 3: हाई कोर्ट कॉलेजियम में कौन शामिल होता है?
a) संबंधित हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश और चार वरिष्ठ न्यायाधीश
b) संबंधित हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठ न्यायाधीश
c) केवल हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश
d) सभी हाई कोर्ट के न्यायाधीश

उत्तर: b) संबंधित हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठ न्यायाधीश

प्रश्न 4: कॉलेजियम प्रणाली की मुख्य आलोचना क्या है?
a) न्यायाधीशों की अयोग्यता
b) पारदर्शिता की कमी
c) अत्यधिक हस्तक्षेप
d) संवैधानिक वैधता का अभाव

उत्तर: b) पारदर्शिता की कमी


जम्मू-कश्मीर में बादल फटने की घटना: प्राकृतिक आपदा प्रबंधन की चुनौती

समाचार में क्यों

हाल ही में जम्मू-कश्मीर के किश्तवार जिले के एक दूरदराज के पहाड़ी गांव में बादल फटने की घटना हुई है, जिसके कारण भारी नुकसान हुआ है। इस घटना में 30 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई है और कई अन्य घायल हुए हैं। यह घटना हिमालयी क्षेत्र में बढ़ती चरम मौसमी घटनाओं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को दर्शाती है। भारत में बादल फटने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं और इससे पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है।

उद्देश्य

बादल फटने की घटनाओं के अध्ययन और प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य जीवन और संपत्ति की हानि को कम करना है। हिमालयी क्षेत्र में इन घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति के कारण एक व्यापक आपदा प्रबंधन रणनीति की आवश्यकता है। सरकार का लक्ष्य पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करना और स्थानीय समुदायों को इन आपदाओं के लिए तैयार करना है।

प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का विकास इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण कदम है। आधुनिक मौसम विज्ञान तकनीक और सैटेलाइट डेटा का उपयोग करके बादल फटने की संभावना का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। हालांकि यह अभी भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, लेकिन तकनीकी प्रगति से इसमें सुधार हो रहा है।

आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र को मजबूत बनाना भी एक प्रमुख उद्देश्य है। दूरदराज के पहाड़ी क्षेत्रों में बचाव कार्य चुनौतीपूर्ण होता है। इसके लिए विशेष प्रशिक्षित बचाव दल, उपकरण और तत्काल चिकित्सा सहायता की व्यवस्था आवश्यक है।

स्थानीय समुदायों की क्षमता निर्माण भी महत्वपूर्ण है। पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को बादल फटने के संकेतों को पहचानना और उससे बचने के तरीकों की जानकारी देना आवश्यक है। परंपरागत ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के मेल से बेहतर आपदा तैयारी संभव है।

महत्वपूर्ण जानकारी

बादल फटना एक चरम मौसमी घटना है जिसमें बहुत कम समय में अत्यधिक वर्षा होती है। वैज्ञानिक परिभाषा के अनुसार, जब एक घंटे में 100 मिलीमीटर से अधिक वर्षा हो तो इसे बादल फटना कहते हैं। यह घटना आमतौर पर 20-30 वर्ग किलोमीटर के छोटे क्षेत्र में होती है और इसकी अवधि 30 मिनट से 1 घंटे तक होती है।

हिमालयी क्षेत्र में बादल फटने की घटनाएं विशेष भौगोलिक और मौसमी कारणों से होती हैं। तीव्र ऊंचाई परिवर्तन, पहाड़ी ढलान, और मानसूनी हवाओं का टकराव इस घटना के प्रमुख कारक हैं। जब गर्म और नम हवा पहाड़ी ढलानों से टकराकर तेजी से ऊपर उठती है, तो घने बादल बनते हैं जो अचानक फट जाते हैं।

किश्तवार जिले की हालिया घटना में स्थानीय गांव के लगभग 50 घर पूरी तरह बह गए और कृषि भूमि का भारी नुकसान हुआ। यह क्षेत्र पहले भी ऐसी घटनाओं का शिकार हो चुका है। 2021 में इसी क्षेत्र में हुई समान घटना में भी जान-माल का भारी नुकसान हुआ था।

भारत में बादल फटने की घटनाओं का विश्लेषण दर्शाता है कि पिछले दो दशकों में इनकी आवृत्ति में वृद्धि हुई है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्य सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र हैं। केदारनाथ (2013), कश्मीर बाढ़ (2014), और उत्तराखंड बाढ़ (2021) जैसी घटनाओं में बादल फटने की महत्वपूर्ण भूमिका थी।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव इन घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। बढ़ते तापमान से वायुमंडल की नमी धारण करने की क्षमता बढ़ जाती है, जिससे चरम वर्षा की घटनाएं अधिक तीव्र होती हैं। हिमालयी हिमनदों के पिघलने से भी स्थानीय मौसम पैटर्न प्रभावित हो रहे हैं।

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भारत सरकार ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए कई पहल की हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने बादल फटने के लिए विशेष दिशानिर्देश जारी किए हैं। भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने चरम मौसम की पूर्व चेतावनी प्रणाली में सुधार किया है।

डॉप्लर रडार नेटवर्क का विस्तार किया गया है जो तीव्र मौसमी घटनाओं की बेहतर निगरानी में सहायक है। सैटेलाइट आधारित निगरानी प्रणाली से वास्तविक समय में बादलों की गतिविधि का अवलोकन किया जाता है। हालांकि, स्थानीय और अल्पकालिक घटनाओं का पूर्वानुमान अभी भी चुनौतीपूर्ण है।

आपदा रोधी बुनियादी ढांचे के विकास पर भी ध्यान दिया जा रहा है। पहाड़ी क्षेत्रों में बाढ़ नियंत्रण संरचनाएं, बेहतर जल निकासी व्यवस्था, और मजबूत भवन निर्माण मानक अपनाए जा रहे हैं। स्थानीय स्तर पर आपातकालीन तैयारी योजनाएं बनाई जा रही हैं।

सामुदायिक स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। स्कूलों और कॉलेजों में आपदा प्रबंधन शिक्षा शामिल की गई है। स्थानीय नेताओं और आपदा स्वयंसेवकों का प्रशिक्षण किया जा रहा है।

अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में भी प्रगति हो रही है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन बादल फटने की भविष्यवाणी में सुधार के लिए काम कर रहे हैं। कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग तकनीकों का उपयोग भी किया जा रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी महत्वपूर्ण है। भारत नेपाल, भूटान और चीन के साथ हिमालयी मौसम की जानकारी साझा करता है। विश्व मौसम संगठन और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों से तकनीकी सहयोग भी लिया जा रहा है।

तथ्य तालिका

पहलूविवरणप्रभावसमाधान
घटना स्थलकिश्तवार, जम्मू-कश्मीर30+ मृत्यु, घर नष्टतत्काल बचाव कार्य
वैज्ञानिक परिभाषा100mm/घंटा वर्षाचरम मौसम घटनापूर्व चेतावनी तंत्र
प्रभावित क्षेत्र20-30 वर्ग किमीस्थानीयकृत नुकसानलक्षित सुरक्षा उपाय
घटना अवधि30 मिनट – 1 घंटातत्काल विनाशत्वरित प्रतिक्रिया
मुख्य कारकपहाड़ी ढलान, मानसूनभौगोलिक संवेदनशीलताभू-उपयोग नियोजन
बढ़ती आवृत्तिपिछले 20 वर्षों में वृद्धिजलवायु परिवर्तन प्रभावशमन रणनीति
तकनीकी सहायताडॉप्लर रडार, सैटेलाइटबेहतर निगरानीAI आधारित पूर्वानुमान

निष्कर्ष

जम्मू-कश्मीर में बादल फटने की घटना भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में बढ़ते मौसमी जोखिमों का एक दुखद उदाहरण है। यह घटना जलवायु परिवर्तन के स्थानीय प्रभावों और आपदा तैयारी की चुनौतियों को उजागर करती है। हिमालयी क्षेत्र की भौगोलिक संवेदनशीलता और बढ़ती जनसंख्या के कारण ये घटनाएं और भी चिंताजनक हो गई हैं।

इस समस्या का समाधान बहुआयामी दृष्टिकोण में निहित है। तकनीकी सुधार, सामुदायिक तैयारी, और नीतिगत हस्तक्षेप के संयोजन से ही प्रभावी परिणाम मिल सकते हैं। पूर्व चेतावनी प्रणाली में सुधार और स्थानीय समुदायों की क्षमता निर्माण दो सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं।

दीर्घकालिक समाधान के लिए जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन दोनों पर काम करना आवश्यक है। पहाड़ी क्षेत्रों में सतत विकास मॉडल अपनाना होगा जो पर्यावरणीय संरक्षण और आर्थिक आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाए।

सरकारी स्तर पर आपदा प्रबंधन में निवेश बढ़ाना और अनुसंधान को प्रोत्साहित करना जरूरी है। स्थानीय समुदायों को आत्मनिर्भर बनाना और उनकी परंपरागत ज्ञान प्रणाली का सदुपयोग करना भी महत्वपूर्ण है। केवल एक समग्र दृष्टिकोण से ही इन प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम किया जा सकता है।

यूपीएससी संबंधी वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1: बादल फटने की वैज्ञानिक परिभाषा के अनुसार कितनी वर्षा होनी चाहिए?
a) 50 मिलीमीटर प्रति घंटा
b) 75 मिलीमीटर प्रति घंटा
c) 100 मिलीमीटर प्रति घंटा
d) 125 मिलीमीटर प्रति घंटा

उत्तर: c) 100 मिलीमीटर प्रति घंटा

प्रश्न 2: बादल फटने की घटनाओं के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. यह घटना आमतौर पर 20-30 वर्ग किलोमीटर के छोटे क्षेत्र में होती है
  2. इसकी अवधि सामान्यतः 30 मिनट से 1 घंटे तक होती है
  3. हिमालयी क्षेत्र में इन घटनाओं की आवृत्ति पिछले दो दशकों में घटी है

उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3 सभी

उत्तर: a) केवल 1 और 2

प्रश्न 3: भारत में बादल फटने से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र कौन से हैं?

  1. उत्तराखंड
  2. हिमाचल प्रदेश
  3. जम्मू-कश्मीर
  4. पूर्वोत्तर राज्य

a) केवल 1, 2 और 3
b) केवल 1, 3 और 4
c) केवल 2, 3 और 4
d) 1, 2, 3 और 4 सभी

उत्तर: d) 1, 2, 3 और 4 सभी

प्रश्न 4: बादल फटने की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति का मुख्य कारण क्या माना जाता है?
a) वनों की कटाई
b) जलवायु परिवर्तन
c) शहरीकरण
d) औद्योगीकरण

उत्तर: b) जलवायु परिवर्तन


ओसीआई कार्ड नियम विस्तार: प्रवासी भारतीयों के लिए नई चुनौतियां

समाचार में क्यों

गृह मंत्रालय ने ओवरसीज सिटिज़न ऑफ इंडिया (OCI) कार्ड रद्द करने के नियमों का विस्तार किया है। नए नियमों के अनुसार, अब OCI कार्ड रद्द किया जा सकता है यदि धारक को 2 साल या अधिक की कारावास की सजा मिली हो, या 7 साल या अधिक की सजा वाले अपराधों के लिए चार्जशीट दायर की गई हो। यह परिवर्तन नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 7D के खंड (da) के तहत किया गया है। यह नीतिगत बदलाव लगभग 1.8 करोड़ प्रवासी भारतीयों को प्रभावित कर सकता है।

उद्देश्य

ओसीआई कार्ड नियमों में विस्तार का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून व्यवस्था को मजबूत बनाना है। सरकार का मानना है कि जो व्यक्ति गंभीर अपराधों में शामिल हैं, उन्हें भारत के साथ विशेष संबंध रखने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए। OCI कार्ड धारकों को भारतीय नागरिकों के समान कई सुविधाएं मिलती हैं, इसलिए इसका दुरुपयोग रोकना आवश्यक है।

अपराधिक तत्वों पर नियंत्रण रखना भी इस नीति का एक प्रमुख लक्ष्य है। कुछ मामलों में OCI कार्ड धारक अवैध गतिविधियों में संलिप्त पाए गए हैं। नए नियमों से ऐसे लोगों पर कार्रवाई करना आसान हो जाएगा और भविष्य में दूसरे लोगों के लिए एक संदेश भी जाएगा।

प्रवासी भारतीय समुदाय की छवि की सुरक्षा भी इस पहल का उद्देश्य है। अधिकांश OCI कार्ड धारक कानून का पालन करने वाले सम्मानजनक नागरिक हैं। कुछ गलत तत्वों के कारण पूरे समुदाय की छवि धूमिल नहीं होनी चाहिए। सख्त नियमों से समुदाय की साख बनी रहेगी।

भारत की कानूनी प्रणाली का सम्मान सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है। OCI कार्ड धारकों को यह संदेश देना आवश्यक है कि वे भारत में या विदेश में रहते हुए भी कानून के दायरे में हैं। यह उन्हें जिम्मेदार व्यवहार के लिए प्रेरित करेगा।

महत्वपूर्ण जानकारी

ओवरसीज सिटिज़न ऑफ इंडिया (OCI) योजना 2005 में शुरू की गई थी। यह उन व्यक्तियों के लिए बनाई गई जो भारतीय मूल के हैं लेकिन अन्य देशों की नागरिकता ले चुके हैं। वर्तमान में विश्वभर में लगभग 1.8 करोड़ लोगों के पास OCI कार्ड है। यह संख्या लगातार बढ़ रही है क्योंकि अधिक से अधिक भारतीय विदेशों में बसकर वहां की नागरिकता ले रहे हैं।

OCI कार्ड धारकों को कई महत्वपूर्ण सुविधाएं मिलती हैं। उन्हें भारत में बिना वीजा के जीवनभर आने-जाने की सुविधा होती है। वे भारत में अचल संपत्ति खरीद सकते हैं और व्यापार कर सकते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी उन्हें घरेलू छात्रों के समान अधिकार मिलते हैं। हालांकि, वे वोट नहीं दे सकते और सरकारी नौकरी नहीं कर सकते।

नए नियमों के अनुसार, OCI कार्ड रद्द करने के कारणों में विस्तार हुआ है। पहले केवल राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, और नैतिकता के आधार पर कार्ड रद्द किया जा सकता था। अब आपराधिक गतिविधियों के लिए भी कार्ड रद्द किया जा सकता है। यह परिवर्तन कानून की गंभीरता को दर्शाता है।

दो साल या अधिक की कारावास की सजा का प्रावधान व्यापक है। इसमें भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, हिंसा, और अन्य गंभीर अपराध शामिल हैं। सात साल या अधिक की सजा वाले अपराधों की चार्जशीट का मतलब है कि व्यक्ति पर गंभीर आरोप लगे हैं, भले ही अभी तक सजा न हुई हो।

यह नीति केवल भविष्य की घटनाओं पर लागू नहीं होती। मंत्रालय पुराने मामलों की भी समीक्षा कर सकता है। यदि किसी OCI कार्ड धारक के खिलाफ पुराने आपराधिक मामले हैं तो उनका कार्ड भी रद्द हो सकता है। यह retroactive application एक महत्वपूर्ण पहलू है।

प्रक्रियागत सुरक्षा उपाय भी रखे गए हैं। कार्ड रद्द करने से पहले संबंधित व्यक्ति को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाएगा। उन्हें कारण बताओ नोटिस भेजा जाएगा और उनकी बात सुनी जाएगी। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के अनुकूल है।

अपील की व्यवस्था भी है। यदि किसी का OCI कार्ड रद्द किया जाता है तो वह गृह मंत्रालय में अपील कर सकता है। न्यायिक समीक्षा का अधिकार भी संरक्षित है। हालांकि, व्यावहारिक रूप से यह प्रक्रिया लंबी और महंगी हो सकती है।

कार्ड रद्द होने के परिणाम गंभीर हैं। व्यक्ति को तुरंत भारत छोड़ना पड़ सकता है और भविष्य में वीजा लेना कठिन हो सकता है। उनकी भारत में संपत्ति भी प्रभावित हो सकती है। व्यापारिक हितों को नुकसान हो सकता है।

विभिन्न देशों में रहने वाले OCI कार्ड धारकों पर इसका अलग-अलग प्रभाव होगा। अमेरिका, कनाडा, और ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले लोग अधिक प्रभावित हो सकते हैं क्योंकि वहां कानूनी प्रणाली अधिक सक्रिय है। मध्य पूर्व के देशों में यह चुनौती कम हो सकती है।

OCI कार्ड धारकों के परिवार भी प्रभावित हो सकते हैं। यदि मुख्य आवेदक का कार्ड रद्द होता है तो आश्रित परिवारजनों के कार्ड भी प्रभावित हो सकते हैं। यह एक जटिल स्थिति पैदा करता है क्योंकि परिवारजन स्वयं किसी अपराध में शामिल नहीं हो सकते।

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह नीति विवादास्पद हो सकती है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह अधिकारों का हनन हो सकता है। हालांकि, सुरक्षा विशेषज्ञ इसे आवश्यक मानते हैं।

तथ्य तालिका

पहलूपुराने नियमनए नियमप्रभाव
रद्दीकरण आधारराष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था+ 2 साल कारावास, 7 साल चार्जशीटव्यापक कार्रवाई शक्ति
प्रभावित जनसंख्यासीमित मामले1.8 करोड़ OCI धारकबड़ा समुदाय
कानूनी आधारमूल धारा 7Dधारा 7D खंड (da)विस्तृत कानूनी ढांचा
समय सीमाभविष्य के मामलेपूर्वव्यापी समीक्षा संभवपुराने मामले भी
अपील प्रक्रियाउच्च न्यायालयगृह मंत्रालय + न्यायालयबहुस्तरीय समीक्षा
परिवारिक प्रभावव्यक्तिगतआश्रित सदस्य भीव्यापक पारिवारिक नुकसान
भौगोलिक प्रभावसभी देश समानदेश की कानूनी व्यवस्था पर निर्भरअसमान प्रभाव

निष्कर्ष

ओसीआई कार्ड नियमों का विस्तार भारत सरकार की कानून व्यवस्था को मजबूत बनाने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह नीति राष्ट्रीय सुरक्षा और अपराध नियंत्रण के दृष्टिकोण से उचित हो सकती है, लेकिन इसके व्यापक सामाजिक और आर्थिक प्रभावों पर भी विचार करना आवश्यक है।

प्रवासी भारतीय समुदाय भारत की अर्थव्यवस्था और सॉफ्ट पावर में महत्वपूर्ण योगदान देता है। उनके द्वारा भेजा जाने वाला धन (रेमिटेंस) भारत की विदेशी मुद्रा आय का एक बड़ा हिस्सा है। नई नीति से इस समुदाय में चिंता और असंतोष पैदा हो सकता है।

संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है। सुरक्षा चिंताएं वास्तविक हैं और उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। साथ ही, ईमानदार और कानून का पालन करने वाले OCI कार्ड धारकों के अधिकारों की सुरक्षा भी आवश्यक है। नीति कार्यान्वयन में निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करनी होगी।

भविष्य में इस नीति के प्रभावों का आकलन करना आवश्यक होगा। यदि इससे वास्तव में अपराधिक गतिविधियों में कमी आती है तो यह सकारात्मक है। हालांकि, यदि इससे निर्दोष लोगों को परेशानी होती है या भारत की छवि को नुकसान पहुंचता है तो नीति में संशोधन की आवश्यकता होगी।

यूपीएससी संबंधी वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1: ओसीआई कार्ड नियमों के विस्तार के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. अब 2 साल या अधिक की कारावास पर OCI कार्ड रद्द हो सकता है
  2. 7 साल या अधिक सजा वाले अपराधों की चार्जशीट पर भी कार्ड रद्द हो सकता है
  3. यह परिवर्तन नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 7D के खंड (da) के तहत किया गया है

उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3 सभी

उत्तर: d) 1, 2 और 3 सभी

प्रश्न 2: OCI कार्ड योजना कब शुरू की गई थी?
a) 2003 में
b) 2005 में
c) 2007 में
d) 2009 में

उत्तर: b) 2005 में

प्रश्न 3: वर्तमान में विश्वभर में लगभग कितने लोगों के पास OCI कार्ड है?
a) 1.2 करोड़
b) 1.5 करोड़
c) 1.8 करोड़
d) 2.1 करोड़

उत्तर: c) 1.8 करोड़

प्रश्न 4: OCI कार्ड धारकों को निम्नलिखित में से कौन सा अधिकार प्राप्त नहीं है?
a) बिना वीजा के भारत आना-जाना
b) भारत में अचल संपत्ति खरीदना
c) भारत में मतदान करना
d) भारत में व्यापार करना

उत्तर: c) भारत में मतदान करना


भारत में इथेनॉल मिश्रण का प्रभाव: ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरणीय चुनौतियों का संतुलन

समाचार में क्यों

भारत ने निर्धारित समय से पहले ही 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। सरकार ने वित्त वर्ष 2015 के बाद से किसानों को 1.20 लाख करोड़ रुपये का भुगतान किया है। हालांकि, इस नीति के पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं क्योंकि गन्ने की खेती में प्रति टन फसल के लिए 60-70 टन पानी की आवश्यकता होती है। भारत की 30 प्रतिशत भूमि पहले से ही क्षरित हो चुकी है और 34 प्रतिशत मक्का उत्पादन इथेनॉल के लिए इस्तेमाल होने से खाद्य सुरक्षा की चिंताएं भी सामने आ रही हैं।

उद्देश्य

भारत में इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम का प्राथमिक उद्देश्य ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाना और कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता कम करना है। भारत अपनी कुल तेल आवश्यकता का लगभग 85 प्रतिशत आयात करता है, जिससे विदेशी मुद्रा का भारी नुकसान होता है। इथेनॉल मिश्रण से न केवल तेल आयात कम होता है, बल्कि घरेलू ईंधन उत्पादन को भी बढ़ावा मिलता है।

कृषि आय में वृद्धि और किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारना भी इस नीति का मुख्य लक्ष्य है। गन्ना किसानों को अपनी फसल के लिए बेहतर मूल्य मिलता है और चीनी मिलों के अतिरिक्त उत्पादन की समस्या का समाधान होता है। यह विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक के किसानों के लिए फायदेमंद है।

पर्यावरणीय लाभ भी इस कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है। इथेनॉल एक जैविक ईंधन है जो पेट्रोल की तुलना में कम कार्बन उत्सर्जन करता है। यह वायु प्रदूषण कम करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने में सहायक है। भारत के पेरिस जलवायु समझौते की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

स्वदेशी उद्योग का विकास और रोजगार सृजन भी प्रमुख लक्ष्य हैं। इथेनॉल उत्पादन से जुड़े उद्योगों का विकास हो रहा है और हजारों लोगों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोजगार मिल रहा है। यह मेक इन इंडिया अभियान के अनुकूल है।

महत्वपूर्ण जानकारी

भारत का इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम 2003 में 5 प्रतिशत मिश्रण के लक्ष्य के साथ शुरू हुआ था। 2018 में राष्ट्रीय जैविक ईंधन नीति के तहत 2030 तक 20 प्रतिशत मिश्रण का लक्ष्य रखा गया था। हालांकि, सरकार के प्रयासों से यह लक्ष्य 2025 तक प्राप्त हो गया है। वर्तमान में नया लक्ष्य 2030 तक 30 प्रतिशत मिश्रण का है।

इथेनॉल उत्पादन मुख्यतः तीन स्रोतों से होता है: गन्ना, मक्का, और चावल। गन्ने से सीधे रस निकालकर या चीनी के अवशेष (मोलासेस) से इथेनॉल बनाया जाता है। मक्का और चावल जैसे अनाजों से भी इथेनॉल उत्पादन हो रहा है। वर्तमान में भारत की इथेनॉल उत्पादन क्षमता 1000 करोड़ लीटर प्रति वर्ष से अधिक है।

इस कार्यक्रम के आर्थिक लाभ महत्वपूर्ण हैं। भारतीय खाद्य निगम के अनुसार, प्रति लीटर इथेनॉल से लगभग 2.5 लीटर पेट्रोल की बचत होती है। वर्तमान कीमतों पर यह प्रति वर्ष हजारों करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत करता है। किसानों को गन्ने का बेहतर मूल्य मिलने से उनकी आय में 15-20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

पर्यावरणीय प्रभाव मिश्रित हैं। सकारात्मक पक्ष में, इथेनॉल मिश्रण से कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन और अन्य हानिकारक उत्सर्जन में कमी आती है। यह शहरी वायु गुणवत्ता में सुधार लाता है। हालांकि, नकारात्मक प्रभाव भी हैं।

पानी की समस्या सबसे गंभीर चुनौती है। गन्ने की खेती अत्यधिक पानी की मांग करती है। महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में जल संकट के बावजूद गन्ने की खेती बढ़ रही है। इससे भूजल स्तर में गिरावट और पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव बढ़ रहा है।

भूमि क्षरण की समस्या भी चिंताजनक है। मोनो-कल्चर खेती से मिट्टी की उर्वरता घट रही है। रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग पर्यावरणीय समस्याएं बढ़ा रहा है। भारत की 30 प्रतिशत भूमि पहले से ही विभिन्न कारणों से क्षरित है।

खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव भी गंभीर मुद्दा है। मक्का उत्पादन का 34 प्रतिशत हिस्सा इथेनॉल के लिए इस्तेमाल होने से खाद्य कीमतों पर दबाव पड़ा है। 2024-25 में भारत को 9.7 लाख टन मक्का का आयात करना पड़ा। यह प्रवृत्ति चिंताजनक है।

अंतर्राष्ट्रीय दबाव भी बढ़ रहा है। अमेरिका ने भारत से इथेनॉल आयात प्रतिबंधों में ढील देने का दबाव डाला है। यह घरेलू उत्पादकों के लिए चुनौती हो सकती है। व्यापार संतुलन पर भी इसका प्रभाव हो सकता है।

तकनीकी चुनौतियां भी हैं। अधिक इथेनॉल मिश्रण के लिए वाहनों के इंजन में संशोधन की आवश्यकता होती है। वितरण अवसंरचना का विकास भी आवश्यक है। ग्रामीण क्षेत्रों में इथेनॉल मिश्रित ईंधन की उपलब्धता अभी भी समस्या है।

गुणवत्ता नियंत्रण भी महत्वपूर्ण मुद्दा है। निम्न गुणवत्ता का इथेनॉल वाहनों को नुकसान पहुंचा सकता है। भारतीय मानक ब्यूरो ने सख्त मानक निर्धारित किए हैं, लेकिन कार्यान्वयन में चुनौतियां हैं।

क्षेत्रीय असंतुलन भी देखने को मिलता है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में अधिक उत्पादन होता है, जबकि दूसरे राज्यों में कमी है। परिवहन लागत और लॉजिस्टिक्स की समस्याएं भी हैं।

तथ्य तालिका

पहलूवर्तमान स्थितिलक्ष्यचुनौती
मिश्रण प्रतिशत20% (2025)30% (2030)उत्पादन क्षमता वृद्धि
किसान भुगतान₹1.20 लाख करोड़निरंतर वृद्धिमूल्य स्थिरता
पानी की आवश्यकता60-70 टन/टन गन्नाजल दक्षताजल संकट
क्षरित भूमि30% राष्ट्रीय भूमिपुनर्स्थापनापर्यावरणीय क्षति
मक्का उपयोग34% इथेनॉल के लिएसंतुलन आवश्यकखाद्य सुरक्षा
आयात9.7 लाख टन मक्कास्वदेशी उत्पादनव्यापार संतुलन
उत्पादन क्षमता1000+ करोड़ लीटरदोगुना करनाअवसंरचना विकास

निष्कर्ष

भारत में इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम एक जटिल नीति है जिसके फायदे और नुकसान दोनों हैं। ऊर्जा सुरक्षा, किसान कल्याण और आर्थिक लाभ की दृष्टि से यह सकारात्मक कदम है। लेकिन पर्यावरणीय प्रभाव, जल संकट और खाद्य सुरक्षा की चिंताएं गंभीर हैं।

सरकार को एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। जल-कुशल फसलों से इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देना, कृषि अपशिष्ट का उपयोग करना, और द्वितीय पीढ़ी के जैविक ईंधन पर फोकस करना आवश्यक है। टिकाऊ कृषि प्रथाओं को प्रोत्साहित करना भी जरूरी है।

नीति निर्माताओं को दीर्घकालिक परिणामों पर विचार करना चाहिए। तात्कालिक लाभ के लिए भविष्य की पीढ़ियों के संसाधनों से समझौता नहीं करना चाहिए। एक व्यापक पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन की आवश्यकता है।

अंततः, भारत को ऐसी ऊर्जा नीति चाहिए जो आर्थिक विकास, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन बनाए। इथेनॉल मिश्रण इस दिशा में एक कदम हो सकता है, लेकिन यह अंतिम समाधान नहीं है।

यूपीएससी संबंधी वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1: भारत में इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. भारत ने 2025 से पहले ही 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है
  2. गन्ने की खेती में प्रति टन फसल के लिए 60-70 टन पानी की आवश्यकता होती है
  3. सरकार ने 2015 के बाद से किसानों को 1.20 लाख करोड़ रुपये का भुगतान किया है

उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3 सभी

उत्तर: d) 1, 2 और 3 सभी

प्रश्न 2: भारत में कुल मक्का उत्पादन का कितना प्रतिशत इथेनॉल के लिए इस्तेमाल होता है?
a) 25 प्रतिशत
b) 30 प्रतिशत
c) 34 प्रतिशत
d) 40 प्रतिशत

उत्तर: c) 34 प्रतिशत

प्रश्न 3: भारत की कितनी प्रतिशत भूमि पहले से ही क्षरित हो चुकी है?
a) 25 प्रतिशत
b) 30 प्रतिशत
c) 35 प्रतिशत
d) 40 प्रतिशत

उत्तर: b) 30 प्रतिशत

प्रश्न 4: भारत का इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम कब शुरू हुआ था?
a) 2001 में
b) 2003 में
c) 2005 में
d) 2008 में

उत्तर: b) 2003 में


जाति आधारित डेटा संग्रह: भारतीय समाज में समानता और न्याय का मुद्दा

समाचार में क्यों

भारत में जाति आधारित डेटा संग्रह का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। भारत की प्राचीन सभ्यता वर्ण व्यवस्था पर आधारित थी, जो बाद में एक जटिल जाति आधारित सामाजिक संरचना में बदल गई और राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन को प्रभावित करने लगी। स्वतंत्रता के बाद भारत ने कई सामाजिक सुधार लागू किए, लेकिन दशकीय जनगणना में जाति आधारित डेटा का आधिकारिक संग्रह लंबे समय तक नहीं हुआ। वर्तमान में विभिन्न राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं।

उद्देश्य

जाति आधारित डेटा संग्रह का मुख्य उद्देश्य सामाजिक न्याय और समानता की स्थिति का सटीक आकलन करना है। भारत में जाति व्यवस्था के कारण सदियों से कुछ समुदाय वंचित रहे हैं। उनकी वास्तविक संख्या, आर्थिक स्थिति और सामाजिक स्थिति की जानकारी के बिना प्रभावी नीति बनाना कठिन है।

आरक्षण नीति की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना भी एक प्रमुख उद्देश्य है। संविधान में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान है। लेकिन इन नीतियों का वास्तविक लाभ कहां तक पहुंच रहा है, यह जानने के लिए समुदायवार डेटा आवश्यक है।

संसाधनों का उचित वितरण सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण लक्ष्य है। सरकारी योजनाओं और कल्याणकारी कार्यक्रमों का लाभ सभी वर्गों तक पहुंचे, इसके लिए जनसंख्यिक डेटा आधारित योजना बनाना आवश्यक है। बिना सटीक डेटा के संसाधन आवंटन में पक्षपात हो सकता है।

सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन की पहचान करना भी प्रमुख उद्देश्य है। कुछ जातियां आर्थिक रूप से आगे बढ़ गई हैं, जबकि कई अभी भी पिछड़ी हैं। वास्तविक स्थिति की जानकारी से बेहतर नीति बनाई जा सकती है।

महत्वपूर्ण जानकारी

भारत में जनगणना का इतिहास 1872 से शुरू होता है। ब्रिटिश काल में जाति आधारित डेटा नियमित रूप से एकत्र किया जाता था। 1931 की जनगणना अंतिम ऐसी जनगणना थी जिसमें सभी जातियों की गिनती की गई थी। स्वतंत्रता के बाद यह प्रथा बंद कर दी गई।

स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना 1951 में हुई। इसमें केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की गिनती की गई। अन्य जातियों का डेटा संग्रह बंद कर दिया गया। इसका मुख्य कारण यह था कि जाति व्यवस्था को बढ़ावा न देना।

2011 की जनगणना में सामाजिक-आर्थिक एवं जातिगत जनगणना (SECC) का आयोजन किया गया। यह पहली बार स्वतंत्र भारत में व्यापक जाति डेटा संग्रह का प्रयास था। हालांकि, इसका पूरा डेटा अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।

SECC 2011 के परिणाम जटिल थे। इसमें 46 लाख से अधिक जातियों और उप-जातियों की पहचान हुई। डेटा की गुणवत्ता और सत्यता पर सवाल उठे। कई लोगों ने गलत जानकारी दी या अपनी जाति छुपाई।

राजनीतिक दलों की अलग-अलग स्थिति है। कुछ दल जाति जनगणना के पक्ष में हैं, जबकि अन्य इसे जाति व्यवस्था को बढ़ावा देने वाला मानते हैं। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और अन्य क्षेत्रीय दल जाति जनगणना का समर्थन करते हैं। भाजपा इस मुद्दे पर स्पष्ट स्थिति नहीं अपनाती।

राज्य सरकारों का रुख भी अलग है। बिहार, कर्नाटक, और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने अपने स्तर पर जाति सर्वेक्षण कराए हैं। बिहार की जाति आधारित जनगणना 2022 में पूरी हुई और इसके परिणाम सार्वजनिक किए गए।

कानूनी पहलू भी महत्वपूर्ण हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में जाति प्रमाण पत्र और आरक्षण संबंधी फैसले दिए हैं। न्यायपालिका का मानना है कि सामाजिक न्याय के लिए डेटा आवश्यक है, लेकिन जाति व्यवस्था को मजबूत नहीं बनाना चाहिए।

तकनीकी चुनौतियां भी हैं। आधुनिक समय में जाति की पहचान जटिल हो गई है। अंतर-जातीय विवाह, शहरीकरण और सामाजिक गतिशीलता के कारण पारंपरिक जाति वर्गीकरण मुश्किल है। डिजिटल डेटा संग्रह में गुणवत्ता और प्राइवेसी के मुद्दे भी हैं।

आर्थिक पहलू महत्वपूर्ण हैं। जाति जनगणना की लागत हजारों करोड़ रुपये आती है। 2011 के SECC की लागत लगभग 5,000 करोड़ रुपये थी। व्यापक जनगणना की लागत और भी अधिक हो सकती है।

अंतर्राष्ट्रीय तुलना भी दिलचस्प है। अमेरिका में नस्ल और जातीयता का डेटा संग्रह होता है। ब्रिटेन में भी जातीय मूल की जानकारी ली जाती है। हालांकि, भारतीय जाति व्यवस्था अद्वितीय है और सीधी तुलना मुश्किल है।

सामाजिक प्रभाव विवादास्पद हैं। समर्थकों का कहना है कि डेटा से सामाजिक न्याय मिलेगा। विरोधियों का मानना है कि इससे जाति व्यवस्था मजबूत होगी। युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव होगा, यह भी चिंता का विषय है।

शैक्षणिक अनुसंधान के लिए भी यह डेटा महत्वपूर्ण है। समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री और नीति विश्लेषक इस जानकारी का उपयोग करके बेहतर अध्ययन कर सकते हैं। सामाजिक परिवर्तन की गति को मापना भी संभव हो सकता है।

महिला सशक्तिकरण पर भी इसका प्रभाव हो सकता है। विभिन्न जातियों में महिलाओं की स्थिति अलग है। डेटा से लैंगिक समानता की नीतियों को बेहतर बनाया जा सकता है।

तथ्य तालिका

पहलूऐतिहासिक स्थितिवर्तमान स्थितिभविष्य की योजना
अंतिम पूर्ण जाति जनगणना1931 (ब्रिटिश काल)2011 SECC (अधूरा प्रकाशन)2031 संभावित
गणना की गई जातियांसभी जातियां46+ लाख जातियांडेटा सफाई आवश्यक
राजनीतिक समर्थनसार्वभौमिकविभाजित मतबहस जारी
राज्यों का रुखकेंद्रीकृतराज्य-स्तरीय सर्वेक्षणस्वायत्त कार्रवाई
कानूनी स्थितिस्पष्ट नियमन्यायिक समीक्षासंवैधानिक मुद्दे
लागतअज्ञात₹5,000+ करोड़ (SECC)बढ़ती लागत
तकनीकी चुनौतीसरलजटिल डिजिटलीकरणAI सहायता संभव

निष्कर्ष

जाति आधारित डेटा संग्रह का मुद्दा भारतीय समाज की जटिलता को दर्शाता है। यह केवल एक तकनीकी या प्रशासनिक मामला नहीं है, बल्कि गहरे सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक सवाल उठाता है। एक तरफ सामाजिक न्याय और समानता की आवश्यकता है, दूसरी तरफ जाति व्यवस्था को मजबूत बनाने का डर है।

सरकार को एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। डेटा संग्रह का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए और इसका उपयोग केवल सामाजिक कल्याण के लिए होना चाहिए। गुणवत्तापूर्ण डेटा सुनिश्चित करना और इसकी सुरक्षा करना भी आवश्यक है।

दीर्घकालिक लक्ष्य जातिविहीन समाज का निर्माण होना चाहिए। जाति जनगणना एक साधन हो सकती है, लेकिन अंतिम लक्ष्य नहीं। शिक्षा, आर्थिक विकास और सामाजिक सुधार के माध्यम से जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करना असली चुनौती है।

युवा पीढ़ी को इस बहस में शामिल करना भी महत्वपूर्ण है। उनकी सोच और अपेक्षाएं पुरानी पीढ़ी से अलग हो सकती हैं। डिजिटल युग में जाति की प्रासंगिकता कम हो रही है, लेकिन संरचनागत असमानता अभी भी मौजूद है।

यूपीएससी संबंधी वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1: भारत में जाति आधारित डेटा संग्रह के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. स्वतंत्र भारत की अंतिम पूर्ण जाति जनगणना 1931 में हुई थी
  2. 2011 की SECC में 46 लाख से अधिक जातियों की पहचान हुई
  3. वर्तमान में केवल अनुसूचित जाति और जनजाति का डेटा संग्रह होता है

उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3 सभी

उत्तर: b) केवल 2 और 3

प्रश्न 2: भारत की पहली जनगणना कब हुई थी?
a) 1871 में
b) 1872 में
c) 1881 में
d) 1891 में

उत्तर: b) 1872 में

प्रश्न 3: 2011 की सामाजिक-आर्थिक एवं जातिगत जनगणना (SECC) की लागत लगभग कितनी थी?
a) 3,000 करोड़ रुपये
b) 5,000 करोड़ रुपये
c) 7,000 करोड़ रुपये
d) 10,000 करोड़ रुपये

उत्तर: b) 5,000 करोड़ रुपये

प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन सा राज्य अपने स्तर पर जाति सर्वेक्षण कराने के लिए प्रसिद्ध है?

  1. बिहार
  2. कर्नाटक
  3. तमिलनाडु
  4. उत्तर प्रदेश

a) केवल 1, 2 और 3
b) केवल 1, 3 और 4
c) केवल 2, 3 और 4
d) 1, 2, 3 और 4 सभी

उत्तर: a) केवल 1, 2 और 3


IIT हैदराबाद की ड्राइवरलेस इलेक्ट्रिक बस: भारत में स्वायत्त वाहन प्रौद्योगिकी की नई शुरुआत

समाचार में क्यों

IIT हैदराबाद के टेक्नोलॉजी इनोवेशन हब ऑन ऑटोनॉमस नेविगेशन (TiHAN) ने एक पूर्णतः स्वचालित इलेक्ट्रिक बस विकसित की है जो बिना ड्राइवर के संचालित हो सकती है। यह भारत की स्वायत्त वाहन प्रौद्योगिकी क्षमताओं में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इस परियोजना को राष्ट्रीय मिशन ऑन इंटरडिसिप्लिनरी साइबर-फिजिकल सिस्टम्स (NM-ICPS) के तहत विकसित किया गया है। यह तकनीक भविष्य में भारतीय शहरी परिवहन व्यवस्था को क्रांतिकारी रूप से बदल सकती है।

उद्देश्य

IIT हैदराबाद की ड्राइवरलेस इलेक्ट्रिक बस परियोजना का मुख्य उद्देश्य भारत को स्वायत्त वाहन प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है। वर्तमान में यह तकनीक मुख्यतः अमेरिका, चीन और यूरोप के देशों में विकसित हो रही है। भारत का लक्ष्य इस क्षेत्र में वैश्विक नेता बनना है।

शहरी परिवहन समस्याओं का समाधान करना भी एक प्रमुख उद्देश्य है। भारतीय शहरों में यातायात की समस्या, प्रदूषण और दुर्घटनाओं की दर लगातार बढ़ रही है। स्वायत्त वाहन इन समस्याओं का तकनीकी समाधान प्रस्तुत करते हैं। ये वाहन अधिक सुरक्षित, कुशल और पर्यावरण अनुकूल होते हैं।

रोजगार सृजन और कौशल विकास भी इस परियोजना के महत्वपूर्ण लक्ष्य हैं। स्वायत्त वाहन उद्योग नए प्रकार की नौकरियों का सृजन करता है। सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग, डेटा साइंस, रोबोटिक्स और AI के क्षेत्र में विशेषज्ञता की आवश्यकता होगी। यह भारतीय युवाओं के लिए नए अवसर खोलता है।

अनुसंधान और विकास की संस्कृति को बढ़ावा देना भी उद्देश्य है। यह परियोजना दिखाती है कि भारतीय शैक्षणिक संस्थान वैश्विक स्तर की तकनीक विकसित करने में सक्षम हैं। यह अन्य संस्थानों के लिए प्रेरणा का काम करता है।

महत्वपूर्ण जानकारी

TiHAN (Technology Innovation Hub on Autonomous Navigation) की स्थापना 2020 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा 135 करोड़ रुपये के बजट के साथ की गई थी। यह भारत का पहला स्वायत्त नेविगेशन केंद्रित अनुसंधान हब है। इसका मुख्य लक्ष्य मानवरहित हवाई वाहन, स्वायत्त कारें, और रोबोटिक्स तकनीक विकसित करना है।

विकसित की गई इलेक्ट्रिक बस में अत्याधुनिक सेंसर तकनीक शामिल है। इसमें LiDAR (Light Detection and Ranging), कैमरे, रडार, और अल्ट्रासोनिक सेंसर लगाए गए हैं। ये सेंसर मिलकर बस के आसपास का 360-डिग्री दृश्य बनाते हैं और बाधाओं की पहचान करते हैं।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग एल्गोरिदम बस के दिमाग का काम करते हैं। ये सिस्टम रास्ते की स्थिति का विश्लेषण करते हैं, यातायात के नियमों का पालन करते हैं, और सुरक्षित ड्राइविंग सुनिश्चित करते हैं। रियल-टाइम डेटा प्रोसेसिंग की क्षमता इस सिस्टम की खासियत है।

साइबर-फिजिकल सिस्टम तकनीक का उपयोग भी महत्वपूर्ण है। यह भौतिक और डिजिटल दुनिया के बीच सेतु का काम करता है। बस का कंट्रोल सिस्टम निरंतर डेटा का आदान-प्रदान करता है और तुरंत निर्णय लेता है।

V2X (Vehicle-to-Everything) कम्युनिकेशन तकनीक भी शामिल की गई है। यह बस को दूसरे वाहनों, ट्रैफिक सिग्नल, और इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ने की सुविधा देता है। इससे यातायात प्रबंधन और सुरक्षा में काफी सुधार होता है।

परीक्षण चरण में बस का प्रदर्शन उत्कृष्ट रहा है। IIT हैदराबाद के कैंपस में विभिन्न परिस्थितियों में इसकी जांच की गई। दिन-रात, अलग मौसम, और विविध यातायात स्थितियों में बस ने सफलतापूर्वक काम किया है।

सुरक्षा सबसे प्राथमिकता है। बस में कई स्तरों की सुरक्षा व्यवस्था है। यदि कोई सेंसर फेल हो जाए तो दूसरे सेंसर काम करते रहते हैं। आपातकाल में तुरंत रुकने की व्यवस्था भी है। मानवीय हस्तक्षेप की सुविधा भी बरकरार रखी गई है।

इस परियोजना में कई निजी कंपनियों का सहयोग भी है। टाटा मोटर्स, महिंद्रा, और अन्य ऑटोमोटिव कंपनियां तकनीकी सहायता प्रदान कर रही हैं। यह सरकारी-निजी साझेदारी का एक सफल उदाहरण है।

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी महत्वपूर्ण रहा है। जर्मनी, जापान और सिंगापुर के विशेषज्ञों से तकनीकी सलाह ली गई है। हालांकि, मुख्य तकनीक पूर्णतः भारत में विकसित की गई है।

भविष्य की योजनाएं महत्वाकांक्षी हैं। अगले चरण में सार्वजनिक सड़कों पर परीक्षण किया जाएगा। हैदराबाद शहर के कुछ रूटों पर पायलट प्रोजेक्ट चलाया जाएगा। सफल होने पर इसे दूसरे शहरों में भी लागू किया जाएगा।

व्यावसायीकरण की रणनीति भी तैयार की जा रही है। IIT हैदराबाद स्टार्टअप कंपनियों के साथ साझेदारी कर रहा है। तकनीक का लाइसेंसिंग और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर भी योजना में शामिल है।

तथ्य तालिका

पहलूविवरणतकनीकी विशेषताएंभविष्य की योजना
संस्थानIIT हैदराबाद TiHAN135 करोड़ रुपये बजटराष्ट्रीय विस्तार
सेंसर तकनीकLiDAR, कैमरा, रडार360-डिग्री दृश्यउन्नत सेंसर एकीकरण
AI सिस्टममशीन लर्निंग एल्गोरिदमरियल-टाइम प्रोसेसिंगडीप लर्निंग उन्नयन
संचार तकनीकV2X कम्युनिकेशनस्मार्ट इंफ्रास्ट्रक्चर5G एकीकरण
सुरक्षा स्तरबहु-स्तरीय सुरक्षारिडंडेंसी सिस्टमउन्नत सुरक्षा प्रोटोकॉल
परीक्षण स्थितिकैंपस लेवलनियंत्रित वातावरणसार्वजनिक सड़क परीक्षण
साझेदारीउद्योग सहयोगतकनीक साझाकरणवैश्विक सहयोग विस्तार

निष्कर्ष

IIT हैदराबाब की ड्राइवरलेस इलेक्ट्रिक बस परियोजना भारतीय तकनीकी नवाचार का एक शानदार उदाहरण है। यह दर्शाती है कि भारतीय संस्थान वैश्विक स्तर की अत्याधुनिक तकनीक विकसित करने में सक्षम हैं। यह उपलब्धि भारत को स्वायत्त वाहन प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाती है।

इस परियोजना की सफलता भविष्य के लिए कई संभावनाएं खोलती है। यदि यह तकनीक सफलतापूर्वक व्यावसायिक रूप अपनाती है, तो भारतीय शहरी परिवहन व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है। यातायात की समस्या, प्रदूषण और दुर्घटनाओं में कमी आ सकती है।

हालांकि, चुनौतियां भी महत्वपूर्ण हैं। भारतीय सड़कों की जटिल परिस्थितियां, यातायात नियमों का पालन न करना, और मिश्रित यातायात व्यवस्था स्वायत्त वाहनों के लिए चुनौती हैं। नीतिगत ढांचा, कानूनी व्यवस्था और सामाजिक स्वीकार्यता भी महत्वपूर्ण कारक होंगे।

सरकार को इस तकनीक के विकास और अपनाने के लिए अनुकूल वातावरण बनाना होगा। नियामक ढांचा, परीक्षण सुविधाएं और वित्तीय सहायता आवश्यक होगी। साथ ही, जनता को इस तकनीक के लाभों के बारे में जागरूक करना भी जरूरी है।

दीर्घकालिक दृष्टि से, यह परियोजना भारत को टिकाऊ और स्मार्ट शहरों के लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ाने में सहायक होगी। यह न केवल परिवहन को बेहतर बनाएगी, बल्कि भारत की तकनीकी छवि को भी मजबूत करेगी।

यूपीएससी संबंधी वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1: IIT हैदराबाद के TiHAN के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. यह भारत का पहला स्वायत्त नेविगेशन केंद्रित अनुसंधान हब है
  2. इसकी स्थापना 2020 में 135 करोड़ रुपये के बजट के साथ हुई
  3. यह केवल ड्राइवरलेस कारों पर काम करता है

उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3 सभी

उत्तर: a) केवल 1 और 2

प्रश्न 2: स्वायत्त वाहनों में उपयोग होने वाली LiDAR तकनीक का पूरा नाम क्या है?
a) Light Integrated Detection and Ranging
b) Light Detection and Ranging
c) Laser Integration Detection and Ranging
d) Laser Detection and Ranging

उत्तर: b) Light Detection and Ranging

प्रश्न 3: V2X कम्युनिकेशन तकनीक में ‘X’ का क्या अर्थ है?
a) eXternal (बाहरी)
b) eXtended (विस्तृत)
c) Everything (सब कुछ)
d) eXchange (आदान-प्रदान)

उत्तर: c) Everything (सब कुछ)

प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन सा राष्ट्रीय मिशन स्वायत्त वाहन प्रौद्योगिकी से जुड़ा है?
a) राष्ट्रीय मिशन ऑन स्ट्रैटेजिक नॉलेज फॉर क्लाइमेट चेंज
b) राष्ट्रीय मिशन ऑन इंटरडिसिप्लिनरी साइबर-फिजिकल सिस्टम्स
c) राष्ट्रीय सुपर कंप्यूटिंग मिशन
d) राष्ट्रीय डिजिटल इंडिया मिशन

उत्तर: b) राष्ट्रीय मिशन ऑन इंटरडिसिप्लिनरी साइबर-फिजिकल सिस्टम्स


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