मध्य उच्च भूमि

मध्य उच्च भूमि एक त्रिकोणीय पठारी क्षेत्र है, जो दक्षिण में नर्मदा-सोन घाटी, पूर्व में कैमूर का कगार और पश्चिम में अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है। यह क्षेत्र राज्य के दो-तिहाई से अधिक हिस्से में फैला हुआ है। यहाँ की जल निकासी प्रणाली वृक्ष-जैसा पैटर्न प्रस्तुत करती है, और इसकी उत्तरी सीमा सामान्यतः यमुना नदी द्वारा निर्धारित की जाती है। अपनी विशालता और भौगोलिक विविधता के कारण, इस क्षेत्र को निम्नलिखित उप-विभाजनों में विभाजित किया गया है—

  • मध्य भारत का पठार
  • बुंदेलखंड का पठार
  • मालवा का पठार
  • रीवा-पन्ना का पठार
  • नर्मदा-सोन घाटी

मध्य भारत का पठार

भौगोलिक स्थिति एवं प्राकृतिक विशेषताएँ

  • यह क्षेत्र 24° से 26°48′ उत्तरी अक्षांश तथा 74°50′ से 79°10′ पूर्वी देशांतर के मध्य स्थित है।
  • उत्तर में यमुना के मैदान, पश्चिम में राजस्थान, दक्षिण में मालवा का पठार और पूर्व में बुंदेलखंड की पठारी भूमि से घिरा है।
  • इस पठार का निर्माण मुख्यतः विंध्य शैल समूह के अपरदन और नदियों द्वारा हुए निक्षेपण से हुआ है।
  • प्रमुख जिले: भिंड, मुरैना, श्योपुर, ग्वालियर, शिवपुरी और नीमच।
  • संपूर्ण पठार का ढाल उत्तर तथा उत्तर-पूर्व दिशा में है।
  • जल निकासी प्रणाली मुख्य रूप से चंबल नदी और उसकी सहायक नदियों पर निर्भर है।
  • इस क्षेत्र का कुल विस्तार 32,896 वर्ग किलोमीटर है, जो मध्य प्रदेश का लगभग 10.68% क्षेत्र कवर करता है।
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जलवायु

  • यहाँ की जलवायु उष्णकटिबंधीय उप-आर्द्र प्रकार की है।
  • ग्रीष्म ऋतु में अत्यधिक गर्मी तथा शीत ऋतु में तीव्र शीतलता पाई जाती है।
  • इस क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 75 सेमी से भी कम होती है।
  • मध्य प्रदेश के सबसे कम वर्षा वाले क्षेत्र गोहद (भिंड जिला) का भी इसी पठार में स्थित होना उल्लेखनीय है।

मिट्टी एवं वनस्पति

  • चंबल एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़ मिट्टी का वर्चस्व मैदानी भागों में पाया जाता है।
  • पठारी एवं बीहड़ क्षेत्रों में कंटीली वनस्पति प्रमुखता से विकसित होती है।
  • इस क्षेत्र में वन आच्छादन 20-27% भू-भाग पर विस्तृत है, जबकि कृषि योग्य क्षेत्रों में यह प्रतिशत 10% से भी कम है।
  • अन्य भागों की तुलना में यहाँ कंटीले वनों की प्रमुखता अधिक देखी जाती है।

कृषि एवं खनिज संपदा

  • इस क्षेत्र में सिंचाई की प्रमुख विधि नहर प्रणाली है।
  • प्रमुख फसलें: गेहूँ, सरसों, ज्वार, बाजरा एवं तिल
  • खनिज संपदा में मुख्य रूप से चीनी मिट्टी, चूना पत्थर एवं इमारती पत्थर शामिल हैं।
  • यह क्षेत्र सरसों उत्पादन में अग्रणी है, इसलिए इसे “सरसों की हांडी” भी कहा जाता है।

औद्योगिक विकास एवं परिवहन

  • यहाँ पर हथकरघा, खिलौना निर्माण एवं चीनी मिट्टी के उत्पादों से संबंधित कुटीर उद्योग विकसित हैं।
  • प्रमुख औद्योगिक इकाइयाँ—
    • शिवपुरी और बानमोर (मुरैना जिला) में कत्था निर्माण उद्योग।
    • ग्वालियर में कृत्रिम रेशों से कपड़ा निर्माण और बिस्कुट निर्माण इकाइयाँ।
    • ग्वालियर में ट्रांसफार्मर क्लस्टर का विकास।
  • प्रमुख शहरों जैसे ग्वालियर, मुरैना और भिंड को सड़क और रेल मार्गों द्वारा जोड़ा गया है।
  • प्रस्तावित अटल प्रोग्रेस-वे इस क्षेत्र में यातायात सुविधाओं को और अधिक सुलभ बनाएगा।
  • ग्वालियर स्थित राजमाता विजयाराजे सिंधिया हवाई अड्डा क्षेत्रीय हवाई परिवहन की महत्वपूर्ण कड़ी है।
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जनसंख्या एवं आजीविका

  • जनसंख्या घनत्व 125-200 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी के बीच है, जो दक्षिण-पश्चिम की ओर घटता जाता है।
  • कृषि मुख्य व्यवसाय है, जिसमें पशुपालन को भी विशेष महत्व प्राप्त है।
  • पहाड़ी क्षेत्रों में लकड़ी चीरना एवं लकड़ी संग्रहण आम व्यवसायों में शामिल है।

निष्कर्ष

मध्य भारत का पठार अपनी भौगोलिक एवं जलवायु विशेषताओं के कारण एक विशिष्ट क्षेत्र है। इसकी कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था, खनिज संपदा, औद्योगिक विकास और परिवहन नेटवर्क इसे मध्य प्रदेश के महत्वपूर्ण भौगोलिक उपखंडों में से एक बनाते हैं। बीहड़ संरचना और जलवायु अनुकूलन के कारण इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी और मानव जीवनशैली में भी विशेष भिन्नता देखने को मिलती है।

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