
Central Highlands (मध्य उच्च भूमि) क्या है? भौगोलिक विभाजन
क्या आप MPPSC या व्यापम (Vyapam) की तैयारी कर रहे हैं? मध्य प्रदेश का भूगोल (MP Geography) तब तक अधूरा है जब तक आप Central Highlands (मध्य उच्च भूमि) को नहीं समझते। यह प्रदेश का सबसे विशाल और महत्वपूर्ण भौगोलिक विभाजन है, जो चंबल के बीहड़ों से लेकर मालवा की काली मिट्टी तक फैला है। इस आर्टिकल में, हम मध्य उच्च भूमि के सभी 5 भागों का गहराई से अध्ययन करेंगे। चलिए, MP के नक्शे को डीकोड करते हैं
Central Highlands of MP (Madhya Pradesh) (मध्य उच्च भूमि): मध्य प्रदेश का भूगोल विंध्याचल और सतपुड़ा की श्रेणियों से सजा हुआ है। इसी कड़ी में मध्य उच्च भूमि राज्य का एक प्रमुख भौगोलिक विभाजन है, जो एक त्रिकोणीय पठार के रूप में विस्तृत है। क्या आप जानते हैं कि इसे ‘सरसों की हांडी’ और चंबल के बीहड़ों के लिए भी जाना जाता है?
मध्य उच्च भूमि एक त्रिकोणीय पठारी क्षेत्र है, जो दक्षिण में नर्मदा-सोन घाटी, पूर्व में कैमूर का कगार और पश्चिम में अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है। यह क्षेत्र राज्य के दो-तिहाई से अधिक हिस्से में फैला हुआ है। यहाँ की जल निकासी प्रणाली वृक्षाकार अपवाह तंत्र” (Dendritic Drainage Pattern) प्रस्तुत करती है, और इसकी उत्तरी सीमा सामान्यतः यमुना नदी द्वारा निर्धारित की जाती है। अपनी विशालता और भौगोलिक विविधता के कारण, इस क्षेत्र को निम्नलिखित उप-विभाजनों में विभाजित किया गया है—
- मध्य भारत का पठार
- बुंदेलखंड का पठार
- मालवा का पठार
- रीवा-पन्ना का पठार
- नर्मदा-सोन घाटी

1.Central India Plateau (मध्य भारत का पठार): ‘सरसों की हांडी’
Geographical Location & Features (भौगोलिक स्थिति)
यह क्षेत्र 24° से 26°48′ उत्तरी अक्षांश तथा 74°50′ से 79°10′ पूर्वी देशांतर के मध्य स्थित है। उत्तर में यमुना के मैदान, पश्चिम में राजस्थान, दक्षिण में मालवा का पठार और पूर्व में बुंदेलखंड की पठारी भूमि से घिरा है। इस पठार का निर्माण मुख्यतः विंध्य शैल समूह के अपरदन और नदियों द्वारा हुए निक्षेपण से हुआ है। प्रमुख जिले: भिंड, मुरैना, श्योपुर, ग्वालियर, शिवपुरी और नीमच। संपूर्ण पठार का ढाल उत्तर तथा उत्तर-पूर्व दिशा में है। जल निकासी प्रणाली मुख्य रूप से चंबल नदी और उसकी सहायक नदियों पर निर्भर है। इस क्षेत्र का कुल विस्तार 32,896 वर्ग किलोमीटर है, जो मध्य प्रदेश का लगभग 10.68% क्षेत्र कवर करता है।
जलवायु
यहाँ की जलवायु उष्णकटिबंधीय उप-आर्द्र प्रकार की है। ग्रीष्म ऋतु में अत्यधिक गर्मी तथा शीत ऋतु में तीव्र शीतलता पाई जाती है। इस क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 75 सेमी से भी कम होती है। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश का सबसे कम वर्षा वाला स्थान ‘गोहद’ (भिंड) इसी पठार में स्थित है।
मिट्टी एवं वनस्पति
चंबल एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़ मिट्टी का वर्चस्व मैदानी भागों में पाया जाता है। यहाँ के पठारी और बीहड़ इलाकों में मुख्य रूप से कंटीली झाड़ियाँ और वनस्पति पाई जाती हैं। इस क्षेत्र में वन आच्छादन 20-27% भू-भाग पर विस्तृत है, जबकि कृषि योग्य क्षेत्रों में यह प्रतिशत 10% से भी कम है। अन्य भागों की तुलना में यहाँ कंटीले वनों की प्रमुखता अधिक देखी जाती है।
कृषि एवं खनिज संपदा
इस क्षेत्र में सिंचाई की प्रमुख विधि नहर प्रणाली है। प्रमुख फसलें: गेहूँ, सरसों, ज्वार, बाजरा एवं तिल। खनिज संपदा में मुख्य रूप से चीनी मिट्टी, चूना पत्थर एवं इमारती पत्थर शामिल हैं। यह क्षेत्र सरसों उत्पादन में अग्रणी है, इसलिए इसे “सरसों की हांडी” भी कहा जाता है।
औद्योगिक विकास एवं परिवहन
यहाँ पर हथकरघा, खिलौना निर्माण एवं चीनी मिट्टी के उत्पादों से संबंधित कुटीर उद्योग विकसित हैं। प्रमुख औद्योगिक इकाइयाँ—शिवपुरी और बानमोर (मुरैना जिला) में कत्था निर्माण उद्योग। ग्वालियर में कृत्रिम रेशों से कपड़ा निर्माण और बिस्कुट निर्माण इकाइयाँ। ग्वालियर में ट्रांसफार्मर क्लस्टर का विकास। प्रमुख शहरों जैसे ग्वालियर, मुरैना और भिंड को सड़क और रेल मार्गों द्वारा जोड़ा गया है। प्रस्तावित अटल प्रोग्रेस-वे इस क्षेत्र में यातायात सुविधाओं को और अधिक सुलभ बनाएगा। ग्वालियर स्थित राजमाता विजयाराजे सिंधिया हवाई अड्डा क्षेत्रीय हवाई परिवहन की महत्वपूर्ण कड़ी है।
जनसंख्या एवं आजीविका
जनसंख्या घनत्व 125-200 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी के बीच है, जो दक्षिण-पश्चिम की ओर घटता जाता है। कृषि मुख्य व्यवसाय है, जिसमें पशुपालन को भी विशेष महत्व प्राप्त है। पहाड़ी क्षेत्रों में लकड़ी चीरना एवं लकड़ी संग्रहण आम व्यवसायों में शामिल है।
Facts
- कुनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) श्योपुर में है, जो इसी पठार (Madhya Bharat Pathar) का हिस्सा है।
- इस क्षेत्र (विशेषकर ग्वालियर, श्योपुर, शिवपुरी) में सहरिया जनजाति (Sahariya Tribe) प्रमुखता से पाई जाती है, जिसे “Special Backward Tribe” का दर्जा प्राप्त है।
- चंबल घाटी में मृदा अपरदन (Soil Erosion/Gully Erosion) और “बीहड़” (Ravines) की समस्या इस क्षेत्र की सबसे बड़ी भौगोलिक पहचान है
2. Bundelkhand Plateau (बुंदेलखंड का पठार)
बुंदेलखंड का पठार मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित एक प्राचीन भू-भाग है। यह क्षेत्र अपनी कठोर चट्टानों (Granite & Gneiss) और सूखे की समस्याओं के लिए जाना जाता है।
- भौगोलिक स्थिति (Location): 24°06′ से 26°22′ उत्तरी अक्षांश और 77°51′ से 80°20′ पूर्वी देशांतर।
- क्षेत्रफल: यह म.प्र. के कुल क्षेत्रफल का लगभग 7.7% भाग कवर करता है।
- प्रमुख जिले: दतिया, छतरपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी, पन्ना (आंशिक) और ग्वालियर (आंशिक)।
- सबसे ऊंची चोटी: इस पठार की सबसे ऊंची चोटी सिद्धबाबा (1172 मीटर) है।
जलवायु और मिट्टी (Climate & Soil)
- जलवायु: यहाँ की जलवायु ‘महाद्वीपीय’ (Continental) प्रकार की है—गर्मियों में अत्यधिक गर्मी और सर्दियों में अधिक ठंड पड़ती है। औसत वर्षा 75-100 सेमी के बीच होती है।
- मिट्टी: यहाँ मुख्य रूप से मिश्रित मिट्टी (लाल और काली) पाई जाती है, जिसकी जल धारण क्षमता कम होती है।
कृषि और संसाधन
पानी की कमी के कारण यहाँ मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, तिल और दालें (Pulses) प्रमुख रूप से उगाई जाती हैं। यह क्षेत्र ‘तेंदूपत्ता’ (Bidi Industry) और ग्रेनाइट पत्थर के लिए प्रसिद्ध है।
3. Malwa Plateau (मालवा का पठार): MP का सबसे बड़ा क्षेत्र
मालवा का पठार मध्य प्रदेश का सबसे महत्वपूर्ण और विकसित भौगोलिक विभाग है। इसे “गेहूँ की डलिया” (Basket of Wheat) भी कहा जाता है।
- निर्माण: इसका निर्माण ज्वालामुखी के लावा (Basalt rocks) से हुआ है, जिसे ‘दक्कन ट्रैप’ की चट्टानें कहा जाता है।
- क्षेत्रफल: लगभग 88,222 वर्ग किमी (MP का लगभग 28.62%), जो इसे प्रदेश का सबसे बड़ा पठार बनाता है।
- जिले: इंदौर, उज्जैन, देवास, रतलाम, धार, झाबुआ, अगर-मालवा, शाजापुर, राजगढ़, सीहोर, भोपाल, विदिशा, रायसेन आदि।
प्रमुख चोटियाँ (Highest Peaks)
- सिगार (Sigar): 881 मीटर (सबसे ऊंची)
- जानापाव (Janapav): 854 मीटर (चंबल नदी का उद्गम)
- धजारी (Dhajari): 810 मीटर
जलवायु: ‘विश्व की सर्वश्रेष्ठ जलवायु’
चीनी यात्री फाह्यान (Fa-Hien) ने मालवा की जलवायु को “विश्व की सर्वश्रेष्ठ जलवायु” (Best Climate in the World) कहा था। यहाँ समशीतोष्ण जलवायु पाई जाती है—न अधिक गर्मी, न अधिक ठंड। इसे ‘शब-ए-मालवा’ के नाम से भी सराहा गया है।
औद्योगिक महत्व (Economic Importance)
- यहाँ गहरी काली मिट्टी (Regur Soil) पाई जाती है, जो कपास (Cotton) और सोयाबीन के लिए वरदान है।
- मध्य प्रदेश का ‘डेट्रायट’ (पीथमपुर) और सबसे बड़ा औद्योगिक क्लस्टर (इंदौर) इसी पठार पर स्थित है।
- कर्क रेखा (Tropic of Cancer) इसके ठीक मध्य से गुजरती है।
4. Rewa-Panna Plateau (रीवा-पन्ना का पठार)
इसे ‘विंध्य कगार प्रदेश’ (Vindhyan Scarp Land) भी कहा जाता है। यह क्षेत्र विंध्याचल पर्वतमाला के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है।
- विस्तार: 23°10′ से 25°12′ उत्तरी अक्षांश।
- क्षेत्रफल: मध्य प्रदेश का लगभग 10.37%।
- जिले: रीवा, पन्ना, सतना, दमोह और सागर (आंशिक)।
- नदियाँ: केन (Ken), टोंस (Tons), और बीहड़ (Bihad)। प्रदेश का ऊंचा जलप्रपात ‘चचाई’ (अब बहुती सबसे ऊंचा माना जाता है) इसी क्षेत्र की नदियों पर स्थित है।
खनिज और उद्योग (Minerals & Industry)
यह पठार चूना पत्थर (Limestone) और हीरा (Diamond) के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
- हीरा: पन्ना और छतरपुर की खदानें भारत में हीरे का एकमात्र प्रमुख स्रोत हैं।
- सीमेंट उद्योग: चूना पत्थर की अधिकता के कारण सतना और रीवा में सीमेंट की कई फैक्ट्रियां हैं।
5. Narmada-Son Valley (नर्मदा-सोन घाटी): अन्न पेटी
यह मध्य प्रदेश का सबसे निचला हिस्सा (Lowest Point) है जो एक भ्रंश घाटी (Rift Valley) के रूप में स्थित है। यह राज्य का दूसरा सबसे बड़ा भौगोलिक भाग है।
- स्थिति: 22°30′ से 23°45′ उत्तरी अक्षांश। यह विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं के बीच एक संकरी घाटी है।
- क्षेत्रफल: लगभग 86,000 वर्ग किमी (MP का 26%)।
- जिले: जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, हरदा, खंडवा, खरगोन, बड़वानी, मंडला आदि।
कृषि की रीढ़ (Backbone of Agriculture)
नर्मदा-सोन घाटी को “मध्य प्रदेश की अन्न पेटी” (Granary of MP) कहा जाता है।
- मिट्टी: यहाँ गहरी काली मिट्टी (Deep Black Soil) की परत पाई जाती है।
- फसलें: यह क्षेत्र गेहूँ, चावल, गन्ना और मूंगफली के उत्पादन में अग्रणी है। नरसिंहपुर जिला गन्ने और दालों के लिए प्रसिद्ध है।
प्रमुख तथ्य (Key Facts)
- जलवायु: यहाँ गर्मी में अधिक गर्मी (40-45°C) और सर्दी में साधारण ठंड पड़ती है।
- कोयला: घाटी के पूर्वी हिस्से (सोन घाटी/सुहागपुर) में कोयले के विशाल भंडार हैं।
- जलप्रपात: भेड़ाघाट (धुआंधार) और कपिलधारा जैसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थल यहीं स्थित हैं।
निष्कर्ष
मध्य भारत का पठार अपनी भौगोलिक एवं जलवायु विशेषताओं के कारण एक विशिष्ट क्षेत्र है। इसकी कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था, खनिज संपदा, औद्योगिक विकास और परिवहन नेटवर्क इसे मध्य प्रदेश के महत्वपूर्ण भौगोलिक उपखंडों में से एक बनाते हैं। बीहड़ संरचना और जलवायु अनुकूलन के कारण इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी और मानव जीवनशैली में भी विशेष भिन्नता देखने को मिलती है।