नागरिकता का क्या अर्थ है?
किसी भी राष्ट्र में निवास करने वाले व्यक्तियों को दो प्रमुख वर्गों में श्रेणीकृत किया जाता है—नागरिक और विदेशी। नागरिक वह व्यक्ति होता है जिसे राज्य द्वारा कुछ सामाजिक एवं राजनीतिक अधिकारों का विशेषाधिकार प्राप्त होता है। ये अधिकार उन व्यक्तियों को नहीं दिए जाते जो विदेशी हों। वास्तव में, नागरिकता संविधान से प्राप्त वह विशेष वैधानिक मान्यता है जो केवल नागरिकों को प्रदान की जाती है, और जिसका उपयोग कोई विदेशी नहीं कर सकता। इस अवधारणा को निम्नलिखित रूप में व्याख्यायित किया जा सकता है –
नागरिकता से तात्पर्य एक व्यक्ति को प्राप्त राज्य की सम्पूर्ण सदस्यता से है। यह सम्पूर्ण सदस्यता तीन प्रकार के अधिकारों की प्राप्ति को सुनिश्चित करती है—नागरिक अधिकार, राजनीतिक अधिकार, तथा सामाजिक अधिकार।
नागरिक अधिकार व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, और संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। राजनीतिक अधिकार व्यक्ति को मतदान का अधिकार प्रदान कर उसे शासन में भागीदारी का अवसर प्रदान करते हैं। सामाजिक अधिकार व्यक्ति को शिक्षा एवं रोजगार से संबंधित सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं। इन अधिकारों की संपूर्णता नागरिकों को सम्मानजनक जीवन जीने की सक्षम परिस्थिति प्रदान करती है।
नागरिकता को व्यक्ति एवं राज्य के मध्य एक वैधानिक संबंध के रूप में समझा जा सकता है, जिसके अंतर्गत व्यक्ति राज्य के प्रति निष्ठा प्रकट करता है और बदले में राज्य उसे संरक्षण प्रदान करता है। सभी व्यक्ति, जो इन प्रदत्त अधिकारों एवं कर्तव्यों के अधीन होते हैं, एक समान माने जाते हैं।
नोट: भारतीय संविधान में नागरिकता की कोई स्पष्ट और परिभाषित व्याख्या नहीं दी गई है।
भारतीय नागरिकों और विदेशियों के बीच अंतर(Difference Between Indian Citizens and Aliens)
भारतीय नागरिक (Indian Citizen)
ये भारत के पूर्ण सदस्य होते हैं, जिन्हें सभी नागरिक, राजनीतिक, एवं सामाजिक अधिकारों की प्राप्ति होती है और जिनकी भारतीय संविधान के प्रति पूर्ण निष्ठा होती है।
विदेशी (Aliens)
ये वे व्यक्ति होते हैं जो किसी अन्य देश के नागरिक होते हैं, और जिन्हें भारत में सभी नागरिक, राजनीतिक, एवं सामाजिक अधिकारों का पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं होता। विदेशियों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है: मित्र देश के नागरिक और शत्रु देश के नागरिक।
- मित्र देश के नागरिक – वे व्यक्ति जो ऐसे राष्ट्रों से आते हैं जिनके साथ भारत के सौहार्दपूर्ण संबंध होते हैं।
- शत्रु देश के नागरिक – वे व्यक्ति जो उन राष्ट्रों से संबंधित होते हैं जो भारत के साथ विरोधात्मक या शत्रुतापूर्ण व्यवहार रखते हैं।
नोट: शत्रु देश के नागरिकों को मित्र देशों के नागरिकों की अपेक्षा कम स्तर का संरक्षण प्राप्त होता है, जैसे कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22, जो कुछ मामलों में गिरफ्तारी और निवारक निरोध से संबंधित संरक्षण प्रदान करता है।
भारतीय नागरिकों और विदेशियों को प्राप्त अधिकारों में अंतर (Difference Between Indian Citizens and Aliens)
भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकार | विदेशियों को प्राप्त मूल अधिकार |
---|---|
धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध (अनुच्छेद 15) | कानून के समक्ष समानता (अनुच्छेद 14) |
सार्वजनिक नियुक्तियों में अवसर की समानता (अनुच्छेद 16) | अपराधों के लिए दोषसिद्धि में संरक्षण (अनुच्छेद 20) |
वाक्-स्वतंत्रता आदि विषयों में अभिव्यक्ति का अधिकार (अनुच्छेद 19) | जीवन और शारीरिक स्वतंत्रता का संरक्षण (अनुच्छेद 21) |
अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक हितों का संरक्षण (अनुच्छेद 29) | शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21-क) |
शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अल्पसंख्यकों को अधिकार (अनुच्छेद 30) | कुछ परिस्थितियों में गिरफ्तारी और निवारक निरोध से संरक्षण (अनुच्छेद 22) |
मानव तस्करी एवं बलात्श्रम का निषेध (अनुच्छेद 23) | |
बाल श्रमिकों के नियोजन पर निषेध (अनुच्छेद 24) | |
अंतरात्मा एवं धर्म की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) | |
धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 26) | |
विशेष धर्म के संवर्धन हेतु करारोपण से स्वतंत्रता (अनुच्छेद 27) | |
शिक्षण संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या पूजा में भाग लेने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 28) |
नोट: कुछ संवैधानिक पद ऐसे हैं जिन्हें केवल भारतीय नागरिकों द्वारा ही धारण किया जा सकता है, जैसे—
- राष्ट्रपति (अनुच्छेद 58)
- उपराष्ट्रपति (अनुच्छेद 66)
- उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश (अनुच्छेद 124 और अनुच्छेद 217)
- राज्यपाल (अनुच्छेद 157)
- महान्यायवादी तथा महाधिवक्ता (अनुच्छेद 76 और अनुच्छेद 165)
लोक सभा तथा राज्य विधान सभा में प्रतिनिधियों के निर्वाचन का अधिकार, एवं इन संस्थाओं के सदस्य बनने का अधिकार, केवल भारतीय नागरिकों को ही प्रदान किया गया है।
यह महत्वपूर्ण है कि जो अधिकार विदेशियों को प्राप्त हैं, वे सभी भारतीय नागरिकों को भी उपलब्ध होते हैं।
संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provisions)
संविधान के भाग–2 में (अनुच्छेद 5 से 11 तक) नागरिकता से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। यद्यपि संविधान में नागरिकता-विषयक विधियों का पूर्ण विवरण नहीं है, यह केवल उन व्यक्तियों की व्याख्या करता है जो भारत के संविधान के प्रवर्तन के समय (26 जनवरी, 1950) भारतीय नागरिक माने गए थे। अनुच्छेद 11 के अंतर्गत, नागरिकता से संबंधित विधायी अधिकार संसद को प्रदत्त किया गया है।
संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता (Citizenship at the Commencement of the Constitution)
संविधान के प्रवर्तन के समय, कोई व्यक्ति किस आधार पर भारतीय नागरिक माना जाएगा, इसका निर्धारण निम्नलिखित आधारों पर किया गया—
अधिवास के आधार पर नागरिकता (Citizenship by Domicile)
अनुच्छेद 5 के अनुसार, संविधान लागू होने के समय, प्रत्येक ऐसा व्यक्ति जिसका अधिवास भारत में हो, भारतीय नागरिक होगा यदि:
- उसका जन्म भारतीय राज्यक्षेत्र में हुआ हो; या
- उसके माता या पिता में से किसी का जन्म भारतीय राज्यक्षेत्र में हुआ हो; या
- वह व्यक्ति संविधान के लागू होने के ठीक पूर्व, न्यूनतम पाँच वर्षों तक भारत में साधारण निवास करता रहा हो।
पाकिस्तान से आए प्रवासियों की नागरिकता (Citizenship of Migrants from Pakistan)
अनुच्छेद 6 के अंतर्गत पाकिस्तान से प्रव्रजन करके आये व्यक्तियों की नागरिकता दो वर्गों में विभाजित की गई है:
- वे जो 19 जुलाई 1948 से पूर्व भारत आए;
- वे जो 19 जुलाई 1948 के बाद भारत आए।
पहली वर्ग के वे व्यक्ति जो 19 जुलाई 1948 के पहले भारत आए, उन्हें संविधान के प्रवर्तन के समय भारतीय नागरिक माना जाएगा, यदि वे दो शर्तें पूरी करते हों:
- वह अथवा उसके माता-पिता या पितामह-पितामही में से कोई भारत सरकार अधिनियम 1935 में परिभाषित भारत में जन्मा हो; और
- वह जुलाई 1948 से पूर्व भारत आया हो और तब से भारत में निवासी रहा हो;
वहीं, जो लोग 19 जुलाई 1948 के पश्चात् आए, वे तभी नागरिक माने जाएंगे यदि—
(i) उन्होंने नागरिकता प्राप्त करने हेतु आवेदन प्रस्तुत किया हो;
(ii) आवेदन से पूर्व छह माह तक भारत में निवास किया हो;
(iii) उनका नाम भारत सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी द्वारा नागरिक के रूप में पंजीकृत किया गया हो।
पाकिस्तान प्रव्रजन करने वालों की नागरिकता (Citizenship of People Migrating to Pakistan)
अनुच्छेद 7 यह नियमन करता है कि वह व्यक्ति जिसने 1 मार्च 1947 के बाद पाकिस्तान को प्रव्रजन किया, उसे भारतीय नागरिक नहीं माना जाएगा। किंतु, यदि वह व्यक्ति पुनः भारत लौटता है, तो उसे अनुच्छेद 6 में निर्दिष्ट सभी शर्तों को पूर्ण करना होगा, तभी वह भारतीय नागरिकता का अधिकार प्राप्त कर सकेगा।
भारत से बाहर भारतीय मूल के लोगों की नागरिकता (Citizenship of Persons of Indian Origin Outside India)
यदि कोई व्यक्ति या उसके माता-पिता में से कोई अविभाजित भारत में जन्मा हो, परंतु वह विदेश में सामान्यतः निवास करता हो, तब भी वह भारतीय नागरिक माना जाएगा, बशर्ते उसने—
- भारतीय नागरिकता हेतु पंजीकरण कराया हो;
- यह पंजीकरण उस समय के भारतीय राजनयिक अथवा वाणिज्य दूतावास अधिकारी द्वारा किया गया हो, जहाँ वह व्यक्ति निवासरत रहा हो;
- इस आशय का आवेदन-पत्र संबंधित राजनयिक प्रतिनिधि के समक्ष प्रस्तुत किया गया हो;
- यह आवेदन संविधान लागू होने से पहले या बाद में कभी भी प्रस्तुत किया गया हो;
- यह आवेदन भारत डोमिनियन सरकार अथवा भारत सरकार द्वारा निर्धारित प्रपत्र एवं प्रक्रिया में किया गया हो।
यह ज्ञातव्य है कि अनुच्छेद 8 केवल संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता प्राप्त करने की स्थिति को ही नहीं, बल्कि संविधान लागू होने के पश्चात विदेशों में निवासरत भारतीय मूल के व्यक्तियों की नागरिकता संबंधी अधिकारों की भी विस्तृत व्याख्या करता है।
नागरिकता संबंधी अनुच्छेद
अनुच्छेद 5 – संविधान के प्रवर्तन के समय नागरिकता का निर्धारण
अनुच्छेद 6 – पाकिस्तान से भारत आए कुछ प्रवासियों के नागरिकता अधिकार
अनुच्छेद 7 – पाकिस्तान गए कुछ व्यक्तियों की नागरिकता की स्थिति
अनुच्छेद 8 – विदेशों में निवास करने वाले भारतीय मूल के व्यक्तियों की नागरिकता
अनुच्छेद 9 – विदेशी राष्ट्र की नागरिकता स्वेच्छा से अपनाने पर नागरिकता की समाप्ति
अनुच्छेद 10 – नागरिकता से संबद्ध अधिकारों का निरंतर बना रहना
अनुच्छेद 11 – संसद को नागरिकता संबंधी विधिक विनियमन का अधिकार
नागरिकता का अर्जन (Acquisition of Citizenship)
भारतीय संसद ने अनुच्छेद 11 में प्रदत्त सांविधानिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए नागरिकता अधिनियम, 1955 पारित किया, जो भारत में नागरिकता की प्राप्ति एवं समाप्ति की प्रक्रिया को विनियमित करता है।
नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार, भारत की नागरिकता पाँच प्रमुख तरीकों से प्राप्त की जा सकती है:
जन्म के आधार पर नागरिकता (Citizenship by Birth)
वे समस्त व्यक्ति जिनका जन्म 26 जनवरी 1950 से लेकर 1 जुलाई 1987 के पूर्व भारतीय राज्यक्षेत्र में हुआ है, वे भारत के नागरिक माने जाएंगे।
यदि किसी व्यक्ति का जन्म 1 जुलाई 1987 को या उसके पश्चात्, किंतु नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2003 के प्रवर्तन से पहले हुआ हो, तो वह तभी भारतीय नागरिक होगा जब उस समय उसके माता या पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक रहा हो।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2003 के लागू होने की तिथि या उसके पश्चात् जन्म लेने वाला व्यक्ति तभी नागरिक माना जाएगा यदि उसके दोनों माता-पिता भारतीय नागरिक हों अथवा उनमें से कोई एक नागरिक हो और दूसरा अवैध प्रवासी न हो।
वंश के आधार पर नागरिकता (Citizenship by Descent)
यदि कोई व्यक्ति 26 जनवरी 1950 से लेकर 10 दिसंबर 1992 के बीच विदेश में जन्मा है, तो वह तब भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकता है, जब उसके जन्म के समय उसका पिता भारतीय नागरिक रहा हो।
10 दिसंबर 1992 या उसके पश्चात् विदेश में जन्म लेने वाले व्यक्ति को भारतीय नागरिकता तब प्राप्त होगी जब उसके माता या पिता में से कोई एक भारत का नागरिक रहा हो।
3 दिसंबर 2004 के बाद विदेश में जन्मे व्यक्ति को भारतीय नागरिकता तब नहीं दी जाएगी यदि उसके जन्म के एक वर्ष के भीतर भारतीय दूतावास में उसका पंजीकरण नहीं कराया गया हो, अथवा यदि वह पंजीकरण केन्द्र सरकार की स्वीकृति के बिना हो।
ऐसे पंजीकरण के समय, आवेदन-पत्र में उसके माता-पिता को यह शपथ-पत्र देना होगा कि उनके बच्चे के पास किसी अन्य देश का पासपोर्ट नहीं है।
यदि कोई नाबालिग बालक वंश के आधार पर भारतीय नागरिक है किंतु किसी अन्य देश की नागरिकता भी धारण करता है, तो वयस्क होने के छह माह के भीतर यदि वह अपनी अन्य नागरिकता का परित्याग नहीं करता, तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वतः समाप्त हो जाएगी।
पंजीकरण द्वारा नागरिकता (Citizenship by Registration)
पंजीकरण के माध्यम से भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित श्रेणियों के व्यक्ति पात्र माने जाते हैं (बशर्ते वे अवैध प्रवासी न हों):
- वे व्यक्ति जो भारतीय मूल के हों और अविभाजित भारत के बाहर किसी अन्य देश में सामान्य रूप से निवासरत हों;
- वे व्यक्ति जो भारतीय नागरिक से विवाहित हों और जिन्होंने आवेदन से पूर्व सात वर्ष भारत में निवास किया हो;
- भारतीय नागरिकों के नाबालिग संतान;
- वे वयस्क, जिनके माता-पिता भारत के पंजीकृत नागरिक हों;
- वे व्यक्ति, जिनके माता या पिता या उनके पूर्वज स्वतंत्र भारत के नागरिक रहे हों, और जो नागरिकता के आवेदन से 12 माह पूर्व भारत में निवास करते रहे हों;
- वे व्यक्ति, जो कम से कम पाँच वर्ष तक भारत के विदेशी नागरिक (OCI) के रूप में पंजीकृत हों और पंजीकरण से 12 माह पूर्व तक भारत में निवास करते रहे हों।
देशीकरण द्वारा नागरिकता (Citizenship by Naturalisation)
देशीकरण की प्रक्रिया हेतु अर्हताएँ (व्यक्ति अवैध प्रवासी नहीं होना चाहिए) निम्नलिखित हैं—
(क) वह व्यक्ति ऐसे किसी राष्ट्र का नागरिक न हो, जहाँ के कानूनों के अंतर्गत भारतीय नागरिकों को देशीकरण के माध्यम से नागरिकता प्राप्त नहीं होती है।
(ख) यदि व्यक्ति किसी अन्य राष्ट्र की नागरिकता रखता है, तो उसे यह प्रतिज्ञा करनी होगी कि भारतीय नागरिकता प्राप्त होने पर वह अपनी पूर्व नागरिकता त्याग देगा।
(ग) व्यक्ति को भारत में निवास किया हुआ होना चाहिए अथवा भारत सरकार की सेवा में रहा हो, चाहे आंशिक रूप से या पूर्णतः, अथवा अन्य किसी सरकार की सेवा में रहते हुए आवेदन की तारीख से पूर्ववर्ती 12 महीनों तक भारत में रहा हो।
(घ) आवेदन करने वाले व्यक्ति को, उपर्युक्त 12 महीनों की अवधि से पूर्व, 14 वर्षों में से किसी भी 11 वर्षों की कुल अवधि के दौरान भारत में निवास किया हुआ होना चाहिए, या फिर वह भारत सरकार की सेवा में रहा हो अथवा इनमें से दोनों में आंशिक रूप से सम्मिलित रहा हो।
(ङ) व्यक्ति का चरित्र निष्कलंक एवं उत्तम होना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
(च) आवेदक को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध किसी एक भाषा का पर्याप्त ज्ञान होना आवश्यक है।
(छ) एक विशेष प्रावधान के अंतर्गत, केंद्र सरकार उपर्युक्त शर्तों को उन व्यक्तियों पर लागू नहीं करती, जिन्होंने विज्ञान, कला, दर्शन, साहित्य, वैश्विक शांति या मानव विकास जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विशिष्ट योगदान दिया हो। ऐसे विशिष्ट व्यक्तियों को उपर्युक्त शर्तों की पूर्ति किए बिना भी देशीकरण द्वारा नागरिकता प्रदान की जा सकती है।
(ज) जब व्यक्ति को देशीकरण का प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाए, तो उसकी यह स्पष्ट मंशा होनी चाहिए कि वह भारत में निवास करेगा या भारत सरकार की सेवा, किसी अंतरराष्ट्रीय संस्था जिसमें भारत सदस्य हो, अथवा भारत में पंजीकृत किसी सोसाइटी, कंपनी या निकाय से जुड़ा रहेगा या जुड़ने का इच्छुक होगा।
भू-क्षेत्र सम्मिलित होने पर नागरिकता (Citizenship by Incorporation of Territory)
यदि कोई नया भू-भाग भारतीय राज्यक्षेत्र में सम्मिलित होता है, तो भारत सरकार एक अधिसूचना के माध्यम से यह निर्धारित करेगी कि उस क्षेत्र में निवास करने वाले कौन-से व्यक्ति भारत के नागरिक माने जाएंगे।
नागरिकता की समाप्ति (Termination of Citizenship)
नागरिकता अधिनियम, 1955 के अंतर्गत, नागरिकता चाहे संवैधानिक उपबंधों द्वारा प्राप्त की गई हो या अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत, उसे समाप्त किए जाने की प्रक्रिया स्पष्ट रूप से निर्धारित की गई है। इस अधिनियम के अनुसार, नागरिकता समाप्ति के तीन प्रमुख आधार हैं—
1. नागरिकता का परित्याग (Renunciation of Citizenship)
यदि कोई वयस्क भारतीय नागरिक अपनी नागरिकता को छोड़ना चाहता है, तो उसे इस आशय की घोषणा करनी होती है। जब इस घोषणा को पंजीकृत कर लिया जाता है, तो संबंधित व्यक्ति भारतीय नागरिक नहीं रह जाता। हालांकि, यदि यह घोषणा उस समय की गई जब भारत किसी युद्ध की स्थिति में हो, तो केंद्र सरकार के पास इस घोषणा को स्थगित करने का अधिकार होता है।
2. नागरिकता की बर्ख़ास्तगी (Termination of Citizenship)
यदि कोई भारतीय नागरिक स्वेच्छा से किसी विदेशी राष्ट्र की नागरिकता अर्जित कर लेता है, तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वतः समाप्त हो जाती है। किंतु यह व्यवस्था उस स्थिति में लागू नहीं होती, जब भारत किसी युद्ध में सक्रिय रूप से संलग्न हो।
3. नागरिकता से वंचित किया जाना (Deprivation from Citizenship)
केंद्र सरकार को यह प्राधिकार प्राप्त है कि वह निम्नलिखित परिस्थितियों में किसी व्यक्ति की नागरिकता को समाप्त कर सकती है—
- यदि नागरिकता प्राप्त करते समय कोई तथ्य छिपाया गया हो या धोखाधड़ी द्वारा इसे प्राप्त किया गया हो।
- यदि नागरिक ने भारतीय संविधान के प्रति अवमानना या अनादर का भाव प्रकट किया हो।
- यदि युद्धकालीन स्थिति में व्यक्ति ने किसी शत्रु राष्ट्र के साथ राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में संलिप्तता दिखाई हो या गोपनीय सूचनाएँ साझा की हों।
- यदि पंजीकरण अथवा देशीकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने के 5 वर्षों के भीतर, व्यक्ति को किसी अन्य देश में दो वर्ष की कारावास की सजा हो चुकी हो।
- यदि नागरिक ने सामान्यतः लगातार 7 वर्षों तक भारत से बाहर निवास किया हो।
विदेशी निवासियों की वैधानिक स्थिति (Legal Status of Alien Residents)
अनिवासी भारतीय (Non-Resident Indian – NRIs): सामान्यतः अनिवासी भारतीय वे व्यक्ति होते हैं जो लंबी अवधि तक विदेश में निवास करते हुए भारतीय नागरिक बने रहते हैं। नागरिकता अधिनियम, 1955 के अंतर्गत, “अनिवासी भारतीय” वह व्यक्ति होता है जो भारत का नागरिक होने के बावजूद भारत के बाहर निवास करता है।
भारतीय मूल का व्यक्ति (Person of Indian Origin – PIOs): ऐसा कोई भी व्यक्ति, अथवा उसके पूर्वज, जो पूर्व में भारत के नागरिक रहे हों और वर्तमान में किसी अन्य देश की नागरिकता धारित कर रहे हों, उन्हें भारतीय मूल का व्यक्ति कहा जाता है। हालांकि, इस परिभाषा से पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, अफगानिस्तान एवं भूटान के वर्तमान या पूर्व नागरिक अपवाद स्वरूप बाहर रखे गए हैं।
नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार, “भारतीय मूल का व्यक्ति” वह है, जो भारत से बाहर निवास करता है और जो पाकिस्तान या बांग्लादेश के अतिरिक्त किसी देश का नागरिक हो, जिसे भारत सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया हो।
भारत के समुद्रपारीय नागरिक (Overseas Citizens of India – OCIs)
भारत के विदेशी नागरिकों के रूप में मान्यता प्राप्त करने हेतु निम्नलिखित अर्हताएँ अनिवार्य हैं:
ऐसा कोई व्यक्ति जो पूर्ण वयस्क हो और जिसके पास कानूनी रूप से कार्य करने की पूर्ण क्षमता हो—
- यदि वह किसी अन्य राष्ट्र का नागरिक है, परंतु संविधान के प्रवर्तन के समय या उसके पश्चात भारत का नागरिक रहा हो, या
- वह भले ही किसी अन्य देश का नागरिक हो, किंतु संविधान लागू होने के समय भारतीय नागरिकता प्राप्त करने का पात्र रहा हो, या
- उसका संबंध उस भू-भाग से रहा हो जो 15 अगस्त, 1947 के पश्चात भारतीय राज्यक्षेत्र में सम्मिलित हुआ हो, या
- वह उपर्युक्त किसी भी श्रेणी के नागरिक का संतान (पुत्र/पुत्री) अथवा दोहित/पौत्र हो।
विदेशी निवासियों की वैधानिक स्थिति की तुलना (Comparison of the Legal Status of Alien Residents)
तुलना के बिंदु | अनिवासी भारतीय (NRIs) | भारतीय मूल का व्यक्ति (PIOs) | भारत का विदेशी नागरिक (OCIs) |
---|---|---|---|
नागरिकता | भारतीय | विदेशी | विदेशी |
नागरिकता की योग्यता | ऐसे भारतीय नागरिक जो विदेश में दीर्घकालिक निवास करते हैं | भारत सरकार द्वारा निर्धारित कुछ देशों को छोड़कर, वह व्यक्ति या उसके पूर्वज जो भारत के नागरिक रहे हैं | 7 वर्षों के भारत में निवास के उपरांत नागरिकता हेतु आवेदन |
कार्य निष्पादन की अनुमति | सभी प्रकार के कार्य | वीजा की प्रकृति पर आधारित | विशेष अनुमति आवश्यक |
मताधिकार एवं संवैधानिक पद | प्राप्त | नहीं प्राप्त | प्राप्त |
वीजा आवश्यकता | नहीं | हाँ | जीवनपर्यंत बिना वीजा यात्रा |
सुविधाएँ | भारतीय नागरिकों के समतुल्य | कोई विशेष सुविधा नहीं | जीवनपर्यंत वीजा, तथा केंद्र सरकार द्वारा घोषित विशेष सुविधाएँ |
भारतीय मुद्रा में बैंकिंग | हाँ | हाँ | हाँ |
एकल नागरिकता (Single Citizenship)
यद्यपि भारतीय संविधान ने संघीय ढाँचे को अपनाया है, फिर भी यह एकल नागरिकता की अवधारणा को मूलभूत रूप से स्वीकार करता है। जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे पारंपरिक संघीय देशों में दोहरी नागरिकता का प्रावधान होता है, जहाँ व्यक्ति राष्ट्र के साथ-साथ किसी राज्य विशेष का भी नागरिक होता है।
इसके विपरीत, भारत में एकल नागरिकता के अंतर्गत, व्यक्ति केवल भारत का नागरिक माना जाता है, न कि किसी राज्य का पृथक नागरिक।
भारतीय नागरिकता अधिनियम के अंतर्गत, एक नागरिक को केवल भारतीय नागरिकता धारण करने की अनुमति है; वह अन्य किसी देश की नागरिकता एक साथ नहीं रख सकता।
अनुच्छेद 16 संसद को यह अधिकार देता है कि वह किसी राज्य के निवासियों को सरकारी सेवाओं और नियुक्तियों में विशेष आरक्षण प्रदान कर सके।
अनुच्छेद 15 इस बात का निषेध करता है कि किसी नागरिक के साथ धर्म, जाति, मूलवंश, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव किया जाए, परंतु इसमें यह भी स्पष्ट है कि निवास स्थान के आधार पर, किसी राज्य की सरकार शैक्षणिक संस्थानों में अपने निवासियों को विशेष सुविधा प्रदान कर सकती है।
अनुच्छेद 19 के अंतर्गत, अनुसूचित जनजातियों की संस्कृति, परंपरा एवं भाषा की रक्षा हेतु, जनजातीय क्षेत्रों में स्वतंत्र आवागमन एवं निवास के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है, जिससे उनकी विशिष्ट पहचान संरक्षित रह सके।
नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (Citizenship Amendment Act, 2019)
नागरिकता अधिनियम, 1955 के अंतर्गत भारतीय नागरिकता की प्राप्ति एवं निष्कासन की विविध विधियाँ निर्धारित की गई हैं। इसी संदर्भ में, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2003 के द्वारा यह व्यवस्था की गई कि अवैध प्रवासी, न तो पंजीकरण के माध्यम से और न ही देशीयकरण द्वारा भारतीय नागरिकता के पात्र माने जाएँगे।
अवैध प्रवासी : सामान्यतः वह विदेशी नागरिक जो-
(i) बिना वैध यात्रा दस्तावेज (जैसे- पासपोर्ट, वीजा) के भारत में प्रवेश करता है, या
(ii) वैध दस्तावेजों के साथ प्रवेश करने के पश्चात निर्धारित समयावधि पूर्ण हो जाने के बाद भी देश में निवास करता है।
ऐसे अवैध प्रवासियों को पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 और विदेशी अधिनियम, 1946 के अंतर्गत देश से निकाला जा सकता है या उन्हें कारावास की सजा दी जा सकती है।
भारत सरकार द्वारा वर्ष 2015 तथा 2016 में जारी दो अधिसूचनाओं के माध्यम से कुछ विशेष समुदायों को उपर्युक्त अधिनियमों की न्यायिक कार्रवाई से छूट प्रदान की गई।
इस श्रेणी में पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी एवं ईसाई धर्मावलंबी शामिल हैं, जिन्होंने 31 दिसंबर, 2014 अथवा उससे पूर्व भारत में प्रवेश किया था। फलतः इन समूहों के व्यक्तियों को वैध दस्तावेजों के अभाव में भी न तो निर्वासित किया जाएगा, न ही उन्हें कारावास की सज़ा दी जाएगी।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के प्रमुख प्रावधान (Major Provisions of Citizenship Amendment Act, 2019)
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया कि 31 दिसंबर, 2014 या उससे पूर्व भारत में प्रवेश करने वाले तीन देशों — पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं अफगानिस्तान से संबंधित हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई धर्म के व्यक्ति अवैध प्रवासी नहीं माने जाएँगे।
इस अधिनियम के लागू होने की तिथि से ऐसे प्रवासियों के विरुद्ध चल रही विधिक कार्यवाहियाँ स्वतः समाप्त मानी जाएँगी।
इन समुदायों के लिए नागरिकता देशीयकरण के द्वारा 11 वर्षों के स्थान पर अब 5 वर्षों के निवास के बाद प्राप्त की जा सकती है।
हालाँकि, यह व्यवस्था कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में लागू नहीं होगी-
- छठी अनुसूची में वर्णित जनजातीय क्षेत्र, जैसे: मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के आदिवासी भूभाग।
- इनर लाइन परमिट (बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873) के अंतर्गत आने वाले राज्य, जैसे: अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड।
भारत सरकार निम्नलिखित पाँच आधारों पर भारत के समुद्रपारीय नागरिकों (OCIs) के पंजीकरण को रद्द कर सकती है:
(i) धोखाधड़ी के माध्यम से पंजीकरण।
(ii) संविधान का उल्लंघन करना।
(iii) युद्ध के समय शत्रु राष्ट्र के साथ संबंध स्थापित करना।
(iv) राज्य की सुरक्षा अथवा जनहित में आवश्यक होने की स्थिति।
(v) पंजीकरण के पाँच वर्षों के भीतर दो वर्ष या उससे अधिक की कारावास की सजा प्राप्त करना।
नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 से संबंधित चिंताएँ (Concerns Related to Citizenship Amendment Act, 2019)
भारतीय धर्मनिरपेक्ष आदर्श, धार्मिक आधार पर किसी प्रकार के भेदभाव को अस्वीकार करता है, जबकि नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 में धर्म को नागरिकता प्राप्त करने का मूल आधार बनाया गया है।
भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने धर्मनिरपेक्षता को संविधान के मूल ढाँचे का महत्त्वपूर्ण अंग स्वीकार किया है। इसलिए, इस अधिनियम को इसी आधार पर चुनौती भी दी जा रही है।
कुछ संवैधानिक विशेषज्ञों के अनुसार यह अधिनियम अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है, जो कि समानता के अधिकार की अत्यंत महत्वपूर्ण संवैधानिक गारंटी है और यह केवल नागरिकों पर ही नहीं, बल्कि विदेशियों पर भी लागू होता है।
आलोचकों का यह भी तर्क है कि इस अधिनियम में शामिल तीन देशों के अतिरिक्त अन्य पड़ोसी देशों — जैसे श्रीलंका के तमिल हिंदू, या म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों को भी वर्षों से धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है, परंतु उन्हें अधिनियम के अंतर्गत कोई प्रावधान प्राप्त नहीं है।
साथ ही, नागरिकता का यह प्रावधान केवल उन व्यक्तियों के लिये है जो 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में आए थे। अतः प्रवेश की तिथि को लेकर भी स्पष्टता का अभाव देखा गया है।
असम समझौते के अनुसार अवैध प्रवासियों की पहचान तथा निर्वासन के लिये 25 मार्च, 1971 की तिथि निर्धारित की गई थी, जबकि अन्य राज्यों में यह तिथि 1951 मानी जाती है। इस कारण, स्थानीय समुदायों ने आशंका व्यक्त की है कि नागरिकता अधिनियम, 2019 के माध्यम से NRC के अंतर्गत चिन्हित प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करके, यह अधिनियम असम समझौते का उल्लंघन कर रहा है।
इसके अतिरिक्त, नागरिकता अधिनियम, 2019 के कारण भारत के विदेशी संबंधों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना प्रकट की गई है, जैसे:
- बांग्लादेश, जो वर्तमान में भारत का महत्त्वपूर्ण रणनीतिक सहयोगी है, को इस अधिनियम के माध्यम से बार-बार लक्ष्य बनाया जाना, द्विपक्षीय संबंधों में तनाव उत्पन्न कर सकता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका तथा यूरोप के अनेक संगठनों ने भी इस अधिनियम को भारतीय धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के विरोधाभासी के रूप में वर्णित किया है।