| भोराठ/भोराट का पठार | कुम्भलगढ़ (राजसमंद) और गोगुन्दा (उदयपुर) के मध्य में स्थित पठारी भूभाग को भोराठ के पठार के रूप में जाना जाता है। |
| लासड़िया का पठार | सलूंबर जिले में जयसमंद झील से आगे पूर्व की ओर फैला हुआ विच्छेदित एवं कटा-फटा पठारी क्षेत्र लासड़िया का पठार कहलाता है। |
| गिरवा | उदयपुर के चारों ओर स्थित पहाड़ियों की श्रृंखला के कारण, उदयपुर शहर की आकृति एक तश्तरीनुमा बेसिन के समान है, जिसे स्थानीय बोली में ‘गिरवा’ की संज्ञा दी गई है। |
| देशहरो | जरगा (उदयपुर) तथा रागा (सिरोही) की पहाड़ियों के मध्य का भूभाग वर्षभर हरा-भरा रहने के कारण ‘देशहरो’ के नाम से प्रसिद्ध है। |
| मगरा | उदयपुर का उत्तर-पश्चिमी पर्वतीय अंचल ‘मगरा’ के रूप में जाना जाता है। |
| ऊपरमाल | चित्तौड़गढ़ के भैंसरोड़गढ़ से लेकर भीलवाड़ा के बिजोलिया तक विस्तृत पठारी क्षेत्र को ‘ऊपरमाल’ कहा जाता है। यह एक मौलिक कृषि क्षेत्र है। |
| खेराड़ | भीलवाड़ा, शाहपुरा और टोंक जिलों का वह भूभाग जो बनास नदी के बेसिन के अंतर्गत आता है, ‘खेराड़’ कहलाता है। |
| माल खेराड़ | ऊपरमाल एवं खेराड़ के क्षेत्रों को संयुक्त रूप से ‘माल खेराड़’ की संज्ञा दी जाती है। |
| छप्पन का मैदान | बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ के मध्य स्थित भूभाग ‘छप्पन का मैदान’ कहलाता है। इस प्रमुख मैदान का निर्माण माही नदी द्वारा किया गया है (यह 56 गाँवों या 56 नदी-नालों का समूह माना जाता है)। |
| राठ | कोटपूतली-बहरोड़, खैरथल-तिजारा, डीग, अलवर तथा भरतपुर का वह अंचल जो हरियाणा की सीमा के साथ लगता है, ‘राठ’ कहलाता है। |
| कांठल | माही नदी के किनारे (कंठे) पर स्थित प्रतापगढ़ का भूभाग ‘कांठल’ के नाम से विख्यात है, इसी कारण माही नदी को ‘कांठल की गंगा’ भी कहा जाता है। |
| भाखर/भाकर | पूर्वी सिरोही क्षेत्र में स्थित अरावली पर्वतमाला की तीव्र ढलान वाली एवं ऊबड़-खाबड़ पहाड़ियों को स्थानीय रूप से ‘भाकर’ या ‘भाखर’ कहा जाता है। |
| मालानी | जालौर तथा बालोतरा के मध्यवर्ती क्षेत्र को ‘मालानी’ के नाम से जाना जाता है। |
| थली | लूनी नदी के उत्तरी क्षेत्र को ‘थली’ कहते हैं। बीकानेर, पश्चिमी चुरू तथा अनूपगढ़ का क्षेत्र मुख्य रूप से थली क्षेत्र कहलाता है। |
| देवल/मेवलिया | डूंगरपुर तथा बांसवाड़ा के बीच का भूभाग ‘देवल’ अथवा ‘मेवलिया’ के नाम से जाना जाता है। |
| लिटिल रण | राजस्थान में कच्छ की खाड़ी से सटे हुए क्षेत्र को ‘लिटिल रण’ की संज्ञा दी गई है। |
| पुष्प क्षेत्र | डूंगरपुर एवं बांसवाड़ा को सम्मिलित रूप से ‘पुष्प क्षेत्र’ के रूप में भी जाना जाता है। |
| सुजला क्षेत्र | सीकर, चुरू, डीडवाना-कुचामन एवं नागौर जिलों को संयुक्त रूप से ‘सुजला क्षेत्र’ कहा जाता है। |
| मालवा का क्षेत्र | झालावाड़ तथा प्रतापगढ़ को सम्मिलित रूप से ‘मालवा का क्षेत्र’ के नाम से जाना जाता है। |
| धरियन | राजस्थान की स्थानीय भाषा में गतिशील (Mobile) रेत के टीलों को ‘धरियन’ कहा जाता है। यह एक महत्वपूर्ण मरुस्थलीय स्थलाकृति है। |
| नेहरावाटी | नेहरा सरदार झुंझार या जुझार सिंह के नाम पर झुंझुनू शहर की स्थापना हुई। नेहरा जाटों का शासन राजस्थान में नरहड़ और नाहरपुर पर था, जिस कारण यह क्षेत्र प्रारंभ में ‘नेहरावाटी’ कहलाता था, जो कालांतर में ‘शेखावाटी’ हो गया। |
| भोमट | डूंगरपुर, पूर्वी सिरोही तथा उदयपुर जिलों में विस्तृत आदिवासी प्रदेश ‘भोमट’ कहलाता है। |
| कूबड़ पट्टी | नागौर और डीडवाना-कुचामन के जल में फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा पाई जाती है, जिससे शारीरिक विकृति (कूबड़) उत्पन्न होने की आशंका रहती है। इस विशिष्ट क्षेत्र को ‘कूबड़ पट्टी’ या ‘बांका पट्टी’ कहते हैं। |
| लाठी सीरीज क्षेत्र | जैसलमेर में पोकरण से मोहनगढ़ तक पाकिस्तान की सीमा के समानांतर फैली एक भू-गर्भीय मीठे जल की पट्टी है। इसी आवश्यक लाठी सीरीज के ऊपर सेवण घास उगती है। |
| बांगड़/बांगर | शेखावाटी और मरुस्थलीय प्रदेश के मध्य स्थित संकरी पट्टी को ‘बांगड़’ या ‘बांगर’ कहा जाता है। |
| वागड़ | डूंगरपुर और बांसवाड़ा के क्षेत्र को ‘वागड़’ के नाम से जाना जाता है। |
| शेखावाटी | चुरू, सीकर और झुंझुनू जिलों के सम्मिलित क्षेत्र को ‘शेखावाटी’ कहते हैं। |
| बीहड़/डांग/खादर | चम्बल नदी सवाई माधोपुर, करौली और धौलपुर में गहरे खड्डों का निर्माण करती है। इन खड्डों को ‘बीहड़’, ‘डांग’ या ‘खादर’ के नाम से जाना जाता है। यह क्षेत्र डाकुओं की शरणस्थली के रूप में कुख्यात रहा है। सर्वाधिक बीहड़ धौलपुर में हैं। |
| मेवात | खैरथल-तिजारा तथा उत्तरी अलवर का क्षेत्र ‘मेवात’ कहलाता है। |
| कुरु | कोटपूतली-बहरोड़, खैरथल-तिजारा और अलवर का उत्तरी भाग प्राचीन ‘कुरु’ प्रदेश का हिस्सा था। |
| शूरसेन | भरतपुर, धौलपुर और करौली का क्षेत्र प्राचीन ‘शूरसेन’ महाजनपद के अंतर्गत आता था। |
| यौद्धेय | गंगानगर और हनुमानगढ़ का क्षेत्र प्राचीन ‘यौद्धेय’ गणराज्य का हिस्सा था। |
| जांगल प्रदेश | बीकानेर तथा फलौदी का क्षेत्र ‘जांगल प्रदेश’ के नाम से जाना जाता था। |
| गुर्जरात्रा | जोधपुर ग्रामीण जिले का दक्षिणी भाग ‘गुर्जरात्रा’ कहलाता था। |
| ढूंढाड़ | जयपुर ग्रामीण के आस-पास का भूभाग ‘ढूंढाड़’ के नाम से प्रसिद्ध है। |
| माल/वल्ल | जैसलमेर क्षेत्र को ‘माल’ या ‘वल्ल’ प्रदेश भी कहा जाता था। |
| शिवि/मेदपाट/प्राग्वाट | उदयपुर और चित्तौड़गढ़ का क्षेत्र (मेवाड़) प्राचीन काल में ‘शिवि’, ‘मेदपाट’ या ‘प्राग्वाट’ कहलाता था। |
| गोडवाड़ | यह दक्षिण-पश्चिमी राजस्थान में स्थित है और गुजरात राज्य के साथ सीमा बनाता है। इसमें बाड़मेर, सांचौर और सिरोही के क्षेत्र शामिल हैं। |
| देवगिरी | दौसा शहर ‘देवगिरी’ नामक पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। |
| गिहिलोट | उदयपुर के समीपवर्ती भूभाग को ‘गिहिलोट’ के नाम से भी जाना जाता था। |
| मछला मगरा | उदयपुर के चारों ओर मछली के आकार में फैली हुई पहाड़ी श्रृंखला को ‘मछला मगरा’ कहते हैं। |
| सपाड़ | सवाई माधोपुर और करौली का मध्य प्रदेश से सटा हुआ क्षेत्र ‘सपाड़’ कहलाता है। |
| बरड़ | बूंदी जिले का पश्चिमी पथरीला भूभाग ‘बरड़’ के नाम से जाना जाता है। |
| बीड़ | शेखावाटी अंचल में पाए जाने वाले घास के मैदानों को स्थानीय भाषा में ‘बीड़’ कहा जाता है। |
| अनंत गोचर | सांभर से सीकर तक विस्तृत भू-भाग को ‘अनंत गोचर’ के नाम से जाना जाता था। |
| तोरावाटी | कांतली नदी (सीकर) के बेसिन में तंवर राजवंश का अधिकार क्षेत्र होने के कारण यह ‘तोरावाटी’ कहलाया। |
| अहीरवाटी | खैरथल-तिजारा, कोटपूतली-बहरोड़ और अलवर जिले का हरियाणा से सटा हुआ क्षेत्र ‘अहीरवाटी’ कहलाता है। |
| देवड़ावाटी | सिरोही का क्षेत्र ‘देवड़ावाटी’ के नाम से प्रसिद्ध है। |
| अर्बुद | सिरोही और माउंट आबू का प्राचीन नाम ‘अर्बुद’ प्रदेश था। |
| मालाणी | बाड़मेर का क्षेत्र ‘मालाणी’ के नाम से भी जाना जाता है। |
| मेरवाड़ा | ब्यावर तथा राजसमंद जिले का दिवेर क्षेत्र ‘मेरवाड़ा’ कहलाता था, जो मेर जनजाति का निवास स्थान था। |
| मालव प्रदेश | टोंक, प्रतापगढ़ और झालावाड़ का क्षेत्र ‘मालव प्रदेश’ का हिस्सा माना जाता है। |
| मगरा प्रदेश | राजसमंद, चित्तौड़गढ़, अजमेर और भीलवाड़ा का पहाड़ी क्षेत्र ‘मगरा प्रदेश’ कहलाता है। |