राजस्थान की झीलें


राजस्थान की पवित्र झीलें

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राजस्थान प्रदेश में प्राचीन समय से ही अनेक प्राकृतिक झीलें अस्तित्व में रही हैं। इसके अतिरिक्त, मध्यकाल एवं आधुनिक युग में विभिन्न रियासतों के शासकों द्वारा भी कई जलाशयों का निर्माण करवाया गया। राजस्थान में मीठे एवं खारे पानी की दोनों प्रकार की झीलें पाई जाती हैं, जिनमें मीठे पानी की झीलों की संख्या सर्वाधिक है। भौगोलिक दृष्टि से, अरावली पर्वतमाला के पूर्वी हिस्से में स्थित झीलें सामान्यतः मीठे पानी की हैं, जिन्हें ताजे पानी के स्रोत के रूप में भी जाना जाता है। इन महत्वपूर्ण जलाशयों का जल सिंचाई तथा पेयजल की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उपयोग में लिया जाता है। इसके विपरीत, राज्य की लगभग सभी लवणीय झीलें पश्चिमी मरुस्थलीय क्षेत्र में केंद्रित हैं। इनकी संरचना पश्चिमी एशिया के मरुस्थलीय क्षेत्रों में स्थित ‘प्लाया‘ अथवा अर्जेंटीना की ‘साल्टा‘ झीलों से समानता रखती है। इन झीलों के जल के लवणीय होने का प्राथमिक कारण इस क्षेत्र की विशिष्ट भू-गर्भिक संरचना है।

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राजस्थान की मीठे पानी की प्रमुख झीलें

जयसमंद झील / ढेबर झील (सलूम्बर)

जयसमंद झील राजस्थान की सबसे बड़ी कृत्रिम मीठे पानी की झील के रूप में विख्यात है। इस उल्लेखनीय झील का निर्माण मेवाड़ के शासक राणा जयसिंह द्वारा गोमती नदी के प्रवाह को बाधित करके (1687-91 के मध्य) संपन्न कराया गया। गोमती, झावरी एवं बागर नदियों का जल ढेबर दर्रे से होकर इस झील में एकत्रित होता था, जिस कारण इसे ‘ढेबर झील’ की संज्ञा भी दी गई है। इस झील के भीतर सात भिन्न-भिन्न आकार के टापू स्थित हैं। इनमें से सबसे विशाल टापू ‘बाबा का भागड़ा’ तथा सबसे छोटा ‘प्यारी’ के नाम से जाना जाता है। इन टापुओं पर स्थानीय आदिवासी समुदाय के लोग निवास करते हैं। जयसमंद झील सलूम्बर और उदयपुर जिलों के लिए पेयजल आपूर्ति का एक निर्णायक स्रोत है। वर्तमान में, जयसमंद झील को एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की दिशा में कार्य प्रगति पर है। सिंचाई हेतु इस झील से श्यामपुरा तथा भट्टा (भाट) नामक दो नहरें भी निकाली गई हैं। जलीय जीवों की प्रचुरता और सर्वाधिक जैव विविधता के कारण, इस झील को ‘जलचरों की बस्ती’ का उपनाम भी दिया गया है।

ध्यान दें: एशिया तथा भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम मीठे पानी की झील गोविन्द सागर झील है, जो भाखड़ा बांध (हिमाचल प्रदेश) पर स्थित है।

राजसमंद झील (राजसमंद)

इस झील का निर्माण मेवाड़ के राजा राजसिंह द्वारा गोमती नदी पर एक बांध बनवाकर (1662-76 के दौरान) करवाया गया था। इस झील का निर्माण उस महत्वपूर्ण समय में हुआ जब मेवाड़ एक भीषण अकाल की चपेट में था, जिससे यह एक राहत कार्य का भी हिस्सा बनी। झील का उत्तरी किनारा “नौ चौकी” के नाम से प्रसिद्ध है। इसी नौ चौकी की पाल पर महाराणा राजसिंह ने घेवर माता तथा दस भुजाओं वाली अंबा माता के मंदिरों की स्थापना करवाई थी। इसके अतिरिक्त, झील के तट पर द्वारकाधीश मंदिर एवं दयाल शाह का किला भी स्थित हैं। यहीं पर पच्चीस काले संगमरमर की शिलाओं पर मेवाड़ का संपूर्ण इतिहास संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण है। यह रचना ‘राजप्रशस्ति’ कहलाती है, जिसे विश्व की सबसे बड़ी प्रशस्ति होने का गौरव प्राप्त है। राजप्रशस्ति की रचना ‘अमरकाव्य वंशावली’ नामक ग्रंथ के आधार पर की गई है, जिसके लेखक रणछोड़ भट्ट तैलंग थे।

पिछोला झील (उदयपुर)

चौदहवीं शताब्दी में, इस मीठे पानी की झील का निर्माण राणा लाखा के शासनकाल में एक पिच्छू नामक बंजारे द्वारा अपने बैल की स्मृति में करवाया गया था। पिछोला झील में स्थित टापुओं पर ‘जग मंदिर’ तथा ‘जग निवास’ नामक भव्य महल निर्मित हैं। जग मंदिर का निर्माण कार्य महाराणा कर्ण सिंह ने सन् 1620 में आरंभ करवाया था, जिसे महाराणा जगत सिंह प्रथम ने 1651 में पूर्ण किया। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि मुगल बादशाह शाहजहाँ ने अपने पिता के विरुद्ध विद्रोह के दौरान इसी महल में शरण ली थी। जग मंदिर का महत्व इस बात से भी है कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय, महाराणा स्वरूप सिंह ने नीमच छावनी से भागे हुए लगभग 40 अंग्रेजों को क्रांतिकारियों से बचाने के लिए यहीं आश्रय प्रदान किया था। जग निवास महल का निर्माण महाराणा जगत सिंह द्वितीय द्वारा 1746 में करवाया गया। वर्तमान में, इन महलों को “लेक पैलेस होटल” के रूप में परिवर्तित कर एक प्रमुख पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया गया है। झील के निकट “गलकी नटणी” का चबूतरा स्थित है। झील के किनारे पर “राजमहल” या “सिटी पैलेस” स्थित है, जिसका निर्माण उदयसिंह ने करवाया था। इतिहासकार फर्ग्यूसन ने इन महलों को “राजस्थान के विंडसर महल” की संज्ञा दी थी। सीसारमा तथा बुझड़ा नदियाँ इस झील के लिए प्राथमिक जल स्रोत हैं। राजस्थान में सौर ऊर्जा से संचालित प्रथम नाव का परिचालन पिछोला झील में ही प्रारंभ किया गया था।

फतेहसागर झील (उदयपुर)

उदयपुर जिले में अवस्थित इस मीठे पानी की झील का निर्माण मूल रूप से मेवाड़ के शासक जयसिंह ने 1678 ई. में करवाया था। कालांतर में, अतिवृष्टि के कारण इसके क्षतिग्रस्त हो जाने पर, इसका पुनर्निर्माण 1889 में महाराजा फतेहसिंह द्वारा करवाया गया। इस पुनर्निर्माण की आधारशिला ड्यूक ऑफ कनॉट द्वारा रखी गई थी, जिसके उपरांत इसे फतेहसागर झील कहा जाने लगा। इसके तट पर सहेलियों की बाड़ी, महाराणा प्रताप का स्मारक, नेहरू उद्यान और संजय गांधी उद्यान जैसे प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। इस झील में एक सौर वेधशाला भी स्थापित की गई है।

अहमदाबाद स्थित संस्थान द्वारा 1975 में भारत की प्रथम सौर वेधशाला फतेहसागर झील में ही स्थापित की गई थी। सूर्य और उसकी गतिविधियों के गहन अध्ययन हेतु बेल्जियम में निर्मित एक उन्नत टेलिस्कोप की स्थापना भी इसी झील के निकट की गई है। फतेहसागर झील उदयपुर शहर के लिए पेयजल आपूर्ति का एक आवश्यक स्रोत है। उदयपुर के देवाली गाँव के समीप स्थित होने के कारण इसे ‘देवाली तालाब’ के नाम से भी जाना जाता है। पिछोला और फतेहसागर झीलों को जोड़ने वाले संकरे जलाशय को ‘स्वरूप सागर झील’ कहा जाता है।

आनासागर झील (अजमेर)

अजमेर नगर के केंद्र में स्थित इस झील का निर्माण अजयराज के पुत्र अर्णोराज (पृथ्वीराज चौहान के पितामह) द्वारा 1137 ई. में करवाया गया था। जयानक रचित ग्रंथ ‘पृथ्वीराज विजय’ में यह उल्लेख मिलता है कि तुर्कों पर विजय के उपरांत उनके रक्त से अपवित्र हुई भूमि को शुद्ध करने के मौलिक उद्देश्य से आनासागर झील का निर्माण करवाया गया। पर्वतों से घिरी होने के कारण यह झील एक अत्यंत मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती है। इसी सौंदर्य से आकर्षित होकर मुगल सम्राट जहाँगीर ने इसके निकट दौलत बाग का निर्माण करवाया, जिसे वर्तमान में ‘सुभाष उद्यान’ के नाम से जाना जाता है। इसी उद्यान में नूरजहाँ की माँ अस्मत बेगम ने गुलाब से इत्र बनाने की विधि का आविष्कार किया था। जहाँगीर ने यहाँ ‘चश्मा-ए-नूर’ नामक एक झरने का भी निर्माण करवाया। बाद में, शाहजहाँ ने इसी उद्यान में संगमरमर की पाँच बारादरी (छतरियाँ) का निर्माण करवाया, जो आज भी इसके सौंदर्य में वृद्धि करती हैं।

नक्की झील (सिरोही)

राजस्थान के सिरोही जिले के माउंट आबू पर स्थित नक्की झील, प्रदेश की सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित और सबसे गहरी झील है। यह राजस्थान की एकमात्र ऐसी झील है जो शीतकाल में जम जाती है। भूवैज्ञानिकों के अनुसार, इस झील का निर्माण ज्वालामुखी उद्गार से हुआ है, अतः यह एक प्राकृतिक क्रेटर झील है। हालांकि, एक लोकप्रिय मान्यता के अनुसार, इस झील की खुदाई देवताओं ने अपने नाखूनों से की थी, जिसके कारण इसका नाम ‘नक्की’ पड़ा। यह झील एक प्रमुख पहाड़ी पर्यटन क्षेत्र में स्थित है। झील के भीतर एक टापू है जिस पर रघुनाथ जी का मंदिर बना हुआ है। इसके अतिरिक्त, झील के एक ओर मेंढक के आकार की एक विशाल चट्टान है, जिसे “टॉड रॉक” कहा जाता है। एक अन्य चट्टान की आकृति एक महिला जैसी है, जिसे “नन रॉक” के नाम से जाना जाता है। एक चट्टान की आकृति प्रेमी युगल जैसी है, जिसे “कपल रॉक” कहते हैं। यहाँ हाथी गुफा, चंपा गुफा, रामझरोखा तथा पैरट रॉक जैसे अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं। यह झील गरासिया जनजाति के लिए एक आध्यात्मिक केंद्र का महत्व रखती है; वे अपने मृतकों की अस्थियों का विसर्जन इसी झील में करते हैं। इसके समीप ही “अर्बुदा देवी” का मंदिर स्थित है, जिनके नाम पर इस पर्वत को ‘आबू पर्वत’ कहा जाता है।

विवर्तनिक प्रक्रिया

पृथ्वी की आंतरिक परतों में होने वाली विवर्तनिक (Tectonic) प्रक्रियाओं के कारण अनेक दरारें एवं भ्रंश उत्पन्न होते हैं। इन भ्रंशों में जल के भर जाने से विवर्तनिक झीलों का विकास होता है। कुछ भूवैज्ञानिकों के मतानुसार, नक्की झील इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

पुष्कर झील (अजमेर)

राजस्थान के अजमेर जिले में, अजमेर शहर से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, पुष्कर झील का निर्माण भी ज्वालामुखी उद्भेदन से माना जाता है, अतः इसे काल्डेरा (Caldera) या क्रेटर झील की श्रेणी में रखा जाता है। यह एक पवित्र प्राकृतिक झील है और इसे राजस्थान का सबसे पवित्र सरोवर माना जाता है। इसी कारण इसे ‘आदितीर्थ’, ‘पंचम तीर्थ’, ‘कोंकण तीर्थ’, ‘तीर्थों का मामा’ तथा ‘तीर्थराज’ जैसे नामों से भी संबोधित किया जाता है। एक मान्यता के अनुसार, इसकी खुदाई पुष्कर्णा ब्राह्मणों द्वारा की गई थी, जिससे इसे पुष्कर झील की संज्ञा मिली। एक अन्य किंवदंती के अनुसार, इस झील का निर्माण भगवान ब्रह्मा के हाथ से गिरे तीन कमल पुष्पों से हुआ, जिनसे क्रमशः ज्येष्ठ पुष्कर, मध्यम पुष्कर और कनिष्ठ पुष्कर का निर्माण हुआ। यह माना जाता है कि महाभारत युद्ध के पश्चात पांडवों ने यहाँ स्नान किया, महर्षि वेदव्यास ने यहीं महाभारत की रचना की, और विश्वामित्र ने यहाँ तपस्या की थी। वेदों का अंतिम संकलन भी यहीं हुआ माना जाता है। चौथी शताब्दी में, महाकवि कालिदास ने अपनी विश्वप्रसिद्ध कृति ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ की रचना इसी स्थान पर की थी। गुरु गोविंद सिंह ने यहाँ गुरुग्रंथ साहिब का पाठ किया था। इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने कहा था कि इस सरोवर की तुलना तिब्बत की मानसरोवर झील के अतिरिक्त किसी अन्य से नहीं की जा सकती।

इस झील के चारों ओर अनेक प्राचीन मंदिर स्थित हैं, जिनमें ब्रह्मा जी का मंदिर सबसे प्राचीन और मुख्य है। इसका निर्माण 10वीं शताब्दी में पंडित गोकुलचंद पारीक ने करवाया था। इसी मंदिर के सामने एक पहाड़ी पर ब्रह्मा जी की पत्नी ‘सावित्री देवी’ का मंदिर है, जिसमें माँ सरस्वती की प्रतिमा भी स्थापित है। (उल्लेखनीय है कि राजस्थान के बालोतरा जिले के आसोतरा नामक स्थान पर ब्रह्मा जी का एक अन्य मंदिर भी स्थित है।)

पुष्कर झील के चारों ओर 52 घाट बने हुए हैं, जहाँ श्रद्धालु अपने पितरों का तर्पण करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहाँ एक विशाल मेले का आयोजन होता है तथा दीपदान की परंपरा का निर्वहन किया जाता है। आय की दृष्टि से यह राजस्थान का सबसे बड़ा मेला है। यहाँ एक ‘महिला घाट’ भी निर्मित है, जिसे वर्तमान में ‘गांधी घाट’ के नाम से जाना जाता है। 1911 में इंग्लैंड की महारानी मैरी के आगमन पर उनके लिए ‘क्वीन मैरी जनाना घाट’ का निर्माण करवाया गया था। महात्मा गांधी की इच्छानुसार, उनकी अस्थियों का विसर्जन भी पुष्कर झील में ही किया गया था। इन घाटों में जयपुर घाट सबसे बड़ा है। पुष्कर में दक्षिण भारतीय शैली में निर्मित राजस्थान का सबसे बड़ा मंदिर, ‘श्री रंग जी का मंदिर’, भी स्थित है। 1998 में, झील में जमा हुई गाद को साफ करने के लिए कनाडा सरकार द्वारा महत्वपूर्ण आर्थिक सहायता प्रदान की गई थी।

संबंधित तथ्य

तीर्थों का मामा: पुष्कर, अजमेर
तीर्थों का भांजा: मचकुंड, धौलपुर
तीर्थों की नानी: शाकंभरी माता (देवयानी), सांभर
मामा-भांजा का मंदिर: फुलदेवरा शिवालय, बारां

कोलायत झील (बीकानेर)

राजस्थान के बीकानेर जिले में स्थित इस मीठे पानी की झील के समीप सांख्य दर्शन के प्रणेता कपिल मुनि का आश्रम है। इस रमणीय आश्रम को “राजस्थान का सुंदर मरुद्यान” भी कहा जाता है। मान्यता है कि कोलायत झील की उत्पत्ति कपिल मुनि ने अपनी माता की मुक्ति के लिए की थी। यहाँ प्रतिवर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा को एक भव्य मेला आयोजित होता है। इस अवसर पर झील में दीपदान करने की परंपरा है। इसके निकट ही एक शिवालय स्थित है, जिसमें बारह शिवलिंग स्थापित हैं।

सिलीसेढ़ झील (अलवर)

यह झील अलवर जिले में स्थित है। इसके किनारे अलवर के महाराजा विनयसिंह ने 1845 में अपनी रानी के लिए एक भव्य शाही महल (लेक पैलेस) तथा एक शिकारी लॉज का निर्माण करवाया था। अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण यह झील ‘राजस्थान का नंदन कानन’ कहलाती है।

उदयसागर झील (उदयपुर)

यह झील उदयपुर में स्थित है। इसका निर्माण मेवाड़ के शासक उदयसिंह ने आयड़ नदी के जल को रोककर करवाया था। यह एक उल्लेखनीय तथ्य है कि इस झील से निकलने के पश्चात ही आयड़ नदी का नाम ‘बेड़च’ हो जाता है। मेवाड़ महाराणा फाउंडेशन द्वारा पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में ‘उदयसिंह पुरस्कार’ प्रदान किया जाता है।

फायसागर झील (अजमेर)

यह झील अजमेर में स्थित है। इसका निर्माण बांडी नदी के जल को रोककर एक अंग्रेज इंजीनियर मि. फॉय के निर्देशन में बाढ़ राहत परियोजना के अंतर्गत किया गया था। इसी कारण इसे फॉयसागर कहा जाता है। इसका जलस्तर अधिक हो जाने पर इसका अतिरिक्त पानी आनासागर झील में भेज दिया जाता है, जो जल प्रबंधन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

बालसमंद झील (जोधपुर ग्रामीण)

यह झील जोधपुर-मंडोर मार्ग पर स्थित है। इसका निर्माण सन् 1159 में परिहार शासक बालकराव परिहार द्वारा करवाया गया था। इस झील के मध्य में महाराजा सुरसिंह ने एक अष्टकोणीय स्तंभों वाला महल बनवाया, जो इसकी शोभा बढ़ाता है।

गजनेर झील (बीकानेर)

इस झील को इसके स्वच्छ और शांत जल के कारण ‘पानी का शुद्ध दर्पण’ की संज्ञा दी गई है। यह अपने निर्मल सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है।

एडवर्ड सागर / गैप सागर (डूंगरपुर)

महारावल गोपीनाथ द्वारा निर्मित इस झील के भीतर एक आकर्षक ‘बादल महल’ स्थित है। इसी झील के किनारे वीर बाला कालीबाई की प्रतिमा तथा स्वामी विवेकानंद का एक स्मारक भी स्थापित है, जो इसे ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण बनाते हैं।

नंदसमंद (राजसमंद)

अपने व्यापक उपयोग और महत्व के कारण इस झील को ‘राजसमंद की जीवन रेखा’ भी कहा जाता है। यह क्षेत्र की सिंचाई और पेयजल की जरूरतों को पूरा करने में निर्णायक भूमिका निभाती है।

कायलाना झील (जोधपुर)

प्रारंभ में यह एक प्राकृतिक झील थी, जिसे वर्तमान स्वरूप महाराजा प्रताप सिंह द्वारा प्रदान किया गया। दो पहाड़ियों के मध्य स्थित यह झील जोधपुर की सबसे सुंदर झीलों में से एक मानी जाती है। वर्तमान में इस झील को राजीव गांधी लिफ्ट नहर से जल की आपूर्ति की जाती है। इस झील के किनारे देश का प्रथम मरु वानस्पतिक उद्यान ‘माचिया सफारी पार्क’ स्थापित किया गया है। यहीं पर कागा की छतरियाँ भी स्थित हैं।

मोती झील (भरतपुर)

इस झील का निर्माण रूपारेल नदी के जल को रोककर किया गया है। इसे ‘भरतपुर की जीवन रेखा’ कहा जाता है क्योंकि यह शहर की पेयजल आपूर्ति का मुख्य स्रोत है। इस झील से नील-हरित शैवाल (Blue-Green Algae) प्राप्त होता है, जिसका उपयोग नाइट्रोजन युक्त जैविक खाद बनाने में किया जाता है।

गड़सीसर झील (जैसलमेर)

जैसलमेर जिले में स्थित गड़सीसर झील एक वर्षा-जल आधारित जलाशय है। इसका निर्माण 14वीं शताब्दी में तत्कालीन शासक महरवाल गडसी सिंह द्वारा करवाया गया था।

सरदार समंद झील (पाली)

डॉ. हरिमोहन सक्सेना की पुस्तक ‘राजस्थान का भूगोल’ तथा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की कक्षा 10 की पुस्तक ‘राजस्थान अध्ययन’ के अनुसार, पाली जिले में स्थित सरदार समंद झील का निर्माण सन् 1933 में महाराजा उम्मेद सिंह ने करवाया था। झील के किनारे स्थित भव्य ‘सरदार समंद लेक पैलेस’ महाराजा उम्मेद सिंह का ग्रीष्मकालीन निवास हुआ करता था, जिसे अब एक हेरिटेज होटल में परिवर्तित कर दिया गया है।

बाई तालाब (बांसवाड़ा)

बांसवाड़ा के तेजपुर गाँव के निकट स्थित ‘बाई तालाब’ का निर्माण महारावल जगमाल की ईडर की रानी लाछ कुंवरी (लास बाई) ने करवाया था। बाई तालाब को ‘आनंद सागर झील’ के नाम से भी जाना जाता है।

राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना (NLCP)

केंद्र सरकार द्वारा देश की झीलों के पारिस्थितिकीय और सांस्कृतिक महत्व को बनाए रखने के उद्देश्य से वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अधीन मई 2001 में राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना का शुभारंभ किया गया। इस योजना के अंतर्गत प्रदूषित झीलों के संरक्षण एवं प्रबंधन हेतु एक व्यापक कार्यक्रम अनुमोदित किया गया। इस स्कीम का मौलिक उद्देश्य प्रदूषित एवं निम्नीकृत हो चुकी झीलों तथा अन्य जलाशयों जैसे टैंक, तालाब आदि का पुनरुद्धार एवं संरक्षण करना है। NLCP के कार्यान्वयन से झीलों की पारिस्थितिकी में सुधार हुआ है तथा उनके सौंदर्य एवं पर्यटन मूल्यों में वृद्धि हुई है। प्रारंभ में केंद्र व राज्य का अंशदान 70:30 था, जिसे 1 अप्रैल 2016 से संशोधित कर 60:40 कर दिया गया है। स्थानीय स्वशासन विभाग (LSG) इस योजना के लिए प्राथमिक कार्यान्वयन एजेंसी है।

राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना के अंतर्गत राजस्थान की निम्न 6 झीलों को शामिल किया गया है:

  1. फतेह सागर, उदयपुर
  2. पिछोला, उदयपुर
  3. आना सागर, अजमेर
  4. पुष्कर, अजमेर
  5. नक्की, माउंट आबू, सिरोही
  6. मानसागर झील, जयपुर

राजस्थान की खारे पानी की प्रमुख झीलें

सांभर झील (जयपुर, नागौर, अजमेर)

यह झील जयपुर की फुलेरा तहसील में मुख्य रूप से स्थित है, हालांकि इसका विस्तार नागौर और अजमेर जिलों तक है। बिजोलिया शिलालेख के अनुसार, इसका निर्माण चौहान शासक वासुदेव ने करवाया था। यह भारत में खारे पानी की सबसे बड़ी आंतरिक झील है। इसमें खारी, खंडेला, मेंथा, तथा रूपनगढ़ नदियाँ अपना जल विसर्जित करती हैं। यह झील दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम दिशा में लगभग 32 किलोमीटर लंबी तथा 3 से 12 किलोमीटर तक चौड़ी है।

सांभर में नमक की उत्पत्ति के संबंध में भू-गर्भवेत्ताओं में विभिन्न मत प्रचलित हैं। कुछ विद्वान इसे वायु द्वारा लाए गए लवणों का परिणाम बताते हैं, तो कुछ इसे नदियों द्वारा लाए गए लवणों का जमाव मानते हैं, जबकि कुछ अन्य स्थानीय चट्टानों को इसका स्रोत मानते हैं। वास्तविकता यह है कि झील का संपूर्ण तल लवणीय मृदा की एक मोटी परत से ढका हुआ है।

यह देश में नमक उत्पादन का सबसे बड़ा आंतरिक स्रोत है। यहाँ मार्च से मई माह के मध्य नमक बनाने का कार्य मुख्य रूप से किया जाता है। यहाँ नमक ‘रेस्ता’ और ‘क्यार’ नामक दो विधियों से तैयार होता है। यहाँ नमक उत्पादन का कार्य केंद्र सरकार के उपक्रम ‘हिंदुस्तान साल्ट्स लिमिटेड’ की सहायक कंपनी ‘सांभर साल्ट्स लिमिटेड’ द्वारा किया जाता है। यह झील केंद्र की ‘स्वदेश दर्शन योजना’ के अंतर्गत राजस्थान सर्किट का एक अभिन्न हिस्सा है। राजस्थान के 2022-23 के बजट में झील के एकीकृत प्रबंधन एवं विकास हेतु ‘सांभर लेक मैनेजमेंट प्रोजेक्ट’ प्रारंभ करने का प्रावधान किया गया था, जिस पर कार्य जारी है।

तथ्य:

  • सांभर झील भारतीय महान जल विभाजक रेखा पर स्थित है।
  • भारत के कुल नमक उत्पादन का लगभग 8.7% यहीं से उत्पादित होता है।
  • यहाँ ‘स्पाईरूलीना’ नामक शैवाल पाया जाता है, जो प्रोटीन का एक समृद्ध स्रोत है।
  • अंग्रेजों ने 1869 ई. में एक नमक समझौते के तहत इस झील को लीज पर लिया था।
  • सांभर झील को 23 मार्च 1990 को एक रामसर साइट (अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि) घोषित किया गया था।
  • यहाँ एक ‘सॉल्ट म्यूजियम’ भी स्थापित किया गया है।
  • संत दादू दयाल (जिन्हें ‘राजस्थान का कबीर’ कहा जाता है) ने अपना प्रथम उपदेश सांभर झील के किनारे ही दिया था।
  • झील के किनारे शाकंभरी माता का मंदिर स्थित है, जिन्हें ‘तीर्थों की नानी’ और ‘देवयानी माता’ भी कहा जाता है।
  • मुगल सम्राट अकबर का विवाह जोधा बाई से इसी क्षेत्र में हुआ था।
  • यह झील कुरजां (Demoiselle Crane) और राजहंस (Flamingo) जैसे प्रवासी पक्षियों के लिए एक महत्वपूर्ण आश्रय स्थल है।

पचपदरा (बालोतरा)

यह झील बालोतरा जिले में स्थित है। माना जाता है कि इसका निर्माण पंचा नामक भील ने करवाया था, जिसके कारण इसे पचपदरा कहा जाता है। इस झील का नमक समुद्री नमक से काफी मिलता-जुलता है। यहाँ के नमक में सोडियम क्लोराइड की मात्रा 98% तक पाई जाती है, जिस कारण यहाँ उत्पादित नमक को उच्च गुणवत्ता का माना जाता है। यहाँ खारवाल जाति के परिवार प्राचीन काल से ‘मोरली’ नामक झाड़ी की टहनियों का उपयोग करके नमक के स्फटिक (क्रिस्टल) तैयार करते हैं, यह विधि ‘वायु रेस्ता’ कहलाती है।

डीडवाना झील (डीडवाना-कुचामन)

राजस्थान के डीडवाना-कुचामन जिले में लगभग 4 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली इस झील के जल में सोडियम क्लोराइड के स्थान पर सोडियम सल्फेट की अधिकता होती है। इस कारण यहाँ से प्राप्त नमक खाने योग्य नहीं होता है। अतः, यहाँ के नमक का उपयोग मुख्यतः चर्म शोधन, कागज उद्योग तथा अन्य रासायनिक क्रियाओं में किया जाता है। इस झील के समीप राज्य सरकार द्वारा ‘राजस्थान स्टेट केमिकल वर्क्स’ नामक दो इकाइयाँ स्थापित की गई हैं, जो सोडियम सल्फेट और सोडियम सल्फाइट का उत्पादन करती हैं। यहाँ निजी इकाइयों द्वारा भी नमक बनाया जाता है, जिन्हें ‘देवल’ कहते हैं।

लूणकरणसर (बीकानेर)

राजस्थान के बीकानेर जिले में स्थित यह एक अत्यंत छोटी खारे पानी की झील है। यहाँ से उत्पादित नमक की मात्रा बहुत कम होती है और यह केवल स्थानीय आवश्यकताओं की ही पूर्ति कर पाती है। यह उत्तरी राजस्थान की एकमात्र उल्लेखनीय खारे पानी की झील है। लूणकरणसर अपनी मूंगफली की पैदावार के लिए भी प्रसिद्ध है, जिस कारण इसे ‘राजस्थान का राजकोट’ कहा जाता है।

नावां झील (डीडवाना-कुचामन)

नावां में भारत सरकार द्वारा ‘आदर्श लवण पार्क’ (Model Salt Farm) की स्थापना की गई है, जो नमक उद्योग के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम है।

राजस्थान की झीलें: जिलेवार सूची (नवीनतम जिलों के अनुसार)

खारे पानी की झीलेंमीठे पानी की झीलें
सांभर – जयपुर ग्रामीण, नागौर, अजमेरजयसमंद – सलूम्बर
पचपदरा – बालोतराराजसमंद – राजसमंद
डीडवाना/खल्दा – डीडवाना-कुचामनबालसमंद – जोधपुर ग्रामीण
लूणकरणसर – बीकानेरआनासागर – अजमेर
फलौदी – फलौदीफतेहसागर – उदयपुर
कावोद – जैसलमेरफायसागर – अजमेर
रेवासा – सीकरउदयसागर – उदयपुर
तालछापर – चुरूपुष्कर – अजमेर
कुचामन – डीडवाना-कुचामनकोलायत – बीकानेर
डेगाना – नागौरनक्की – सिरोही
पोकरण – जैसलमेरसिलीसेढ़ – अलवर
बाप – फलौदीपिछोला – उदयपुर
कोछोर – सीकरकायलाना – जोधपुर
नावां – डीडवाना-कुचामननवलखा झील – बूंदी
पीथमपुरी – नीम का थानागलता व रामगढ़ – जयपुर ग्रामीण
 तालाबशाही – धौलपुर
 रामसागर – धौलपुर
 गुंदोलाव झील – किशनगढ़ (अजमेर)
 गोवर्धन सागर झील – उदयपुर
 बांकली झील – पाली
 किशोर सागर (छत्र विलास) – कोटा
 भीमसागर – झालावाड़
 भोपाल सागर – चित्तौड़गढ़
 कनक सागर/दुगारी झील – बूंदी
 जैत सागर – बूंदी
 चोपड़ा झील – पाली
 बुड्ढा जोहड़ – श्रीगंगानगर/अनूपगढ़
 पन्नाशाह तालाब – नीम का थाना
 तलवाड़ा झील – हनुमानगढ़
 मावठा झील – जयपुर (आमेर)

तालाब

तालाब वर्षा जल के संग्रहण हेतु बनाए गए पारंपरिक जल निकाय हैं। इनका उपयोग पेयजल, सिंचाई तथा धार्मिक अनुष्ठानों के लिए किया जाता है। पुराने तालाबों के समीप अक्सर एक कुआँ भी बनाया जाता था, जो जल स्तर को बनाए रखने में सहायक होता था।

प्रमुख तालाबों की सूची

जिलाप्रमुख तालाब
सवाई माधोपुर (रणथम्भौर)सुखसागर, कालासागर, जंगली तालाब
पालीहेमावास, दांतीवाड़ा, मुथाना तालाब
भीलवाड़ासरेरी, खारी, मेजा तालाब
उदयपुरबागोलिया तालाब
चित्तौड़गढ़पद्मिनी तालाब, वानकिया, मुरालिया, सेनापानी
बूंदीकीर्ति मोरी, बरडा, हिंडोली तालाब
भरतपुरपार्वती, बारेठा तालाब
जैसलमेरगड़सीसर तालाब
प्रतापगढ़रायपुर, गंधेर, खेरोट, घोटार्सी, जाजली

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